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किला और बीकानेर किला

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

किला और बीकानेर किला के बीच अंतर

किला vs. बीकानेर किला

राजस्थान के '''कुम्भलगढ़ का किला''' - यह एशिया के सबसे बड़े किलों में से एक है। शत्रु से सुरक्षा के लिए बनाए जानेवाले वास्तु का नाम किला या दुर्ग है। इन्हें 'गढ़' और 'कोट' भी कहते हैं। दुर्ग, पत्थर आदि की चौड़ी दीवालों से घिरा हुआ वह स्थान है जिसके भीतर राजा, सरदार और सेना के सिपाही आदि रहते है। नगरों, सैनिक छावनियों और राजप्रासादों सुरक्षा के लिये किलों के निर्माण की परंपरा अति प्राचीन काल से चली आ रही है। आधुनिक युग में युद्ध के साधनों और रण-कौशल में वृद्धि तथा परिवर्तन हो जाने के कारण किलों का महत्व समाप्त हो गया है और इनकी कोई आवशकता नहीं रही। . बड़ा किला अधिक नवीन है तथा इसका निर्माण महाराजा रायसिंह (१५८९-९४ AD) के समय हुआ था और शहरपनाह के कोट दरवाजे से लगभग ३०० गज की दूरी पर है। इसकी परिधि १०७८ गज है। भीतर प्रवेश करने के लिए दो प्रधान द्वार हैं, जिनके बाद फिर तीन या चार दरवाजे हैं। कोट में स्थान-स्थान पर प्राय: ४० फुट ऊँची बुर्जे हैं और चारों ओर खाई बनी हुई है, जो ऊपर ३० फुट चौड़ी होकर नीचे तंग होती गई है। इस खाई की गहराई २० से ५० फुट तक है। प्रसिद्ध है कि इस किले पर कई बार आक्रमण हुए पर शत्रु बल पूर्वक इस पर कभी अधिकार न कर पाए। किले का प्रवेश द्वार 'कर्णपोल' है। इसके आगे के दरवाजों में एक सूरज पोल है, जिसके दोनों पार्श्वो पर विशालकाय हाथी पर बैठी हुई दो मूर्तियां हैं, जो प्रसिद्ध वीर जयमल मेड़तिया (राठौड़) और पत्ता चूंड़ावत (सीसोदिया) की (जो चितौड़गढ़ में बादशाह अकबर के मुकाबले में वीरतापूर्वक लड़कर मारे गए थे) बतलाई जाती हैं। आगे बहुत बड़ा चौक है, जिसमें एक तरफ पंक्ति बद्ध मरदाने और जनाने महल हैं। ये महल बड़े भव्य एवं सुंदर बने हुए हैं। इन महलों के भीतर कई जगह कांच की पच्चीकारी और सुनहरी कलम आदि का बहुत सुन्दर काम है, जो भारतीय कला का उत्तम नमूना है। इन राजमहलो की दीवारों पर रंगीन पलस्तर किया हुआ है, जिससे उनका सौंदर्य बढ़ गया है। राजमहलों के निर्माण में बहुधा अब तक के प्राय: सभी महाराजाओं का हाथ रहा है। पहले के राजाओं के बनवाए हुए स्थानों में महाराजा रायसिंह का चौबारा, महाराजा गजसिंह का फूलमहल, चन्द्रमहल, गजमंदिर तथा कचहरी, महाराजा सूरतसिंह का अनुपमहल, महाराजा सरदार सिंह का बनवाया हुआ रत्नमंदिर और महाराजा डूंगर सिंह का छत्रमहल, चीनी बुर्ज, गनपत निवास, लाल निवास, सरदार निवास, गंगा निवास, सोहन भुर्ज (बुर्ज), सुनहरी भुर्ज (बुर्ज) तथा कोढ़ी शक्त निवास है। बाद के राजाओं ने भी समय समय पर नवीन भवन बनवाकर उनकी शोभा बढ़ा दी है। इन महलों में दलेल निवास और गंगा निवास नामक विशाल कक्ष मुख्य है। गंगा निवास में लाल रंग के खुदाई के काम हुए पत्थर लगे हैं। छत की लकड़ी पर भी खुदाई का काम है। इसका फर्श संगमरमर का बना है। किले के भीतर फारसी, संस्कृत, प्राकृत और राजस्थानी भाषा की हस्तलिखित पुस्तकों का एक बड़ा पुस्तकालय है। इस पुस्तकालय में संस्कृत पुस्तकों का बड़ा भारी संग्रह है, जिनमें से कई तो ऐसी हैं जो अन्यत्र नहीं हीं मिल सकतीं। मेवाड़ के महाराजा कुंभा (कुंभकर्ण) के संगीत ग्रन्थ का पूरा संग्रह भारत वर्ष के केवल इसी पुस्तकालय में है। किले के भीतर का शस्रागार भी देखने योग्य है। इसमें प्राचीन अस्र-शस्रों का अच्छा संग्रह है। वहीं एक कमरे में कई पीतल की मूर्तियां रक्खी हुई हैं, जो तैंतीस करोड़ देवता के नाम से पूजी जाती हैं। ये मूर्तियां महाराजा अनूपसिंह ने दक्षिण में रहते समय मुसलमानों के हाथ से बचाकर यहां पहुँचाई थी। किले के एक हिस्से में बीकानेर राज्य के उत्तरी भाग के रंगमहल, बड़ोपल आदि गांवों से प्राप्त पकी हुई मिट्टी की बनी बहुत प्राचीन वस्तुओं का बड़ा संग्रह है, जिसका श्रेय डाँ० टैसिटोरी को है। इस सामग्री को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:-.

किला और बीकानेर किला के बीच समानता

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किला और बीकानेर किला के बीच तुलना

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संदर्भ

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