लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
डाउनलोड
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

असम और ज्योतिप्रसाद आगरवाला

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

असम और ज्योतिप्रसाद आगरवाला के बीच अंतर

असम vs. ज्योतिप्रसाद आगरवाला

असम या आसाम उत्तर पूर्वी भारत में एक राज्य है। असम अन्य उत्तर पूर्वी भारतीय राज्यों से घिरा हुआ है। असम भारत का एक सीमांत राज्य है जो चतुर्दिक, सुरम्य पर्वतश्रेणियों से घिरा है। यह भारत की पूर्वोत्तर सीमा २४° १' उ॰अ॰-२७° ५५' उ॰अ॰ तथा ८९° ४४' पू॰दे॰-९६° २' पू॰दे॰) पर स्थित है। संपूर्ण राज्य का क्षेत्रफल ७८,४६६ वर्ग कि॰मी॰ है। भारत - भूटान तथा भारत - बांग्लादेश सीमा कुछ भागो में असम से जुडी है। इस राज्य के उत्तर में अरुणाचल प्रदेश, पूर्व में नागालैंड तथा मणिपुर, दक्षिण में मिजोरम तथा मेघालय एवं पश्चिम में बंग्लादेश स्थित है। . रूपकुंवर ज्योतिप्रसाद आगरवाला एक बहुआयामी और विलक्षण प्रतिभा संपन्न व्यक्ति थे। उनकी महानता, लोकप्रियता और व्यक्तित्व का विश्लेषण करते हुए राज्य की एक लोकप्रिय पत्रिका ने एक हजार साल के दस 'सर्वश्रेष्ठ असमिया' में उन्हें भी स्थान दिया है। ज्योतिप्रसाद का शुभ आगमन उस सन्धिक्षण में हुआ जब असमिया संस्कृ्ति तथा सभ्यता अपने मूल रूप से विछिन्न होती जा रही थी। प्रगतिशील विश्व की साहित्यिक और सांस्कृ्तिक धारा से असम का प्रत्यक्ष संपर्क नहीं रह गया था। यहां का बुद्धिजीवी वर्ग अपने को उपेक्षित समक्षकर किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो रहा था। उन दिनों भारतीय साहित्य, संस्कृ्ति, कला और विज्ञान आदि क्षेत्रों में एक अभिनव परिवर्तन आने लगा था, परन्तु असम ऎसे परिवर्तन से लाभ उठाने में अक्षम हो रहा था। इसी काल में ज्योति प्रसाद ने अपनी प्रतिभा से, असम की जनता को नई दृष्टि देकर विश्व के मानचित्र पर असम के संस्कृ्ति को उजागर कर एक ऎसा कार्य कर दिखाया, जिसकी कल्पना भी उन दिनों कोई नहीं कर सकता था। जिन महानुभावों के अथक प्रयासों से असम ने आधुनिक शिल्प-कला, साहित्य आदि के क्षेत्र में प्रगति की है, उनमें सबसे पहले ज्योतिप्रसाद का ही नाम गिनाया जायेगा। सबसे दिलचस्प बात यह है कि मारवाड़ी समाज से कहीं ज्यादा असमिया समाज उन्हें अपना मानता है। "रूपकुंवर" के सम्बोधन से ऎसा मह्सूस होता है कि यह किसी नाम की संज्ञा हो, यह शब्द असमिया समाज की तरफ से दिया गया सबसे बड़ा सम्मान का सूचक है जो असम के अन्य किसी भी साहित्यकार को न तो मिला है और न ही अब मिलेगा। अठारहवीं शताब्दी में राजस्थान के जयपुर रियासत के अन्तर्गत "केड़" नामक छोटा सा गांव (वर्तमान में झूंझूंणू जिला) जहां से आकर इनके पूर्वज - केशराम, कपूरचंद, चानमल, घासीराम 'केडिया' किसी कारणवस राजस्थान के ही दूसरे गांव 'गट्टा' आकर बस गये, फिर वहां से 'टांई' में अपनी बुआ के पास बस गये और वाणिज्य-व्यापार करने लगे। सन् 1820-21 के आसपास यह परिवार चूरू आया। परिवार में कुल 4 प्राणी - 10 वर्ष का बालक नवरंगराम, माता व दो छोटे भाई, पिता का साया सर से उठ चुका था। बालक नवरंगराम की उम्र जब 15-16 साल की थी तब उन्हें परदेश जाकर कुछ कमाने की सूक्षी सन् 1827-28 में ये कलकत्ता, मुर्शिदाबाद, बंगाल होते हुये असम में विश्वनाथ चारिआली नामक स्थान पर बस गये और रतनगढ़ के एक फर्म 'नवरंगराम रामदयाल पोद्दार' के यहां बतौर मुनिम नौकरी की। सन् 1932-33 के आसपास नौकरी छोड़कर " गमीरी " नामक स्थान पर आ अपना निजी व्यवसाय आरंभ कर दिये और यहीं अपना घर-बार बसा कर स्थानिय असमिया परिवार में कुलुक राजखोवा की बहन सादरी