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खगोलभौतिकी

सूची खगोलभौतिकी

खगोलभौतिकी (Astrophysics) खगोल विज्ञान का वह अंग है जिसके अंतर्गत खगोलीय पिंडो की रचना तथा उनके भौतिक लक्षणों का अध्ययन किया जाता है। कभी-कभी इसे 'ताराभौतिकी' भी कह दिया जाता है हालाँकि वह खगोलभौतिकी की एक प्रमुख शाखा है जिसमें तारों का अध्ययन किया जाता है। .

6 संबंधों: तारा, ताराभौतिकी, दूरदर्शी, प्रकाशमिति, ब्रह्माण्डविद्या, खगोल शास्त्र

तारा

तारे (Stars) स्वयंप्रकाशित (self-luminous) उष्ण गैस की द्रव्यमात्रा से भरपूर विशाल, खगोलीय पिंड हैं। इनका निजी गुरुत्वाकर्षण (gravitation) इनके द्रव्य को संघटित रखता है। मेघरहित आकाश में रात्रि के समय प्रकाश के बिंदुओं की तरह बिखरे हुए, टिमटिमाते प्रकाशवाले बहुत से तारे दिखलाई देते हैं। .

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ताराभौतिकी

ताराभौतिकी (Stellar physics) खगोलभौतिकी की एक शाखा है जो तारों से सम्बन्धित भौतिकी का अध्ययन करती है। इसमें तारों के जन्म, उनके क्रम-विकास के अन्तर्गत जीवन-चक्र, उनके ढांचे और अन्य पहलुओं पर जानकारी प्राप्त की जाती है। .

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दूरदर्शी

न्यूटनीय दूरदर्शी का आरेख दूरदर्शी वह प्रकाशीय उपकरण है जिसका प्रयोग दूर स्थित वस्तुओं को देख्नने के लिये किया जाता है। दूरदर्शी से सामान्यत: लोग प्रकाशीय दूरदर्शी का अर्थ ग्रहण करते हैं, परन्तु दूरदर्शी विद्युतचुंबकीय वर्णक्रम के अन्य भागों मै भी काम करता है जैसे X-रे दूरदर्शी जो कि X-रे के प्रति संवेदनशील होता है, रेडियो दूरदर्शी जो कि अधिक तरंगदैर्घ्य की विद्युत चुंबकीय तरंगे ग्रहण करता है। दूरदर्शी साधारणतया उस प्रकाशीय तंत्र (optical system) को कहते हैं जिससे देखने पर दूर की वस्तुएँ बड़े आकार की और स्पष्ट दिखाई देती हैं, अथवा जिसकी सहायता से दूरवर्ती वस्तुओं के साधारण और वर्णक्रमचित्र (spectrograms) प्राप्त किए जाते हैं। दूरवर्ती वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त करने के लिए आजकल रेडियो तरंगों का भी उपयोग किया जाने लगा है। इस प्रकार का यंत्र रेडियो दूरदर्शी (radio telescope) कहलाता है। बोलचाल की भाषा में दूरदर्शी को दूरबीन भी कहते हैं। दूरबीन के आविष्कार ने मनुष्य की सीमित दृष्टि को अत्यधिक विस्तृत बना दिया है। ज्योतिर्विद के लिए दूरदर्शी की उपलब्धि अंधे व्यक्ति को मिली आँखों के सदृश वरदान सिद्ध हुई है। इसकी सहायता से उसने विश्व के उन रहस्यमय ज्योतिष्पिंडों तक का साक्षात्कार किया है जिन्हें हम सर्पिल नीहारिकाएँ (spiral nebulae) कहते हैं। ये नीहारिकाएँ हमसे करोड़ों प्रकाशवर्ष की दूरी पर हैं। आधुनिक ज्योतिर्विज्ञान (astronomy) और ताराभौतिकी (astrophysics) के विकास में दूरदर्शी का महत्वपूर्ण योग है। दूरदर्शी ने एक ओर जहाँ मनुष्य की दृष्टि को विस्तृत बनाया है, वहाँ दूसरी ओर उसने मानव को उन भौतिक तथ्यों और नियमों को समझने में सहायता भी दी है जो भौतिक विश्व के गत्यात्मक संतुलन (dynamic equilibirium) के आधार हैं। .

