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आदिवासी और झारखंड आंदोलन

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

आदिवासी और झारखंड आंदोलन के बीच अंतर

आदिवासी vs. झारखंड आंदोलन

ब्राजील के कयोपो (Kayapo tribe) आदिवासियों के मुखिया सामान्यत: "आदिवासी" (ऐबोरिजिनल) शब्द का प्रयोग किसी भौगोलिक क्षेत्र के उन निवासियों के लिए किया जाता है जिनका उस भौगोलिक क्षेत्र से ज्ञात इतिहास में सबसे पुराना सम्बन्ध रहा हो। परन्तु संसार के विभिन्न भूभागों में जहाँ अलग-अलग धाराओं में अलग-अलग क्षेत्रों से आकर लोग बसे हों उस विशिष्ट भाग के प्राचीनतम अथवा प्राचीन निवासियों के लिए भी इस शब्द का उपयोग किया जाता है। उदाहरणार्थ, "इंडियन" अमरीका के आदिवासी कहे जाते हैं और प्राचीन साहित्य में दस्यु, निषाद आदि के रूप में जिन विभिन्न प्रजातियों समूहों का उल्लेख किया गया है उनके वंशज समसामयिक भारत में आदिवासी माने जाते हैं। आदिवासी के समानार्थी शब्‍दों में ऐबोरिजिनल, इंडिजिनस, देशज, मूल निवासी, जनजाति, वनवासी, जंगली, गिरिजन, बर्बर आदि प्रचलित हैं। इनमें से हर एक शब्‍द के पीछे सामाजिक व राजनीतिक संदर्भ हैं। अधिकांश आदिवासी संस्कृति के प्राथमिक धरातल पर जीवनयापन करते हैं। वे सामन्यत: क्षेत्रीय समूहों में रहते हैं और उनकी संस्कृति अनेक दृष्टियों से स्वयंपूर्ण रहती है। इन संस्कृतियों में ऐतिहासिक जिज्ञासा का अभाव रहता है तथा ऊपर की थोड़ी ही पीढ़ियों का यथार्थ इतिहास क्रमश: किंवदंतियों और पौराणिक कथाओं में घुल मिल जाता है। सीमित परिधि तथा लघु जनसंख्या के कारण इन संस्कृतियों के रूप में स्थिरता रहती है, किसी एक काल में होनेवाले सांस्कृतिक परिवर्तन अपने प्रभाव एवं व्यापकता में अपेक्षाकृत सीमित होते हैं। परंपराकेंद्रित आदिवासी संस्कृतियाँ इसी कारण अपने अनेक पक्षों में रूढ़िवादी सी दीख पड़ती हैं। उत्तर और दक्षिण अमरीका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, एशिया तथा अनेक द्वीपों और द्वीपसमूहों में आज भी आदिवासी संस्कृतियों के अनेक रूप देखे जा सकते हैं। . झारखंड का अर्थ है "वन क्षेत्र", झारखंड वनों से आच्छादित छोटानागपुर के पठार का हिस्सा है जो गंगा के मैदानी हिस्से के दक्षिण में स्थित है। झारखंड शब्द का प्रयोग कम से कम चार सौ साल पहले सोलहवीं शताब्दी में हुआ माना जाता है। अपने बृहत और मूल अर्थ में झारखंड क्षेत्र में पुराने बिहार के ज्यादतर दक्षिणी हिस्से और छत्तीसगढ, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा के कुछ आदिवासी जिले शामिल है। देश की लगभग नब्बे प्रतिशत अनुसूचित जनजाति का यह निवास स्थल है। इस आबादी का बड़ा हिस्सा 'मुंडा', 'हो' और 'संथाल' आदि जनजातियों का है, लेकिन इनके अलावे भी बहुत सी दूसरी आदिवासी जातियां यहां मौजूद हैं जो इस झारखंड आंदोलन में काफी सक्रिय रही हैं। चूँकि झारखंड पठारी और वनों से आच्छादित क्षेत्र है इसलिये इसकी रक्षा करना तुलनात्मक रूप से आसान है। परिणामस्वरुप, पारंपरिक रूप से यह क्षेत्र सत्रहवीं शताब्दी के शुरुआत तक, जब तक मुगल शासक यहाँ नहीं पहुँचे, यह क्षेत्र स्वायत्त रहा है। मुगल प्रशासन ने धीरे धीरे इस क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित करना शुरु किया और फलस्वरुप यहाँ की स्वायत्त भूमि व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन हुआ, सारी व्यवस्था ज़मींदारी व्यवस्था में बदल गयी जबकि इससे पहले यहाँ भूमि सार्वजनिक संपत्ति के रूप में मानी जाती थी। यह ज़मींदारी प्रवृति ब्रिटिश शासन के दौरान और भी मज़बूत हुई और जमीने धीरे धीरे कुछ लोगों के हाथ में जाने लगीं जिससे यहाँ बँधुआ मज़दूर वर्ग का उदय होने लगा। ये मजदू‍र हमेशा कर्ज के बोझ तले दबे होते थे और परिणामस्वरुप बेगार करते थे। जब आदिवासियों के ब्रिटिश न्याय व्यवस्था से कोई उम्मीद किरण नहीं दिखी तो आदिवासी विद्रोह पर उतर आये। अठारहवीं शताब्दी में कोल्ह, भील और संथाल समुदायों द्वारा भीषण विद्रोह किया गया। अंग्रेजों ने बाद मेंउन्निसवीं शताब्दी और बीसवीं शताब्दी में कुछ सुधारवादी कानून बनाये। 1845 में पहली बार यहाँ ईसाई मिशनरियों के आगमन से इस क्षेत्र में एक बड़ा सांस्कृतिक परिवर्तन और उथल-पुथल शुरु हुआ। आदिवासी समुदाय का एक बड़ा और महत्वपूर्ण हिस्सा ईसाईयत की ओर आकृष्ट हुआ। क्षेत्र में ईसाई स्कूल और अस्पताल खुले। लेकिन ईसाई धर्म में बृहत धर्मांतरण के बावज़ूद आदिवासियों ने अपनी पारंपरिक धार्मिक आस्थाएँ भी कायम रखी और ये द्वंद कायम रहा। झारखंड के खनिज पदार्थों से संपन्न प्रदेश होने का खामियाजा भी इस क्षेत्र के आदिवासियों को चुकाते रहना पड़ा है। यह क्षेत्र भारत का सबसे बड़ा खनिज क्षेत्र है जहाँ कोयला, लोहा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है और इसके अलावा बाक्साईट, ताँबा चूना-पत्थर इत्यादि जैसे खनिज भी बड़ी मात्रा में हैं। यहाँ कोयले की खुदाई पहली बार 1856 में शुरु हुआ और टाटा आयरन ऐंड स्टील कंपनीकी स्थापना 1907 में जमशेदपुर में की गई। इसके बावजूद कभी इस क्षेत्र की प्रगति पर ध्यान नहीं दिया गया। केंद्र में चाहे जिस पार्टी की सरकार रही हो, उसने हमेशा इस क्षेत्र के दोहन के विषय में ही सोचा था। .

