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काकविन

सूची काकविन

काकविन प्राचीन जावा और बाली के कावी भाषा में लिखे काव्य को कहते हैं। काकविन ८वीं से १९वीं शताब्दी तक लिखे गये। यह वेद, पुराण, इतिहास की कथाओं से सम्बन्धित हैं। इनमें इंदोनेशिया के रामायण और महाभारत के भी रूपान्तर मिलते हैं। इनमें संस्कृत काव्य के छन्दों का प्रयोग होता है। .

35 संबंधों: पुराण, महाभारत, रामायण, शिवगृह लेख, संस्कृत भाषा, वेद, इतिहास, काव्य, काकविन देशवर्णन, काकविन धर्मशून्य, काकविन नगरकृतागम, काकविन नीतिशास्त्र, काकविन पार्थयज्ञ, काकविन ब्रह्माण्डपुराण, काकविन भारतयुद्ध, काकविन भोमकाव्य, काकविन रामायण, काकविन लुब्धक, काकविन शिवरात्रिकल्प, काकविन सुतसोम, काकविन स्मरदहन, काकविन हरिश्रय, काकविन हरिवंश, काकविन घटोट्कचाश्रय, काकविन वृत्तायण, काकविन कृष्णायण, काकविन अर्जुनविजय, काकविन अर्जुनविवाह, कवि भाषा, छंद, ११५७, १३६५, १९५०, १९७४, 856

पुराण

पुराण, हिंदुओं के धर्म संबंधी आख्यान ग्रंथ हैं। जिनमें सृष्टि, लय, प्राचीन ऋषियों, मुनियों और राजाओं के वृत्तात आदि हैं। ये वैदिक काल के बहुत्का बाद के ग्रन्थ हैं, जो स्मृति विभाग में आते हैं। भारतीय जीवन-धारा में जिन ग्रन्थों का महत्वपूर्ण स्थान है उनमें पुराण भक्ति-ग्रंथों के रूप में बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। अठारह पुराणों में अलग-अलग देवी-देवताओं को केन्द्र मानकर पाप और पुण्य, धर्म और अधर्म, कर्म और अकर्म की गाथाएँ कही गई हैं। कुछ पुराणों में सृष्टि के आरम्भ से अन्त तक का विवरण किया गया है। 'पुराण' का शाब्दिक अर्थ है, 'प्राचीन' या 'पुराना'।Merriam-Webster's Encyclopedia of Literature (1995 Edition), Article on Puranas,, page 915 पुराणों की रचना मुख्यतः संस्कृत में हुई है किन्तु कुछ पुराण क्षेत्रीय भाषाओं में भी रचे गए हैं।Gregory Bailey (2003), The Study of Hinduism (Editor: Arvind Sharma), The University of South Carolina Press,, page 139 हिन्दू और जैन दोनों ही धर्मों के वाङ्मय में पुराण मिलते हैं। John Cort (1993), Purana Perennis: Reciprocity and Transformation in Hindu and Jaina Texts (Editor: Wendy Doniger), State University of New York Press,, pages 185-204 पुराणों में वर्णित विषयों की कोई सीमा नहीं है। इसमें ब्रह्माण्डविद्या, देवी-देवताओं, राजाओं, नायकों, ऋषि-मुनियों की वंशावली, लोककथाएं, तीर्थयात्रा, मन्दिर, चिकित्सा, खगोल शास्त्र, व्याकरण, खनिज विज्ञान, हास्य, प्रेमकथाओं के साथ-साथ धर्मशास्त्र और दर्शन का भी वर्णन है। विभिन्न पुराणों की विषय-वस्तु में बहुत अधिक असमानता है। इतना ही नहीं, एक ही पुराण के कई-कई पाण्डुलिपियाँ प्राप्त हुई हैं जो परस्पर भिन्न-भिन्न हैं। हिन्दू पुराणों के रचनाकार अज्ञात हैं और ऐसा लगता है कि कई रचनाकारों ने कई शताब्दियों में इनकी रचना की है। इसके विपरीत जैन पुराण जैन पुराणों का रचनाकाल और रचनाकारों के नाम बताए जा सकते हैं। कर्मकांड (वेद) से ज्ञान (उपनिषद्) की ओर आते हुए भारतीय मानस में पुराणों के माध्यम से भक्ति की अविरल धारा प्रवाहित हुई है। विकास की इसी प्रक्रिया में बहुदेववाद और निर्गुण ब्रह्म की स्वरूपात्मक व्याख्या से धीरे-धीरे मानस अवतारवाद या सगुण भक्ति की ओर प्रेरित हुआ। पुराणों में वैदिक काल से चले आते हुए सृष्टि आदि संबंधी विचारों, प्राचीन राजाओं और ऋषियों के परंपरागत वृत्तांतों तथा कहानियों आदि के संग्रह के साथ साथ कल्पित कथाओं की विचित्रता और रोचक वर्णनों द्वारा सांप्रदायिक या साधारण उपदेश भी मिलते हैं। पुराण उस प्रकार प्रमाण ग्रंथ नहीं हैं जिस प्रकार श्रुति, स्मृति आदि हैं। पुराणों में विष्णु, वायु, मत्स्य और भागवत में ऐतिहासिक वृत्त— राजाओं की वंशावली आदि के रूप में बहुत कुछ मिलते हैं। ये वंशावलियाँ यद्यपि बहुत संक्षिप्त हैं और इनमें परस्पर कहीं कहीं विरोध भी हैं पर हैं बडे़ काम की। पुराणों की ओर ऐतिहासिकों ने इधर विशेष रूप से ध्यान दिया है और वे इन वंशावलियों की छानबीन में लगे हैं। .

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महाभारत

महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति वर्ग में आता है। कभी कभी केवल "भारत" कहा जाने वाला यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं। विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। इस ग्रन्थ को हिन्दू धर्म में पंचम वेद माना जाता है। यद्यपि इसे साहित्य की सबसे अनुपम कृतियों में से एक माना जाता है, किन्तु आज भी यह ग्रंथ प्रत्येक भारतीय के लिये एक अनुकरणीय स्रोत है। यह कृति प्राचीन भारत के इतिहास की एक गाथा है। इसी में हिन्दू धर्म का पवित्रतम ग्रंथ भगवद्गीता सन्निहित है। पूरे महाभारत में लगभग १,१०,००० श्लोक हैं, जो यूनानी काव्यों इलियड और ओडिसी से परिमाण में दस गुणा अधिक हैं। हिन्दू मान्यताओं, पौराणिक संदर्भो एवं स्वयं महाभारत के अनुसार इस काव्य का रचनाकार वेदव्यास जी को माना जाता है। इस काव्य के रचयिता वेदव्यास जी ने अपने इस अनुपम काव्य में वेदों, वेदांगों और उपनिषदों के गुह्यतम रहस्यों का निरुपण किया हैं। इसके अतिरिक्त इस काव्य में न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, कामशास्त्र, खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्र का भी विस्तार से वर्णन किया गया हैं। .

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रामायण

रामायण आदि कवि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया संस्कृत का एक अनुपम महाकाव्य है। इसके २४,००० श्लोक हैं। यह हिन्दू स्मृति का वह अंग हैं जिसके माध्यम से रघुवंश के राजा राम की गाथा कही गयी। इसे आदिकाव्य तथा इसके रचयिता महर्षि वाल्मीकि को 'आदिकवि' भी कहा जाता है। रामायण के सात अध्याय हैं जो काण्ड के नाम से जाने जाते हैं। .

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शिवगृह लेख

प्राचीन जावा और बाली के कावी भाषा में लिखा एक विख्यात काकविन काव्य।.

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संस्कृत भाषा

संस्कृत (संस्कृतम्) भारतीय उपमहाद्वीप की एक शास्त्रीय भाषा है। इसे देववाणी अथवा सुरभारती भी कहा जाता है। यह विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा हैं जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार का एक शाखा हैं। आधुनिक भारतीय भाषाएँ जैसे, हिंदी, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गये हैं। बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गये हैं। आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं। .

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वेद

वेद प्राचीन भारत के पवितत्रतम साहित्य हैं जो हिन्दुओं के प्राचीनतम और आधारभूत धर्मग्रन्थ भी हैं। भारतीय संस्कृति में वेद सनातन वर्णाश्रम धर्म के, मूल और सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं, जो ईश्वर की वाणी है। ये विश्व के उन प्राचीनतम धार्मिक ग्रंथों में हैं जिनके पवित्र मन्त्र आज भी बड़ी आस्था और श्रद्धा से पढ़े और सुने जाते हैं। 'वेद' शब्द संस्कृत भाषा के विद् शब्द से बना है। इस तरह वेद का शाब्दिक अर्थ 'ज्ञान के ग्रंथ' है। इसी धातु से 'विदित' (जाना हुआ), 'विद्या' (ज्ञान), 'विद्वान' (ज्ञानी) जैसे शब्द आए हैं। आज 'चतुर्वेद' के रूप में ज्ञात इन ग्रंथों का विवरण इस प्रकार है -.

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इतिहास

बोधिसत्व पद्मपनी, अजंता, भारत। इतिहास(History) का प्रयोग विशेषत: दो अर्थों में किया जाता है। एक है प्राचीन अथवा विगत काल की घटनाएँ और दूसरा उन घटनाओं के विषय में धारणा। इतिहास शब्द (इति + ह + आस; अस् धातु, लिट् लकार अन्य पुरुष तथा एक वचन) का तात्पर्य है "यह निश्चय था"। ग्रीस के लोग इतिहास के लिए "हिस्तरी" (history) शब्द का प्रयोग करते थे। "हिस्तरी" का शाब्दिक अर्थ "बुनना" था। अनुमान होता है कि ज्ञात घटनाओं को व्यवस्थित ढंग से बुनकर ऐसा चित्र उपस्थित करने की कोशिश की जाती थी जो सार्थक और सुसंबद्ध हो। इस प्रकार इतिहास शब्द का अर्थ है - परंपरा से प्राप्त उपाख्यान समूह (जैसे कि लोक कथाएँ), वीरगाथा (जैसे कि महाभारत) या ऐतिहासिक साक्ष्य। इतिहास के अंतर्गत हम जिस विषय का अध्ययन करते हैं उसमें अब तक घटित घटनाओं या उससे संबंध रखनेवाली घटनाओं का कालक्रमानुसार वर्णन होता है। दूसरे शब्दों में मानव की विशिष्ट घटनाओं का नाम ही इतिहास है। या फिर प्राचीनता से नवीनता की ओर आने वाली, मानवजाति से संबंधित घटनाओं का वर्णन इतिहास है।Whitney, W. D. (1889).

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काव्य

काव्य, कविता या पद्य, साहित्य की वह विधा है जिसमें किसी कहानी या मनोभाव को कलात्मक रूप से किसी भाषा के द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है। भारत में कविता का इतिहास और कविता का दर्शन बहुत पुराना है। इसका प्रारंभ भरतमुनि से समझा जा सकता है। कविता का शाब्दिक अर्थ है काव्यात्मक रचना या कवि की कृति, जो छन्दों की शृंखलाओं में विधिवत बांधी जाती है। काव्य वह वाक्य रचना है जिससे चित्त किसी रस या मनोवेग से पूर्ण हो। अर्थात् वहजिसमें चुने हुए शब्दों के द्वारा कल्पना और मनोवेगों का प्रभाव डाला जाता है। रसगंगाधर में 'रमणीय' अर्थ के प्रतिपादक शब्द को 'काव्य' कहा है। 'अर्थ की रमणीयता' के अंतर्गत शब्द की रमणीयता (शब्दलंकार) भी समझकर लोग इस लक्षण को स्वीकार करते हैं। पर 'अर्थ' की 'रमणीयता' कई प्रकार की हो सकती है। इससे यह लक्षण बहुत स्पष्ट नहीं है। साहित्य दर्पणाकार विश्वनाथ का लक्षण ही सबसे ठीक जँचता है। उसके अनुसार 'रसात्मक वाक्य ही काव्य है'। रस अर्थात् मनोवेगों का सुखद संचार की काव्य की आत्मा है। काव्यप्रकाश में काव्य तीन प्रकार के कहे गए हैं, ध्वनि, गुणीभूत व्यंग्य और चित्र। ध्वनि वह है जिस, में शब्दों से निकले हुए अर्थ (वाच्य) की अपेक्षा छिपा हुआ अभिप्राय (व्यंग्य) प्रधान हो। गुणीभूत ब्यंग्य वह है जिसमें गौण हो। चित्र या अलंकार वह है जिसमें बिना ब्यंग्य के चमत्कार हो। इन तीनों को क्रमशः उत्तम, मध्यम और अधम भी कहते हैं। काव्यप्रकाशकार का जोर छिपे हुए भाव पर अधिक जान पड़ता है, रस के उद्रेक पर नहीं। काव्य के दो और भेद किए गए हैं, महाकाव्य और खंड काव्य। महाकाव्य सर्गबद्ध और उसका नायक कोई देवता, राजा या धीरोदात्त गुंण संपन्न क्षत्रिय होना चाहिए। उसमें शृंगार, वीर या शांत रसों में से कोई रस प्रधान होना चाहिए। बीच बीच में करुणा; हास्य इत्यादि और रस तथा और और लोगों के प्रसंग भी आने चाहिए। कम से कम आठ सर्ग होने चाहिए। महाकाव्य में संध्या, सूर्य, चंद्र, रात्रि, प्रभात, मृगया, पर्वत, वन, ऋतु, सागर, संयोग, विप्रलम्भ, मुनि, पुर, यज्ञ, रणप्रयाण, विवाह आदि का यथास्थान सन्निवेश होना चाहिए। काव्य दो प्रकार का माना गया है, दृश्य और श्रव्य। दृश्य काव्य वह है जो अभिनय द्वारा दिखलाया जाय, जैसे, नाटक, प्रहसन, आदि जो पढ़ने और सुनेन योग्य हो, वह श्रव्य है। श्रव्य काव्य दो प्रकार का होता है, गद्य और पद्य। पद्य काव्य के महाकाव्य और खंडकाव्य दो भेद कहे जा चुके हैं। गद्य काव्य के भी दो भेद किए गए हैं- कथा और आख्यायिका। चंपू, विरुद और कारंभक तीन प्रकार के काव्य और माने गए है। .

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काकविन देशवर्णन

प्राचीन जावा और बाली के कावी भाषा में लिखा एक विख्यात काकविन काव्य।.

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काकविन धर्मशून्य

प्राचीन जावा और बाली के कावी भाषा में लिखा एक विख्यात काकविन काव्य।.

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काकविन नगरकृतागम

प्राचीन जावा और बाली के कावी भाषा में लिखा एक विख्यात काकविन काव्य।.

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काकविन नीतिशास्त्र

प्राचीन जावा और बाली के कावी भाषा में लिखा एक विख्यात काकविन काव्य।.

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काकविन पार्थयज्ञ

प्राचीन जावा और बाली के कावी भाषा में लिखा एक विख्यात काकविन काव्य।.

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काकविन ब्रह्माण्डपुराण

प्राचीन जावा और बाली के कावी भाषा में लिखा एक विख्यात काकविन काव्य।.

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काकविन भारतयुद्ध

प्राचीन जावा और बाली के कावी भाषा में लिखा एक विख्यात काकविन काव्य।.

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काकविन भोमकाव्य

प्राचीन जावा और बाली के कावी भाषा में लिखा एक विख्यात काकविन काव्य।.

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काकविन रामायण

प्राचीन जावा और बाली के कावी भाषा में लिखा एक विख्यात काकविन काव्य।.

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काकविन लुब्धक

प्राचीन जावा और बाली के कावी भाषा में लिखा एक विख्यात काकविन काव्य।.

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काकविन शिवरात्रिकल्प

प्राचीन जावा और बाली के कावी भाषा में लिखा एक विख्यात काकविन काव्य।.

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काकविन सुतसोम

अंगूठाकार काकविन सुतसोम मजापहित साम्राज्य १४वीं शताब्दी का एक काकविन काव्य है। इसमें भगवान सुतसोम की चरित वर्णित है। इसके रचयिता १४वीं शताब्दी के म्पू तन्तुलर थे। इसी महाकाव्य से इण्डोनेशिया का आदर्श वाक्य भिन्नेका तुङल इका लिया गया है जिसका अर्थ है भिन्नता में एकता। .

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काकविन स्मरदहन

स्मरदहन का मुखपृष्ट; शिव द्वारा स्मर (कामदेव) का दहन स्मरदहन (अर्थ: 'कामदेव का दहन') प्राचीन जावा भाषा (काकविन) में रचित एक काव्य है। इसकी रचना मपू धर्मज ने १२वीं शताब्दी के आरम्भ में की थी। .

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काकविन हरिश्रय

प्राचीन जावा और बाली के कावी भाषा में लिखा एक विख्यात काकविन काव्य।.

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काकविन हरिवंश

प्राचीन जावा और बाली के कावी भाषा में लिखा एक विख्यात काकविन काव्य।.

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काकविन घटोट्कचाश्रय

प्राचीन जावा और बाली के कावी भाषा में लिखा एक विख्यात काकविन काव्य।.

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काकविन वृत्तायण

प्राचीन जावा और बाली के कावी भाषा में लिखा एक विख्यात काकविन काव्य।.

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काकविन कृष्णायण

प्राचीन जावा और बाली के कावी भाषा में लिखा एक विख्यात काकविन काव्य।.

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काकविन अर्जुनविजय

प्राचीन जावा और बाली के कावी भाषा में लिखा एक विख्यात काकविन काव्य।.

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काकविन अर्जुनविवाह

प्राचीन जावा और बाली के कावी भाषा में लिखा एक विख्यात काकविन काव्य।.

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कवि भाषा

काकविन सुतसोम का एक ताड़पत्र कावी इंडोनेशिया के जावा द्वीप की एक प्राचीन साहित्यिक भाषा है। इसकी अपनी लिपि थी। जावा के काव्य इसी भाषा में लिखे गये। इसमें संस्कृत के बहुत से शब्द हैं। .

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छंद

छन्द संस्कृत वाङ्मय में सामान्यतः लय को बताने के लिये प्रयोग किया गया है। विशिष्ट अर्थों में छन्द कविता या गीत में वर्णों की संख्या और स्थान से सम्बंधित नियमों को कहते हैं जिनसे काव्य में लय और रंजकता आती है। छोटी-बड़ी ध्वनियां, लघु-गुरु उच्चारणों के क्रमों में, मात्रा बताती हैं और जब किसी काव्य रचना में ये एक व्यवस्था के साथ सामंजस्य प्राप्त करती हैं तब उसे एक शास्त्रीय नाम दे दिया जाता है और लघु-गुरु मात्राओं के अनुसार वर्णों की यह व्यवस्था एक विशिष्ट नाम वाला छन्द कहलाने लगती है, जैसे चौपाई, दोहा, आर्या, इन्द्र्वज्रा, गायत्री छन्द इत्यादि। इस प्रकार की व्यवस्था में मात्रा अथवा वर्णॊं की संख्या, विराम, गति, लय तथा तुक आदि के नियमों को भी निर्धारित किया गया है जिनका पालन कवि को करना होता है। इस दूसरे अर्थ में यह अंग्रेजी के मीटर अथवा उर्दू फ़ारसी के रुक़न (अराकान) के समकक्ष है। हिन्दी साहित्य में भी परंपरागत रचनाएँ छन्द के इन नियमों का पालन करते हुए रची जाती थीं, यानि किसी न किसी छन्द में होती थीं। विश्व की अन्य भाषाओँ में भी परंपरागत रूप से कविता के लिये छन्द के नियम होते हैं। छन्दों की रचना और गुण-अवगुण के अध्ययन को छन्दशास्त्र कहते हैं। चूँकि, आचार्य पिंगल द्वारा रचित 'छन्दःशास्त्र' सबसे प्राचीन उपलब्ध ग्रन्थ है, इस शास्त्र को पिंगलशास्त्र भी कहा जाता है। .

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११५७

११५७ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१३६५

1365 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१९५०

1950 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१९७४

1974 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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856

856 ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। .

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