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किष्किन्धा

सूची किष्किन्धा

किष्किन्धा| आज जो हम्पीहै, वाल्मीकि रामायण में पहले वालि का तथा उसके पश्चात् सुग्रीव का राज्य बताया गया है। आज के संदर्भ में यह राज्य तुंगभद्रा नदी के किनारे वाले कर्नाटक के हम्पी शहर के आस-पास के इलाके में माना गया है। रामायण के काल में विन्ध्याचल पर्वत माला से लेकर पूरे भारतीय प्रायद्वीप में एक घना वन फैला हुआ था जिसका नाम था दण्डक वन। उसी वन में यह राज्य था। अतः यहाँ के निवासियों को वानर कहा जाता था, जिसका अर्थ होता है वन में रहने वाले लोग। रामायण में किष्किन्धा के पास जिस ऋष्यमूक पर्वत की बात कही गयी है वह आज भी उसी नाम से तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित है। किष्किन्धा का विहंगम दृश्य श्रेणी:रामायण में स्थान श्रेणी:हिन्दू पुराण आधार.

11 संबंधों: तुंगभद्रा नदी, दण्डक वन, बालि, भारतीय प्रायद्वीप, रामायण, सुग्रीव, हम्पी, वाल्मीकि, विन्ध्याचल, कर्नाटक, ऋष्यमूक

तुंगभद्रा नदी

तुंगभद्रा नदी दक्षिण भारत में बहने वाली एक पवित्र नदी हैं। यह कर्नाटक एवं आन्ध्र प्रदेश में बहती हुई आन्ध्र प्रदेश में एक बड़ी नदी कृष्णा नदी में मिल जाती है। रामायण में तुंगभद्रा को पंपा के नाम से जाना जाता था। तुंगभद्रा नदी का जन्म तुंगा एवं भद्रा नदियों के मिलन से हुआ है। ये पश्चिमी घाट के पूर्वा ढाल से होकर बहती है। पश्चिमी घाट के गंगामूला नामक स्थान से (उडुपी के पास) समुद्र तल से कोई ११९८ मीटर की ऊँचाई से तुंग तथा भद्रा नदियों का जन्म होता है जो शिमोगा के पास जाकर सम्मिलित होती हैं जहाँ से इसे तुंगभद्रा कहते हैं। उत्तर-पूर्व की ओर बहती हुई, आंध्रप्रदेश में महबूब नगर ज़िले में गोंडिमल्ला में जाकर ये कृष्णा नदी से मिल जाती है। इसके किनारों पर कई हिंदू धार्मिक स्थान हैं। आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित शृंगेरी मठ तुंगा नदी के बांई तट पर बना है और इनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध है। चौदहवीं सदी में स्थापित दक्कनी विजयनगर साम्राज्य की राजधानी रही हंपी भी इसी के किनारे स्थित है। हंपी में बहती तुंगभद्रा नदी हम्पी के निकट तुंग नदी एवं भद्रा नदी के संगम से तुंगभद्रा नदी का उद्गम होता है। .

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दण्डक वन

दण्डक वन रामायणकाल के एक वन का नाम है। श्रेणी:रामायण में स्थान श्रेणी:हिन्दू पुराण आधार.

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बालि

वालि वध वालि (संस्कृत) या बालि रामायण का एक पात्र है। वह सुग्रीव का बड़ा भाई था। वह किष्किन्धा का राजा था तथा इन्द्र का पुत्र बताया जाता है। विष्णु के अवतार राम ने उसका वध किया। हालाँकि रामायण की पुस्तक किष्किन्धाकाण्ड के ६७ अध्यायों में से अध्याय ५ से लेकर २६ तक ही वालि का वर्णन किया गया है, फिर भी रामायण में वालि की एक मुख्य भूमिका रही है, विशेषकर उसके वध को लेकर। .

