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अस्पेर्गेर संलक्षण

सूची अस्पेर्गेर संलक्षण

एस्पर्गर संलक्षण या एस्पर्गरस संलक्षण एक स्व-अभिव्यक्तता प्रतिबिंब रोग है। जीसकी महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि समाजीक संपर्क और व्यवहार में कठिनाई होती है और व्यवहारइक आचरण में दोहरावदार प्रकार देखाई देता है। ये अन्य स्व-अभिव्यक्तता प्रतिबिंब रोगों से अलग है क्योंकि इसमे भाषा और विज्ञान संबंधी विकास बहुत देर से होता है। हालांकि निदान के लिए आवश्यकता नहीं है, पर शारीरिक भद्दापन और अनियमित भाषा का उपयोग अक्सर देखाई देता है। एस्पर्गर सिंड्रोम, ऑस्ट्रियन बालरोग चिकित्सक के नाम पर रखा गया है, जीसने के १९४४ में अपने अभ्यास में उन बच्चों को वर्णित किया जो की, अनकहा संचार, अपने साथियों के साथ कम सहानुभूतिऔर बेढ़ंगे शारीरिक रूप का प्रदर्शन करते थे। पचास साल बाद, यह एक निदान के रूप में मानकीकृत किया गया था, लेकिन अभी भी कई सवाल रोग के विकार के पहलुओं के बारे में रहते हैं। उदाहरण के लिए, इसमे संदेह है कि क्या यह उच्च कार्य स्व-अभिव्यक्तता से अलग है। /0<ref name.

2 संबंधों: निदान, स्वलीनता

निदान

निदान की एक महत्वपूर्ण पद्धति: रेडियोग्राफी किसी भी समस्या के बाहरी लक्षणों से आरम्भ करके उसके (उत्पत्ति के) मूल कारण का ज्ञान करना निदान (Diagnosis / डायग्नोसिस्) कहलाता है। निदान की विधि 'विलोपन' (एलिमिनेशन) पर आधारित है। निदान शब्द का प्रयोग सभी क्षेत्रों में होता है: रोगोपचार (मेडिसिन), विज्ञान, प्रौद्योगिकी, न्याय, व्यापार, एवं प्रबन्धन आदि में। निदान का बहुत महत्व है। जब तक रोग की सटीक पहचान न हो जाए, तब तक सही दिशा में उपचार असंभव है। इसलिए पुराने आयुर्वेद ग्रंथों में निदान अध्याय बहुत वृहद होता था और उपचार अध्याय सीमित। कारण यह है कि यदि निदान सटीक हो गया तो उपचार भी सटीक होगा। यह सही है कि अनेक रोग स्वयमेव अच्छे हो जाते हैं और प्रकृति की निवारक शक्ति को किसी की सहायता की अपेक्षा नहीं होती, परंतु अनेक रोग ऐसे भी होते हैं जिनमें प्रकृति असमर्थ हो जाती है और तब चिकित्सा द्वारा सहायता की आवश्यकता होती है। सही और सटीक चिकित्सा के लिए आवश्यक है कि निदान सही हो। सही निदान का अर्थ यह है कि कष्टदायक लक्षणों का आधारभूत कारण और उसके द्वारा उत्पन्न विकृति का सही रूप समझा जाए। .

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स्वलीनता

स्वलीनता (ऑटिज़्म) मस्तिष्क के विकास के दौरान होने वाला विकार है जो व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार और संपर्क को प्रभावित करता है। हिन्दी में इसे 'आत्मविमोह' और 'स्वपरायणता' भी कहते हैं। इससे प्रभावित व्यक्ति, सीमित और दोहराव युक्त व्यवहार करता है जैसे एक ही काम को बार-बार दोहराना। यह सब बच्चे के तीन साल होने से पहले ही शुरु हो जाता है।। हिन्दुस्तान लाइव।।७ अक्तूबर, २००९। डॉ अरूण कुमार (मनोवैज्ञानिक) इन लक्षणों का समुच्चय (सेट) आत्मविमोह को हल्के (कम प्रभावी) आत्मविमोह स्पेक्ट्रम विकार (ASD) से अलग करता है, जैसे एस्पर्जर सिंड्रोम। ऑटिज़्म एक मानसिक रोग है जिसके लक्षण जन्म से ही या बाल्यावस्था से नज़र आने लगतें हैं। जिन बच्चो में यह रोग होता है उनका विकास अन्य बच्चो की अपेक्षा असामान्य होता है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

अस्पेर्गेर सिंड्रोम

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