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अर्विन श्रोडिन्गर

सूची अर्विन श्रोडिन्गर

अर्विन श्रोडिन्गर अर्विन श्रोडिन्गर विख्यात वैज्ञानिक था। उसने क्वांटम मेकानिक्स की नींव डाली। उनकी वेदान्त में आस्था थी और उनके अनुसार इससे उन्हें बहुत प्रेरणा मिली। .

7 संबंधों: नोबेल पुरस्कार विजेताओं की सूची, प्रमात्रा यान्त्रिकी, भौतिक शास्त्र, जीवनचरित, वेदान्त दर्शन, १९२२, १९४१

नोबेल पुरस्कार विजेताओं की सूची

क्रोना (लगभग यूएस $ 1.2 मिलयन, INR 7.6 करोड़), डिप्लोमा और एक स्वर्ण पदक प्रदान किया जाता है। नोबेल पुरस्कार हर वर्ष रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेस, द स्वीडिश एकेडमी, द कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट, एवं द नॉर्वेजियन नोबेल कमिटी द्वारा उन लोगों और संस्थाओं को प्रदान की जाती है जिन्होंने रसायनशास्त्र, भौतिकीशास्त्र, साहित्य, शांति, एवं औषधीविज्ञान के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया हो। नोबेल पुरस्कारों की स्थापना अल्फ्रेड नोबेल के वसीयतनामे के अनुसार १८९५ में हुई। वसीयतनामे के मुताबकि नोबेल पुरस्कारों का प्रशासकीय कार्य नोबेल फाउंडेशन देखेगा। अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कारों की शुरुआत १९६८ में स्वीडन की केंद्रीय बैंक स्वेरिंज रिक्सबैंक द्वारा हुई। यह पुरस्कार अर्थशास्त्र के क्षेत्र में अद्वितीय कार्य करने वाले लोगों और संस्थाओं को हर वर्ष दिया जाता है। प्रत्येक पुरस्कार एक अलग समिति द्वारा प्रदान किया जाता है। द रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेस भौतिकी, अर्थशास्त्र और रसायनशास्त्र में, कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट औषधी के क्षेत्र में, नॉर्वेजियन नोबेल समिति शांति के क्षेत्र में पुरस्कार प्रदान करती है। प्रत्येक पुरस्कार विजेता को एक मेडल, एक डिप्लोमा, एक मोनेटरी एवार्ड प्रदान की जाती है। .

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प्रमात्रा यान्त्रिकी

प्रमात्रा यान्त्रिकी (Quantum mechanics) कुछ वैज्ञानिक सिद्धान्तों का एक समुच्चय है जो परमाणवीय पैमाने पर उर्जा एवं पदार्थ के ज्ञात गुणधर्मों की व्याख्या करते हैं। इसमें उप-परमाणु पैमाने पर जो प्रकाश और उप-परमाण्वीय कणों में तरंग-कण द्विरूप देखा जाता है, उसका गणित आधार सम्मिलित है। क्वाण्टम यान्त्रिकी में उर्जा और पदार्थ के गहरे सम्बन्ध का भी गणित आधार सम्मिलित है। .

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भौतिक शास्त्र

भौतिकी के अन्तर्गत बहुत से प्राकृतिक विज्ञान आते हैं भौतिक शास्त्र अथवा भौतिकी, प्रकृति विज्ञान की एक विशाल शाखा है। भौतिकी को परिभाषित करना कठिन है। कुछ विद्वानों के मतानुसार यह ऊर्जा विषयक विज्ञान है और इसमें ऊर्जा के रूपांतरण तथा उसके द्रव्य संबन्धों की विवेचना की जाती है। इसके द्वारा प्राकृत जगत और उसकी आन्तरिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। स्थान, काल, गति, द्रव्य, विद्युत, प्रकाश, ऊष्मा तथा ध्वनि इत्यादि अनेक विषय इसकी परिधि में आते हैं। यह विज्ञान का एक प्रमुख विभाग है। इसके सिद्धांत समूचे विज्ञान में मान्य हैं और विज्ञान के प्रत्येक अंग में लागू होते हैं। इसका क्षेत्र विस्तृत है और इसकी सीमा निर्धारित करना अति दुष्कर है। सभी वैज्ञानिक विषय अल्पाधिक मात्रा में इसके अंतर्गत आ जाते हैं। विज्ञान की अन्य शाखायें या तो सीधे ही भौतिक पर आधारित हैं, अथवा इनके तथ्यों को इसके मूल सिद्धांतों से संबद्ध करने का प्रयत्न किया जाता है। भौतिकी का महत्व इसलिये भी अधिक है कि अभियांत्रिकी तथा शिल्पविज्ञान की जन्मदात्री होने के नाते यह इस युग के अखिल सामाजिक एवं आर्थिक विकास की मूल प्रेरक है। बहुत पहले इसको दर्शन शास्त्र का अंग मानकर नैचुरल फिलॉसोफी या प्राकृतिक दर्शनशास्त्र कहते थे, किंतु १८७० ईस्वी के लगभग इसको वर्तमान नाम भौतिकी या फिजिक्स द्वारा संबोधित करने लगे। धीरे-धीरे यह विज्ञान उन्नति करता गया और इस समय तो इसके विकास की तीव्र गति देखकर, अग्रगण्य भौतिक विज्ञानियों को भी आश्चर्य हो रहा है। धीरे-धीरे इससे अनेक महत्वपूर्ण शाखाओं की उत्पत्ति हुई, जैसे रासायनिक भौतिकी, तारा भौतिकी, जीवभौतिकी, भूभौतिकी, नाभिकीय भौतिकी, आकाशीय भौतिकी इत्यादि। भौतिकी का मुख्य सिद्धांत "उर्जा संरक्षण का नियम" है। इसके अनुसार किसी भी द्रव्यसमुदाय की ऊर्जा की मात्रा स्थिर होती है। समुदाय की आंतरिक क्रियाओं द्वारा इस मात्रा को घटाना या बढ़ाना संभव नहीं। ऊर्जा के अनेक रूप होते हैं और उसका रूपांतरण हो सकता है, किंतु उसकी मात्रा में किसी प्रकार परिवर्तन करना संभव नहीं हो सकता। आइंस्टाइन के सापेक्षिकता सिद्धांत के अनुसार द्रव्यमान भी उर्जा में बदला जा सकता है। इस प्रकार ऊर्जा संरक्षण और द्रव्यमान संरक्षण दोनों सिद्धांतों का समन्वय हो जाता है और इस सिद्धांत के द्वारा भौतिकी और रसायन एक दूसरे से संबद्ध हो जाते हैं। .