से विवाह कर लिया। सादरी की अकाल मृ्त्यु हो जाने के पश्चात उन्होंने पुनः दूसरा विवाह कलंगपुर के चारखोलिया गांव के लक्ष्मीकांत सैकिया की बहन सोनपाही से किया। सादरी से दो पुत्र - हरिविलास (बीपीराम) एवं थानुराम तथा सोनपाही से काशीराम प्राप्त हुये। हरिविलास धार्मिक प्रवृ्ति के व्यक्ति थे। इन्होंने अपनी एक आत्मकथा भी लिखी थी जो असमिया साहित्य में एक मूल्यवान दस्तावेज के रूप में मौजूद है। उनके 5 पुत्र हुए- विष्णुप्रसाद, चंद्रकुमार, परमानंद, कृ्ष्णाप्रसाद तथा गोपालचंद्र। चंद्रकुमार अगरवाला असमीया साहित्य में ' जोनाकी" युग के प्रमुख तीन कवियों में से एक माने जाते हैं। काशीराम के पुत्र आनन्दचन्द्र अगरवाल भी असमिया साहित्य में अमर कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। और "रूपकंवर" प्रसिद्ध संगीतज्ञ के पुत्र हैं। ज्योतिप्रसाद का जन्म 17 जून 1903 को डिब्रुगढ़ जिले में स्थित तामुलबारी चायबागान में हुआ। बहुमुखी प्रतिभा के धनी ज्योतिप्रसाद अगरवाल न सिर्फ एक नाटककार, कथाकार, गीतकार, पत्र संपादक, संगीतकार तथा गायक सभी कुछ थे। मात्र 14 वर्ष की उम्र में ही 'शोणित कुंवरी' नाटक की रचना कर आपने असमिया साहित्य को समृ्द्ध कर दिया। 1935 में असमिया साहित्यकार लक्ष्मीकांत बेजबरूआ के ऎतिहासिक नाटक ' ज्योमति कुंवारी' को आधार मानकर प्रथम असमिया फिल्म बनाई। वे इस फिल्म के निर्माता, निर्देशक, पटकथाकार, सेट डिजाइनर, संगीत तथा नृ्त्य निर्देशक सभी कुछ थे। ज्योति प्रसाद ने दो सहयोगियों बोडो कला गुरु विष्णु प्रसाद सभा (1909-69) और फणि शर्मा (1909-69) के साथ असमिया जन-संस्कृ्ति को नई चेतना दी। यह असमिया जातिय इतिहास का स्वर्ण युग है। ज्योतिप्रसाद की संपूर्ण रचनाएं असम की सरकारी प्रकाशन संस्था ने चार खंडों में प्रकाशित की है। उनमें 10 नाटक और लगभग अतनी ही कहानियां, एक उपन्यास,20 से ऊपर निबंध, तथा 359 गीतों का संकल्न है। जिनमें प्रायः सभी असमिया भाषा में लिखे गये हैं तीन-चार गीत हिन्दी और कुछ अंग्रेजी मे नाटक भी लिखे गये हैं। असम सरकार प्रत्येक वर्ष 17 जनवरी को ज्योतिप्रसाद की पुण्यतिथि को शिल्पी दिवश के रूप में मनाती है। इस दिन पूरे असम प्रदेश में सार्वजनिक छुट्टी रहती है। सरकारी प्रायोजनों के अतिरिक्त शिक्षण संस्थाओं में बड़े उत्साह से कार्यक्रम पेश किये जाते हैं। जगह- जगह प्रभात फेरियां निकाली जाती है, साहित्यिक गोष्ठियां आयोजित की जाती है। आजादी की लड़ाई में ज्योतिप्रसाद के योगदानों की चर्चा नहीं की जाय तो यह लेख अधुरा रह जायेगा इसके लिये सिर्फ इतना ही लिखना काफी होगा कि आजादी की लड़ाई में जमुनालाल बजाज के पहले इनके योगदानों को लिखा जाना चाहिये था। अपने जीवन के अंतिम दिनों तक आपने नाटक, गीत, कविता, जीवनी, शिशु कविता, चित्रनाट्य, कहानी, उपन्यास, निबंध आदि के माध्यम से असमिया भाषा- साहित्य और संस्कृ्ति में अतुलनीय योगदान देकर खुद तो अमर हो गये साथ ही मारवाड़ी समाज को भी अमर कर गये। असम के एक कवि शंकरलाल पारीक ने अपने शब्दों में इस प्रकार पिरोया है रूपकुंवर ज्योतिप्रसाद अग्रवाला को: असम मातृ के आंगन में, जन्म हुआ ध्रुव-तारे का; नाम था उसका 'ज्योतिप्रसाद' यथा नाम तथा गुण का, था उसमें सच्चा प्रकाश जान गया जग उसको सारा गीत रचे और गाये उसने, नाटक के पात्र बनाये उसने; जन-जन तक पहुंचाये उसने, स्वतंत्रता की लड़ी लड़ाई, घर-घर अलख जगाई असम की माटी की गंध में, फूलों की सुगंध में लोहित की बहती धारा की कल-कल में, रचा-बसा है नाम 'ज्योति' का असम संस्कृ्ति को महकाने वाला, आजादी का बिगुल बजाने वाला। श्रेणी:असम के लोग श्रेणी:असम के संगीतकार.