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प्रकाशमिति

किसी प्रकाशस्रोत से उत्सर्जित प्रकाश ऊर्जा का मापन करने के लिये अनेक विधियाँ प्रचलित हैं। इनमें विविध प्रकार के यंत्रों का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिये, जब किसी प्रकाशस्रोत से उत्सर्जित प्रकाश एक तापवैद्युत पुंज (thermopile) के कृष्ण तल पर पड़ता है तब उस तल के ताप में वृद्धि होती है। जिससे प्रकाश ऊर्जा का मापन किया जा सकता है। दो प्रकाशस्रोतों द्वारा उत्सर्जित ऊर्जाओं के परिमाणों की तुलना उन स्रोतों को बारी बारी से तापीय पुंज की समान दूरी पर रखकर तथा उनसे पुंज के तल पर वर्धित ताप के कारण उत्पन्न ताप विद्युत-धाराओं की तुलना धारामापी की सहायता से करके, की जा सकती है। किंतु ये सभी विधियाँ ऊर्जा के सापेक्षिक परिमाणों की ही तुलना कर सकती हैं, उन प्रकाशस्रोतों की कांति या द्युति (brightness) की तुलना नहीं कर सकतीं, क्योंकि प्रकाशस्रोतों की द्युति उनसे उत्सर्जित प्रकाश के तरंगदैर्घ्य पर निर्भर करती है। द्युति का आपेक्षिक ज्ञान हमें अपने नेत्रों द्वारा भली प्रकार होता है, किंतु हमारे नेत्र भी अधिक विश्वसनीय साधन नहीं हैं। भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के नेत्र भी भिन्न भिन्न रंगों के प्रकाश को भिन्न भिन्न ढंगों से एवं भिन्न भिन्न मात्राओं में ग्रहण करते हैं। इसलिये दो प्रकाशस्रोतों की द्युतियों का मापन उनसे उत्सर्जित प्रकाश की किसी मानक स्रोत (standard source) की द्युति के साथ तुलना करके और उस मानक की द्युति को इकाई मानकर ही करना आवश्यक होता है, अन्यथा चक्षुदृष्ट कांति का मूल्यांकन करने में सभी एकमत नहीं हो सकते। अन्य विधि यह भी हो सकती है कि उन स्रोतों को द्युतियों की तुलना उनके द्वारा प्रदीप्त किसी तल पर प्रकाश की प्रदीप्ति की तीव्रताओं (intensities of illumination) की तुलना करके की जाय। प्रकाशस्रोतों की दीप्तियों या प्रदीपन शक्तियों (illuminating powers) को अथवा प्रकाशित तलों की प्रदीप्ति की तीव्रताओं की तुलना करने के लिये जो यंत्र अथवा उपकरण व्यवहृत होते हें उन्हें ज्योतिर्मापी या प्रकाशमापी (photometer) कहते हैं और प्रकाशिकी (optics) का वह अंग जो इन क्रियाओं से संबद्ध होता है, ज्योतिर्मिति या प्रकाशमिति (photometry) कहलाता है। प्रकाशमिति की प्रक्रिया में मानक प्रकाशस्रोत का सबसे अधिक महत्व है। ऐसे मानक की प्रारंभिक अर्हता यह है कि उसके द्वारा उत्सर्जित प्रकाश स्थिर हो अथवा अत्यल्प परिवर्तनशील हो तथा जिन प्रकाशस्रोतों की तुलना के लिये उसका प्रयोग किया जा रहा है उनके स्पेक्ट्रमी वितरण (spectral distribution) की सन्निकटस्थ सीमा तक उसका भी स्पेक्ट्रमी वितरण हो। इसके अतिरिक्त वह मानक प्रकाश स्रोत सुगमता से पुनरुत्पादनीय भी होना चाहिए और प्रत्येक दशा में उसके विभिन्न भागों में पर्याप्त स्थायित्व भी