कोलकाता और प्रदीप चौधुरी के बीच समानता
कोलकाता और प्रदीप चौधुरी आम में 8 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): त्रिदिब मित्रा, देबी राय, फालगुनि राय, बासुदेब दाशगुप्ता, मलय रॉय चौधुरी, समीर रायचौधुरी, सुबिमल बसाक, अनिल करनजय।
त्रिदिब मित्रा
त्रिदिब मित्रा (३१ दिसम्बर १९४०) बांग्ला साहित्य के भुखी पीढी (हंगरी जेनरेशन) आंदोलन के प्रख्यात कवि थे। वह और उनकि पत्नी आलो मित्रा दोनों मिलकर भुखी पीढी आंदोलन के दो पत्रिकायें चलाया करते थे; अंग्रेजी में वेस्ट्पेपर एवम बांग्ला में उन्मार्ग। बचपन में स्कुली परीक्षा के बाद वह एकबार घर से सात महिनें के लिये भाग गये थे। उस दौरान उनहे जो जीवन व्यतीत करना पडा उसका असर उनके और उनके लेखन में दिखायी देते हैं। उनके सम्पादित लघु पत्रिकायों के नाम से ही प्ता चल जाता है कि उनके मनन में क्या प्रभाव रहा होगा। भुखी पीढी अंदोलन में योग देने के पश्चात ही वह यातनामय स्मृति से उभर पाये थे। उनके लेखन में वह क्रोध झलकता है। बांग्ला संस्कृती में एक नयी आयाम का अनुप्रवेश घटाया था त्रिदिब मित्रा ने। श्मशान, कबरगाह, बाजर, रेल-स्टेशन, खालसिटोला के मद्यपों के बिच कविता पढने और ग्रन्थों का उन्मोचन करने का जो सिलसिला भुखी पीढी अंदोलन के बाद शुरु हुये, उस प्रक्रिया के जनक थे त्रिदिब मित्रा और आलो मित्रा। वे दोनों के कविता पठन के कार्ञक्रम में काफि भीड हुया करता था, क्यों कि पहलिबार कविता को ले जाया गया था आम आदमि के समाज में। अनिल करनजय के बनाये पोस्टरों को कोलकाता के दिवारों में वही दोनों बेझिझक चिपकया करते थे। भुखी पीढी ने जो मुखौटा कार्यक्रम शुरु किया था उसको अनजाम भी त्रिदिब और आलो ने दिये। उंचे पद के लोगों के दफतर में वही दोनों मुखौटा पहुंचाया था। जानवर, राक्षस, जोकर इत्यादि के मुखौटा पर लिखा होता था "कृपया अपना मुखौटा उतारे"। यह कार्यक्रम के कारण ही प्रधानत: कोलकाता प्रशासन भुखी पीढी के खिलाफ खफा हो गया था। त्रिदिब देखने मे सुंदर थे एवम इसि कारण उन्हे भुखी पीढी का राजकुमार कहा जाता था। .
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देबी राय
देबी राय (४-८-१९४०) (দেবী রায়)बांग्ला भाषा के प्रख्यात कवि एवम अनुवादक हैं। भुखी पीढी (हंगरि जेनरेशन) के प्रतिष्ठातायों में वह प्रधान हैं एवम आन्दोलनके बुलेटिन के सम्पादक रहे हैं। उन्होनें तिस से भी ज्यादा कवितापुस्तके लिखें। बांग्ला आधुनिक कविता के वह प्रथम निम्नबर्ग के कवि हैं। .
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फालगुनि राय
Falguni Roy by Subimal Basak 1995 फालगुनि राय (जन्म ७-०६-१९४५—मृत्यु ३१-०५-१९८१) (ফালগুনি রায়) बांग्ला साहित्यके भुखी पीढी (हंगरि जेनरेशन) आन्दोलन के सबसे कम उमर के प्रमुख कवि हैं जो मात्र ३६ साल के अवधि में अपने मादक्सेवन एवम बोहेमियन जीवन के कारण तरुण लेखकों में किंबदन्ति बन गये हैं। उनके जीवनकाल में वह केवल एक ही काब्यग्रन्थ नष्टो आत्मार टेलिविशन प्रकाशित किये। १५ अगस्त १९७३ के दिन वह काव्यग्रन्थ का उन्मोचन खालासिटोला में किया गया था। आलोचकों का कहना है कि वह पुस्तक का प्रकाश का साल बांग्ला सहित्य में अपनेआप एक जलबिभाजक सा है; पुस्तक के प्रकाश से बांग्ला कविता में आधुनिकता के युग समप्त हो गये। अपने जीवनकाल में उन्होने जो सारे कवितायें लिखे वह अप्रकाशित कवितायें उनके म्ररणोपरान्त कोलकाता एवम ढाका से बारबार प्रकाशित हो रहे हैं। पश्चिम बंगाल एवम बांगलादेश में उनपर बहुत सारे शोध हो चुके हैं। .