असम और ज्योतिप्रसाद आगरवाला के बीच समानता

असम और ज्योतिप्रसाद आगरवाला आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): असमिया भाषा

असमिया भाषा

आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं की शृंखला में पूर्वी सीमा पर अवस्थित असम की भाषा को असमी, असमिया अथवा आसामी कहा जाता है। असमिया भारत के असम प्रांत की आधिकारिक भाषा तथा असम में बोली जाने वाली प्रमुख भाषा है। इसको बोलने वालों की संख्या डेढ़ करोड़ से अधिक है। भाषाई परिवार की दृष्टि से इसका संबंध आर्य भाषा परिवार से है और बांग्ला, मैथिली, उड़िया और नेपाली से इसका निकट का संबंध है। गियर्सन के वर्गीकरण की दृष्टि से यह बाहरी उपशाखा के पूर्वी समुदाय की भाषा है, पर सुनीतिकुमार चटर्जी के वर्गीकरण में प्राच्य समुदाय में इसका स्थान है। उड़िया तथा बंगला की भांति असमी की भी उत्पत्ति प्राकृत तथा अपभ्रंश से भी हुई है। यद्यपि असमिया भाषा की उत्पत्ति सत्रहवीं शताब्दी से मानी जाती है किंतु साहित्यिक अभिरुचियों का प्रदर्शन तेरहवीं शताब्दी में रुद्र कंदलि के द्रोण पर्व (महाभारत) तथा माधव कंदलि के रामायण से प्रारंभ हुआ। वैष्णवी आंदोलन ने प्रांतीय साहित्य को बल दिया। शंकर देव (१४४९-१५६८) ने अपनी लंबी जीवन-यात्रा में इस आंदोलन को स्वरचित काव्य, नाट्य व गीतों से जीवित रखा। सीमा की दृष्टि से असमिया क्षेत्र के पश्चिम में बंगला है। अन्य दिशाओं में कई विभिन्न परिवारों की भाषाएँ बोली जाती हैं। इनमें से तिब्बती, बर्मी तथा खासी प्रमुख हैं। इन सीमावर्ती भाषाओं का गहरा प्रभाव असमिया की मूल प्रकृति में देखा जा सकता है। अपने प्रदेश में भी असमिया एकमात्र बोली नहीं हैं। यह प्रमुखतः मैदानों की भाषा है। .

असम और असमिया भाषा · असमिया भाषा और ज्योतिप्रसाद आगरवाला · और देखें »

सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब

असम और ज्योतिप्रसाद आगरवाला के बीच तुलना

असम 64 संबंध है और ज्योतिप्रसाद आगरवाला 3 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 1.49% है = 1 / (64 + 3)।

संदर्भ

यह लेख असम और ज्योतिप्रसाद आगरवाला के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »