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आधुनिक हिंदी पद्य का इतिहास और उषा वर्मा

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

आधुनिक हिंदी पद्य का इतिहास और उषा वर्मा के बीच अंतर

आधुनिक हिंदी पद्य का इतिहास vs. उषा वर्मा

आधुनिक काल १८५० से हिंदी साहित्य के इस युग को भारत में राष्ट्रीयता के बीज अंकुरित होने लगे थे। स्वतंत्रता संग्राम लड़ा और जीता गया। छापेखाने का आविष्कार हुआ, आवागमन के साधन आम आदमी के जीवन का हिस्सा बने, जन संचार के विभिन्न साधनों का विकास हुआ, रेडिओ, टी वी व समाचार पत्र हर घर का हिस्सा बने और शिक्षा हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार। इन सब परिस्थितियों का प्रभाव हिंदी साहित्य पर अनिवार्यतः पड़ा। आधुनिक काल का हिंदी पद्य साहित्य पिछली सदी में विकास के अनेक पड़ावों से गुज़रा। जिसमें अनेक विचार धाराओं का बहुत तेज़ी से विकास हुआ। जहां काव्य में इसे छायावादी युग, प्रगतिवादी युग, प्रयोगवादी युग,नयी कविता युग और साठोत्तरी कविता इन नामों से जाना गया, छायावाद से पहले के पद्य को भारतेंदु हरिश्चंद्र युग और महावीर प्रसाद द्विवेदी युग के दो और युगों में बांटा गया। इसके विशेष कारण भी हैं। . उषा वर्मा ब्रिटेन में बसी भारतीय मूल की लेखक है। राजधानी लंदन की चहल-पहल से दूर यॉर्क जैसे छोटे शहर में रहते हुए साहित्य साधना में लगी हुई उषा वर्मा का रचना संसार छोटा है, पर वह मानव मनोविज्ञान से सुपरिचित एक सिद्धार्थ लेखिका हैं। उनकी सिद्धि का आधार मानवीय करुणा और अन्याय के प्रति तीका विरोध का भाव है। उनकी कविताएं तथा कहानियां सजीव और सस्पंद हैं, जिनमें प्रश्न है, पीड़ा है और एक ईमानदार पारदर्शी अभिव्यक्ति है। साहित्य अमृत, समकालीन भारतीय साहित्य, आजकल, कथन, कादम्बिनी आदि पत्रिकाओं में आपकी कविताएं तथा कहानियां छपती रहती हैं। आप `पुरवाई' में समीक्षा कॉलम लिखती हैं। उनके द्वारा संपादित कहानी संग्रह सांझी कथा यात्रा की काफ़ी चर्चा रही है। .

आधुनिक हिंदी पद्य का इतिहास और उषा वर्मा के बीच समानता

आधुनिक हिंदी पद्य का इतिहास और उषा वर्मा आम में 2 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): हिंदी साहित्य, आधुनिक हिंदी गद्य का इतिहास

हिंदी साहित्य

चंद्रकांता का मुखपृष्ठ हिन्दी भारत और विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। उसकी जड़ें प्राचीन भारत की संस्कृत भाषा में तलाशी जा सकती हैं। परंतु हिन्दी साहित्य की जड़ें मध्ययुगीन भारत की ब्रजभाषा, अवधी, मैथिली और मारवाड़ी जैसी भाषाओं के साहित्य में पाई जाती हैं। हिंदी में गद्य का विकास बहुत बाद में हुआ और इसने अपनी शुरुआत कविता के माध्यम से जो कि ज्यादातर लोकभाषा के साथ प्रयोग कर विकसित की गई।हिंदी का आरंभिक साहित्य अपभ्रंश में मिलता है। हिंदी में तीन प्रकार का साहित्य मिलता है। गद्य पद्य और चम्पू। हिंदी की पहली रचना कौन सी है इस विषय में विवाद है लेकिन ज़्यादातर साहित्यकार देवकीनन्दन खत्री द्वारा लिखे गये उपन्यास चंद्रकांता को हिन्दी की पहली प्रामाणिक गद्य रचना मानते हैं। .

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आधुनिक हिंदी गद्य का इतिहास

हिंदी साहित्य का आधुनिक काल भारत के इतिहास के बदलते हुए स्वरूप से प्रभावित था। स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीयता की भावना का प्रभाव साहित्य में भी आया। भारत में औद्योगीकरण का प्रारंभ होने लगा था। आवागमन के साधनों का विकास हुआ। अंग्रेजी और पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव बढा और जीवन में बदलाव आने लगा। ईश्वर के साथ साथ मानव को समान महत्व दिया गया। भावना के साथ-साथ विचारों को पर्याप्त प्रधानता मिली। पद्य के साथ-साथ गद्य का भी विकास हुआ और छापेखाने के आते ही साहित्य के संसार में एक नई क्रांति हुई। आधुनिक हिन्दी गद्य का विकास केवल हिन्दी भाषी क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रहा। पूरे भारत में और हर प्रदेश में हिन्दी की लोकप्रियता फैली और अनेक अन्य भाषी लेखकों ने हिन्दी में साहित्य रचना करके इसके विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान किया। हिन्दी गद्य के विकास को विभिन्न सोपानों में विभक्त किया जा सकता है- .

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आधुनिक हिंदी पद्य का इतिहास और उषा वर्मा के बीच तुलना

आधुनिक हिंदी पद्य का इतिहास 36 संबंध है और उषा वर्मा 5 है। वे आम 2 में है, समानता सूचकांक 4.88% है = 2 / (36 + 5)।

संदर्भ

यह लेख आधुनिक हिंदी पद्य का इतिहास और उषा वर्मा के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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