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उत्तराखण्ड और नन्दा देवी पर्वत

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

उत्तराखण्ड और नन्दा देवी पर्वत के बीच अंतर

उत्तराखण्ड vs. नन्दा देवी पर्वत

उत्तराखण्ड (पूर्व नाम उत्तरांचल), उत्तर भारत में स्थित एक राज्य है जिसका निर्माण ९ नवम्बर २००० को कई वर्षों के आन्दोलन के पश्चात भारत गणराज्य के सत्ताइसवें राज्य के रूप में किया गया था। सन २००० से २००६ तक यह उत्तरांचल के नाम से जाना जाता था। जनवरी २००७ में स्थानीय लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए राज्य का आधिकारिक नाम बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया गया। राज्य की सीमाएँ उत्तर में तिब्बत और पूर्व में नेपाल से लगी हैं। पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तर प्रदेश इसकी सीमा से लगे राज्य हैं। सन २००० में अपने गठन से पूर्व यह उत्तर प्रदेश का एक भाग था। पारम्परिक हिन्दू ग्रन्थों और प्राचीन साहित्य में इस क्षेत्र का उल्लेख उत्तराखण्ड के रूप में किया गया है। हिन्दी और संस्कृत में उत्तराखण्ड का अर्थ उत्तरी क्षेत्र या भाग होता है। राज्य में हिन्दू धर्म की पवित्रतम और भारत की सबसे बड़ी नदियों गंगा और यमुना के उद्गम स्थल क्रमशः गंगोत्री और यमुनोत्री तथा इनके तटों पर बसे वैदिक संस्कृति के कई महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थान हैं। देहरादून, उत्तराखण्ड की अन्तरिम राजधानी होने के साथ इस राज्य का सबसे बड़ा नगर है। गैरसैण नामक एक छोटे से कस्बे को इसकी भौगोलिक स्थिति को देखते हुए भविष्य की राजधानी के रूप में प्रस्तावित किया गया है किन्तु विवादों और संसाधनों के अभाव के चलते अभी भी देहरादून अस्थाई राजधानी बना हुआ है। राज्य का उच्च न्यायालय नैनीताल में है। राज्य सरकार ने हाल ही में हस्तशिल्प और हथकरघा उद्योगों को बढ़ावा देने के लिये कुछ पहल की हैं। साथ ही बढ़ते पर्यटन व्यापार तथा उच्च तकनीकी वाले उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए आकर्षक कर योजनायें प्रस्तुत की हैं। राज्य में कुछ विवादास्पद किन्तु वृहत बाँध परियोजनाएँ भी हैं जिनकी पूरे देश में कई बार आलोचनाएँ भी की जाती रही हैं, जिनमें विशेष है भागीरथी-भीलांगना नदियों पर बनने वाली टिहरी बाँध परियोजना। इस परियोजना की कल्पना १९५३ मे की गई थी और यह अन्ततः २००७ में बनकर तैयार हुआ। उत्तराखण्ड, चिपको आन्दोलन के जन्मस्थान के नाम से भी जाना जाता है। . नन्दा देवी पर्वत भारत की दूसरी एवं विश्व की २३वीं सर्वोच्च चोटी है।। हिन्दुस्तान लाइव। १४ अक्टूबर २००९ इससे ऊंची व देश में सर्वोच्च चोटी कंचनजंघा है। नन्दा देवी शिखर हिमालय पर्वत शृंखला में भारत के उत्तरांचल राज्य में पूर्व में गौरीगंगा तथा पश्चिम में ऋषिगंगा घाटियों के बीच स्थित है। इसकी ऊंचाई ७८१६ मीटर (२५,६४३ फीट) है। इस चोटी को उत्तरांचल राज्य में मुख्य देवी के रूप में पूजा जाता है।। नवभारत टाइम्स। हरेन्द्र सिंह रावत इन्हें नन्दा देवी कहते हैं। नन्दादेवी मैसिफ के दो छोर हैं। इनमें दूसरा छोर नन्दादेवी ईस्ट कहलाता है। इन दोनों के मध्य दो किलोमीटर लम्बा रिज क्षेत्र है। इस शिखर पर प्रथम विजय अभियान में १९३६ में नोयल ऑडेल तथा बिल तिलमेन को सफलता मिली थी। पर्वतारोही के अनुसार नन्दादेवी शिखर के आसपास का क्षेत्र अत्यंत सुंदर है। यह शिखर २१००० फुट से ऊंची कई चोटियों के मध्य स्थित है। यह पूरा क्षेत्र नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया जा चुका है। इस नेशनल पार्क को १९८८ में यूनेस्को द्वारा प्राकृतिक महत्व की विश्व धरोहर का सम्मान भी दिया जा चुका है। .

उत्तराखण्ड और नन्दा देवी पर्वत के बीच समानता

उत्तराखण्ड और नन्दा देवी पर्वत आम में 15 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): चमोली जिला, नन्दा देवी, नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान, नन्दा देवी राजजात, पिथौरागढ़, बागेश्वर, भारत, हिमानी, हिमालय, विश्व धरोहर, गंगा नदी, औली, कौसानी, अलकनन्दा नदी, उत्तराखण्ड

चमोली जिला

चमोली भारतीय राज्य उत्तरांचल का एक जिला है। बर्फ से ढके पर्वतों के बीच स्थित यह जगह काफी खूबसूरत है। चमोली अलकनंदा नदी के समीप बद्रीनाथ मार्ग पर स्थित है। यह उत्तराचंल राज्य का एक जिला है। यह प्रमुख धार्मिल स्थानों में से एक है। काफी संख्या में पर्यटक यहां आते हैं। चमोली की प्राकृतिक सुंदरता पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। पूरे चमोली जिले में कई ऐसे मंदिर है जो हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। चमोली में ऐसे कई बड़े और छोटे मंदिर है तथा ऐसे कई स्थान है जो रहने की सुविधा प्रदान करते हैं। इस जगह को चाती कहा जाता है। चाती एक प्रकार की झोपड़ी है जो अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। चमोली मध्य हिमालय के बीच में स्थित है। अलकनंदा नदी यहाँ की प्रसिद्ध नदी है जो तिब्बत की जासकर श्रेणी से निकलती है। चमोली का क्षेत्रफल 3,525 वर्ग मील है। .

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नन्दा देवी

नंदा देवी समूचे गढ़वाल मंडल और कुमाऊं मंडल और हिमालय के अन्य भागों में जन सामान्य की लोकप्रिय देवी हैं। नंदा की उपासना प्राचीन काल से ही किये जाने के प्रमाण धार्मिक ग्रंथों, उपनिषद और पुराणों में मिलते हैं। रूप मंडन में पार्वती को गौरी के छ: रुपों में एक बताया गया है। भगवती की ६ अंगभूता देवियों में नंदा भी एक है। नंदा को नवदुर्गाओं में से भी एक बताया गया है। भविष्य पुराण में जिन दुर्गाओं का उल्लेख है उनमें महालक्ष्मी, नंदा, क्षेमकरी, शिवदूती, महाटूँडा, भ्रामरी, चंद्रमंडला, रेवती और हरसिद्धी हैं। शिवपुराण में वर्णित नंदा तीर्थ वास्तव में कूर्माचल ही है। शक्ति के रूप में नंदा ही सारे हिमालय में पूजित हैं। नंदा के इस शक्ति रूप की पूजा गढ़वाल में करुली, कसोली, नरोना, हिंडोली, तल्ली दसोली, सिमली, तल्ली धूरी, नौटी, चांदपुर, गैड़लोहवा आदि स्थानों में होती है। गढ़वाल में राज जात यात्रा का आयोजन भी नंदा के सम्मान में होता है। कुमाऊँ में अल्मोड़ा, रणचूला, डंगोली, बदियाकोट, सोराग, कर्मी, पोथिंग, चिल्ठा, सरमूल आदि में नंदा के मंदिर हैं। अनेक स्थानों पर नंदा के सम्मान में मेलों के रूप में समारोह आयोजित होते हैं। नंदाष्टमी को कोट की माई का मेला और नैतीताल में नंदादेवी मेला अपनी सम्पन्न लोक विरासत के कारण कुछ अलग ही छटा लिये होते हैं परन्तु अल्मोड़ा नगर के मध्य में स्थित ऐतिहासिकता नंदादेवी मंदिर में प्रतिवर्ष भाद्र मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को लगने वाले मेले की रौनक ही कुछ अलग है। .

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नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान

नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान अर्थात् नन्दादेवी राष्ट्रीय अभयारण्य एक विश्व धरोहर का नाम है। यह भारत के उत्तराखण्ड राज्य में नन्दा देवी पर्वत के आस-पास का इलाका है, जिसे नन्दादेवी राष्ट्रीय अभयारण्य के नाम से भी जाना जाता है। .