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जीवनचरित

प्रसिद्ध इतिहासज्ञ और जीवनी-लेखक टामस कारलाइल ने अत्यंत सीधी सादी और संक्षिप्त परिभाषा में इसे "एक व्यक्ति का जीवन" कहा है। इस तरह किसी व्यक्ति के जीवन वृत्तांतों को सचेत और कलात्मक ढंग से लिख डालना जीवनचरित कहा जा सकता है। यद्यपि इतिहास कुछ हद तक, कुछ लोगों की राय में, महापुरुषों का जीवनवृत्त है तथापि जीवनचरित उससे एक अर्थ में भिन्न हो जाता है। जीवनचरित में किसी एक व्यक्ति के यथार्थ जीवन के इतिहास का आलेखन होता है, अनेक व्यक्तियों के जीवन का नहीं। फिर भी जीवनचरित का लेखक इतिहासकार और कलाकार के कर्त्तव्य के कुछ समीप आए बिना नहीं रह सकता। जीवनचरितकार एक ओर तो व्यक्ति के जीवन की घटनाओं की यथार्थता इतिहासकार की भाँति स्थापित करता है; दूसरी ओर वह साहित्यकार की प्रतिभा और रागात्मकता का तथ्यनिरूपण में उपयोग करता है। उसकी यह स्थिति संभवत: उसे उपन्यासकार के निकट भी ला देती है। जीवनचरित की सीमा का यदि विस्तार किया जाय तो उसके अंतर्गत आत्मकथा भी आ जायगी। यद्यपि दोनों के लेखक पारस्परिक रुचि और संबद्ध विषय की भिन्नता के कारण घटनाओं के यथार्थ आलेखन में सत्य का निर्वाह समान रूप से नहीं कर पाते। आत्मकथा के लेखक में सतर्कता के बावजूद वह आलोचनात्मक तर्कना चरित्र विश्लेषण और स्पष्टचारिता नहीं आ पाती जो जीवनचरित के लेखक विशिष्टता होती है। इस भिन्नता के लिये किसी को दोषी नहीं माना जा सकता। ऐसा होना पूर्णत: स्वाभाविक है। .

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वेदान्त दर्शन

वेदान्त ज्ञानयोग की एक शाखा है जो व्यक्ति को ज्ञान प्राप्ति की दिशा में उत्प्रेरित करता है। इसका मुख्य स्रोत उपनिषद है जो वेद ग्रंथो और अरण्यक ग्रंथों का सार समझे जाते हैं। उपनिषद् वैदिक साहित्य का अंतिम भाग है, इसीलिए इसको वेदान्त कहते हैं। कर्मकांड और उपासना का मुख्यत: वर्णन मंत्र और ब्राह्मणों में है, ज्ञान का विवेचन उपनिषदों में। 'वेदान्त' का शाब्दिक अर्थ है - 'वेदों का अंत' (अथवा सार)। वेदान्त की तीन शाखाएँ जो सबसे ज्यादा जानी जाती हैं वे हैं: अद्वैत वेदान्त, विशिष्ट अद्वैत और द्वैत। आदि शंकराचार्य, रामानुज और श्री मध्वाचार्य जिनको क्रमश: इन तीनो शाखाओं का प्रवर्तक माना जाता है, इनके अलावा भी ज्ञानयोग की अन्य शाखाएँ हैं। ये शाखाएँ अपने प्रवर्तकों के नाम से जानी जाती हैं जिनमें भास्कर, वल्लभ, चैतन्य, निम्बारक, वाचस्पति मिश्र, सुरेश्वर और विज्ञान भिक्षु। आधुनिक काल में जो प्रमुख वेदान्ती हुये हैं उनमें रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, अरविंद घोष, स्वामी शिवानंद राजा राममोहन रॉय और रमण महर्षि उल्लेखनीय हैं। ये आधुनिक विचारक अद्वैत वेदान्त शाखा का प्रतिनिधित्व करते हैं। दूसरे वेदान्तो के प्रवर्तकों ने भी अपने विचारों को भारत में भलिभाँति प्रचारित किया है परन्तु भारत के बाहर उन्हें बहुत कम जाना जाता है। .

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१९२२

1922 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१९४१

1941 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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