रहना चाहिए। इन अर्हताओं की पूर्ति के निमित्त अनेक मानक स्रोतों का व्यवहार किया जाता रहा है। इनमें सबसे प्राचीन मानक स्पमेंसेटी कैंडिल या ब्रिटिश कैंडिल है जिसका व्यास ७/८ इंच तथा १/६ पाउंड होती है तथा वह ११० ग्रेन प्रति घंटे की दर से जलती है। किंतु इसकी द्युति पर इसमें प्रयुक्त बत्ती (wick) की तथा प्रयोगस्थल पर व्याप्त वातावरण में विद्यमान जल की मात्रा का प्रभाव अनिवार्य रूप से पड़ता है। इसलिए इसका प्रयोग अब प्राय: नहीं किया जाता और इसके स्थान पर विभिन्न प्रकार के वैद्युत्‌ मानक प्रकाश स्रोतों का व्यवहार किया जाता है। इनमें वर्नन हार्कोटे पेंटेन लैंप (Vernon Harcourt pentane lamp), दस कैंडिल लैंप तथा हेफनर (Hefner) लैंप आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। पूर्वकथित वर्नन हारकोर्ट लैंप में ऐसी व्यवस्था रहती है कि ज्वाला का आकार सदा नियत रहे। सन्‌ १९०९ तक मानक ज्योति तीव्रता (luminous intensity) इस लैंप की ज्योति के दशांश के बराबर मानी जाती रही।। सन्‌ १९२१ में ऐसे अनेक विद्युत लैंपों के समूह की औसत प्रदीपन क्षमता या प्रदीपकता को अंतरराष्ट्रीय मानक माना गया। ब्रिटेन, फ्रांस, संयुक्त राज्य अमरीका की तीन प्रमुख मानकीकारक प्रयोगशालाओं में ऐसे मानकों द्वारा अन्य लैंपों के मानकीकरण किए जाते रहे। किंतु शुद्ध पेटेन (अन्य हाइड्रोकार्बनों से मुक्त) के दुष्प्राप्य होने तथा जिस बर्नर से इसकी ज्वाला निकलती है, उसमें तापवृद्धि के साथ ज्वाला की दीर्घता में अनियंत्रणीय परिवर्तन होते रहने के कारण इस लैंप का भी प्रचलन बहुत कम हो गया है। ऊपर कथित हेफ़नर लैंप में ऐमिल ऐसीटेट (amyl acetate) के दहन द्वारा ज्वाला उत्पन्न की जाती है जिसका रंग लाल होता है और जिसकी लंबाई प्राय: ४ सेंटीमीटर होती है। सुगम, सुप्राप्य एवं पुनरुत्पादनीय होने के कारण आजकल इसी लैंप का ज्योतिर्मितीय प्रयोजन के लिये अधिक उपयोग किया जाता है, इसकी ज्योति पेंटेन लैंप के अंतरराष्ट्रीय मानक की ९/१० गुनी होती है। सन्‌ १९३९ में अंतरराष्ट्रीय अनुबंध (करारनामा) के द्वारा एक नवीन एवं सर्वश्रेष्ठ प्राथमिक मानक (primary standard) का प्रयोग किया जाने लगा है जिसका नाम प्लैंकियन विकिरक (planckian radiator) है। इसमें प्लैटिनम को विद्युद्विधि से उसके गलनांक (melting point) तक उत्तप्त किया जाता है। उसकी द्युति को विशेष विकिरण व्यवस्था द्वारा ज्योतिर्मापी तक प्रेषित किया जाता है। ज्योतितीव्रता की अंतरराष्ट्रीय ईकाई का निर्धारण भी इसी विकिरक के आधार पर किया गया, किंतु द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण उसका व्यवहार स्थगित हो गया। १ जनवरी १९४८ ई. से विश्व के कतिपय राष्ट्र पुन: उसका प्रयोग करने लगे हैं। प्लैंकियन विकिरक के प्रति ईकाई सेंटीमीटर की ज्योतीय तीव्रता के षष्ठ दशांश को अंतरराष्ट्रीय कैंडिल या कैंडेला (Candella) कहा जाता है। .