आदिवासी और झारखंड आंदोलन के बीच समानता

आदिवासी और झारखंड आंदोलन आम में 4 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): भारत, भील, सांथाल जनजाति, आदिवासी

भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

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भील

भील मध्य भारत की एक जनजाति है। भील जनजाति के लोग भील भाषा बोलते है। भील, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और राजस्थान में एक अनुसूचित जनजाति है, अजमेर में ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के खादिम भी भील पूर्वजों के वंशज हैं। भील त्रिपुरा और पाकिस्तान के सिन्ध के थारपरकअर जिले में भी बसे हुये हैं। .

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सांथाल जनजाति

संथाल जनजाति झारखंड के ज्यादातर हिस्सों तथा पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम के कुछ जिलों में रहने वाली भारत की प्राचीनतम जनजातियों में से एक है। ये भारत के प्रमुख आदिवासी समूह है। इनका निवास स्थान मुख्यतः झारखंड प्रदेश है। झारखंड से बाहर ये बंगाल, बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, असम, में रहते है। संथाल प्रायः नाटे कद के होता है। इनकी नाक चौड़ी तथा चिपटी होती है। इनका संबंध प्रोटो आस्ट्रेलायड से है। संथालों के समाज में मुख्य व्यक्ति इनका मांझी होता है। मदिरापान तथा नृत्य इनके दैनिक जीवन का अंग है। अन्य आदिवासी समुहों की तरह इनमें भी जादू टोना प्रचलित है। संथालो की अन्य विषेशता इनके सुन्दर ढंग के मकान हैं जिनमें खिडकीयां नहीं होती हैं। संथाल मारांग बुरु की उपासना करतें हैं साथ ही ये सरना धर्म का पालन करते हैं। इनकी भाषा संथाली और लिपि ओल चिकी है। इनके बारह मूल गोत्र हैं; मरांडी, सोरेन, हासंदा, किस्कू, टुडू, मुर्मू, हेम्ब्रम, बेसरा, बास्की, चौड़े, बेदिया, एवं पौरिया। संताल समुदाय मुख्यतः बाहा, सोहराय, माग, ऐरोक, माक मोंड़े, जानथाड़, हरियाड़ सीम, आराक सीम, जातरा, पाता, बुरु मेरोम, गाडा पारोम तथा सकरात नामक पर्व / त्योहार मनाते हैं। इनके विवाह को 'बापला' कहा जता है। संताल समुदाय में कुल 23 प्रकार की विवाह प्रथायें है, जो निम्न प्रकार है - उनकी अद्वितीय विरासत की परंपरा और आश्चर्यजनक परिष्कृत जीवन शैली है। सबसे उल्लेखनीय हैं उनके लोकसंगीत, गीत और नृत्य हैं। संथाली भाषा व्यापक रूप से बोली जाती है। दान करने की संरचना प्रचुर मात्रा में है। उनकी स्वयं की मान्यता प्राप्त लिपि 'ओल-चिकी' है, जो संताल समुदाय के लिये अद्वितीय है। संथाल के सांस्कृतिक शोध दैनिक कार्य में परिलक्षित होते है- जैसे डिजाइन, निर्माण, रंग संयोजन और अपने घर की सफाई व्यवस्था में है। दीवारों पर आरेखण, चित्र और अपने आंगन की स्वच्छता कई आधुनिक शहरी घर के लिए शर्म की बात होगी। संथाल के सहज परिष्कार भी स्पष्ट रूप से उनके परिवार के पैटर्न -- पितृसत्तात्मक, पति पत्नी के साथ मजबूत संबंधों को दर्शाता है। विवाह अनुष्ठानों में पूरा समुदाय आनन्द के साथ भाग लेते हैं। लड़का और लड़की का जन्म आनंद का अवसर हैं। संथाल मृत्यु के शोक अन्त्येष्टि संस्कार को अति गंभीरता से मनाया जाता है। संताल समुदाय का धार्मिक विश्वासों और अभ्यास किसी भी अन्य समुदाय या धर्म से मेल नहीं खाता है। इनमें प्रमुख देवता हैं- 'सिंग बोंगा', 'मारांग बुरु' और 'जाहेर एरा, गोसांय एरा, मांझी बाबा - गोगो, आदि। पूजा अनुष्ठान में बलिदानों का इस्तेमाल किया जाता है। .