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नन्दा देवी राजजात

नन्दा देवी राजजात भारत के उत्तरांचल राज्य में होने वाली एक नन्दा देवी की एक धार्मिक यात्रा है। यह उत्तराखंड के कुछ सर्वाधिक प्रसिद्ध सांस्कृतिक आयोजनों में से एक है। यह लगभग १२ वर्षों के बाद आयोजित होती है। अन्तिम जात सन् 2012 में हुयी थी। अगली राजजात सन् 2023 में होगी। लोक इतिहास के अनुसार नन्दा गढ़वाल के राजाओं के साथ-साथ कुँमाऊ के कत्युरी राजवंश की ईष्टदेवी थी। इष्टदेवी होने के कारण नन्दादेवी को राजराजेश्वरी कहकर सम्बोधित किया जाता है। नन्दादेवी को पार्वती की बहन के रूप में देखा जाता है परन्तु कहीं-कहीं नन्दादेवी को ही पार्वती का रूप माना गया है। नन्दा के अनेक नामों में प्रमुख हैं शिवा, सुनन्दा, शुभानन्दा, नन्दिनी। पूरे उत्तराँचल में समान रूप से पूजे जाने के कारण नन्दादेवी के समस्त प्रदेश में धार्मिक एकता के सूत्र के रूप में देखा गया है। रूपकुण्ड के नरकंकाल, बगुवावासा में स्थित आठवीं सदी की सिद्ध विनायक भगवान गणेश की काले पत्थर की मूर्ति आदि इस यात्रा की ऐतिहासिकता को सिद्ध करते हैं, साथ ही गढ़वाल के परंपरागत नन्दा जागरी (नन्दादेवी की गाथा गाने वाले) भी इस यात्रा की कहानी को बयाँ करते हैं। नन्दादेवी से जुडी जात (यात्रा) दो प्रकार की हैं। वार्षिक जात और राजजात। वार्षिक जात प्रतिवर्ष अगस्त-सितम्बर मॉह में होती है। जो कुरूड़ के नन्दा मन्दिर से शुरू होकर वेदनी कुण्ड तक जाती है और फिर लौट आती है, लेकिन राजजात 12 वर्ष या उससे अधिक समयांतराल में होती है। मान्यता के अनुसार देवी की यह ऐतिहासिक यात्रा चमोली के नौटीगाँव से शुरू होती है और कुरूड़ के मन्दिर से भी दशोली और बधॉण की डोलियाँ राजजात के लिए निकलती हैं। इस यात्रा में लगभग २५० किलोमीटर की दूरी, नौटी से होमकुण्ड तक पैदल करनी पड़ती है। इस दौरान घने जंगलों पथरीले मार्गों, दुर्गम चोटियों और बर्फीले पहाड़ों को पार करना पड़ता है। अलग-अलग रास्तों से ये डोलियाँ यात्रा में मिलती है। इसके अलावा गाँव-गाँव से डोलियाँ और छतौलियाँ भी इस यात्रा में शामिल होती है। कुमाऊँ (कुमॉयू) से भी अल्मोडा, कटारमल और नैनीताल से डोलियाँ नन्दकेशरी में आकर राजजात में शामिल होती है। नौटी से शुरू हुई इस यात्रा का दूसरा पड़ाव इड़ा-बधाणीं है। फिर यात्रा लौट कर नौटी आती है। इसके बाद कासुंवा, सेम, कोटी, भगौती, कुलसारी, चैपडों, लोहाजंग, वाँण, बेदनी, पातर नचौणियाँ से विश्व-विख्यात रूपकुण्ड, शिला-समुद्र, होमकुण्ड से चनण्याँघट (चंदिन्याघाट), सुतोल से घाट होते हुए नन्दप्रयाग और फिर नौटी आकर यात्रा का चक्र पूरा होता है। यह दूरी करीब 280 किलोमीटर है। इस राजजात में चौसिंग्या खाडू़ (चार सींगों वाला भेड़) भी शामिल किया जाता है जोकि स्थानीय क्षेत्र में राजजात का समय आने के पूर्व ही पैदा हो जाता है, उसकी पीठ पर रखे गये दोतरफा थैले में श्रद्धालु गहने, श्रंगार-सामग्री व अन्य हल्की भैंट देवी के लिए रखते हैं, जोकि होमकुण्ड में पूजा होने के बाद आगे हिमालय की ओर प्रस्थान कर लेता है। लोगों की मान्यता है कि चौसिंग्या खाडू़ आगे बिकट हिमालय में जाकर लुप्त हो जाता है व नंदादेवी के क्षेत्र कैलाश में प्रवेश कर जाता है। वर्ष 2000 में इस राजजात को व्यापक प्रचार मिला और देश-विदेश के हजारों लोग इसमें शामिल हुए थे। राजजात उत्तराखंड की समग्र संस्कृति को प्रस्तुत करता है। इसी लिये 26 जनवरी 2005 को उत्तरांचल राज्य की झांकी राजजात पर निकाली गई थी। पिछले कुछ वर्षों से पयर्टन विभाग द्वारा रूपकुण्ड महोत्व का आयोजन भी किया जा रहा है। स्थानीय लोगों ने इस यात्रा के सफल संचालन हेतु श्री नन्दादेवी राजजात समिति का गठन भी किया है। इसी समिति के तत्त्वाधान में नन्दादेवी राजजात का आयोजन किया जाता है। परम्परा के अनुसार वसन्त पंचमी के दिन यात्रा के आयोजन की घोषणा की जाती है। इसके पश्चात इसकी तैयारियों का सिलसिला आरम्भ होता है। इसमें नौटी के नौटियाल एवं कासुवा के कुवरों के अलावा अन्य सम्बन्धित पक्षों जैसे बधाण के १४ सयाने, चान्दपुर के १२ थोकी ब्राह्मण तथा अन्य पुजारियों के साथ-साथ जिला प्रशासन तथा केन्द्र