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अद्दहमाण और अपभ्रंश

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

अद्दहमाण और अपभ्रंश के बीच अंतर

अद्दहमाण vs. अपभ्रंश

अद्दहमाण (अब्दुल रहमान) ने संदेश रासक नामक प्रसिद्ध काव्य की रचना की है। इनकी जन्मतिथि का अभी तक अंतिम रूप से निर्णय नहीं हो सका है। किंतु संदेश रासक के अंतसाक्ष्य के आधार पर मुनि जिनविजय ने कवि अब्दुल रहमान को अमीर खुसरो से पूर्ववर्ती सिद्ध किया है और इनका जन्म १२वीं सताब्दी में माना है। साहित्य के एक अन्य इतिहासकार केशवराम काशीराम शास्त्री (कविचरित, भाग १, पू. १६-१७) के अनुसार अब्दुल रहमान का जन्म १५वीं शताब्दी में हुआ। पर शास्त्री जी ने अपने मत की पुष्टि में कोई साक्ष्य नहीं दिया है। संदेश रासक के छंद संख्या तीन और चार के आधार पर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि भारत के पश्चिम भाग में स्थित म्लेच्छ देश के अंतर्गत मीरहुसेन के पुत्र के रूप में अब्दुल रहमान का जन्म हुआ जो प्राकृत काव्य में निपुण था। केशवराम काशीराम शास्त्री का अनुमान है कि पश्चिम में भरुच के पास चैमूर नगर था जहाँ मुसलमानों का राज्य स्थापित होने पर अब्दुल रहमान के पूर्वज ने किसी हिंदू बालिका से विवाह कर लिया और उसी वंश में अब्दुल रहमान उत्पन्न हुआ जिसने प्राकृत एवं अपभ्रंश का अध्ययन किया और अपने ग्रंथ की रचना ग्राम्य अपभ्रंश में की। अब्दुल रहमान की केवल एक ही कृति है - संदेश रासक और इसकी हस्तलिखित प्रति पाटण के जैन भांडार में मिली है। अतः समझा जाता है कि कवि, किन्हीं कारणों से, पाटण में आ बसा होगा और हिंदुओं तथा जैनों के संपर्क में रहने के कारण उसने संस्कृत-प्राकृत-अपभ्रंश सीख ली होगी। इससे अधिक अब्दुल रहमान के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। अद्दहमाण अद्दहमाण अद्दहमाण श्रेणी:चित्र जोड़ें. अपभ्रंश, आधुनिक भाषाओं के उदय से पहले उत्तर भारत में बोलचाल और साहित्य रचना की सबसे जीवंत और प्रमुख भाषा (समय लगभग छठी से १२वीं शताब्दी)। भाषावैज्ञानिक दृष्टि से अपभ्रंश भारतीय आर्यभाषा के मध्यकाल की अंतिम अवस्था है जो प्राकृत और आधुनिक भाषाओं के बीच की स्थिति है। अपभ्रंश के कवियों ने अपनी भाषा को केवल 'भासा', 'देसी भासा' अथवा 'गामेल्ल भासा' (ग्रामीण भाषा) कहा है, परंतु संस्कृत के व्याकरणों और अलंकारग्रंथों में उस भाषा के लिए प्रायः 'अपभ्रंश' तथा कहीं-कहीं 'अपभ्रष्ट' संज्ञा का प्रयोग किया गया है। इस प्रकार अपभ्रंश नाम संस्कृत के आचार्यों का दिया हुआ है, जो आपाततः तिरस्कारसूचक प्रतीत होता है। महाभाष्यकार पतंजलि ने जिस प्रकार 'अपभ्रंश' शब्द का प्रयोग किया है उससे पता चलता है कि संस्कृत या साधु शब्द के लोकप्रचलित विविध रूप अपभ्रंश या अपशब्द कहलाते थे। इस प्रकार प्रतिमान से च्युत, स्खलित, भ्रष्ट अथवा विकृत शब्दों को अपभ्रंश की संज्ञा दी गई और आगे चलकर यह संज्ञा पूरी भाषा के लिए स्वीकृत हो गई। दंडी (सातवीं शती) के कथन से इस तथ्य की पुष्टि होती है। उन्होंने स्पष्ट लिखा है कि शास्त्र अर्थात् व्याकरण शास्त्र में संस्कृत से इतर शब्दों को अपभ्रंश कहा जाता है; इस प्रकार पालि-प्राकृत-अपभ्रंश सभी के शब्द 'अपभ्रंश' संज्ञा के अंतर्गत आ जाते हैं, फिर भी पालि प्राकृत को 'अपभ्रंश' नाम नहीं दिया गया। .

अद्दहमाण और अपभ्रंश के बीच समानता

अद्दहमाण और अपभ्रंश आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): प्राकृत

प्राकृत

सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र । इसकी रचना मूलतः तीसरी-चौथी शताब्दी ईसापूर्व में की गयी थी। भारतीय आर्यभाषा के मध्ययुग में जो अनेक प्रादेशिक भाषाएँ विकसित हुई उनका सामान्य नाम प्राकृत है और उन भाषाओं में जो ग्रंथ रचे गए उन सबको समुच्चय रूप से प्राकृत साहित्य कहा जाता है। विकास की दृष्टि से भाषावैज्ञानिकों ने भारत में आर्यभाषा के तीन स्तर नियत किए हैं - प्राचीन, मध्यकालीन और अर्वाचीन। प्राचीन स्तर की भाषाएँ वैदिक संस्कृत और संस्कृत हैं, जिनके विकास का काल अनुमानत: ई. पू.

अद्दहमाण और प्राकृत · अपभ्रंश और प्राकृत · और देखें »

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अद्दहमाण और अपभ्रंश के बीच तुलना

अद्दहमाण 9 संबंध है और अपभ्रंश 23 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 3.12% है = 1 / (9 + 23)।

संदर्भ

यह लेख अद्दहमाण और अपभ्रंश के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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