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उत्तोलक

सूची उत्तोलक

उत्तोलक की सहायता से एक बिन्दु पर कम बल लगाकर किसी दूसरे बिन्दु पर अधिक बल प्राप्त किया जा सकता है। सौ किलोग्राम का भार उत्तोलक की सहायता से एक किग्रा भार (बल) से उठाते हुए। सरौता, उत्तोलक के सिद्धान्त पर कार्य करता है। भौतिकी, यांत्रिकी और यांत्रिक प्रौद्योगिकी में उत्तोलक या लीवर (फ्रेंच में लीव्रे का अर्थ उठाना होता है) को एक सरल यंत्र कहा जाता है। उत्तोलक कई रूपों में विद्यमान होते हैं। अपने सरलतम रूप में यह एक लम्बी छड़ हो सकती है जिसके एक सिरे के पास एक अवलम्ब (fulcrum) लगाकर किसी भारी वस्तु को उठाने के काम में लिया जा सकता है। उत्तोलक, बलाघूर्ण के सिद्धान्त (theory of moments) पर कार्य करता है। आम जीवन में उत्तोलक का बहुत ही महत्व है और हर जगह इसे देखा जा सकता है। सी-सा झूला, एक उत्तोलक है। .

4 संबंधों: भौतिक शास्त्र, यांत्रिक लाभ, यांत्रिकी, सरल यंत्र

भौतिक शास्त्र

भौतिकी के अन्तर्गत बहुत से प्राकृतिक विज्ञान आते हैं भौतिक शास्त्र अथवा भौतिकी, प्रकृति विज्ञान की एक विशाल शाखा है। भौतिकी को परिभाषित करना कठिन है। कुछ विद्वानों के मतानुसार यह ऊर्जा विषयक विज्ञान है और इसमें ऊर्जा के रूपांतरण तथा उसके द्रव्य संबन्धों की विवेचना की जाती है। इसके द्वारा प्राकृत जगत और उसकी आन्तरिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। स्थान, काल, गति, द्रव्य, विद्युत, प्रकाश, ऊष्मा तथा ध्वनि इत्यादि अनेक विषय इसकी परिधि में आते हैं। यह विज्ञान का एक प्रमुख विभाग है। इसके सिद्धांत समूचे विज्ञान में मान्य हैं और विज्ञान के प्रत्येक अंग में लागू होते हैं। इसका क्षेत्र विस्तृत है और इसकी सीमा निर्धारित करना अति दुष्कर है। सभी वैज्ञानिक विषय अल्पाधिक मात्रा में इसके अंतर्गत आ जाते हैं। विज्ञान की अन्य शाखायें या तो सीधे ही भौतिक पर आधारित हैं, अथवा इनके तथ्यों को इसके मूल सिद्धांतों से संबद्ध करने का प्रयत्न किया जाता है। भौतिकी का महत्व इसलिये भी अधिक है कि अभियांत्रिकी तथा शिल्पविज्ञान की जन्मदात्री होने के नाते यह इस युग के अखिल सामाजिक एवं आर्थिक विकास की मूल प्रेरक है। बहुत पहले इसको दर्शन शास्त्र का अंग मानकर नैचुरल फिलॉसोफी या प्राकृतिक दर्शनशास्त्र कहते थे, किंतु १८७० ईस्वी के लगभग इसको वर्तमान नाम भौतिकी या फिजिक्स द्वारा संबोधित करने लगे। धीरे-धीरे यह विज्ञान उन्नति करता गया और इस समय तो इसके विकास की तीव्र गति देखकर, अग्रगण्य भौतिक विज्ञानियों को भी आश्चर्य हो रहा है। धीरे-धीरे इससे अनेक महत्वपूर्ण शाखाओं की उत्पत्ति हुई, जैसे रासायनिक भौतिकी, तारा भौतिकी, जीवभौतिकी, भूभौतिकी, नाभिकीय भौतिकी, आकाशीय भौतिकी इत्यादि। भौतिकी का मुख्य सिद्धांत "उर्जा संरक्षण का नियम" है। इसके अनुसार किसी भी द्रव्यसमुदाय की ऊर्जा की मात्रा स्थिर होती है। समुदाय की आंतरिक क्रियाओं द्वारा इस मात्रा को घटाना या बढ़ाना संभव नहीं। ऊर्जा के अनेक रूप होते हैं और उसका रूपांतरण हो सकता है, किंतु उसकी मात्रा में किसी प्रकार परिवर्तन करना संभव नहीं हो सकता। आइंस्टाइन के सापेक्षिकता सिद्धांत के अनुसार द्रव्यमान भी उर्जा में बदला जा सकता है। इस प्रकार ऊर्जा संरक्षण और द्रव्यमान संरक्षण दोनों सिद्धांतों का समन्वय हो जाता है और इस सिद्धांत के द्वारा भौतिकी और रसायन एक दूसरे से संबद्ध हो जाते हैं। .

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यांत्रिक लाभ

उत्तोलक (लीवर) द्वारा प्राप्त यांत्रिक लाभ चित्र से स्पष्ट है। '''A''' पर बहुत कम बल लगाकर भी '''B''' बिन्दु पर लटकी भारी वस्तु को उठाया जा सकता है। भौतिकी और इंजीनियरी में किसी मेकेनिज्म द्वारा उत्पन्न बल तथा उस पर लगाये बल के अनुपात को यांत्रिक लाभ (mechanical advantage MA) कहते हैं। घर्षणरहित आदर्श मेकेनिज्मों के लिये इसे निम्न प्रकार भी व्यक्त कर सकते हैं- क्रेन आदि बहुत सारी युक्तियाँ यांत्रिक लाभ पर आधारित हैं जिनमें कम बल लगाकर भी बहुत अधिक बल या टॉर्क पैदा किया जाता है। ध्यान रहे कि कि इसमें कोई अतिरिक्त शक्ति या ऊर्जा उत्पन्न नहीं की जा रही है। अलग-अलग गीयर में होने से सायकिल में अलग-अलग यांत्रिक लाभ मिलता है घिरनी के प्रयोग द्वारा यांत्रिक लाभ प्राप्ति के कुछ उदाहरण नी-हिंज लीवर द्वारा प्राप्त यांत्रिक लाभ .

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यांत्रिकी

यांत्रिकी (Mechanics) भौतिकी की वह शाखा है जिसमें पिण्डों पर बल लगाने या विस्थापित करने पर उनके व्यवहार का अध्ययन करती है। यांत्रिकी की जड़ें कई प्राचीन सभ्यताओं से निकली हैं। .

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सरल यंत्र

कुछ प्रमुख सरल यंत्र भौतिकी में सरल यंत्र या सरल मशीन (simple machine) उन सभी युक्तियों को कहते हैं जिनको चलाने के लिये केवल एक ही बल का प्रयोग करना होता है। जब इस पर बल लगाया जाता है तो यांत्रिक कार्य होता है तथा एक नियत दूरी तक किसी पिण्ड का विस्थापन होता है। कोई कार्य करने के लिये (जैसे किसी पिण्ड को १ मीटर ऊपर उठाने के लिये) आवश्यक कार्य की मात्रा नियत होती है परन्तु इस कार्य के लिये आवश्यक बल की मात्रा कम की जा सकती है यदि यह अल्पतर बल अधिक दूरी तक लगाया जाय; अर्थात समान कार्य करने हेतु दो विकल्प हैं-.

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