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अनुपम मुखोपाध्याय

सूची अनुपम मुखोपाध्याय

अनुपम मुखोपाध्याय अनुपम मुखोपाध्याय (१७ फरबरि १९७९) (অনুপম মুখোপাধ্যায়) बांग्ला साहित्यके नव्योत्तर काल से जुडे जानेमाने एवम वितर्कित कवि और आलोचक हैं। उनका जन्म मिदनापुर जिलेके घाटाल गांवमें एक ब्राह्मण परिवार में हुया। सन २००० से वे नवोत्तरवादी समान्तराल साहित्य के भागीदार हैं और अल्प समय में अप्ना जगह बना लिया है। उनके लिखे जिन साहित्यिकों का आलोचना दृष्टि आकर्शन किया है वह हैं बाब डिलन, जार्ज लेनन, विलियम कारलस विलियमस, फ्रान्तस काफका, मलय रायचौधुरी, सुनील गंगोपाध्याय, जीवनानंद दास, सुकुमार राय, विनय मजुमदार, डबलु एच अडेन, समीर रायचौधुरी तथा बुद्धदेव बसु। उनका कविता जो कि नवोत्तरवादी या अधुनान्तिक है आलोचकों में चर्चा का विषय बना हुया है। .

7 संबंधों: नव्योत्तर काल, बाङ्ला भाषा, मलय रॉय चौधुरी, समीर रायचौधुरी, सुनील गंगोपाध्याय, जीवनानंद दास, विनय मजुमदार

नव्योत्तर काल

हिन्दी साहित्य के नव्योत्तर काल (पोस्ट-माडर्न) की कई धाराएं हैं -.

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बाङ्ला भाषा

बाङ्ला भाषा अथवा बंगाली भाषा (बाङ्ला लिपि में: বাংলা ভাষা / बाङ्ला), बांग्लादेश और भारत के पश्चिम बंगाल और उत्तर-पूर्वी भारत के त्रिपुरा तथा असम राज्यों के कुछ प्रान्तों में बोली जानेवाली एक प्रमुख भाषा है। भाषाई परिवार की दृष्टि से यह हिन्द यूरोपीय भाषा परिवार का सदस्य है। इस परिवार की अन्य प्रमुख भाषाओं में हिन्दी, नेपाली, पंजाबी, गुजराती, असमिया, ओड़िया, मैथिली इत्यादी भाषाएँ हैं। बंगाली बोलने वालों की सँख्या लगभग २३ करोड़ है और यह विश्व की छठी सबसे बड़ी भाषा है। इसके बोलने वाले बांग्लादेश और भारत के अलावा विश्व के बहुत से अन्य देशों में भी फ़ैले हैं। .

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मलय रॉय चौधुरी

मलय रायचौधुरी (जन्म २९ अक्टूबर १९३९) (মলয় রায়চৌধুরী) बांग्ला साहित्य के प्रख्यात कवि एवम आलोचक है। वे साठ के दशक के सहित्य आन्दोलन भूखी पीढ़ी (हंगरी जनरेशन) के जन्मदाता माने जाते है। इस आन्दोलन ने बांग्ला साहित्य को एक नयी दिशा दी और पूरे भारत में उथलपुथल मचायी। आन्दोलन के सिलसिले में मलय को उनहे कविता लिखने के कारण कारावास का दण्ड मिला था। वे अब तक सत्तर से ज्यादा कविताग्रन्थ, नाटक, उपन्यास एवम अनुवद के पुस्तक लिख चुके हैं। साठ के दशक मे जो बदलाव बांगला कविता मे आये, उन में एक बड़ा योगदान मलय रायचौधुरी का रहा है। उनके काव्यग्रन्थो मे ख्याति प्राप्त हैं मेधार वतानुकूल घुन्गुर। २००३ में उन्हें अनुवाद के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था। .

