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आदि शंकराचार्य और स्वामी चिन्मयानंद

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

आदि शंकराचार्य और स्वामी चिन्मयानंद के बीच अंतर

आदि शंकराचार्य vs. स्वामी चिन्मयानंद

आदि शंकराचार्य अद्वैत वेदांत के प्रणेता, मूर्तिपूजा के पुरस्कर्ता, पंचायतन पूजा के प्रवर्तक है। उपनिषदों और वेदांतसूत्रों पर लिखी हुई इनकी टीकाएँ बहुत प्रसिद्ध हैं। इन्होंने भारतवर्ष में चार मठों की स्थापना की थी जो अभी तक बहुत प्रसिद्ध और पवित्र माने जाते हैं और जिनके प्रबंधक तथा गद्दी के अधिकारी 'शंकराचार्य' कहे जाते हैं। वे चारों स्थान ये हैं- (१) बदरिकाश्रम, (२) शृंगेरी पीठ, (३) द्वारिका पीठ और (४) शारदा पीठ। इन्होंने अनेक विधर्मियों को भी अपने धर्म में दीक्षित किया था। ये शंकर के अवतार माने जाते हैं। इन्होंने ब्रह्मसूत्रों की बड़ी ही विशद और रोचक व्याख्या की है। उनके विचारोपदेश आत्मा और परमात्मा की एकरूपता पर आधारित हैं जिसके अनुसार परमात्मा एक ही समय में सगुण और निर्गुण दोनों ही स्वरूपों में रहता है। स्मार्त संप्रदाय में आदि शंकराचार्य को शिव का अवतार माना जाता है। इन्होंने ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, मांडूक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, बृहदारण्यक और छान्दोग्योपनिषद् पर भाष्य लिखा। वेदों में लिखे ज्ञान को एकमात्र ईश्वर को संबोधित समझा और उसका प्रचार तथा वार्ता पूरे भारत में की। उस समय वेदों की समझ के बारे में मतभेद होने पर उत्पन्न चार्वाक, जैन और बौद्धमतों को शास्त्रार्थों द्वारा खण्डित किया और भारत में चार कोनों पर ज्योति, गोवर्धन, शृंगेरी एवं द्वारिका आदि चार मठों की स्थापना की। कलियुग के प्रथम चरण में विलुप्त तथा विकृत वैदिक ज्ञानविज्ञान को उद्भासित और विशुद्ध कर वैदिक वाङ्मय को दार्शनिक, व्यावहारिक, वैज्ञानिक धरातल पर समृद्ध करने वाले एवं राजर्षि सुधन्वा को सार्वभौम सम्राट ख्यापित करने वाले चतुराम्नाय-चतुष्पीठ संस्थापक नित्य तथा नैमित्तिक युग्मावतार श्रीशिवस्वरुप भगवत्पाद शंकराचार्य की अमोघदृष्टि तथा अद्भुत कृति सर्वथा स्तुत्य है। कलियुग की अपेक्षा त्रेता में तथा त्रेता की अपेक्षा द्वापर में, द्वापर की अपेक्षा कलि में मनुष्यों की प्रज्ञाशक्ति तथा प्राणशक्ति एवं धर्म औेर आध्यात्म का ह्रास सुनिश्चित है। यही कारण है कि कृतयुग में शिवावतार भगवान दक्षिणामूर्ति ने केवल मौन व्याख्यान से शिष्यों के संशयों का निवारण किय‍ा। त्रेता में ब्रह्मा, विष्णु औऱ शिव अवतार भगवान दत्तात्रेय ने सूत्रात्मक वाक्यों के द्वारा अनुगतों का उद्धार किया। द्वापर में नारायणावतार भगवान कृष्णद्वैपायन वेदव्यास ने वेदों का विभाग कर महाभारत तथा पुराणादि की एवं ब्रह्मसूत्रों की संरचनाकर एवं शुक लोमहर्षणादि कथाव्यासों को प्रशिक्षितकर धर्म तथा अध्यात्म को उज्जीवित रखा। कलियुग में भगवत्पाद श्रीमद् शंकराचार्य ने भाष्य, प्रकरण तथा स्तोत्रग्रन्थों की संरचना कर, विधर्मियों-पन्थायियों एवं मीमांसकादि से शास्त्रार्थ, परकायप्रवेशकर, नारदकुण्ड से अर्चाविग्रह श्री बदरीनाथ एवं भूगर्भ से अर्चाविग्रह श्रीजगन्नाथ दारुब्रह्म को प्रकटकर तथा प्रस्थापित कर, सुधन्वा सार्वभौम को राजसिंहासन समर्पित कर एवं चतुराम्नाय - चतुष्पीठों की स्थापना कर अहर्निश अथक परिश्रम के द्वारा धर्म और आध्यात्म को उज्जीवित तथा प्रतिष्ठित किया। व्यासपीठ के पोषक राजपीठ के परिपालक धर्माचार्यों को श्रीभगवत्पाद ने नीतिशास्त्र, कुलाचार तथा श्रौत-स्मार्त कर्म, उपासना तथा ज्ञानकाण्ड के यथायोग्य प्रचार-प्रसार की भावना से अपने अधिकार क्षेत्र में परिभ्रमण का उपदेश दिया। उन्होंने धर्मराज्य की स्थापना के लिये व्यासपीठ तथा राजपीठ में सद्भावपूर्ण सम्वाद के माध्यम से सामंजस्य बनाये रखने की प्रेरणा प्रदान की। ब्रह्मतेज तथा क्षात्रबल के साहचर्य से सर्वसुमंगल कालयोग की सिद्धि को सुनिश्चित मानकर कालगर्भित तथा कालातीतदर्शी आचार्य शंकर ने व्यासपीठ तथा राजपीठ का शोधनकर दोनों में सैद्धान्तिक सामंजस्य साधा। . स्वामी चिन्मयानन्द स्वामी चिन्मयानन्द (8 मई 1916 - 3 अगस्त 1993) हिन्दू धर्म और संस्कृति के मूलभूत सिद्धान्त वेदान्त दर्शन के एक महान प्रवक्ता थे। उन्होंने सारे भारत में भ्रमण करते हुए देखा कि देश में धर्म संबंधी अनेक भ्रांतियां फैली हैं। उनका निवारण कर शुद्ध धर्म की स्थापना करने के लिए उन्होंने गीता ज्ञान-यज्ञ प्रारम्भ किया और 1953 ई में चिन्मय मिशन की स्थापना की। स्वामी जी के प्रवचन बड़े ही तर्कसंगत और प्रेरणादायी होते थे। उनको सुनने के लिए हजारों लोग आने लगे। उन्होंने सैकड़ों संन्यासी और ब्रह्मचारी प्रशिक्षित किये। हजारों स्वाध्याय मंडल स्थापित किये। बहुत से सामाजिक सेवा के कार्य प्रारम्भ किये, जैसे विद्यालय, अस्पताल आदि। स्वामी जी ने उपनिषद्, गीता और आदि शंकराचार्य के 35 से अधिक ग्रंथों पर व्याख्यायें लिखीं। गीता पर लिखा उनका भाष्य सर्वोत्तम माना जाता है। .

