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आहारीय सेलेनियम और कर्कट रोग

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

आहारीय सेलेनियम और कर्कट रोग के बीच अंतर

आहारीय सेलेनियम vs. कर्कट रोग

आहारीय सेलेनियम यह प्रति-उपचायक के रूप में काम करता है। यह प्रभावशाली प्रति- उपचायक खनिज है। यह शरीर को हानिप्रद मुक्त मूलकों से छुटकारा दिलाने से मदद करता है जो चर्बीचुक्त ऊतकों के ऑक्सीजन के परिणामस्वरुप होते हैं। यह रक्त के थक्के बनने से रोकता है। प्रतिरक्षक-तंत्र की शक्ति बढाता है और जीव-विषों के प्रभावों को व्यर्थ कर देता है। यह जरावसथा की क्रियाओं को धीमा करता है। यकृत की सुस्वस्थता कायम रखने के लिये विटामिन ‘ई’ के साथ सेलेनियम आवश्यक है। सेलेनियम की कमी से कैन्सर और हृदय रोग में खतरा बढ़ जाता है। कई देशों के सेलेनियम और कैन्सर प्रतिमानों का मानचित्रण कर लिया गया है। जिसमें सेलेनियम-कैन्सर संबंध का साक्ष्य अत्यधिक है। फ़िनलैड में वैज्ञानिको ने ग्यारह हजार व्यक्तियों को देखा उन्होंने पाया कि सेलेनियम के निम्न रक्त-वाले व्यक्ति हृदय-रोग से तीन गुना अधिक मृत्यु की सम्भावना वाले थे। चीन में हृदय की मांसपेशियों की खराबी से होने वाला रोग उन क्षेत्रों में फ़ैले हुए थे जहां खनिज सेलेनियम के निम्न स्तर पाये गये थे। सेलेनियम की कमी वाली मिट्टी सेलेनियम की कमी वाले खाघ उत्पन्न करती थी। सेलेनियम सम्पूर्ण के परिणाम स्वरुप यह रोग प्रायः समाप्त कर दिया गया है। १९८४ में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया कि निम्न रक्त सेलेनियम वाले व्यक्तियों को कैन्सर होने का अधिक खतरा होता है। . कर्कट (चिकित्सकीय पद: दुर्दम नववृद्धि) रोगों का एक वर्ग है जिसमें कोशिकाओं का एक समूह अनियंत्रित वृद्धि (सामान्य सीमा से अधिक विभाजन), रोग आक्रमण (आस-पास के उतकों का विनाश और उन पर आक्रमण) और कभी कभी अपररूपांतरण अथवा मेटास्टैसिस (लसिका या रक्त के माध्यम से शरीर के अन्य भागों में फ़ैल जाता है) प्रदर्शित करता है। कर्कट के ये तीन दुर्दम लक्षण इसे सौम्य गाँठ (ट्यूमर या अबुर्द) से विभेदित करते हैं, जो स्वयं सीमित हैं, आक्रामक नहीं हैं या अपररूपांतरण प्रर्दशित नहीं करते हैं। अधिकांश कर्कट एक गाँठ या अबुर्द (ट्यूमर) बनाते हैं, लेकिन कुछ, जैसे रक्त कर्कट (श्वेतरक्तता) गाँठ नहीं बनाता है। चिकित्सा की वह शाखा जो कर्कट के अध्ययन, निदान, उपचार और रोकथाम से सम्बंधित है, ऑन्कोलॉजी या अर्बुदविज्ञान कहलाती है। कर्कट सभी उम्र के लोगों को, यहाँ तक कि भ्रूण को भी प्रभावित कर सकता है, लेकिन अधिकांश किस्मों का जोखिम उम्र के साथ बढ़ता है। कर्कट में से १३% का कारण है। अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार, २००७ के दौरान पूरे विश्व में ७६ लाख लोगों की मृत्यु कर्कट के कारण हुई। कर्कट सभी जानवरों को प्रभावित कर सकता है। लगभग सभी कर्कट रूपांतरित कोशिकाओं के आनुवंशिक पदार्थ में असामान्यताओं के कारण होते हैं। ये असामान्यताएं कार्सिनोजन या का कर्कटजन (कर्कट पैदा करने वाले कारक) के कारण हो सकती हैं जैसे तम्बाकू धूम्रपान, विकिरण, रसायन, या संक्रामक कारक.

आहारीय सेलेनियम और कर्कट रोग के बीच समानता

आहारीय सेलेनियम और कर्कट रोग आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): रक्त

रक्त

मानव शरीर में लहू का संचरण लाल - शुद्ध लहू नीला - अशु्द्ध लहू लहू या रक्त या खून एक शारीरिक तरल (द्रव) है जो लहू वाहिनियों के अन्दर विभिन्न अंगों में लगातार बहता रहता है। रक्त वाहिनियों में प्रवाहित होने वाला यह गाढ़ा, कुछ चिपचिपा, लाल रंग का द्रव्य, एक जीवित ऊतक है। यह प्लाज़मा और रक्त कणों से मिल कर बनता है। प्लाज़मा वह निर्जीव तरल माध्यम है जिसमें रक्त कण तैरते रहते हैं। प्लाज़मा के सहारे ही ये कण सारे शरीर में पहुंच पाते हैं और वह प्लाज़मा ही है जो आंतों से शोषित पोषक तत्वों को शरीर के विभिन्न भागों तक पहुंचाता है और पाचन क्रिया के बाद बने हानिकारक पदार्थों को उत्सर्जी अंगो तक ले जा कर उन्हें फिर साफ़ होने का मौका देता है। रक्तकण तीन प्रकार के होते हैं, लाल रक्त कणिका, श्वेत रक्त कणिका और प्लैटलैट्स। लाल रक्त कणिका श्वसन अंगों से आक्सीजन ले कर सारे शरीर में पहुंचाने का और कार्बन डाईआक्साईड को शरीर से श्वसन अंगों तक ले जाने का काम करता है। इनकी कमी से रक्ताल्पता (अनिमिया) का रोग हो जाता है। श्वैत रक्त कणिका हानीकारक तत्वों तथा बिमारी पैदा करने वाले जिवाणुओं से शरीर की रक्षा करते हैं। प्लेटलेट्स रक्त वाहिनियों की सुरक्षा तथा खून बनाने में सहायक होते हैं। मनुष्य-शरीर में करीब पाँच लिटर लहू विद्यमान रहता है। लाल रक्त कणिका की आयु कुछ दिनों से लेकर १२० दिनों तक की होती है। इसके बाद इसकी कोशिकाएं तिल्ली (Phagocytosis) में टूटती रहती हैं। परन्तु इसके साथ-साथ अस्थि मज्जा (बोन मैरो) में इसका उत्पादन भी होता रहता है (In 7 steps)। यह बनने और टूटने की क्रिया एक निश्चित अनुपात में होती रहती है, जिससे शरीर में खून की कमी नहीं हो पाती। मनुष्यों में लहू ही सबसे आसानी से प्रत्यारोपित किया जा सकता है। एटीजंस से लहू को विभिन्न वर्गों में बांटा गया है और रक्तदान करते समय इसी का ध्यान रखा जाता है। महत्वपूर्ण एटीजंस को दो भागों में बांटा गया है। पहला ए, बी, ओ तथा दुसरा आर-एच व एच-आर। जिन लोगों का रक्त जिस एटीजंस वाला होता है उसे उसी एटीजंस वाला रक्त देते हैं। जिन पर कोई एटीजंस नहीं होता उनका ग्रुप "ओ" कहलाता है। जिनके रक्त कण पर आर-एच एटीजंस पाया जाता है वे आर-एच पाजिटिव और जिनपर नहीं पाया जाता वे आर-एच नेगेटिव कहलाते हैं। ओ-वर्ग वाले व्यक्ति को सर्वदाता तथा एबी वाले को सर्वग्राही कहा जाता है। परन्तु एबी रक्त वाले को एबी रक्त ही दिया जाता है। जहां स्वस्थ व्यक्ति का रक्त किसी की जान बचा सकता है, वहीं रोगी, अस्वस्थ व्यक्ति का खून किसी के लिये जानलेवा भी साबित हो सकता है। इसीलिए खून लेने-देने में बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है। लहू का pH मान 7.4 होता है कार्य.

आहारीय सेलेनियम और रक्त · कर्कट रोग और रक्त · और देखें »

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आहारीय सेलेनियम और कर्कट रोग के बीच तुलना

आहारीय सेलेनियम 17 संबंध है और कर्कट रोग 122 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 0.72% है = 1 / (17 + 122)।

संदर्भ

यह लेख आहारीय सेलेनियम और कर्कट रोग के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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