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उत्तररामचरितम् और महावीरचरित

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

उत्तररामचरितम् और महावीरचरित के बीच अंतर

उत्तररामचरितम् vs. महावीरचरित

उत्तररामचरितम् महाकवि भवभूति का प्रसिद्ध संस्कृत नाटक है, जिसके सात अंकों में राम के उत्तर जीवन की कथा है। भवभूति एक सफल नाटककार हैं। उत्तररामचरितम् में उन्होने ऐसे नायक से संबंधित इतिवृत्त का चयन किया है जो भारतीय संस्कृति की आत्मा है। इस कथानक का आकर्षण भारत के साथ साथ विदेशी जनमानस में भी सदा से रहा है और रहेगा। अपनी लेखनी चातुर्य से कवि ने राम के पत्नी परित्याग रूपी चरित्र के दोष को सदा के लिये दूर करदिया। साथ ही सीता को वनवास देने वाले राम का रुदन दिखाकर कवि ने सीता के अपमानित तथा दुःख भरे हृदय को बहुत शान्त किया हैं। साहित्य शास्त्र में जहॉं नाटकों में श्रृंगार अथवा वीर रस की प्रधानता का विधान है वही भवभूति ने उसके विपरीत करुण रस प्रधान नाटक लिखकर नाट्यजगत में एक अपूर्व क्रान्ति ला दी। भवभूति तो यहॉं तक कहते हैं कि करुण ही एकमात्र रस है। वही करुण निमित्त भेद से अन्य रूपों में व्यक्त हुआ है। विवाह से पूर्व नायक नायिका का श्रृंगार वर्णन तो प्रायः सभी कवियों ने सफलता के साथ किया है परन्तु भवभूति ने दाम्पत्य प्रेम का जैसा उज्जवल एवं विशद चित्र खींचा है वैसा अन्यत्र दुलर्भ है। सात अंकों में निबद्ध उत्तररामचरितम भवभूति की सर्वश्रेष्ठ नाट्यकृति है। इसमें रामराज्यमिषेक के पश्चात् जीवन का लोकोत्तर चरित वर्णित है जो महावीरचरित का ही उत्तर भाग माना जाता है।। संस्कृत नाट्यसाहित्य में मर्यादापुरषोत्तम श्री रामचन्द्र के पावन चरित्र से सम्बद्ध अनेक नाटक है किन्तु उनमें भवभूति का उत्तरराम चरितम् अपना एक अलग ही वैशिष्ट्य रखता है। काव्य शास्त्र में जहॉं नाटकों में श्रृंगार अथवा वीर रस की प्रधानता का विधान है वहीं भवभूति ने उसके विपरीत करुण रस प्रधान नाटक रचकर नाट्यजगत में एक अपूर्व क्रान्तिला दी है। उत्तररामचरितम् में प्रेम का जैसा शुद्ध रूप देखने को मिलता है वैसा अन्य कवियों की कृत्तियों में दुर्लभ है। कवि ने इस नाटक के माध्यम से राजा का वह आदर्श रूप प्रस्तुत किया है जो स्वार्थ और त्याग की मूर्ति है तथा प्रजारंजन ही जिसका प्रधान धर्म है। प्रजा सुख के लिये प्राणप्रिया पत्नी का भी त्याग करने में जिसे कोई हिचक नहीं है। इस नाटक में प्रकृति के कोमल तथा मधुर रूप के वर्णन की अपेक्षा उसके गम्भीर तथा विकट रूप का अधिक वर्णन हुआ है जो अद्वितीय एवं श्लाघनीय हैं। वास्तव में यह नाटक अन्य नाटकों की तुलना में निराला ही है। इसी कारण संस्कृत नाट्य जगत में इसका विशेष स्थान है। सार रूप में यही कहा जा सकता है कि विश्वास की महिमा में, प्रेम की पवित्रता में, भावनाओं की तरंगक्रीड़ा में, भाषा के गम्भीर्य में और हृदय के माहात्म्य में उत्तररामचरितम् श्रेष्ठ एवं अतुलनीय नाटक है। . महावीरचरितम् भवभूति द्वारा रचित संस्कृत नाटक है जिसमें राम के पूर्वार्ध जीवन का वर्णन है। .

उत्तररामचरितम् और महावीरचरित के बीच समानता

उत्तररामचरितम् और महावीरचरित आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): राम

राम

राम (रामचन्द्र) प्राचीन भारत में अवतार रूपी भगवान के रूप में मान्य हैं। हिन्दू धर्म में राम विष्णु के दस अवतारों में से सातवें अवतार हैं। राम का जीवनकाल एवं पराक्रम महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य रामायण के रूप में वर्णित हुआ है। गोस्वामी तुलसीदास ने भी उनके जीवन पर केन्द्रित भक्तिभावपूर्ण सुप्रसिद्ध महाकाव्य श्री रामचरितमानस की रचना की है। इन दोनों के अतिरिक्त अनेक भारतीय भाषाओं में अनेक रामायणों की रचना हुई हैं, जो काफी प्रसिद्ध भी हैं। खास तौर पर उत्तर भारत में राम बहुत अधिक पूजनीय हैं और हिन्दुओं के आदर्श पुरुष हैं। राम, अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के सबसे बड़े पुत्र थे। राम की पत्नी का नाम सीता था (जो लक्ष्मी का अवतार मानी जाती हैं) और इनके तीन भाई थे- लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। हनुमान, भगवान राम के, सबसे बड़े भक्त माने जाते हैं। राम ने राक्षस जाति के लंका के राजा रावण का वध किया। राम की प्रतिष्ठा मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में है। राम ने मर्यादा के पालन के लिए राज्य, मित्र, माता पिता, यहाँ तक कि पत्नी का भी साथ छोड़ा। इनका परिवार आदर्श भारतीय परिवार का प्रतिनिधित्व करता है। राम रघुकुल में जन्मे थे, जिसकी परम्परा प्रान जाहुँ बरु बचनु न जाई की थी। श्रीराम के पिता दशरथ ने उनकी सौतेली माता कैकेयी को उनकी किन्हीं दो इच्छाओं को पूरा करने का वचन (वर) दिया था। कैकेयी ने दासी मन्थरा के बहकावे में आकर इन वरों के रूप में राजा दशरथ से अपने पुत्र भरत के लिए अयोध्या का राजसिंहासन और राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास माँगा। पिता के वचन की रक्षा के लिए राम ने खुशी से चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार किया। पत्नी सीता ने आदर्श पत्नी का उदहारण देते हुए पति के साथ वन जाना उचित समझा। सौतेले भाई लक्ष्मण ने भी भाई के साथ चौदह वर्ष वन में बिताये। भरत ने न्याय के लिए माता का आदेश ठुकराया और बड़े भाई राम के पास वन जाकर उनकी चरणपादुका (खड़ाऊँ) ले आये। फिर इसे ही राज गद्दी पर रख कर राजकाज किया। राम की पत्नी सीता को रावण हरण (चुरा) कर ले गया। राम ने उस समय की एक जनजाति वानर के लोगों की मदद से सीता को ढूँढ़ा। समुद्र में पुल बना कर रावण के साथ युद्ध किया। उसे मार कर सीता को वापस लाये। जंगल में राम को हनुमान जैसा मित्र और भक्त मिला जिसने राम के सारे कार्य पूरे कराये। राम के अयोध्या लौटने पर भरत ने राज्य उनको ही सौंप दिया। राम न्यायप्रिय थे। उन्होंने बहुत अच्छा शासन किया इसलिए लोग आज भी अच्छे शासन को रामराज्य की उपमा देते हैं। इनके पुत्र कुश व लव ने इन राज्यों को सँभाला। हिन्दू धर्म के कई त्योहार, जैसे दशहरा, राम नवमी और दीपावली, राम की जीवन-कथा से जुड़े हुए हैं। .

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उत्तररामचरितम् और महावीरचरित के बीच तुलना

उत्तररामचरितम् 10 संबंध है और महावीरचरित 3 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 7.69% है = 1 / (10 + 3)।

संदर्भ

यह लेख उत्तररामचरितम् और महावीरचरित के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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