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भारतीय प्रायद्वीप

प्रायद्वीप खंड की उत्तरी सीमा कटी-फ़टी है, जो कच्छ से आरंभ होकर अरावली पहाड़ियों के पश्चिम से गुजरती हुई दिल्ली तक और फिर यमुना व गंगा नदी के समानांतर राजमहल की पहाड़ियों व गंगा डेल्टा तक जाती है। इसके अतिरिक्त उत्तर-पूर्व में कर्बी ऐंगलॉग;ज्ञंतइप। दहसवदह व मेघालय का पठार तथा पश्चिम में राजस्थान भी इसी खंड के विस्तार हैं। पश्चिम बंगाल में मालदा भ्रंश उत्तरी-पूर्वी भाग में स्थित मेघालय व कर्बी ऐंगलॉग पठार को छोटा नागपुर पठार से अलग करता है। राजस्थान में यह प्रायद्वीपीय खंड मरुस्थल व मरुस्थल सदृश्य स्थलाकॄतियों से ढका हुआ है। प्रायद्वीप मुख्यत: प्राचीन नाइस व ग्रेनाईट से बना है। केम्ब्रियन कल्प से यह भूखंड एक कठोर खंड के रूप में खड़ा है। अपवाद स्वरूप पश्चिमी तट समुद्र में डूबा होने और कुछ हिस्से विवर्तनिक क्रियाओं से परिवर्तित होने के उपरान्त भी इस भूखंड के वास्तविक आधार तल पर प्रभाव नहीं पड़ता है। हिन्द-ऑस्ट्रेलियाई तख़्ते का हिस्सा होने के कारण यह उधर्वाधर हलचलों व खंड भ्रंश से प्रभावित है। नर्मदा, तापी और महानदी की रिफट घाटियाँ और सतपुड़ा ब्लॉक पर्वत इसके उदाहरण हैं। प्रायद्वीप में मुख्यत: अवशिष्ट पहाड़ियाँ शामिल हैं, जैसे - अरावली, नल्लामाला, जावादी, वेलीकोण्डा, पालकोण्डा श्रेणी और महेंद्रगिरी पहाड़ियाँ आदि। यहाँ की नदी घाटियाँ उथली और उनकी प्रवणता कम होती है। पूर्व की ओर बहने वाली अधिकांश नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले डेल्टा निर्माण करती हैं। महानदी, गोदावरी और कॄष्णा द्वारा निर्मित डेल्टा इसके उदाहरण हैं। .

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रामायण

रामायण आदि कवि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया संस्कृत का एक अनुपम महाकाव्य है। इसके २४,००० श्लोक हैं। यह हिन्दू स्मृति का वह अंग हैं जिसके माध्यम से रघुवंश के राजा राम की गाथा कही गयी। इसे आदिकाव्य तथा इसके रचयिता महर्षि वाल्मीकि को 'आदिकवि' भी कहा जाता है। रामायण के सात अध्याय हैं जो काण्ड के नाम से जाने जाते हैं। .

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सुग्रीव

सुग्रीव रामायण का एक प्रमुख पात्र है। वह वालि का अनुज है। हनुमान के कारण राम से उसकी मित्रता हुयी। वाल्मीकि रामायण में किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड तथा युद्धकाण्ड में सुग्रीव का वर्णन वानरराज के रूप में किया गया है। जब राम से उसकी मित्रता हुयी तब वह अपने अग्रज वालि के भय से ऋष्यमूक पर्वत पर हनुमान तथा कुछ अन्य वफ़ादार रीछ (ॠक्ष) (जामवंत) तथा वानर सेनापतियों के साथ रह रहा था। लंका पर चढ़ाई के लिए सुग्रीव ने ही वानर तथा ॠक्ष सेना का प्रबन्ध किया था। .

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हम्पी

हम्पी मध्यकालीन हिंदू राज्य विजयनगर साम्राज्य की राजधानी थी। तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित यह नगर अब हम्पी (पम्पा से निकला हुआ) नाम से जाना जाता है और अब केवल खंडहरों के रूप में ही अवशेष है। इन्हें देखने से प्रतीत होता है कि किसी समय में यहाँ एक समृद्धशाली सभ्यता निवास करती होगी। भारत के कर्नाटक राज्य में स्थित यह नगर यूनेस्को के विश्व के विरासत स्थलों में शामिल किया गया है। हर साल यहाँ हज़ारों की संख्या में पर्यटक और तीर्थयात्री आते हैं। हम्पी का विशाल फैलाव गोल चट्टानों के टीलों में विस्तृत है। घाटियों और टीलों के बीच पाँच सौ से भी अधिक स्मारक चिह्न हैं। इनमें मंदिर, महल, तहख़ाने, जल-खंडहर, पुराने बाज़ार, शाही मंडप, गढ़, चबूतरे, राजकोष....

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वाल्मीकि

महर्षि वाल्मीक (संस्कृत: महर्षि वाल्मीक) प्राचीन भारतीय महर्षि हैं। ये आदिकवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। उन्होने संस्कृत में रामायण की रचना की। उनके द्वारा रची रामायण वाल्मीकि रामायण कहलाई। रामायण एक महाकाव्य है जो कि श्रीराम के जीवन के माध्यम से हमें जीवन के सत्य से, कर्तव्य से, परिचित करवाता है।http://timesofindia.indiatimes.com/india/Maharishi-Valmeki-was-never-a-dacoit-Punjab-Haryana-HC/articleshow/5960417.cms आदिकवि शब्द 'आदि' और 'कवि' के मेल से बना है। 'आदि' का अर्थ होता है 'प्रथम' और 'कवि' का अर्थ होता है 'काव्य का रचयिता'। वाल्मीकि ऋषि ने संस्कृत के प्रथम महाकाव्य की रचना की थी जो रामायण के नाम से प्रसिद्ध है। प्रथम संस्कृत महाकाव्य की रचना करने के कारण वाल्मीकि आदिकवि कहलाये। वाल्मीकि एक आदि कवि थे पर उनकी विशेषता यह थी कि वे कोई ब्राह्मण नहीं थे, बल्कि केवट थे।। .