एवं राज्य सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा मिलकर कार्यक्रम की रुपरेखा तैयार कर यात्रा का निर्धारण किया जाता है। राजजात के नाम पर जिन्दा सामन्तवाद - जयसिंह रावत- चार सींगों वाले मेंढे (चौसिंग्या खाडू) के नेतृत्व में चलने वाली दुनियां की दुर्गमतम्, जटिलतम और विशालतम् धार्मिक पैदल यात्राओं में सुमार नन्दा राजजात अगामी 29 अगस्त से शुरू होने जा रही है। बसन्त पंचमी के अवसर पर घोषित कार्यक्रम के अनुसार पूरे 19 दिन तक चलने के बाद यह यात्रा 16 सितम्बर को सम्पन्न होगी। इस हिमालयी महाकुम्भ में समय के साथ धार्मिक परम्पराएं तो बदलती रही हैं मगर सामन्ती परम्पराएं कब बदलेंगी, यह सवाल मुंह बायें खड़ा हो कर लोकतंत्रकामियों को चिढ़ाता जा रहा है। बद्रीनाथ के कपाटोद्घाटन की ही तरह चमोली गढ़वाल के कासुवा गांव के कुंवरों और नौटी गांव के उनके राजगुरू नौटियालों ने भी इस बसन्त पंचमी को नन्दादेवी राजजात के कार्यक्रम की घोषणा कर दी। कांसुवा गांव के ठाकुर स्वयं को सदियों तक गढ़वाल पर एकछत्र राज करने वाले पंवार वंश के एक राजा अजयपाल के छोटे भाई के वंशज मानते हैं और इसीलिये वे राजा के तौर पर इस हिमालयी धार्मिक पदयात्रा का नेतृत्व करने के साथ ही उसे अपना निजी कार्यक्रम मानते हैं। टिहरी राजशाही के वंशज भी बसन्त पंचमी के दिन हर साल बद्रीनाथ के कपाटोद्घाटन की तिथि तय करते हैं। कुवरों और नौटियालों द्वारा घोषित कार्यक्रम के अनुसार यह यात्रा 29 अगस्त को नौटी से चेलगी और हिमालयी क्षेत्र में 19 पड़ावों के बाद आगामी 16 सितम्बर को वापस लौट जायेगी। इस जोखिमपूर्ण यात्रा के साक्षी बनने के लिये देश विदेश से लोग पहुंचते हैं। लेकिन हैरानी की बात यह है कि जिस कुरूड़ गांव के प्राचीन मंन्दिर से नन्दा देवी की डोली चलनी है उस मंदिर के पुजारियों और हकहुकूकधारियों को दूध की मक्खी की तरह अलग फेंका गया है। राज्य सरकार भी धार्मिक भावनाओं और प्राीन परम्पराओं के बजाय सामन्ती व्यवस्था के साथ दृढ़ता से खड़ी नजर आ रही है। राजजात के लिये उत्तराखण्ड सरकार सहित आयोजन समिति और अन्य सम्बन्धित पक्षों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। इसके साथ ही इस ऐतिहासिक यात्रा का नेतृत्व करने चौसिंग्या खाडू की तलाश भी शुरू हो गयी है। यात्रा से पहले इस तरह का विचित्र मेंढा चांदपुर और दशोली पट्टियों के गावों में से कहीं भी जन्म लेता रहा है। विशेष कारीगरी से बनीं रिंगाल की छंतोलियों, डोलियों और निशानों के साथ लगभग 200 स्थानीय देवी देवता इस महायात्रा में शामिल होते हैं। प्राचीन प्रथानुसार जहां भी यात्रा का पड़ाव होता है उस गांव के लोग यात्रियों के लिये अपने घर खुले छोड़ कर स्वयं गोशालाओं या या अन्यत्र रात गुजारते हैं। समुद्रतल से 13200 फुट की उंचाई पर स्थित इस यात्रा के गन्तव्य होमकुण्ड के बाद रंग बिरंगे वस्त्रों से लिपटे इस मेंढे को अकेले ही कैलाश की ओर रवाना कर दिया जाता है। यात्रा के दौरान पूरे सोलहवें पड़ाव तक यह खाडू या मेंढा नन्दा देवी की रिंगाल से बनी छंतोली (छतरी) के पास ही रहता है। समुद्रतल से 3200 फुट से लेकर 17500 फुट की ऊंचाई क पहुंचने वाली यह 280 किमी लम्बी पदयात्रा 19 पड़ावों से गुजरती है। वाण यात्रा का अन्तिम गाँव है। प्राचीन काल में इसके 22 पड़ाव होने के भी प्रमाण हैं। वाण से आगे की यात्रा दुर्गम होती हैं और साथ ही प्रतिबंधित एवं निषेधात्मक भी हो जाती है। आयोजन समिति के सचिव और राजगुरू के रूप में नौटियाल ब्राह्मणों के प्रतिनिधि के रूप में कार्य कर रहे भुवन नौटियाल तथा उनके पिता देवराम नौटियाल के लेखों के अनुसार वाण से कुछ आगे रिणकीधार से चमड़े की वस्तुएँ जैसे जूते, बेल्ट आदि तथा गाजे-बाजे, स्त्रियाँ-बच्चे, अभक्ष्य पदार्थ खाने वाली जातियाँ इत्यादि राजजात में निषिद्ध हो जाते हैं। अभक्ष्य खाने वाली जातियों का तात्पर्य छिपा नहीं है। इस यात्रा में अब तक अनुसूचितजाति के लोगों की हिस्सेदारी की परम्परा नहीं रही है और राज्य सरकार की इस आयोजन में भागीदारी सीधे-सीधे न केवल सामन्ती व्यवस्था को बल्कि छुआछूत की बुराई को भी मान्यता देती है। हिमालयी जिलों का गजेटियर लिखने वाले ई.टी.