आदि शंकराचार्य और स्वामी चिन्मयानंद के बीच समानता

आदि शंकराचार्य और स्वामी चिन्मयानंद आम में 5 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): भाष्य, सन्यास, वेदान्त दर्शन, केरल, उपनिषद्

भाष्य

संस्कृत साहित्य की परम्परा में उन ग्रन्थों को भाष्य (शाब्दिक अर्थ - व्याख्या के योग्य), कहते हैं जो दूसरे ग्रन्थों के अर्थ की वृहद व्याख्या या टीका प्रस्तुत करते हैं। मुख्य रूप से सूत्र ग्रन्थों पर भाष्य लिखे गये हैं। भाष्य, मोक्ष की प्राप्ति हेतु अविद्या (ignorance) का नाश करने के साधन के रूप में जाने जाते हैं। पाणिनि के अष्टाध्यायी पर पतंजलि का व्याकरणमहाभाष्य और ब्रह्मसूत्रों पर शांकरभाष्य आदि कुछ प्रसिद्ध भाष्य हैं। .

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सन्यास

सन्यासी हिन्दू धर्म में जीवन के ४ भाग (आश्रम) किए गए हैं- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। चौथा भाग सन्यास का अर्थ एक न्यासी या ट्रस्टी की तरह जीवन व्यतीत करना होता है। इस आश्रम का उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति है। मनुष्य जीवन को १०० वर्षों का मानकर ७५ वर्ष के उपरांत व्यक्ति को इस तरह से जीवन यापन करना चाहिए। श्रेणी:हिन्दू धर्म.

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वेदान्त दर्शन

वेदान्त ज्ञानयोग की एक शाखा है जो व्यक्ति को ज्ञान प्राप्ति की दिशा में उत्प्रेरित करता है। इसका मुख्य स्रोत उपनिषद है जो वेद ग्रंथो और अरण्यक ग्रंथों का सार समझे जाते हैं। उपनिषद् वैदिक साहित्य का अंतिम भाग है, इसीलिए इसको वेदान्त कहते हैं। कर्मकांड और उपासना का मुख्यत: वर्णन मंत्र और ब्राह्मणों में है, ज्ञान का विवेचन उपनिषदों में। 'वेदान्त' का शाब्दिक अर्थ है - 'वेदों का अंत' (अथवा सार)। वेदान्त की तीन शाखाएँ जो सबसे ज्यादा जानी जाती हैं वे हैं: अद्वैत वेदान्त, विशिष्ट अद्वैत और द्वैत। आदि शंकराचार्य, रामानुज और श्री मध्वाचार्य जिनको क्रमश: इन तीनो शाखाओं का प्रवर्तक माना जाता है, इनके अलावा भी ज्ञानयोग की अन्य शाखाएँ हैं। ये शाखाएँ अपने प्रवर्तकों के नाम से जानी जाती हैं जिनमें भास्कर, वल्लभ, चैतन्य, निम्बारक, वाचस्पति मिश्र, सुरेश्वर और विज्ञान भिक्षु। आधुनिक काल में जो प्रमुख वेदान्ती हुये हैं उनमें रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, अरविंद घोष, स्वामी शिवानंद राजा राममोहन रॉय और रमण महर्षि उल्लेखनीय हैं। ये आधुनिक विचारक अद्वैत वेदान्त शाखा का प्रतिनिधित्व करते हैं। दूसरे वेदान्तो के प्रवर्तकों ने भी अपने विचारों को भारत में भलिभाँति प्रचारित किया है परन्तु भारत के बाहर उन्हें बहुत कम जाना जाता है। .

