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अम्लराज

सूची अम्लराज

अम्लराज, निर्माण के तुरन्त बाद अम्लराज या 'ऐक्वारेजिया' (Aqua regia) (शाब्दिक अर्थ .

9 संबंधों: टाइटेनियम, नाइट्रिक अम्ल, प्लैटिनम, सोना, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, विद्युत अपघट्य, इरीडियम, क्लोरोऔरिक अम्ल, क्लोरीन

टाइटेनियम

टाइटेनियम तत्व का सबसे पहले सन् 1791 में ग्रेटर ने पता लगाया तथा सन् 1795 में क्लापराथ ने इसका नाम टाइटेनियम रखा। इसके मुख्य खनिज इलमिनाइट तथा रुटाइल हैं। दूसरे खनिज स्थुडोब्रुकाइट, (Fe4 (TiO4) 3), एरीजोनाइट, (Fe2 (TiO3)3), गाइकीलाइट (MgTiO3) तथा पायरोफेनाइट, (MnTiO3) इत्यादि हैं धातु के क्लोराइड के वाष्प को द्रवित सोडियम के ऊपर से पारित करने पर, अथवा पोटासियम के साथ अवकरण से, अथवा धातु के हेलोजन लवण या ऑक्साइड के कैल्सियम, मैग्नीशियम या ऐल्यूमिनियम द्वारा अवकरण से यह धातु प्राप्त होती है। बुसे (सन् 1853) ने पोटासियम टाइटेनेट, सोडियम सल्फेट और सल्फयूरिक अम्ल के विद्युद्विच्छेदन द्वारा सफेद टाइटेनियम प्राप्त किया था। .

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नाइट्रिक अम्ल

नाइट्रिक अम्ल (Nitric acid) (HNO3), एक अत्यन्त संक्षारक (कोरोसिव) खनिज अम्ल है। इसे एक्वा फ्रोटिस (aqua fortis) और 'स्पिरिट ऑफ नाइटर' भी कहते हैं। कीमियागरों को नाइट्रिक अम्ल का ज्ञान था, जिसे वे ऐक्वा फॉर्टिस के नाम से पुकारते थे। प्रसिद्ध कीमियागर जेबर ने नाइटर (niter) और ताम्र सल्फेट, (Cu SO4) तथा फिटकरी के साथ आसवन से प्राप्त कर इसका वर्णन किया है। भारत में शोरा तथा नाइट्रिक अम्ल का १६वीं शताब्दी में ज्ञान था। शुक्राचार्य के ग्रंथ शुक्रनीति में बारूद बनाने के लिए इसे उपयोग का वर्णन हुआ है। उड़ीसा के गजपति प्रतापरुद्रदेव द्वारा लिखित ग्रंथ 'कौतुकचिंतामणि' में यवक्षार (साल्टपीटर) का उल्लेख है। इसके अतिरिक्त सुवर्णतंत्र ग्रंथ (लगभग १७वीं शताब्दी में लिखा गया) में 'शंखद्राव' का वर्णन है, जो शोरे और नमक के अम्लों (HCl) का मिश्रण था। आईने अकबरी ग्रंथ में रासी (शोरे के अम्ल) का वर्णन है, जिसका चाँदी को स्वच्छ करने में उपयोग हो सकता था। वर्ष १६४८ ई. में ग्लॉबर (Glauber) ने नाइटर पर विट्रियल तेल (oil of vitreol) की अभिक्रिया द्वारा संद्र नाइट्रिक अम्ल का निर्माण किया। कैवेंडिश ने १७७६ ई में इसका संघटन ज्ञात किया। वायुमंडल में नाइट्रिक अम्ल विद्युत विसर्जन (electric discharge) द्वारा सूक्ष्म मात्रा में बनता रहता है, जो वर्षाजल में घुलकर पृथ्वी पर आता है। मिट्टी में उपस्थित कार्बनिक पदार्थों के ऑक्सीकरण द्वारा भी नाइट्रिक अम्ल बनता है। यह अम्ल अनेक नाइट्रेट पदार्थों के रूप में भूमि में संचित होकर पौधों के उपयोग में आता है। नाइट्रेट यौगिकों का प्रमुख स्रोत चिली देश है। भारत की साँभर झील में पोटासियम नाइट्रेट पाया जाता है। भारत के कुछ राज्यों में मिट्टी के साथ मिला हुआ पोटासियम नाइट्रेट पाया जाता है। इससे एक समय प्रचुर मात्रा में शोरा (व्यापारिक पोटासियम नाइट्रेट) तैयार होता था। .

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प्लैटिनम

यह एक रायानिक धातु तत्व है। सबसे कठोर धातु प्लैटिनम है श्रेणी:धातु श्रेणी:रासायनिक तत्व श्रेणी:कीमती धातुएँ श्रेणी:संक्रमण धातु.

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सोना

सोना या स्वर्ण (Gold) अत्यंत चमकदार मूल्यवान धातु है। यह आवर्त सारणी के प्रथम अंतर्ववर्ती समूह (transition group) में ताम्र तथा रजत के साथ स्थित है। इसका केवल एक स्थिर समस्थानिक (isotope, द्रव्यमान 197) प्राप्त है। कृत्रिम साधनों द्वारा प्राप्त रेडियोधर्मी समस्थानिकों का द्रव्यमान क्रमश: 192, 193, 194, 195, 196, 198 तथा 199 है। .