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समीर रायचौधुरी

समीर रायचौधुरी समीर रायचौधुरी (१-११-१९३३) (সমীর রায়চৌধুরী) बांग्ला साहित्य के एक प्रमुख कवि, आलोचक, कहानीलेखक एवम दार्शनिक हैं। भुखी पीढी आन्दोलन के प्रथम मेनिफेस्टो घोषणाकारीयों में वह प्रधान थे। हवा ४९ साहित्यपत्र के वह सम्पादक रहे हैं। उन्होनें अंग्रेजि भाषा में भी कविता एवम कहानियों के संकलन सम्पाद्न किये हैं। उनके लिखे खुलजा सिमसिम कहानी संकलन को अधुनान्तिक कहा गया है। .

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सुनील गंगोपाध्याय

सुनील गंगोपाध्याय या सुनील गांगुली (সুনীল গঙ্গোপাধ্যায়), (7 सितम्बर 1934 – 23 अक्टूबर 2012) सरस्वती सम्मान से सम्मानित साहित्यकार थे। वो कवि और उपन्यासकार थे। .

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जीवनानंद दास

जीवनान्द दास जीवनानंद दास (१७ फ़रवरी १८९९- २२ अक्तुबर १९५४) बोरिशाल (बांग्लादेश) में जन्मे बांग्ला के सबसे जनप्रिय रवीन्द्रोत्तर कवि हैं। उन्हें १९५५ में मरणोपरांत श्रेष्ठ कविता के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। १९२६ में उनका पहला कविता संग्रह प्रकाशित हुआ। झरा पालक, धूसर पांडुलिपि, बनलता सेन, महापृथिबी, रूपसी बांगला आदि उनकी बहुचर्चित कृतियाँ हैं। रबीन्द्रनाथके रुमानी कविता के प्रभावको अस्वीकार कर उनहोनें अपनाहि एक अलग काव्यभाषा का जन्म दिया जो पहले पाठक-समाज को गवारा नहीं था। परन्तु २०वीं सदी के शेष भाग से वह उभर कर आयें और पाठक के दिलोदिमाग को चा गये। पहले तो रबीन्द्रनाथ भी उनके काव्यभाषा के खिलाफ कटु आलोचना किये थे। उनके जीवनकाल में वह केवल २६९ कवितायें प्रकाश कर पाये थे जिसमें १६२ था उनके प्रकाशित संकलनों में। उनके मृत्यु के बाद उनके सारे अप्रकाशित कवितायें प्रकाश होने के पश्चात यह संख्या ८०० से भी ज्यादा हो चुका है। यंहा तक की उनके घर से १२ अप्रकाशित उपन्यास मिले जो अपने-आप में अभिनव था। इसके अलावे ३५ कहानियाँ भी मिलीं। उनका पारिवारिक जीवन बहुत ही दुखद था। १९५४ में जब एकदिन वह कोलकाता के ट्रामसे कुचले पाये गये तो लोगों का मानना था कि वह आत्महत्या कर लिये हैं। .

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विनय मजुमदार

विनय मजूमदार (१७ सितम्बर १९३४ - ११ दिसम्बर २००६) (বিনয় মজুমদার) बर्मा में पैदा हुए। आधुनिक बांगला साहित्य की 'भूखी पीढ़ी' के वह भी प्रमुख कवियों में रहे हैं। जीवनानंद दास के बाद के बांग्ला साहित्य में उनको सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है। २००५ में उनको हासपाताले लेखा कवितागौच्चो के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उस से पहले उन्हें रबीन्द्र पुरस्कार, सुधीन्द्रनाथ दत्ता पुरस्कार एवम कृत्तिवास पुरस्कार दिये गये थे। १९८०-१९९० के बीच वह अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठे थे। तब उन्होंने कविता लिखना ही त्याग दिया था। इन्होंने चार बार आत्महत्या की कोशिश भी की। पर वह मित्रों की सहायता से कोलकाता से बाहर ठाकुरनगर गांव जा कर ग्रामीण लोगों के बीच रहने लगे और फिर से लिखना शुरु किया। गणित में माहिर, वह इन्जीनीयरिंग के पण्डित थे। कविता में भी वे गणित का प्रयोग किया करते थे। मजुमदार ने रूसी भाषा की गणित की बहुत सी किताबों के अनुवाद किये थे। .

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