कवि और जापानी साहित्य
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कवि और जापानी साहित्य के बीच अंतर
कवि vs. जापानी साहित्य
कवि वह है जो भावों को रसाभिषिक्त अभिव्यक्ति देता है और सामान्य अथवा स्पष्ट के परे गहन यथार्थ का वर्णन करता है। इसीलिये वैदिक काल में ऋषय: मन्त्रदृष्टार: कवय: क्रान्तदर्शिन: अर्थात् ऋषि को मन्त्रदृष्टा और कवि को क्रान्तदर्शी कहा गया है। "जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि" इस लोकोक्ति को एक दोहे के माध्यम से अभिव्यक्ति दी गयी है: "जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ, कवि पहुँचे तत्काल। दिन में कवि का काम क्या, निशि में करे कमाल।।" ('क्रान्त' कृत मुक्तकी से साभार) . जापानी साहित्य काफी पुराना है। जापानी साहित्य की आरम्भिक रचनाएँ चीन और चीनी साहित्य के साथ जापान के सांस्कृतिक सम्बन्धों से बहुत प्रभावित हैं। भारतीय साहित्य ने भी बौद्ध धर्म के माध्यम से जापानी साहित्य पर अपनी छाप छोड़ी। किन्तु समय के साथ जापानी साहित्य की अपनी अलग शैली विकसित हुई किन्तु फिर भी चीनी साहित्य का प्रभाव एदो काल (Edo period) तक बना रहा। १९वीं शताब्दी में जब से जापान ने अपने बन्दरगाहों को पश्चिमी व्यापारियों एवं राजनयिकों के लिए खोल दिया है, तब से पश्चिमी साहित्य तथा जापानी साहित्य ने एक दूसरे को प्रभावित किया है। (cf.) .
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संदर्भ
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