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हाइड्रोक्लोरिक अम्ल

३०% सान्द्रता वाला हाइड्रोक्लोरिक अम्ल हाइड्रोक्लोरिक अम्ल एक प्रमुख अकार्बनिक अम्ल है। वस्तुतः हाइड्रोजन क्लोराइड गैस के जलीय विलयन को ही हाइड्रोक्लोरिक अम्ल कहते हैं। इस अम्ल का उल्लेख ग्लौबर ने १६४८ ई. में पहले पहल किया था। जोसेफ़ प्रीस्टली ने १७७२ में पहले पहल तैयार किया और सर हंफ्री डेवी ने १८१० ई. में सिद्ध किया कि हाइड्रोजन और क्लोरीन का यौगिक है। इससे पहले लोगों की गलत धारणा थी कि इसमें ऑक्सीजन भी रहता है। तब इसका नाम 'म्यूरिएटिक अम्ल' पड़ा या जो आज भी कहीं कहीं प्रयोग में आता है। हाइड्रोक्लोरिक अम्ल ज्वालामुखी गैसों में पाया जाता है। मानव जठर में इसकी अल्प मात्रा रहती है और आहार पाचन में सहायक होती है। .

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विद्युत अपघट्य

एल्युमिनियम के एलेक्ट्रोरोलाइटिक कैपेसिटर रसायन विज्ञान में उन पदार्थों को विद्युत अपघट्य (electrolyte) कहते हैं जिनमें मुक्त एलेक्ट्रॉन होते हैं जो उस पदार्थ को विद्युत चालक बनाते हैं। किसी आयनिक यौगिक का जल में विलयन सबसे साधारण (आम) विद्युत अपघट्य है। इसके अलावा पिघले हुए आयनिक यौगिक तथा ठोस विद्युत अपघट्य भी होते हैं। सामान्यत: विद्युत अपघट्य अम्लों, क्षारों एवं लवणों के विलयन के रूप में पाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त उच्च ताप एवं कम दाब पर कुछ गैसें भी विद्युत अपघट्य जैसा गुण प्रदर्शित करतीं हैं। कुछ जैविक (जैसे डीएनए, पॉलीपेप्टाइड्स आदि) एवं संश्लेषित बहुलकों (जैसे पॉलीस्टरीन सल्फोनेट) के विलयन भी विद्युत अपघटनीय होते हैं। श्रेणी:भौतिक रसायन श्रेणी:विद्युत चालक.

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इरीडियम

इरीडियम (Iridium) एक रासायनिक तत्त्व है। .

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क्लोरोऔरिक अम्ल

क्लोरोऔरिक अम्ल एक अकार्बनिक यौगिक है। श्रेणी:अकार्बनिक यौगिक.

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क्लोरीन

क्लोरीन (यूनानी: χλωρóς (ख्लोरोस), 'फीका हरा') एक रासायनिक तत्व है, जिसकी परमाणु संख्या १७ तथा संकेत Cl है। ऋणात्मक आयन क्लोराइड के रूप में यह साधारण नमक में उपस्थित होती है और सागर के जल में घुले लवण में प्रचुर मात्रा में पाई जाती है।। हिन्दुस्तान लाइव। ३१ मई २०१० सामान्य तापमान और दाब पर क्लोरीन (Cl2 या "डाईक्लोरीन") गैस के रूप में पायी जाती है। इसका प्रयोग तरणतालों को कीटाणुरहित बनाने में किया जाता है। यह एक हैलोजन है और आवर्त सारणी में समूह १७ (पूर्व में समूह ७, ७ए या ७बी) में रखी गयी है। यह एक पीले और हरे रंग की हवा से हल्की प्राकृतिक गैस जो एक निश्चित दाब और तापमान पर द्रव में बदल जाती है। यह पृथ्वी के साथ ही समुद्र में भी पाई जाती है। क्लोरीन पौधों और मनुष्यों के लिए आवश्यक है। इसका प्रयोग कागज और कपड़े बनाने में किया जाता है। इसमें यह ब्लीचिंग एजेंट (धुलाई करने वाले/ रंग उड़ाने वाले द्रव्य) के रूप में काम में लाई जाती है। वायु की उपस्थिति में यह जल के साथ क्रिया कर हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का निर्माण करती है। मूलत: गैस होने के कारण यह खाद्य श्रृंखला का भाग नहीं है। यह गैस स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है। तरणताल में इसका प्रयोग कीटाणुनाशक की तरह किया जाता है। साधारण धुलाई में इसे ब्लीचिंग एजेंट रूप में प्रयोग करते हैं। ब्लीच और कीटाणुनाशक बनाने के कारखाने में काम करने वाले लोगों में इससे प्रभावित होने की आशंका अधिक रहती है। यदि कोई लंबे समय तक इसके संपर्क में रहता है तो उसके स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। इसकी तेज गंध आंखों, त्वचा और श्वसन तंत्र के लिए हानिकारक होती है। इससे गले में घाव, खांसी और आंखों व त्वचा में जलन हो सकती है, इससे सांस लेने में समस्या होती है। .

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