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पिथौरागढ़

पिथौरागढ़ भारत के उत्तराखण्ड राज्य का एक प्रमुख शहर है। पिथौरागढ़ का पुराना नाम सोरघाटी है। सोर शब्द का अर्थ होता है-- सरोवर। यहाँ पर माना जाता है कि पहले इस घाटी में सात सरोवर थे। दिन-प्रतिदिन सरोवरों का पानी सूखता चला गया और यहाँपर पठारी भूमि का जन्म हुआ। पठारी भूमी होने के कारण इसका नाम पिथौरा गढ़ पड़ा। पर अधिकांश लोगों का मानना है कि यहाँ राय पिथौरा (पृथ्वीराज_चौहान) की राजधानी थी। उन्हीं के नाम से इस जगह का नाम पिथौरागढ़ पड़ा। राय पिथौरा ने नेपाल से कई बार टक्कर ली थी। यही राजा पृथ्वीशाह के नाम से प्रसिद्ध हुआ। .

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बागेश्वर

बागेश्वर उत्तराखण्ड राज्य में सरयू और गोमती नदियों के संगम पर स्थित एक तीर्थ है। यह बागेश्वर जनपद का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। यहाँ बागेश्वर नाथ का प्राचीन मंदिर है, जिसे स्थानीय जनता "बागनाथ" या "बाघनाथ" के नाम से जानती है। मकर संक्रांति के दिन यहाँ उत्तराखण्ड का सबसे बड़ा मेला लगता है। स्वतंत्रता संग्राम में भी बागेश्वर का बड़ा योगदान है। कुली-बेगार प्रथा के रजिस्टरों को सरयू की धारा में बहाकर यहाँ के लोगों ने अपने अंचल में गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन शुरवात सन १९२० ई. में की। सरयू एवं गोमती नदी के संगम पर स्थित बागेश्वर मूलतः एक ठेठ पहाड़ी कस्बा है। परगना दानपुर के 473, खरही के 66, कमस्यार के 166, पुँगराऊ के 87 गाँवों का समेकन केन्द्र होने के कारण यह प्रशासनिक केन्द्र बन गया। मकर संक्रान्ति के दौरान लगभग महीने भर चलने वाले उत्तरायणी मेले की व्यापारिक गतिविधियों, स्थानीय लकड़ी के उत्पाद, चटाइयाँ एवं शौका तथा भोटिया व्यापारियों द्वारा तिब्बती ऊन, सुहागा, खाल तथा अन्यान्य उत्पादों के विनिमय ने इसको एक बड़ी मण्डी के रूप में प्रतिष्ठापित किया। 1950-60 के दशक तक लाल इमली तथा धारीवाल जैसी प्रतिष्ठित वस्त्र कम्पनियों द्वारा बागेश्वर मण्डी से कच्चा ऊन क्रय किया जाता था। .

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भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

