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कर्कट रोग और मानव श्वेताणु प्रतिजन

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

कर्कट रोग और मानव श्वेताणु प्रतिजन के बीच अंतर

कर्कट रोग vs. मानव श्वेताणु प्रतिजन

कर्कट (चिकित्सकीय पद: दुर्दम नववृद्धि) रोगों का एक वर्ग है जिसमें कोशिकाओं का एक समूह अनियंत्रित वृद्धि (सामान्य सीमा से अधिक विभाजन), रोग आक्रमण (आस-पास के उतकों का विनाश और उन पर आक्रमण) और कभी कभी अपररूपांतरण अथवा मेटास्टैसिस (लसिका या रक्त के माध्यम से शरीर के अन्य भागों में फ़ैल जाता है) प्रदर्शित करता है। कर्कट के ये तीन दुर्दम लक्षण इसे सौम्य गाँठ (ट्यूमर या अबुर्द) से विभेदित करते हैं, जो स्वयं सीमित हैं, आक्रामक नहीं हैं या अपररूपांतरण प्रर्दशित नहीं करते हैं। अधिकांश कर्कट एक गाँठ या अबुर्द (ट्यूमर) बनाते हैं, लेकिन कुछ, जैसे रक्त कर्कट (श्वेतरक्तता) गाँठ नहीं बनाता है। चिकित्सा की वह शाखा जो कर्कट के अध्ययन, निदान, उपचार और रोकथाम से सम्बंधित है, ऑन्कोलॉजी या अर्बुदविज्ञान कहलाती है। कर्कट सभी उम्र के लोगों को, यहाँ तक कि भ्रूण को भी प्रभावित कर सकता है, लेकिन अधिकांश किस्मों का जोखिम उम्र के साथ बढ़ता है। कर्कट में से १३% का कारण है। अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार, २००७ के दौरान पूरे विश्व में ७६ लाख लोगों की मृत्यु कर्कट के कारण हुई। कर्कट सभी जानवरों को प्रभावित कर सकता है। लगभग सभी कर्कट रूपांतरित कोशिकाओं के आनुवंशिक पदार्थ में असामान्यताओं के कारण होते हैं। ये असामान्यताएं कार्सिनोजन या का कर्कटजन (कर्कट पैदा करने वाले कारक) के कारण हो सकती हैं जैसे तम्बाकू धूम्रपान, विकिरण, रसायन, या संक्रामक कारक. क्रोमोज़ोम 6 का एचएलए (HLA) क्षेत्र. मानव श्वेताणु प्रतिजन प्रणाली (एचएलए (HLA)) मनुष्यों में मुख्य ऊतक-संयोज्यता संकुल (एमएचसी (MHC)) का नाम है। सुपर स्थल में मनुष्यों के प्रतिरक्षी तंत्र की कार्यप्रणाली से संबंधित जीन बड़ी संख्या में विद्यमान रहते हैं। यह जीन-समूह गुणसूत्र 6 पर स्थित रहता है और कोशिका-सतह प्रतिजन को प्रस्तुत करने वाले प्रोटीनों और कई अन्य जीनों को अनुकूटित करता है। एचएलए (HLA)) जीन एमएचसी (MHC)) जीन का मानव संस्करण हैं जो अधिकतर पृषठवंशियों में पाए जाते हैं (और इस प्रकार सर्वाधिक अध्ययन किए गए एमएचसी (MHC)) जीन हैं). अवयव प्रत्यारोपणों में कारकों के रूप में उनकी ऐतिहासिक खोज के परिणामस्वरूप कतिपय जीनों द्वारा अनुकूटित प्रोटीनों को प्रतिजन का