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बासुदेब दाशगुप्ता
बासुदेब दाशगुप्ता (३१ दिसम्बर १९३८---३१ अगस्त २००५) (বাসুদেব দাশগুপ্ত) बांग्ला साहित्य के भूखी पीढ़ी (हंगरी जनरेशन) के एक प्रमुख कहानीकार एवम उपन्यासकार हैं। सन १९६५ में प्रकाशित उनकी कहानी 'रन्धनशाला' को बांग्ला साहित्य की कालजयी रचना माना जाता है। वह पूर्वी बंगाल के मदारिपुर में पैदा हुये एवम पर्टिशन के समय भारत चले आये। अशोक्नगर रिफिउजि कलोनि में घर मिलने प्र वहिं बस गये, बि एड पढें और आजिवन वहिं कल्याण्गढ विद्यामन्दिर में पढाये। बीच में मार्क्सबाद के प्रति आकृष्ट हुये परन्तु क्रमश राजनीति से निर्मोह हो गये। अत्यधिक मादक सेवन एवम पीने के लत के कारण उनका स्वास्थ्य ढल गया और बिमार रहने लगे। .
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मलय रॉय चौधुरी
मलय रायचौधुरी (जन्म २९ अक्टूबर १९३९) (মলয় রায়চৌধুরী) बांग्ला साहित्य के प्रख्यात कवि एवम आलोचक है। वे साठ के दशक के सहित्य आन्दोलन भूखी पीढ़ी (हंगरी जनरेशन) के जन्मदाता माने जाते है। इस आन्दोलन ने बांग्ला साहित्य को एक नयी दिशा दी और पूरे भारत में उथलपुथल मचायी। आन्दोलन के सिलसिले में मलय को उनहे कविता लिखने के कारण कारावास का दण्ड मिला था। वे अब तक सत्तर से ज्यादा कविताग्रन्थ, नाटक, उपन्यास एवम अनुवद के पुस्तक लिख चुके हैं। साठ के दशक मे जो बदलाव बांगला कविता मे आये, उन में एक बड़ा योगदान मलय रायचौधुरी का रहा है। उनके काव्यग्रन्थो मे ख्याति प्राप्त हैं मेधार वतानुकूल घुन्गुर। २००३ में उन्हें अनुवाद के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था। .
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समीर रायचौधुरी
समीर रायचौधुरी समीर रायचौधुरी (१-११-१९३३) (সমীর রায়চৌধুরী) बांग्ला साहित्य के एक प्रमुख कवि, आलोचक, कहानीलेखक एवम दार्शनिक हैं। भुखी पीढी आन्दोलन के प्रथम मेनिफेस्टो घोषणाकारीयों में वह प्रधान थे। हवा ४९ साहित्यपत्र के वह सम्पादक रहे हैं। उन्होनें अंग्रेजि भाषा में भी कविता एवम कहानियों के संकलन सम्पाद्न किये हैं। उनके लिखे खुलजा सिमसिम कहानी संकलन को अधुनान्तिक कहा गया है। .
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सुबिमल बसाक
सुबिमल बसाक (१५ दिसम्बर १९३९) (সুবিমল বসাক)बांग्ला साहित्य के प्रमुख उपन्यासकार है। 'भूखी पीढ़ी आन्दोलन' शुरु करनेवाले साहित्यिकों मे उनका प्रधान योगदान रहा है। उन्होने कहानीलेखन की एक नयी भाषा को जन्म दिया जो बिहार के रहनेवाले बांग्लाभाषी बोला करते हैं। सुबिमल बसाक ने हिन्दी से बहुत सारे उपन्यास अनुवाद किया। वर्ष २००८ में उन्हे साहित्य अकादमी पुरस्कार से सन्मानित किया गया। .
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अनिल करनजय
अनिल करनजय (27 जून 1940 - 18 मार्च 2001) एक पूर्ण भारतीय कलाकार थे। पूर्व बंगाल में जन्म लेनेवाले करनजय ने बनारस में शिक्षा प्राप्त की, जहां उनका परिवार 1947 में भारतीय उपमहाद्वीप के बंटवारे के बाद बस गया। एक छोटे बच्चे के रूप में वे मिट्टी के साथ खेलने, खिलौने और तीर बनाने में काफी समय बिताते थे। उन्होंने बहुत जल्दी ही जानवरों और पौधों का चित्र बनाना या जिस भी वस्तु ने उन्हें प्रेरित किया उसका चित्र बनाना भी शुरू कर दिया। 1956 में उन्होंने बंगाल स्कूल के एक गुरु और नेपाली मूल के करनमान सिंह की अध्यक्षता वाले भारतीय कला केन्द्र का पूर्णकालिक छात्र बनने के लिए स्कूल छोड़ दिया.
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- कोलकाता और प्रदीप चौधुरी के बीच समानता
कोलकाता और प्रदीप चौधुरी के बीच तुलना
कोलकाता 304 संबंध है और प्रदीप चौधुरी 15 है। वे आम 8 में है, समानता सूचकांक 2.51% है = 8 / (304 + 15)।
संदर्भ
यह लेख कोलकाता और प्रदीप चौधुरी के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें: