लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
मुक्त
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

कापालिक शैली और पंडवानी

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

कापालिक शैली और पंडवानी के बीच अंतर

कापालिक शैली vs. पंडवानी

कापालिक शैली छत्तीसगढ़ एवं मध्यप्रदेश की नृत्य-नाटिका पंडवानी की एक शैली होती है। यह शैली गायक गायिका के स्मृति में या "कपाल"में विद्यमान रहती है, अतएव कापालिक शैली कहलाती है। इस शैली की विख्यात गायिक है तीजन बाई, शांतिबाई चेलकने, उषा बाई बारले। तीजनबाई भारत भवन भोपाल में पंडवानी प्रस्तुति के दौरान श्रेणी:पंडवानी श्रेणी:मध्य प्रदेश की संस्कृति. पंडवानी छत्तीसगढ़ का वह एकल नाट्य है जिसका अर्थ है पांडववाणी - अर्थात पांडवकथा, यानी महाभारत की कथा। ये कथाएं छत्तीसगढ़ की परधान तथा देवार छत्तीसगढ़ की जातियों की गायन परंपरा है। परधान गोंड की एक उपजाति है और देवार धुमन्तू जाति है। इन दोनों जातियों की बोली, वाद्यों में अन्तर है। परधान जाति के कथा वाचक या वाचिका के हाथ में "किंकनी" होता है और देवारों के हाथों में र्रूंझू होता है। परधानों ने और देवारों ने पंडवानी लोक महाकाव्य को पूरे छत्तीसगढ़ में फैलाया। तीजन बाई ने पंडवानी को आज के संदर्भ में ख्याति दिलाई, न सिर्फ हमारे देश में, बल्कि विदेशों में। तीजनबाई भारत भवन भोपाल में पंडवानी प्रस्तुति के दौरान .

कापालिक शैली और पंडवानी के बीच समानता

कापालिक शैली और पंडवानी आम में 3 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): तीजनबाई, भारत भवन, छत्तीसगढ़

तीजनबाई

तीजनबाई (जन्म- २४ अप्रैल १९५६) भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के पंडवानी लोक गीत-नाट्य की पहली महिला कलाकार हैं। देश-विदेश में अपनी कला का प्रदर्शन करने वाली तीजनबाई को बिलासपुर विश्वविद्यालय द्वारा डी लिट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया है। वे सन १९८८ में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री और २००३ में कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से अलंकृत की गयीं। उन्हें १९९५ में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार तथा २००७ में नृत्य शिरोमणि से भी सम्मानित किया जा चुका है। भिलाई के गाँव गनियारी में जन्मी इस कलाकार के पिता का नाम हुनुकलाल परधा और माता का नाम सुखवती था। नन्हीं तीजन अपने नाना ब्रजलाल को महाभारत की कहानियाँ गाते सुनाते देखतीं और धीरे धीरे उन्हें ये कहानियाँ याद होने लगीं। उनकी अद्भुत लगन और प्रतिभा को देखकर उमेद सिंह देशमुख ने उन्हें अनौपचारिक प्रशिक्षण भी दिया। १३ वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना पहला मंच प्रदर्शन किया। उस समय में महिला पंडवानी गायिकाएँ केवल बैठकर गा सकती थीं जिसे वेदमती शैली कहा जाता है। पुरुष खड़े होकर कापालिक शैली में गाते थे। तीजनबाई वे पहली महिला थीं जो जिन्होंने कापालिक शैली में पंडवानी का प्रदर्शन किया।। देशबन्धु।६ अक्टूबर, २००९ एक दिन ऐसा भी आया जब प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर ने उन्हें सुना और तबसे तीजनबाई का जीवन बदल गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से लेकर अनेक अतिविशिष्ट लोगों के सामने देश-विदेश में उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन किया। प्रदेश और देश की सरकारी व गैरसरकारी अनेक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत तीजनबाई मंच पर सम्मोहित कर देनेवाले अद्भुत नृत्य नाट्य का प्रदर्शन करती हैं। ज्यों ही प्रदर्शन आरंभ होता है, उनका रंगीन फुँदनों वाला तानपूरा अभिव्यक्ति के अलग अलग रूप ले लेता है। कभी दुःशासन की बाँह, कभी अर्जुन का रथ, कभी भीम की गदा तो कभी द्रौपदी के बाल में बदलकर यह तानपूरा श्रोताओं को इतिहास के उस समय में पहुँचा देता है जहाँ वे तीजन के साथ-साथ जोश, होश, क्रोध, दर्द, उत्साह, उमंग और छल-कपट की ऐतिहासिक संवेदना को महसूस करते हैं। उनकी ठोस लोकनाट्य वाली आवाज़ और अभिनय, नृत्य और संवाद उनकी कला के विशेष अंग हैं। भारत भवन भोपाल में पंडवानी प्रस्तुति के दौरान .

कापालिक शैली और तीजनबाई · तीजनबाई और पंडवानी · और देखें »

भारत भवन

भारत भवन, भारत के प्रान्त मध्य प्रदेश में स्थित एक विविध कला,सांस्कृतिक केंद्र एवं संग्रहालय है। इसमें कला दीर्घा (आर्ट्स गैलरी), ललित कला संग्रह, इनडोर/आउटडोर ओडिटोरियम, रिहर्सल रूम, भारतीय कविताओं का पुस्तकालय आदि कई चीजें शामिल हैं। यह भोपाल के बड़े तालाब के निकट स्थित है। इस भवन के सूत्रधार चार्ल्स कोरिया का कहना है - भोपाल स्थित यह भवन भारत के सबसे अनूठे राष्‍ट्रीय संस्‍थानों में एक है। 1982 में स्‍थापित इस भवन में अनेक रचनात्‍मक कलाओं का प्रदर्शन किया जाता है। श्यामला पहाड़ियों पर स्थित इस भवन को प्रसिद्ध वास्‍तुकार चार्ल्‍स कोरिया ने डिजाइन किया था। भारत के विभिन्‍न पारंपरिक शास्‍त्रीय कलाओं के संरक्षण का यह प्रमुख केन्‍द्र है। इस भवन में एक म्‍युजियम ऑफ आर्ट, एक आर्ट गैलरी, ललित कलाओं की कार्यशाला, भारतीय काव्‍य की पुस्‍तकालय आदि शामिल हैं। इन्‍हें अनेक नामों जैसे रूपांकर, रंगमंडल, वगर्थ और अनहद जैसे नामों से जाना जाता है। सोमवार के अतिरिक्‍त प्रतिदिन दिन में 2 बजे से रात 8 बजे तक यह भवन खुला रहता है। श्यामला पहाड़ियों पर स्थित भारत भवन राजधानी भोपाल के लिए कला का केंद्र है। भारत भवन के पांच अंग हैं। इनमें से 'रूपंकर' ललित कला का संग्रहालय है, 'रंगमंडल' का सम्बन्ध रंगमंच से है,'वागर्थ' कविताओं का केन्द्र है, 'अनहद' शास्त्रीय और लोक संगीत का केन्द्र है जबकि 'छवि' सिनेमा से जुड़ी गतिविधियों के लिए है। अपनी स्थापना के समय से ही भारत भवन कला के केंद्र के रूप में पहचाना जाता रहा है। भारत भवन अपनी कला से जुड़ी गतिवधियों के साथ ही अपनी स्थापत्य कला और प्राकृतिक दृश्यों के लिए भी मशहूर है। इसका वास्तुशिल्प (डिजाइन) चार्ल्स कोरिया ने बनाया था और यह किसी ऊंची उठी इमारत/बिल्डिंग के बजाए जमीन के समानांतर है। इसकी खासियत यह भी है कि इसे किसी एक स्थान से पूरा नहीं देखा जा सकता है। यहां तीन ऑडिटोरियम हैं जहां समय-समय पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है और रंगदर्शनियों में चित्रों की प्रदर्शनी का आयोजन किया जाता रहता है। किसी भी तरह की कलाओं से जुड़ाव रखने वाले कला प्रेमियों के बीच यह जगह काफी प्रचलित है। .

कापालिक शैली और भारत भवन · पंडवानी और भारत भवन · और देखें »

छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ भारत का एक राज्य है। छत्तीसगढ़ राज्य का गठन १ नवम्बर २००० को हुआ था। यह भारत का २६वां राज्य है। भारत में दो क्षेत्र ऐसे हैं जिनका नाम विशेष कारणों से बदल गया - एक तो 'मगध' जो बौद्ध विहारों की अधिकता के कारण "बिहार" बन गया और दूसरा 'दक्षिण कौशल' जो छत्तीस गढ़ों को अपने में समाहित रखने के कारण "छत्तीसगढ़" बन गया। किन्तु ये दोनों ही क्षेत्र अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारत को गौरवान्वित करते रहे हैं। "छत्तीसगढ़" तो वैदिक और पौराणिक काल से ही विभिन्न संस्कृतियों के विकास का केन्द्र रहा है। यहाँ के प्राचीन मन्दिर तथा उनके भग्नावशेष इंगित करते हैं कि यहाँ पर वैष्णव, शैव, शाक्त, बौद्ध संस्कृतियों का विभिन्न कालों में प्रभाव रहा है। .

कापालिक शैली और छत्तीसगढ़ · छत्तीसगढ़ और पंडवानी · और देखें »

सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब

कापालिक शैली और पंडवानी के बीच तुलना

कापालिक शैली 5 संबंध है और पंडवानी 16 है। वे आम 3 में है, समानता सूचकांक 14.29% है = 3 / (5 + 16)।

संदर्भ

यह लेख कापालिक शैली और पंडवानी के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »