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ऋग्वेद और हिरण्यगर्भ

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

ऋग्वेद और हिरण्यगर्भ के बीच अंतर

ऋग्वेद vs. हिरण्यगर्भ

ऋग्वेद सनातन धर्म का सबसे आरंभिक स्रोत है। इसमें १०२८ सूक्त हैं, जिनमें देवताओं की स्तुति की गयी है इसमें देवताओं का यज्ञ में आह्वान करने के लिये मन्त्र हैं, यही सर्वप्रथम वेद है। ऋग्वेद को इतिहासकार हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की अभी तक उपलब्ध पहली रचनाऔं में एक मानते हैं। यह संसार के उन सर्वप्रथम ग्रन्थों में से एक है जिसकी किसी रूप में मान्यता आज तक समाज में बनी हुई है। यह एक प्रमुख हिन्दू धर्म ग्रंथ है। ऋक् संहिता में १० मंडल, बालखिल्य सहित १०२८ सूक्त हैं। वेद मंत्रों के समूह को सूक्त कहा जाता है, जिसमें एकदैवत्व तथा एकार्थ का ही प्रतिपादन रहता है। ऋग्वेद में ही मृत्युनिवारक त्र्यम्बक-मंत्र या मृत्युंजय मन्त्र (७/५९/१२) वर्णित है, ऋग्विधान के अनुसार इस मंत्र के जप के साथ विधिवत व्रत तथा हवन करने से दीर्घ आयु प्राप्त होती है तथा मृत्यु दूर हो कर सब प्रकार का सुख प्राप्त होता है। विश्व-विख्यात गायत्री मन्त्र (ऋ० ३/६२/१०) भी इसी में वर्णित है। ऋग्वेद में अनेक प्रकार के लोकोपयोगी-सूक्त, तत्त्वज्ञान-सूक्त, संस्कार-सुक्त उदाहरणतः रोग निवारक-सूक्त (ऋ०१०/१३७/१-७), श्री सूक्त या लक्ष्मी सूक्त (ऋग्वेद के परिशिष्ट सूक्त के खिलसूक्त में), तत्त्वज्ञान के नासदीय-सूक्त (ऋ० १०/१२९/१-७) तथा हिरण्यगर्भ सूक्त (ऋ०१०/१२१/१-१०) और विवाह आदि के सूक्त (ऋ० १०/८५/१-४७) वर्णित हैं, जिनमें ज्ञान विज्ञान का चरमोत्कर्ष दिखलाई देता है। ऋग्वेद के विषय में कुछ प्रमुख बातें निम्नलिखित है-. हिरण्यगर्भ शब्द भारतीय विचारधारा में सृष्टि का आरंभिक स्रोत माना जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ है – प्रदीप्त गर्भ (या अंडा या उत्पत्ति-स्थान)। इस शब्द का प्रथमतः उल्लेख ऋग्वेद में हुआ है। श्लोक का अर्थ - सब सूर्यादि तेजस्वी पदार्थों का आधार जो जो जगत हो और होएगा उसका आधार परमात्मा डगत की उत्पत्ति के पूर्व विद्य़मान था। जिसने पृथ्वी और सूर्य-तारों का सृजन किया उस देव की प्रेम भक्ति किया करें। इस श्लोक से हिरण्यगर्भ ईश्वर का अर्थ लगाया जाता है - यानि वो गर्भ जहाँ हर कोई वास करता हो। वेदान्त और दर्शन ग्रंथों में हिरण्यगर्भ शब्द कई बार आया है। अनेक भारतीय परम्पराओं में इस शब्द का अर्थ अलग प्रकार से लगाया जाता है। सामान्यतः हिरण्यगर्भ शब्द का प्रयोग जीवात्मा के लिए हुआ है जिसे ब्रह्मा जी भी कहा गया है। ब्रह्म और ब्रह्मा जी एक ही ब्रह्म के दो अलग अलग तत्त्व हैं। ब्रह्म अव्यक्त अवस्था के लिए प्रयुक्त होता है और ब्रह्माजी ब्रह्म की तैजस अवस्था है। ब्रह्म का तैजस स्वरूप ब्रह्मा जी हैं। हिरण्यगर्भ शब्द का अर्थ है सोने के अंडे के भीतर रहने वाला.

ऋग्वेद और हिरण्यगर्भ के बीच समानता

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संदर्भ

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