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कर्नाटक और कुलोत्तुंग चोल प्रथम

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

कर्नाटक और कुलोत्तुंग चोल प्रथम के बीच अंतर

कर्नाटक vs. कुलोत्तुंग चोल प्रथम

कर्नाटक, जिसे कर्णाटक भी कहते हैं, दक्षिण भारत का एक राज्य है। इस राज्य का गठन १ नवंबर, १९५६ को राज्य पुनर्गठन अधिनियम के अधीन किया गया था। पहले यह मैसूर राज्य कहलाता था। १९७३ में पुनर्नामकरण कर इसका नाम कर्नाटक कर दिया गया। इसकी सीमाएं पश्चिम में अरब सागर, उत्तर पश्चिम में गोआ, उत्तर में महाराष्ट्र, पूर्व में आंध्र प्रदेश, दक्षिण-पूर्व में तमिल नाडु एवं दक्षिण में केरल से लगती हैं। इसका कुल क्षेत्रफल ७४,१२२ वर्ग मील (१,९१,९७६ कि॰मी॰²) है, जो भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का ५.८३% है। २९ जिलों के साथ यह राज्य आठवां सबसे बड़ा राज्य है। राज्य की आधिकारिक और सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है कन्नड़। कर्नाटक शब्द के उद्गम के कई व्याख्याओं में से सर्वाधिक स्वीकृत व्याख्या यह है कि कर्नाटक शब्द का उद्गम कन्नड़ शब्द करु, अर्थात काली या ऊंची और नाडु अर्थात भूमि या प्रदेश या क्षेत्र से आया है, जिसके संयोजन करुनाडु का पूरा अर्थ हुआ काली भूमि या ऊंचा प्रदेश। काला शब्द यहां के बयालुसीम क्षेत्र की काली मिट्टी से आया है और ऊंचा यानि दक्कन के पठारी भूमि से आया है। ब्रिटिश राज में यहां के लिये कार्नेटिक शब्द का प्रयोग किया जाता था, जो कृष्णा नदी के दक्षिणी ओर की प्रायद्वीपीय भूमि के लिये प्रयुक्त है और मूलतः कर्नाटक शब्द का अपभ्रंश है। प्राचीन एवं मध्यकालीन इतिहास देखें तो कर्नाटक क्षेत्र कई बड़े शक्तिशाली साम्राज्यों का क्षेत्र रहा है। इन साम्राज्यों के दरबारों के विचारक, दार्शनिक और भाट व कवियों के सामाजिक, साहित्यिक व धार्मिक संरक्षण में आज का कर्नाटक उपजा है। भारतीय शास्त्रीय संगीत के दोनों ही रूपों, कर्नाटक संगीत और हिन्दुस्तानी संगीत को इस राज्य का महत्त्वपूर्ण योगदान मिला है। आधुनिक युग के कन्नड़ लेखकों को सर्वाधिक ज्ञानपीठ सम्मान मिले हैं। राज्य की राजधानी बंगलुरु शहर है, जो भारत में हो रही त्वरित आर्थिक एवं प्रौद्योगिकी का अग्रणी योगदानकर्त्ता है। . कुलोत्तुंग चोल प्रथम (१०७०-११२२ ई.) दक्षिण भारत के चोल राज्य का प्रख्यात शासक था। यह वेंगी के चालुक्यनरेश राजराज नरेंद्र (१०१९-१०६१ ई०) का पुत्र था और इसका नाम राजेंद्र (द्वितीय) था। इसका विवाह चोलवंश की राजकुमारी मधुरांतका से हुआ था जो वीरराजेंद्र की भतीजी थी। यह वेंगी राज्य का वैध अधिकारी था किंतु पारिवारिक वैमनस्य के कारण वीरराजेंद्र ने राजेंद्र (द्वितीय) के चचा विजयादित्य (सप्तम) को अधीनता स्वीकार करने की शर्त पर राज्य प्राप्त करने में सहायता की। इस प्रकार यह वेंगी का अपना पैत्रिक राज्य प्राप्त न कर सका। किंतु कुछ वर्षों बाद वीरराजेंद्र का उत्तराधिकारी और पुत्र अधिराजेंद्र एक जनविद्रोह में मारा गया तब चालुक्य राजेंद्र (द्वितीय) ने चोल राज्य को हथिया लिया और कुलोत्तुंग (प्रथम) के नाम से इसका शासक बना। तब इसने अपने पैतृक राज्य वेंगी से विजयादित्य (सप्तम) को निकाल बाहर किया और अपने पुत्रों को वहाँ का शासक बनाकर भेजा। कुलोत्तुंग की गणना चोल के महान नरेशों में की जाती है। अभिलेखों और अनुश्रुतियों में उसका उल्लेख संगमतविर्त्त (कर-उन्मूलक) के रूप में हुआ है। उसके शासनकाल का अधिकांश भाग अद्भुत सफलता और समृद्धि का था। उसकी नीति थी अनावश्यक युद्ध न किया जाय और उनसे बचा जाए। परिणामस्वरूप श्रीलंका को छोड़कर चोल साम्राज्य के सारे प्रदेश १११५ ई. तक उसके अधीन बने रहे। उसे मुख्य रूप से वीरराजेंद्र के दामाद कल्याणी के चालुक्य नरेश विक्रमादित्य (षष्ठ) से निरंतर संघर्ष करना पड़ा। इसके कारण उसके अंतिम दिनों में चोल राज्य की स्थिति काफी दयनीय हो गई और वह तमिल देश और तेलुगु के कुछ भागों में ही सिमट कर रह गया। .

कर्नाटक और कुलोत्तुंग चोल प्रथम के बीच समानता

कर्नाटक और कुलोत्तुंग चोल प्रथम आम में 2 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): चालुक्य राजवंश, चोल राजवंश

चालुक्य राजवंश

चालुक्य प्राचीन भारत का एक प्रसिद्ध क्षत्रिय राजवंश है। इनकी राजधानी बादामी (वातापि) थी। अपने महत्तम विस्तार के समय (सातवीं सदी) यह वर्तमान समय के संपूर्ण कर्नाटक, पश्चिमी महाराष्ट्र, दक्षिणी मध्य प्रदेश, तटीय दक्षिणी गुजरात तथा पश्चिमी आंध्र प्रदेश में फैला हुआ था। .

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चोल राजवंश

चोल (तमिल - சோழர்) प्राचीन भारत का एक राजवंश था। दक्षिण भारत में और पास के अन्य देशों में तमिल चोल शासकों ने 9 वीं शताब्दी से 13 वीं शताब्दी के बीच एक अत्यंत शक्तिशाली हिन्दू साम्राज्य का निर्माण किया। 'चोल' शब्द की व्युत्पत्ति विभिन्न प्रकार से की जाती रही है। कर्नल जेरिनो ने चोल शब्द को संस्कृत "काल" एवं "कोल" से संबद्ध करते हुए इसे दक्षिण भारत के कृष्णवर्ण आर्य समुदाय का सूचक माना है। चोल शब्द को संस्कृत "चोर" तथा तमिल "चोलम्" से भी संबद्ध किया गया है किंतु इनमें से कोई मत ठीक नहीं है। आरंभिक काल से ही चोल शब्द का प्रयोग इसी नाम के राजवंश द्वारा शासित प्रजा और भूभाग के लिए व्यवहृत होता रहा है। संगमयुगीन मणिमेक्लै में चोलों को सूर्यवंशी कहा है। चोलों के अनेक प्रचलित नामों में शेंबियन् भी है। शेंबियन् के आधार पर उन्हें शिबि से उद्भूत सिद्ध करते हैं। 12वीं सदी के अनेक स्थानीय राजवंश अपने को करिकाल से उद्भत कश्यप गोत्रीय बताते हैं। चोलों के उल्लेख अत्यंत प्राचीन काल से ही प्राप्त होने लगते हैं। कात्यायन ने चोडों का उल्लेख किया है। अशोक के अभिलेखों में भी इसका उल्लेख उपलब्ध है। किंतु इन्होंने संगमयुग में ही दक्षिण भारतीय इतिहास को संभवत: प्रथम बार प्रभावित किया। संगमकाल के अनेक महत्वपूर्ण चोल सम्राटों में करिकाल अत्यधिक प्रसिद्ध हुए संगमयुग के पश्चात् का चोल इतिहास अज्ञात है। फिर भी चोल-वंश-परंपरा एकदम समाप्त नहीं हुई थी क्योंकि रेनंडु (जिला कुडाया) प्रदेश में चोल पल्लवों, चालुक्यों तथा राष्ट्रकूटों के अधीन शासन करते रहे। .

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कर्नाटक और कुलोत्तुंग चोल प्रथम के बीच तुलना

कर्नाटक 364 संबंध है और कुलोत्तुंग चोल प्रथम 2 है। वे आम 2 में है, समानता सूचकांक 0.55% है = 2 / (364 + 2)।

संदर्भ

यह लेख कर्नाटक और कुलोत्तुंग चोल प्रथम के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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