नाम भी दिया जाता है। प्रतिरक्षी प्रकार्यों के लिये मुख्य एचएलए (HLA)) प्रतिजन आवश्यक तत्व हैं। विभिन्न वर्गों के भिन्न कार्य होते हैं। एमएचसी (MHC)) वर्ग I (ए, बी और सी) से संबधित एचएलए (HLA)) प्रतिजन कोशिका के भीतर के पेप्टाइडों (विषाणुज पेप्टाइड सहित, यदि उपस्थित हों) को प्रस्तुत करते हैं। ये पेप्टाइड पचे हुए उन प्रोटीनों से उत्पन्न होते हैं, जो प्रोटियासोम में विघटित हो जाते हैं। पेप्टाइड सामान्यतः छोटे बहुलक होते हैं और लंबाई में लगभग 9 अमीनो अम्लों जितने होते हैं। बाह्य प्रतिजन संहारक टी-कोशिकाओं (जो सीडी8 (CD8) सकारात्मक- या कोशिकाविषी टी-कोशिकाएं भी कहलाती हैं) को आकर्षित करते हैं, जो कोशिकाओं को नष्ट करते हैं। एमएचसी (MHC) वर्ग II (डीपी (DP), डीएम (DM), डीओए (DOA), डीओबी (DOB), डीक्यू (DQ) और डीआर (DR)) से संबंधित एचएलए (HLA) प्रतिजन टी-लिम्फोसाइटों के लिये कोशिका के बाहर से प्रतिजन प्रस्तुत करते हैं। ये विशेष प्रतिजन टी-हेल्पर कोशिकाओं के विभाजन को प्रोत्साहित करते हैं और तब ये टी-सहायक कोशिकाएं प्रतिरक्षी-उत्पादक बी-कोशिकाओं को उस विशिष्ट प्रतिजन के प्रति प्रतिरक्षकों का उत्पादन करने के लिये उत्प्रेरित करती हैं। स्वतः-प्रतिजनों का शमन शामक टी-कोशिकाओं द्वारा किया जाता है। एमएचसी (MHC) वर्ग III से संबंधित एचएलए (HLA) प्रतिजन पूरक प्रणाली के घटकों को अनुकूटित करते हैं। एचएलए (HLA) की अन्य भूमिकाएं भी होती हैं। वे रोग से रक्षा के लिये महत्वपूर्ण हैं। वे अवयव प्रत्यारोपण के अस्वीकरण का कारण हो सकते हैं। वे कैंसर से रक्षा कर सकते हैं या रक्षा करने में असमर्थ (यदि वे किसी संक्रमण द्वारा अवनियमित हो जाएं तो) हो सकते हैं। वे रोग से स्वतःप्रतिरक्षित होने में मध्यस्थता कर सकते हैं (उदाहरण: प्रकार। मधुमेह, उदरगुहा रोग). प्रजनन में भी, एचएलए (HLA) लोगों की व्यक्तिगत गंध से संबंध रख सकते हैं और सहवासी के चुनाव में शामिल हो सकते हैं। 6 मुख्य प्रतिजनों को अनुकूटित करने वाले जीनों के अलावा, एचएलए (HLA) समूह पर बड़ी संख्या में अन्य जीन स्थित होते है, जिनमें से कई प्रतिरक्षा के कार्य में हिस्सा लेते हैं। मानव आबादी में एचएलए (HLA) की विविधता रोग से रक्षा का एक पहलू है और इसके परिणामस्वरूप सभी स्थानों पर दो असंबंधित व्यक्तियों में एक समान एचएलए (HLA) अणुओं के पाए जाने की संभावना बहुत कम होती है। ऐतिहासिक रूप से, एचएलए (HLA) जीनों की पहचान समान एचएलए (HLA) वाले व्यक्तियों के बीच अवयवों के सफलतापूर्ण प्रतिरोपण की क्षमता का परिणाम थी। .

कर्कट रोग और मानव श्वेताणु प्रतिजन के बीच समानता

कर्कट रोग और मानव श्वेताणु प्रतिजन आम में 4 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): प्रतिरक्षा प्रणाली, प्रोटीन, पेप्टाइड, कोशिका

प्रतिरक्षा प्रणाली

A scanning electron microscope image of a single neutrophil (yellow), engulfing anthrax bacteria (orange). प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune system) किसी जीव के भीतर होने वाली उन जैविक प्रक्रियाओं का एक संग्रह है, जो रोगजनकों और अर्बुद कोशिकाओं को पहले पहचान और फिर मार कर उस जीव की रोगों से रक्षा करती है। यह विषाणुओं से लेकर परजीवी कृमियों जैसे विभिन्न प्रकार के एजेंट की पहचान करने मे सक्षम होती है, साथ ही यह इन एजेंटों को जीव की स्वस्थ कोशिकाओं और ऊतकों से अलग पहचान सकती है, ताकि यह उन के विरुद्ध प्रतिक्रिया ना करे और पूरी प्रणाली सुचारु रूप से कार्य करे।। हिन्दुस्तान लाइव। २४ नवम्बर २००९ रोगजनकों की पहचान करना एक जटिल कार्य है क्योंकि रोगजनकों का रूपांतर बहुत तेजी से होता है और यह स्वयं का अनुकूलन इस प्रकार करते हैं कि प्रतिरक्षा प्रणाली से बचकर सफलतापूर्वक अपने पोषक को संक्रमित कर सकें। शरीर की प्रतिरक्षा-प्रणाली में खराबी आने से रोग में प्रवेश कर जाते हैं। प्रतिरक्षा-प्रणाली में खराबी को इम्यूनोडेफिशिएंसी कहते हैं। इम्यूनोडेफिशिएंसी या तो किसी आनुवांशिक रोग के कारण हो सकता है, या फिर कुछ खास दवाओं या संक्रमण के कारण भी संभव है। इसी का एक उदाहरण है एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशिएंसी सिंड्रोम (एड्स) जो एचआईवी वायरस के कारण फैलता है। ठीक इसके विपरीत स्वप्रतिरक्षित रोग (ऑटोइम्यून डिजीज) एक उत्तेजित ऑटो इम्यून सिस्टम के कारण होते हैं जो साधारण ऊतकों पर बाहरी जीव होने का संदेह कर उन पर आक्रमण करता है। प्रतिरक्षा प्रणाली के अध्ययन को प्रतिरक्षा विज्ञान (इम्म्यूनोलॉजी) का नाम दिया गया है। इसके अध्ययन में प्रतिरक्षा प्रणाली संबंधी सभी बड़े-छोटे कारणों की जांच की जाती है। इसमें प्रणाली पर आधारित स्वास्थ्य के लाभदायक और हानिकारक कारणों का ज्ञान किया जाता है। प्रतिरक्षा प्रणाली के क्षेत्र में खोज और शोध निरंतर जारी हैं एवं इससे संबंधित ज्ञान में निरंतर बढोत्तरी होती जा रही है। यह प्रणाली लगभग सभी उन्नत जीवों जैसे हरेक पौधे और जानवरों में मिलती मिलती है। प्रतिरक्षा प्रणाली के कई प्रतिरोधक (बैरियर) जीवों को बीमारियों से बचाते हैं, इनमें यांत्रिक, रसायन और जैव प्रतिरोधक होते हैं। .

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प्रोटीन

रुधिरवर्णिका(हीमोग्लोबिन) की संरचना- प्रोटीन की दोनो उपइकाईयों को लाल एंव नीले रंग से तथा लौह भाग को हरे रंग से दिखाया गया है। प्रोटीन या प्रोभूजिन एक जटिल भूयाति युक्त कार्बनिक पदार्थ है जिसका गठन कार्बन, हाइड्रोजन, आक्सीजन एवं नाइट्रोजन तत्वों के अणुओं से मिलकर होता है। कुछ प्रोटीन में इन तत्वों के अतिरिक्त आंशिक रूप से गंधक, जस्ता, ताँबा तथा फास्फोरस भी उपस्थित होता है। ये जीवद्रव्य (प्रोटोप्लाज्म) के मुख्य अवयव हैं एवं शारीरिक वृद्धि तथा विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए आवश्यक हैं। रासायनिक गठन के अनुसार प्रोटीन को सरल प्रोटीन, संयुक्त प्रोटीन तथा व्युत्पन्न प्रोटीन नामक तीन श्रेणियों में बांटा गया है। सरल प्रोटीन का गठन केवल अमीनो अम्ल द्वारा होता है एवं संयुक्त प्रोटीन के गठन में अमीनो अम्ल के साथ कुछ अन्य पदार्थों के अणु भी संयुक्त रहते हैं। व्युत्पन्न प्रोटीन वे प्रोटीन हैं जो सरल या संयुक्त प्रोटीन के विघटन से प्राप्त होते हैं। अमीनो अम्ल के पॉलीमराईजेशन से बनने वाले इस पदार्थ की अणु मात्रा १०,००० से अधिक होती है। प्राथमिक स्वरूप, द्वितीयक स्वरूप, तृतीयक स्वरूप और चतुष्क स्वरूप प्रोटीन के चार प्रमुख स्वरुप है। प्रोटीन त्वचा, रक्त, मांसपेशियों तथा हड्डियों की कोशिकाओं के विकास के लिए आवश्यक होते हैं। जन्तुओं के शरीर के लिए कुछ आवश्यक प्रोटीन एन्जाइम, हार्मोन, ढोने वाला प्रोटीन, सिकुड़ने वाला प्रोटीन, संरचनात्मक प्रोटीन एवं सुरक्षात्मक प्रोटीन हैं। प्रोटीन का मुख्य कार्य शरीर की आधारभूत संरचना की स्थापना एवं इन्जाइम के रूप में शरीर की जैवरसायनिक क्रियाओं का संचालन करना है। आवश्यकतानुसार इससे ऊर्जा भी मिलती है। एक ग्राम प्रोटीन के प्रजारण से शरीर को ४.१ कैलीरी ऊष्मा प्राप्त होती है। प्रोटीन द्वारा ही प्रतिजैविक (एन्टीबॉडीज़) का निर्माण होता है जिससे शरीर प्रतिरक्षा होती है। जे.

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पेप्टाइड

एक पेप्टाइड हार्मोन, ग्लुकागोन अमीनो अम्लों की छोटी श्रृंखलाओं को पेप्टाइड कहते हैं। कई पेप्टाइड मिलकर प्रोटीन का गठन करते हैं। प्रोटीन एवं पेप्टाइड में आकार का ही अंतर है। इसमें अमीनो अम्ल जिस बंध द्वारा जुड़े होते हैं उसे पेप्टाइड बंध कहते हैं। श्रेणी:प्रोटीन.

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कोशिका

कोशिका कोशिका (Cell) सजीवों के शरीर की रचनात्मक और क्रियात्मक इकाई है और प्राय: स्वत: जनन की सामर्थ्य रखती है। यह विभिन्न पदार्थों का वह छोटे-से-छोटा संगठित रूप है जिसमें वे सभी क्रियाएँ होती हैं जिन्हें सामूहिक रूप से हम जीवन कहतें हैं। 'कोशिका' का अंग्रेजी शब्द सेल (Cell) लैटिन भाषा के 'शेलुला' शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ 'एक छोटा कमरा' है। कुछ सजीव जैसे जीवाणुओं के शरीर एक ही कोशिका से बने होते हैं, उन्हें एककोशकीय जीव कहते हैं जबकि कुछ सजीव जैसे मनुष्य का शरीर अनेक कोशिकाओं से मिलकर बना होता है उन्हें बहुकोशकीय सजीव कहते हैं। कोशिका की खोज रॉबर्ट हूक ने १६६५ ई० में किया।"...

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कर्कट रोग और मानव श्वेताणु प्रतिजन के बीच तुलना

कर्कट रोग 122 संबंध है और मानव श्वेताणु प्रतिजन 8 है। वे आम 4 में है, समानता सूचकांक 3.08% है = 4 / (122 + 8)।

संदर्भ

यह लेख कर्कट रोग और मानव श्वेताणु प्रतिजन के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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