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हिमानी

काराकोरम की बाल्तोरो हिमानी हिमानी या हिमनद (अंग्रेज़ी Glacier) पृथ्वी की सतह पर विशाल आकार की गतिशील बर्फराशि को कहते है जो अपने भार के कारण पर्वतीय ढालों का अनुसरण करते हुए नीचे की ओर प्रवाहमान होती है। ध्यातव्य है कि यह हिमराशि सघन होती है और इसकी उत्पत्ति ऐसे इलाकों में होती है जहाँ हिमपात की मात्रा हिम के क्षय से अधिक होती है और प्रतिवर्ष कुछ मात्रा में हिम अधिशेष के रूप में बच जाता है। वर्ष दर वर्ष हिम के एकत्रण से निचली परतों के ऊपर दबाव पड़ता है और वे सघन हिम (Ice) के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं। यही सघन हिमराशि अपने भार के कारण ढालों पर प्रवाहित होती है जिसे हिमनद कहते हैं। प्रायः यह हिमखंड नीचे आकर पिघलता है और पिघलने पर जल देता है। पृथ्वी पर ९९% हिमानियाँ ध्रुवों पर ध्रुवीय हिम चादर के रूप में हैं। इसके अलावा गैर-ध्रुवीय क्षेत्रों के हिमनदों को अल्पाइन हिमनद कहा जाता है और ये उन ऊंचे पर्वतों के सहारे पाए जाते हैं जिन पर वर्ष भर ऊपरी हिस्सा हिमाच्छादित रहता है। ये हिमानियाँ समेकित रूप से विश्व के मीठे पानी (freshwater) का सबसे बड़ा भण्डार हैं और पृथ्वी की धरातलीय सतह पर पानी के सबसे बड़े भण्डार भी हैं। हिमानियों द्वारा कई प्रकार के स्थलरूप भी निर्मित किये जाते हैं जिनमें प्लेस्टोसीन काल के व्यापक हिमाच्छादन के दौरान बने स्थलरूप प्रमुख हैं। इस काल में हिमानियों का विस्तार काफ़ी बड़े क्षेत्र में हुआ था और इस विस्तार के दौरान और बाद में इन हिमानियों के निवर्तन से बने स्थलरूप उन जगहों पर भी पाए जाते हैं जहाँ आज उष्ण या शीतोष्ण जलवायु पायी जाती है। वर्तमान समय में भी उन्नीसवी सदी के मध्य से ही हिमानियों का निवर्तन जारी है और कुछ विद्वान इसे प्लेस्टोसीन काल के हिम युग के समापन की प्रक्रिया के तौर पर भी मानते हैं। हिमानियों का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि ये जलवायु के दीर्घकालिक परिवर्तनों जैसे वर्षण, मेघाच्छादन, तापमान इत्यादी के प्रतिरूपों, से प्रभावित होते हैं और इसीलिए इन्हें जलवायु परिवर्तन और समुद्र तल परिवर्तन का बेहतर सूचक माना जाता है। .

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हिमालय

हिमालय पर्वत की अवस्थिति का एक सरलीकृत निरूपण हिमालय एक पर्वत तन्त्र है जो भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया और तिब्बत से अलग करता है। यह पर्वत तन्त्र मुख्य रूप से तीन समानांतर श्रेणियों- महान हिमालय, मध्य हिमालय और शिवालिक से मिलकर बना है जो पश्चिम से पूर्व की ओर एक चाप की आकृति में लगभग 2400 कि॰मी॰ की लम्बाई में फैली हैं। इस चाप का उभार दक्षिण की ओर अर्थात उत्तरी भारत के मैदान की ओर है और केन्द्र तिब्बत के पठार की ओर। इन तीन मुख्य श्रेणियों के आलावा चौथी और सबसे उत्तरी श्रेणी को परा हिमालय या ट्रांस हिमालय कहा जाता है जिसमें कराकोरम तथा कैलाश श्रेणियाँ शामिल है। हिमालय पर्वत पाँच देशों की सीमाओं में फैला हैं। ये देश हैं- पाकिस्तान, भारत, नेपाल, भूटान और चीन। अन्तरिक्ष से लिया गया हिमालय का चित्र संसार की अधिकांश ऊँची पर्वत चोटियाँ हिमालय में ही स्थित हैं। विश्व के 100 सर्वोच्च शिखरों में हिमालय की अनेक चोटियाँ हैं। विश्व का सर्वोच्च शिखर माउंट एवरेस्ट हिमालय का ही एक शिखर है। हिमालय में 100 से ज्यादा पर्वत शिखर हैं जो 7200 मीटर से ऊँचे हैं। हिमालय के कुछ प्रमुख शिखरों में सबसे महत्वपूर्ण सागरमाथा हिमाल, अन्नपूर्णा, गणेय, लांगतंग, मानसलू, रॊलवालिंग, जुगल, गौरीशंकर, कुंभू, धौलागिरी और कंचनजंघा है। हिमालय श्रेणी में 15 हजार से ज्यादा हिमनद हैं जो 12 हजार वर्ग किलॊमीटर में फैले हुए हैं। 72 किलोमीटर लंबा सियाचिन हिमनद विश्व का दूसरा सबसे लंबा हिमनद है। हिमालय की कुछ प्रमुख नदियों में शामिल हैं - सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र और यांगतेज। भूनिर्माण के सिद्धांतों के अनुसार यह भारत-आस्ट्र प्लेटों के एशियाई प्लेट में टकराने से बना है। हिमालय के निर्माण में प्रथम उत्थान 650 लाख वर्ष पूर्व हुआ था और मध्य हिमालय का उत्थान 450 लाख वर्ष पूर्व हिमालय में कुछ महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल भी है। इनमें हरिद्वार, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गोमुख, देव प्रयाग, ऋषिकेश, कैलाश, मानसरोवर तथा अमरनाथ प्रमुख हैं। भारतीय ग्रंथ गीता में भी इसका उल्लेख मिलता है (गीता:10.25)। .