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आदिवासी

ब्राजील के कयोपो (Kayapo tribe) आदिवासियों के मुखिया सामान्यत: "आदिवासी" (ऐबोरिजिनल) शब्द का प्रयोग किसी भौगोलिक क्षेत्र के उन निवासियों के लिए किया जाता है जिनका उस भौगोलिक क्षेत्र से ज्ञात इतिहास में सबसे पुराना सम्बन्ध रहा हो। परन्तु संसार के विभिन्न भूभागों में जहाँ अलग-अलग धाराओं में अलग-अलग क्षेत्रों से आकर लोग बसे हों उस विशिष्ट भाग के प्राचीनतम अथवा प्राचीन निवासियों के लिए भी इस शब्द का उपयोग किया जाता है। उदाहरणार्थ, "इंडियन" अमरीका के आदिवासी कहे जाते हैं और प्राचीन साहित्य में दस्यु, निषाद आदि के रूप में जिन विभिन्न प्रजातियों समूहों का उल्लेख किया गया है उनके वंशज समसामयिक भारत में आदिवासी माने जाते हैं। आदिवासी के समानार्थी शब्‍दों में ऐबोरिजिनल, इंडिजिनस, देशज, मूल निवासी, जनजाति, वनवासी, जंगली, गिरिजन, बर्बर आदि प्रचलित हैं। इनमें से हर एक शब्‍द के पीछे सामाजिक व राजनीतिक संदर्भ हैं। अधिकांश आदिवासी संस्कृति के प्राथमिक धरातल पर जीवनयापन करते हैं। वे सामन्यत: क्षेत्रीय समूहों में रहते हैं और उनकी संस्कृति अनेक दृष्टियों से स्वयंपूर्ण रहती है। इन संस्कृतियों में ऐतिहासिक जिज्ञासा का अभाव रहता है तथा ऊपर की थोड़ी ही पीढ़ियों का यथार्थ इतिहास क्रमश: किंवदंतियों और पौराणिक कथाओं में घुल मिल जाता है। सीमित परिधि तथा लघु जनसंख्या के कारण इन संस्कृतियों के रूप में स्थिरता रहती है, किसी एक काल में होनेवाले सांस्कृतिक परिवर्तन अपने प्रभाव एवं व्यापकता में अपेक्षाकृत सीमित होते हैं। परंपराकेंद्रित आदिवासी संस्कृतियाँ इसी कारण अपने अनेक पक्षों में रूढ़िवादी सी दीख पड़ती हैं। उत्तर और दक्षिण अमरीका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, एशिया तथा अनेक द्वीपों और द्वीपसमूहों में आज भी आदिवासी संस्कृतियों के अनेक रूप देखे जा सकते हैं। .

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सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब

आदिवासी और झारखंड आंदोलन के बीच तुलना

आदिवासी 33 संबंध है और झारखंड आंदोलन 58 है। वे आम 4 में है, समानता सूचकांक 4.40% है = 4 / (33 + 58)।

संदर्भ

यह लेख आदिवासी और झारखंड आंदोलन के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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