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विन्ध्याचल

विन्ध्याचल उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले का एक धार्मिक दृष्टिकोण से प्रसिद्ध शहर है। यहाँ माँ विन्ध्यवासिनी देवी का मंदिर है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, माँ विन्ध्यवासिनी ने महिषासुर का वध करने के लिए अवतार लिया था। यह नगर गंगा के किनारे स्थित है। भारतीय मानक समय (IST) की रेखा विन्ध्याचल के रेलवे स्टेशन से होकर जाती है। .

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कर्नाटक

कर्नाटक, जिसे कर्णाटक भी कहते हैं, दक्षिण भारत का एक राज्य है। इस राज्य का गठन १ नवंबर, १९५६ को राज्य पुनर्गठन अधिनियम के अधीन किया गया था। पहले यह मैसूर राज्य कहलाता था। १९७३ में पुनर्नामकरण कर इसका नाम कर्नाटक कर दिया गया। इसकी सीमाएं पश्चिम में अरब सागर, उत्तर पश्चिम में गोआ, उत्तर में महाराष्ट्र, पूर्व में आंध्र प्रदेश, दक्षिण-पूर्व में तमिल नाडु एवं दक्षिण में केरल से लगती हैं। इसका कुल क्षेत्रफल ७४,१२२ वर्ग मील (१,९१,९७६ कि॰मी॰²) है, जो भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का ५.८३% है। २९ जिलों के साथ यह राज्य आठवां सबसे बड़ा राज्य है। राज्य की आधिकारिक और सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है कन्नड़। कर्नाटक शब्द के उद्गम के कई व्याख्याओं में से सर्वाधिक स्वीकृत व्याख्या यह है कि कर्नाटक शब्द का उद्गम कन्नड़ शब्द करु, अर्थात काली या ऊंची और नाडु अर्थात भूमि या प्रदेश या क्षेत्र से आया है, जिसके संयोजन करुनाडु का पूरा अर्थ हुआ काली भूमि या ऊंचा प्रदेश। काला शब्द यहां के बयालुसीम क्षेत्र की काली मिट्टी से आया है और ऊंचा यानि दक्कन के पठारी भूमि से आया है। ब्रिटिश राज में यहां के लिये कार्नेटिक शब्द का प्रयोग किया जाता था, जो कृष्णा नदी के दक्षिणी ओर की प्रायद्वीपीय भूमि के लिये प्रयुक्त है और मूलतः कर्नाटक शब्द का अपभ्रंश है। प्राचीन एवं मध्यकालीन इतिहास देखें तो कर्नाटक क्षेत्र कई बड़े शक्तिशाली साम्राज्यों का क्षेत्र रहा है। इन साम्राज्यों के दरबारों के विचारक, दार्शनिक और भाट व कवियों के सामाजिक, साहित्यिक व धार्मिक संरक्षण में आज का कर्नाटक उपजा है। भारतीय शास्त्रीय संगीत के दोनों ही रूपों, कर्नाटक संगीत और हिन्दुस्तानी संगीत को इस राज्य का महत्त्वपूर्ण योगदान मिला है। आधुनिक युग के कन्नड़ लेखकों को सर्वाधिक ज्ञानपीठ सम्मान मिले हैं। राज्य की राजधानी बंगलुरु शहर है, जो भारत में हो रही त्वरित आर्थिक एवं प्रौद्योगिकी का अग्रणी योगदानकर्त्ता है। .

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ऋष्यमूक

ऋष्यमूक वाल्मीकि रामायण में एक पर्वत का नाम है। रामायण के अनुसार ऋष्यमूक पर्वत में ऋषि मतंग का आश्रम था। वालि ने दुंदुभि असुर का वध करने के पश्चात् दोनों हाथों से उसका मृत शरीर एक ही झटके में एक योजन दूर फेंक दिया। हवा में उड़ते हुए मृत दुंदुभि के मुँह से रक्तस्राव हो रहा था जिसकी कुछ बूंदें मतंग ऋषि के आश्रम पर भी पड़ गयीं। मतंग यह जानने के लिए कि यह किसकी करतूत है, अपने आश्रम से बाहर निकले। उन्होंने अपने दिव्य तप से सारा हाल जान लिया। कुपित मतंग ने वालि को शाप दे डाला कि यदि वह कभी भी ऋष्यमूक पर्वत के एक योजन के पास भी आयेगा तो अपने प्राणों से हाथ धो देगा। यह बात उसके छोटे भाई सुग्रीव को ज्ञात थी और इसी कारण से जब वालि ने सुग्रीव को देश-निकाला दिया तो उसने वालि के भय से अपने अनुयायियों के साथ ऋष्यमूक पर्वत में जाकर शरण ली। .

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