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कल्माषपाद

सूची कल्माषपाद

कल्माषपाद इक्ष्वाकुवंशीय नरेश ऋतुपर्ण के पौत्र तथा सुदास (सौदास) के पुत्र थे। इनका अन्य नाम 'मित्रसह' भी था। इनकी रानी मदयती थीं जिन्हें इन्होंने वसिष्ठ की सेवा में अर्पित किया (महाभारत, शांतिपर्व २३४-३०)। .

3 संबंधों: महाभारत, वसिष्ठ, ऋतुपर्ण

महाभारत

महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति वर्ग में आता है। कभी कभी केवल "भारत" कहा जाने वाला यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं। विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। इस ग्रन्थ को हिन्दू धर्म में पंचम वेद माना जाता है। यद्यपि इसे साहित्य की सबसे अनुपम कृतियों में से एक माना जाता है, किन्तु आज भी यह ग्रंथ प्रत्येक भारतीय के लिये एक अनुकरणीय स्रोत है। यह कृति प्राचीन भारत के इतिहास की एक गाथा है। इसी में हिन्दू धर्म का पवित्रतम ग्रंथ भगवद्गीता सन्निहित है। पूरे महाभारत में लगभग १,१०,००० श्लोक हैं, जो यूनानी काव्यों इलियड और ओडिसी से परिमाण में दस गुणा अधिक हैं। हिन्दू मान्यताओं, पौराणिक संदर्भो एवं स्वयं महाभारत के अनुसार इस काव्य का रचनाकार वेदव्यास जी को माना जाता है। इस काव्य के रचयिता वेदव्यास जी ने अपने इस अनुपम काव्य में वेदों, वेदांगों और उपनिषदों के गुह्यतम रहस्यों का निरुपण किया हैं। इसके अतिरिक्त इस काव्य में न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, कामशास्त्र, खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्र का भी विस्तार से वर्णन किया गया हैं। .

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वसिष्ठ

वसिष्ठ वैदिक काल के विख्यात ऋषि थे। वसिष्ठ एक सप्तर्षि हैं - यानि के उन सात ऋषियों में से एक जिन्हें ईश्वर द्वारा सत्य का ज्ञान एक साथ हुआ था और जिन्होंने मिलकर वेदों का दर्शन किया (वेदों की रचना की ऐसा कहना अनुचित होगा क्योंकि वेद तो अनादि है)। उनकी पत्नी अरुन्धती है। वह योग-वासिष्ठ में राम के गुरु हैं। वसिष्ठ राजा दशरथ के राजकुल गुरु भी थे। आकाश में चमकते सात तारों के समूह में पंक्ति के एक स्थान पर वशिष्ठ को स्थित माना जाता है। दूसरे (दाहिने से) वशिष्ठ और उनकी पत्नी अरुंधती को दिखाया गया है। अंग्रेज़ी में सप्तर्षि तारसमूह को ''बिग डिपर'' या ''ग्रेट बियर'' (बड़ा भालू) कहते हैं और वशिष्ठ-अरुंधती को ''अल्कोर-मिज़र'' कहते हैं। श्रेणी:ऋषि मुनि.

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ऋतुपर्ण

ऋतुपर्ण अयोध्या के एक पुराकालीन राजा थे। इसके पिता का नाम सर्वकाम था। यह अक्षविद्या में अत्यंत निपुण थे। जुए में राज्य हार जाने के उपंरात अपने अज्ञातवासकाल में नल 'बाहुक' नाम से इसी के पास सारथि के रूप में रहा था। इसने नल को अपनी अक्षविद्या दी तथा नल ने भी अपनी अश्वविद्या इसे दी। नलवियुक्ती दमयंती को जब अपने चर पर्णाद द्वारा पता चला कि नल ऋतुपर्ण के सारथि के रूप में रह रहा है तो उसने ऋतुपर्ण का संदेशा भेजा, नल का कुछ भी पता न लगने के कारण मैं अपना दूसरा स्वयंवर कल सूर्योदय के समय कर रही हूँ, अत: आप समय रहते कुंडनिपुर पधारें। नल ने अपनी अश्वविद्या के बल से ऋतुपर्ण को ठीक समय पर कुंडनिपुर पहुँचा दिया तथा वहाँ नल और दमयंती का मिलन हुआ। बौधायन श्रौत्रसूत्र (२०,१२) के अनुसार ऋतुपर्ण भंगाश्विन का पुत्र तथा शफाल के राजा थे। वायु, ब्रह्म तथा हरिवंश इत्यादि पुराणों में ऋतुपर्ण को अयुतायुपुत्र बताया गया है। श्रेणी:अयोध्याकुल श्रेणी:प्राचीन पौराणिक राजवंश.

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