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ब्रह्माण्डविद्या

हिन्दू मान्यता के अनुसार ब्रहाण्ड का चित्रण ब्रह्माण्डविद्या या कॉस्मोलॉजी खगोल विज्ञान की एक शाखा है, जिसमें ब्रह्माण्ड से जुड़ी तमाम बातों का अध्ययन किया जाता है। इसमें ब्रह्माण्ड के बनने की प्रक्रिया के बारे में भी जानकारी दी जाती है। बीसवीं शताब्दी में आए वैज्ञानिक बदलावों ने वैज्ञानिकों की ब्रह्माण्ड के बारे में दिलचस्पी बढ़ा दी। वैज्ञानिक उससे जुड़े तमाम रहस्यों को तलाशने लगे। यह बीसवीं शताब्दी में कॉस्मोलॉजी के बारे में बढ़ती जिज्ञासा का ही प्रतिफल था कि वैज्ञानिकों ने ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति से जुड़ी बिग बैंग सिद्धांत दे डाला। कॉस्मोलॉजी की शुरुआत एक तरह से आइंस्टीन के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत के बाद से मानी जाती है। उससे पूर्व ब्रह्माण्ड के शुरुआत और अंत के बारे में कोई निश्चित धारणा नहीं थी। आइंस्टीन ने कहा कि ब्रह्माण्ड में कुछ पदार्थ है। इसी सिद्धांत के आधार पर फ्रेडमेन ने अपना सिद्धान्त दिया जिसमें कहा कि ब्रह्माण्ड फैल रहा है या सिकुड़ रहा है। 1927 में जॉर्ज लेमेत्री ने बिग बैंग थ्योरी देकर फ्रेडमेन के सिद्धांत की पुष्टि की। इसके बाद हबल के कॉस्मोलॉजिकल सिद्धांत ने बिग बैंग थ्योरी और फ्रेड के गैलैक्सी के नियम को आधार प्रदान किया। 1965 में माइक्रोवेव की खोज और ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के नियम के बाद इस बात को माना जाने लगा कि वह फैल रहा है। माइक्रोवेव की खोज के दौरान यह बात भी सामने आई कि ब्रह्माण्ड के 25 प्रतिशत हिस्से में डार्क मैटर है जिसमे से केवल 4 प्रतिशत को ही देखा जा सकता है। वैज्ञानिकों ने भी इस बात को माना कि विस्फोट से पहले ब्रह्माण्ड सिकुड़ा हुआ था। कॉस्मोलॉजी के मानक सिद्धान्त अनुसार ब्रह्माण्ड को विभिन्न समय में बांटा जा सकता है। इन्हें 'इपोस' कहते हैं। मोटे तौर पर कहा जाए तो फिजिकल कास्मोलॉजी के माध्यम से ब्रह्माण्ड के बड़े ऑब्जेक्ट मसलन गैलेक्सी, क्लस्टर और सुपरक्लस्टर के बारे में जनकारी मिलती है। कॉस्मोलॉजी की मदद से ब्लैक होल के बारे में जानने में मदद मिली। कॉस्मोलॉजी से यह भी देखा गया कि भौतिकी के नियम ब्रह्माण्ड में हर जगह समान हैं या नहीं। .

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खगोल शास्त्र

चन्द्र संबंधी खगोल शास्त्र: यह बडा क्रेटर है डेडलस। १९६९ में चन्द्रमा की प्रदक्षिणा करते समय अपोलो ११ के चालक-दल (क्रू) ने यह चित्र लिया था। यह क्रेटर पृथ्वी के चन्द्रमा के मध्य के नज़दीक है और इसका व्यास (diameter) लगभग ९३ किलोमीटर या ५८ मील है। खगोल शास्त्र, एक ऐसा शास्त्र है जिसके अंतर्गत पृथ्वी और उसके वायुमण्डल के बाहर होने वाली घटनाओं का अवलोकन, विश्लेषण तथा उसकी व्याख्या (explanation) की जाती है। यह वह अनुशासन है जो आकाश में अवलोकित की जा सकने वाली तथा उनका समावेश करने वाली क्रियाओं के आरंभ, बदलाव और भौतिक तथा रासायनिक गुणों का अध्ययन करता है। बीसवीं शताब्दी के दौरान, व्यावसायिक खगोल शास्त्र को अवलोकिक खगोल शास्त्र तथा काल्पनिक खगोल तथा भौतिक शास्त्र में बाँटने की कोशिश की गई है। बहुत कम ऐसे खगोल शास्त्री है जो दोनो करते है क्योंकि दोनो क्षेत्रों में अलग अलग प्रवीणताओं की आवश्यकता होती है, पर ज़्यादातर व्यावसायिक खगोलशास्त्री अपने आप को दोनो में से एक पक्ष में पाते है। खगोल शास्त्र ज्योतिष शास्त्र से अलग है। ज्योतिष शास्त्र एक छद्म-विज्ञान (Pseudoscience) है जो किसी का भविष्य ग्रहों के चाल से जोड़कर बताने कि कोशिश करता है। हालाँकि दोनों शास्त्रों का आरंभ बिंदु एक है फिर भी वे काफ़ी अलग है। खगोल शास्त्री जहाँ वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग करते हैं जबकि ज्योतिषी केवल अनुमान आधारित गणनाओं का सहारा लेते हैं। .

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खगोल भौतिकी, खगोल-भौतिकी

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