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विश्व धरोहर

यूनेस्को की विश्व विरासत समिति का लोगो युनेस्को विश्व विरासत स्थल ऐसे खास स्थानों (जैसे वन क्षेत्र, पर्वत, झील, मरुस्थल, स्मारक, भवन, या शहर इत्यादि) को कहा जाता है, जो विश्व विरासत स्थल समिति द्वारा चयनित होते हैं; और यही समिति इन स्थलों की देखरेख युनेस्को के तत्वाधान में करती है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य विश्व के ऐसे स्थलों को चयनित एवं संरक्षित करना होता है जो विश्व संस्कृति की दृष्टि से मानवता के लिए महत्वपूर्ण हैं। कुछ खास परिस्थितियों में ऐसे स्थलों को इस समिति द्वारा आर्थिक सहायता भी दी जाती है। अब तक (2006 तक) पूरी दुनिया में लगभग 830 स्थलों को विश्व विरासत स्थल घोषित किया जा चुका है जिसमें 644 सांस्कृतिक, 24 मिले-जुले और 138 अन्य स्थल हैं। प्रत्येक विरासत स्थल उस देश विशेष की संपत्ति होती है, जिस देश में वह स्थल स्थित हो; परंतु अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का हित भी इसी में होता है कि वे आनेवाली पीढियों के लिए और मानवता के हित के लिए इनका संरक्षण करें। बल्कि पूरे विश्व समुदाय को इसके संरक्षण की जिम्मेवारी होती है। .

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गंगा नदी

गंगा (गङ्गा; গঙ্গা) भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी है। यह भारत और बांग्लादेश में कुल मिलाकर २,५१० किलोमीटर (कि॰मी॰) की दूरी तय करती हुई उत्तराखण्ड में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुन्दरवन तक विशाल भू-भाग को सींचती है। देश की प्राकृतिक सम्पदा ही नहीं, जन-जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है। २,०७१ कि॰मी॰ तक भारत तथा उसके बाद बांग्लादेश में अपनी लंबी यात्रा करते हुए यह सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है। सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण गंगा का यह मैदान अपनी घनी जनसंख्या के कारण भी जाना जाता है। १०० फीट (३१ मी॰) की अधिकतम गहराई वाली यह नदी भारत में पवित्र मानी जाती है तथा इसकी उपासना माँ तथा देवी के रूप में की जाती है। भारतीय पुराण और साहित्य में अपने सौन्दर्य और महत्त्व के कारण बार-बार आदर के साथ वंदित गंगा नदी के प्रति विदेशी साहित्य में भी प्रशंसा और भावुकतापूर्ण वर्णन किये गये हैं। इस नदी में मछलियों तथा सर्पों की अनेक प्रजातियाँ तो पायी ही जाती हैं, मीठे पानी वाले दुर्लभ डॉलफिन भी पाये जाते हैं। यह कृषि, पर्यटन, साहसिक खेलों तथा उद्योगों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है तथा अपने तट पर बसे शहरों की जलापूर्ति भी करती है। इसके तट पर विकसित धार्मिक स्थल और तीर्थ भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विशेष अंग हैं। इसके ऊपर बने पुल, बांध और नदी परियोजनाएँ भारत की बिजली, पानी और कृषि से सम्बन्धित ज़रूरतों को पूरा करती हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। गंगा की इस अनुपम शुद्धीकरण क्षमता तथा सामाजिक श्रद्धा के बावजूद इसको प्रदूषित होने से रोका नहीं जा सका है। फिर भी इसके प्रयत्न जारी हैं और सफ़ाई की अनेक परियोजनाओं के क्रम में नवम्बर,२००८ में भारत सरकार द्वारा इसे भारत की राष्ट्रीय नदी तथा इलाहाबाद और हल्दिया के बीच (१६०० किलोमीटर) गंगा नदी जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया है। .

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औली

औली उत्तराखण्ड का एक भाग है। यह 5-7 किलोमीटर में फैला छोटा सा स्की-रिसोर्ट है। इस रिसोर्ट को 9,500-10,500 फीट की ऊँचाई पर बनाया गया है। यहाँ बर्फ से ढकी चोटियाँ बहुत ही सुन्दर दिखाई देती हैं। इनकी ऊँचाई लगभग 23,000 फीट है। यहाँ पर देवदार के वृक्ष बहुतायत में पाए जाते हैं। इनकी महक यहाँ की ठंडी और ताजी हवाओं में महसूस की जा सकती है। .

