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खड़िया विद्रोह और संथाल विद्रोह

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

खड़िया विद्रोह और संथाल विद्रोह के बीच अंतर

खड़िया विद्रोह vs. संथाल विद्रोह

तेलंगा खड़िया के नेतृत्व में खड़िया विद्रोह 1880 में हुआ। यह आंदोलन अपनी माटी की रक्षा के लिए शुरू हुआ। जंगल की जमीन से अंग्रेजों को हटाने के लिए युवा वर्ग को गदका, तीर और तलवार चलाने की शिक्षा दी गई। तेलंगा की पत्नी रत्नी खड़िया ने हर मोर्चे पर पति का साथ दिया। रत्नी ने कई जगह अकेले ही नेतृत्व संभालते हुए अंग्रेजों से लोहा लिया। 23 अप्रैल 1880 को अंग्रेजों के दलाल बोधन सिंह ने गोली मारकर तेलंगा खड़िया की हत्या कर दी। उनकी हत्या के बाद रत्नी खड़िया ने पति के अधूरे कार्यां को पूरा किया। वह अपनी सादगी, ईमानदारी और सत्यवादिता से लोगों में जीवन का संचार करती रहीं। . ६०० संथालों का दल ४०वें रेजिमेण्ट के ५० सिपाहियों पर आक्रमण करता हुआ। वर्ष १८५५ में बंगाल के मुर्शिदाबाद तथा बिहार के भागलपुर जिलों में स्थानीय जमीनदार, महाजन और अंग्रेज कर्मचारियों के अन्याय अत्याचार के शिकार संताल जनता ने एकबद्ध होकर उनके विरुद्ध विद्रोह का बिगुल फूँक दिया था। इसे संथाल विद्रोह या संथाल हुल कहते हैं। संथाली भाषा में 'हूल' शब्द का शाब्दिक अर्थ है-'विद्रोह'। यह अंग्रेजों के विरुद्ध प्रथम सशस्त्र जनसंग्राम था। सिधु-कान्हू, चाँद-भैरो भाइयों और फूलो-झानो जुड़वा बहनों ने संथाल हल का नेतृत्व, शाम टुडू (परगना) के मार्गदर्शन में किया। 1793 में लॉर्ड कार्नवालिस द्वारा आरम्भ किए गए स्थाई बन्दोबस्त के कारण जनता के ऊपर बढ़े हुए अत्याचार इस विद्रोह का एक प्रमुख कारण था। .

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संदर्भ

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