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केरल

केरल (मलयालम: കേരളം, केरळम्) भारत का एक प्रान्त है। इसकी राजधानी तिरुवनन्तपुरम (त्रिवेन्द्रम) है। मलयालम (മലയാളം, मलयाळम्) यहां की मुख्य भाषा है। हिन्दुओं तथा मुसलमानों के अलावा यहां ईसाई भी बड़ी संख्या में रहते हैं। भारत की दक्षिण-पश्चिमी सीमा पर अरब सागर और सह्याद्रि पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य एक खूबसूरत भूभाग स्थित है, जिसे केरल के नाम से जाना जाता है। इस राज्य का क्षेत्रफल 38863 वर्ग किलोमीटर है और यहाँ मलयालम भाषा बोली जाती है। अपनी संस्कृति और भाषा-वैशिष्ट्य के कारण पहचाने जाने वाले भारत के दक्षिण में स्थित चार राज्यों में केरल प्रमुख स्थान रखता है। इसके प्रमुख पड़ोसी राज्य तमिलनाडु और कर्नाटक हैं। पुदुच्चेरी (पांडिचेरि) राज्य का मय्यष़ि (माहि) नाम से जाता जाने वाला भूभाग भी केरल राज्य के अन्तर्गत स्थित है। अरब सागर में स्थित केन्द्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप का भी भाषा और संस्कृति की दृष्टि से केरल के साथ अटूट संबन्ध है। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व केरल में राजाओं की रियासतें थीं। जुलाई 1949 में तिरुवितांकूर और कोच्चिन रियासतों को जोड़कर 'तिरुकोच्चि' राज्य का गठन किया गया। उस समय मलाबार प्रदेश मद्रास राज्य (वर्तमान तमिलनाडु) का एक जिला मात्र था। नवंबर 1956 में तिरुकोच्चि के साथ मलाबार को भी जोड़ा गया और इस तरह वर्तमान केरल की स्थापना हुई। इस प्रकार 'ऐक्य केरलम' के गठन के द्वारा इस भूभाग की जनता की दीर्घकालीन अभिलाषा पूर्ण हुई। * केरल में शिशुओं की मृत्यु दर भारत के राज्यों में सबसे कम है और स्त्रियों की संख्या पुरुषों से अधिक है (2001 की जनगणना के आधार पर)।.

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उपनिषद्

उपनिषद् हिन्दू धर्म के महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ हैं। ये वैदिक वाङ्मय के अभिन्न भाग हैं। इनमें परमेश्वर, परमात्मा-ब्रह्म और आत्मा के स्वभाव और सम्बन्ध का बहुत ही दार्शनिक और ज्ञानपूर्वक वर्णन दिया गया है। उपनिषदों में कर्मकांड को 'अवर' कहकर ज्ञान को इसलिए महत्व दिया गया कि ज्ञान स्थूल से सूक्ष्म की ओर ले जाता है। ब्रह्म, जीव और जगत्‌ का ज्ञान पाना उपनिषदों की मूल शिक्षा है। भगवद्गीता तथा ब्रह्मसूत्र उपनिषदों के साथ मिलकर वेदान्त की 'प्रस्थानत्रयी' कहलाते हैं। उपनिषद ही समस्त भारतीय दर्शनों के मूल स्रोत हैं, चाहे वो वेदान्त हो या सांख्य या जैन धर्म या बौद्ध धर्म। उपनिषदों को स्वयं भी वेदान्त कहा गया है। दुनिया के कई दार्शनिक उपनिषदों को सबसे बेहतरीन ज्ञानकोश मानते हैं। उपनिषद् भारतीय सभ्यता की विश्व को अमूल्य धरोहर है। मुख्य उपनिषद 12 या 13 हैं। हरेक किसी न किसी वेद से जुड़ा हुआ है। ये संस्कृत में लिखे गये हैं। १७वी सदी में दारा शिकोह ने अनेक उपनिषदों का फारसी में अनुवाद कराया। १९वीं सदी में जर्मन तत्त्ववेता शोपेनहावर और मैक्समूलर ने इन ग्रन्थों में जो रुचि दिखलाकर इनके अनुवाद किए वह सर्वविदित हैं और माननीय हैं। .

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आदि शंकराचार्य और स्वामी चिन्मयानंद के बीच तुलना

आदि शंकराचार्य 68 संबंध है और स्वामी चिन्मयानंद 27 है। वे आम 5 में है, समानता सूचकांक 5.26% है = 5 / (68 + 27)।

संदर्भ

यह लेख आदि शंकराचार्य और स्वामी चिन्मयानंद के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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