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खस

सूची खस

खस निम्नलिखित दो अर्थों में प्रयुक्त होता है -.

2 संबंधों: खस (प्राचीन जाति), खसखस

खस (प्राचीन जाति)

खस एक प्राचीन जाति, जो कदाचित शकों की कोई उपजाति थी। मनु ने इन्हें क्षत्रिय बताया है किंतु कहा है कि संस्कार-लोप होने और ब्राह्मणों से संपर्क छूट जाने के कारण वे शूद्र हो गए। महाभारत के सभापर्व एवं मार्कंडेय तथा मत्स्यपुराण में इनके अनेक उल्लेख प्राप्त होते है। समझा जाता है कि महाभारत में उल्लिखित खस का विस्तार हिमालय में पूर्व से पश्चिम तक था। राजतरंगिणी के अनुसार ये लोग कश्मीर के नैऋत्य कोण के पहाड़ी प्रदेश अर्थात् नैपाल में रहते थे। अत: वहाँ के निवासियों को लोग खस मूल का कहते हैं। सिल्वाँ लेवी की धारणा है कि खस हिमालय में बसनेवाली एक अर्धसंस्कृत जाति थी जिसने आगे चलकर बुद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। फिर 12 सताब्दी में हिन्दु धर्म को ग्रहन कर लिआ। यह भी धारणा है खस लोग काश्गर अथवा मध्य एशिया के निवासी थे और तिब्बत के रास्ते वे नैपाल और भारत आए। .

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खसखस

खस का पौधा खस या खसखस (Khus Khus) एक सुगंधित पौधा है। इसका वानस्पतिक नाम वेटिवीरिआ जिजेनिऑयडीज (Vetiveria) है जिसकी व्युत्पत्ति तमिल के शब्द वेटिवर से हुई प्रतीत होती है। यह सुगंधित, पतले एकवर्ध्यक्ष (Racemes) का लंबे पुष्पगुच्छवाला वर्षानुवर्षी पौधा है। इसकी अनुशूकी का जोड़ा सीकुररहित होता है, जिसमें से एक अवृंत और पूर्ण तथा दूसरा वृंतयुक्त और पृंपुष्पी होता है। अवृंत अनुशूकि में बारीक कंटक होते हैं। इसका प्रकंद (rhizoma) बहुत सुगंधित होता है। प्रकंद का उपयोग भारत में इत्र बनाने और ओषधि के रूप में प्राचीन काल से हो रहा है। पौधे की जड़ों का उपयोग विशेष प्रकार का पर्दा बनाने में होता है जिसे ‘खस की टट्टी’ कहते हैं। इसको ग्रीष्म ऋतु में कमरे तथा खिड़कियों पर लगाते हैं और पानी से तर रखते हैं जिससे कमरे में ठंडी तथा सुगंधित वायु आती है और कमरा ठंडा बना रहता है। प्रकंद के वाष्प आसवन से सुगंधित वाष्पशील तेल प्राप्त होता है जिसका उपयोग इत्र बनाने में होता है। फूलों की गंध को पकड़ रखने की इसमें क्षमता पर्याप्त होती है। यह सघन गुच्छेदार घास राजस्थान एवं भारत के अन्य राज्यों में स्वजात उगती पाई जाती है। राजस्थान में भरतपुर तथा अजमेर जिलों में यह खूब उगती है। इस पादप के मजबूत डंठल प्रकद से निकले हुए लगभग 2 मीटर तक ऊंचे, सघन गुच्छों में, मजबूत स्पंजी जड़ों वाले होते हैं। इसकी जड़ों से प्राप्त तेल इत्र उद्योग में प्रसाधन सामग्री बनाने व साबुन का सुगंध प्रदान करने में प्रयुक्त होता है। खस तेल का अध्याम, शूल व दुराग्राही उल्टियों में वातानुलोमक के रूप में प्रयोग होता है। यह उद्दीपक, स्वेदनकारी व शीतलक माना जाता है। इसके अतिरिक्त आमवात, कटिवेदना व मोच में भी इससे मालिश करने पर आराम मिलता है। .

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