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कौसानी

कौसानी से दृश्यमान हिमालय पर्वतशृंखला कौसानी, गरुङ तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के बागेश्वर जिले का एक गाँव है। भारत का खूबसूरत पर्वतीय पर्यटक स्‍थल कौसानी उत्तराखंड राज्‍य के अल्‍मोड़ा जिले से 53 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। यह बागेश्वर जिला में आता है। हिमालय की खूबसूरती के दर्शन कराता कौसानी पिंगनाथ चोटी पर बसा है। यहां से बर्फ से ढ़के नंदा देवी पर्वत की चोटी का नजारा बडा भव्‍य दिखाई देता हैं। कोसी और गोमती नदियों के बीच बसा कौसानी भारत का स्विट्जरलैंड कहलाता है। यहां के खूबसूरत प्राकृतिक नजारे, खेल और धार्मिक स्‍थल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। .

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अलकनन्दा नदी

देवप्रयाग पर भागीरथी और अलकनन्दा का संगमअलकनन्दा नदी गंगा की सहयोगी नदी हैं। यह गंगा के चार नामों में से एक है। चार धामों में गंगा के कई रूप और नाम हैं। गंगोत्री में गंगा को भागीरथी के नाम से जाना जाता है, केदारनाथ में मंदाकिनी और बद्रीनाथ में अलकनन्दा। यह उत्तराखंड में शतपथ और भगीरथ खड़क नामक हिमनदों से निकलती है। यह स्थान गंगोत्री कहलाता है। अलकनंदा नदी घाटी में लगभग २२९ किमी तक बहती है। देव प्रयाग या विष्णु प्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी का संगम होता है और इसके बाद अलकनंदा नाम समाप्त होकर केवल गंगा नाम रह जाता है। अलकनंदा चमोली टेहरी और पौड़ी जिलों से होकर गुज़रती है।.

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उत्तराखण्ड

उत्तराखण्ड (पूर्व नाम उत्तरांचल), उत्तर भारत में स्थित एक राज्य है जिसका निर्माण ९ नवम्बर २००० को कई वर्षों के आन्दोलन के पश्चात भारत गणराज्य के सत्ताइसवें राज्य के रूप में किया गया था। सन २००० से २००६ तक यह उत्तरांचल के नाम से जाना जाता था। जनवरी २००७ में स्थानीय लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए राज्य का आधिकारिक नाम बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया गया। राज्य की सीमाएँ उत्तर में तिब्बत और पूर्व में नेपाल से लगी हैं। पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तर प्रदेश इसकी सीमा से लगे राज्य हैं। सन २००० में अपने गठन से पूर्व यह उत्तर प्रदेश का एक भाग था। पारम्परिक हिन्दू ग्रन्थों और प्राचीन साहित्य में इस क्षेत्र का उल्लेख उत्तराखण्ड के रूप में किया गया है। हिन्दी और संस्कृत में उत्तराखण्ड का अर्थ उत्तरी क्षेत्र या भाग होता है। राज्य में हिन्दू धर्म की पवित्रतम और भारत की सबसे बड़ी नदियों गंगा और यमुना के उद्गम स्थल क्रमशः गंगोत्री और यमुनोत्री तथा इनके तटों पर बसे वैदिक संस्कृति के कई महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थान हैं। देहरादून, उत्तराखण्ड की अन्तरिम राजधानी होने के साथ इस राज्य का सबसे बड़ा नगर है। गैरसैण नामक एक छोटे से कस्बे को इसकी भौगोलिक स्थिति को देखते हुए भविष्य की राजधानी के रूप में प्रस्तावित किया गया है किन्तु विवादों और संसाधनों के अभाव के चलते अभी भी देहरादून अस्थाई राजधानी बना हुआ है। राज्य का उच्च न्यायालय नैनीताल में है। राज्य सरकार ने हाल ही में हस्तशिल्प और हथकरघा उद्योगों को बढ़ावा देने के लिये कुछ पहल की हैं। साथ ही बढ़ते पर्यटन व्यापार तथा उच्च तकनीकी वाले उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए आकर्षक कर योजनायें प्रस्तुत की हैं। राज्य में कुछ विवादास्पद किन्तु वृहत बाँध परियोजनाएँ भी हैं जिनकी पूरे देश में कई बार आलोचनाएँ भी की जाती रही हैं, जिनमें विशेष है भागीरथी-भीलांगना नदियों पर बनने वाली टिहरी बाँध परियोजना। इस परियोजना की कल्पना १९५३ मे की गई थी और यह अन्ततः २००७ में बनकर तैयार हुआ। उत्तराखण्ड, चिपको आन्दोलन के जन्मस्थान के नाम से भी जाना जाता है। .

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उत्तराखण्ड और नन्दा देवी पर्वत के बीच तुलना

उत्तराखण्ड 271 संबंध है और नन्दा देवी पर्वत 35 है। वे आम 15 में है, समानता सूचकांक 4.90% है = 15 / (271 + 35)।

संदर्भ

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