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अकबर और कश्मीर

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

अकबर और कश्मीर के बीच अंतर

अकबर vs. कश्मीर

जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर (१५ अक्तूबर, १५४२-२७ अक्तूबर, १६०५) तैमूरी वंशावली के मुगल वंश का तीसरा शासक था। अकबर को अकबर-ऐ-आज़म (अर्थात अकबर महान), शहंशाह अकबर, महाबली शहंशाह के नाम से भी जाना जाता है। अंतरण करने वाले के अनुसार बादशाह अकबर की जन्म तिथि हुमायुंनामा के अनुसार, रज्जब के चौथे दिन, ९४९ हिज़री, तदनुसार १४ अक्टूबर १५४२ को थी। सम्राट अकबर मुगल साम्राज्य के संस्थापक जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का पौत्र और नासिरुद्दीन हुमायूं एवं हमीदा बानो का पुत्र था। बाबर का वंश तैमूर और मंगोल नेता चंगेज खां से संबंधित था अर्थात उसके वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। अकबर के शासन के अंत तक १६०५ में मुगल साम्राज्य में उत्तरी और मध्य भारत के अधिकाश भाग सम्मिलित थे और उस समय के सर्वाधिक शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक था। बादशाहों में अकबर ही एक ऐसा बादशाह था, जिसे हिन्दू मुस्लिम दोनों वर्गों का बराबर प्यार और सम्मान मिला। उसने हिन्दू-मुस्लिम संप्रदायों के बीच की दूरियां कम करने के लिए दीन-ए-इलाही नामक धर्म की स्थापना की। उसका दरबार सबके लिए हर समय खुला रहता था। उसके दरबार में मुस्लिम सरदारों की अपेक्षा हिन्दू सरदार अधिक थे। अकबर ने हिन्दुओं पर लगने वाला जज़िया ही नहीं समाप्त किया, बल्कि ऐसे अनेक कार्य किए जिनके कारण हिन्दू और मुस्लिम दोनों उसके प्रशंसक बने। अकबर मात्र तेरह वर्ष की आयु में अपने पिता नसीरुद्दीन मुहम्मद हुमायुं की मृत्यु उपरांत दिल्ली की राजगद्दी पर बैठा था। अपने शासन काल में उसने शक्तिशाली पश्तून वंशज शेरशाह सूरी के आक्रमण बिल्कुल बंद करवा दिये थे, साथ ही पानीपत के द्वितीय युद्ध में नवघोषित हिन्दू राजा हेमू को पराजित किया था। अपने साम्राज्य के गठन करने और उत्तरी और मध्य भारत के सभी क्षेत्रों को एकछत्र अधिकार में लाने में अकबर को दो दशक लग गये थे। उसका प्रभाव लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर था और इस क्षेत्र के एक बड़े भूभाग पर सम्राट के रूप में उसने शासन किया। सम्राट के रूप में अकबर ने शक्तिशाली और बहुल हिन्दू राजपूत राजाओं से राजनयिक संबंध बनाये और उनके यहाँ विवाह भी किये। अकबर के शासन का प्रभाव देश की कला एवं संस्कृति पर भी पड़ा। उसने चित्रकारी आदि ललित कलाओं में काफ़ी रुचि दिखाई और उसके प्रासाद की भित्तियाँ सुंदर चित्रों व नमूनों से भरी पड़ी थीं। मुगल चित्रकारी का विकास करने के साथ साथ ही उसने यूरोपीय शैली का भी स्वागत किया। उसे साहित्य में भी रुचि थी और उसने अनेक संस्कृत पाण्डुलिपियों व ग्रन्थों का फारसी में तथा फारसी ग्रन्थों का संस्कृत व हिन्दी में अनुवाद भी करवाया था। अनेक फारसी संस्कृति से जुड़े चित्रों को अपने दरबार की दीवारों पर भी बनवाया। अपने आरंभिक शासन काल में अकबर की हिन्दुओं के प्रति सहिष्णुता नहीं थी, किन्तु समय के साथ-साथ उसने अपने आप को बदला और हिन्दुओं सहित अन्य धर्मों में बहुत रुचि दिखायी। उसने हिन्दू राजपूत राजकुमारियों से वैवाहिक संबंध भी बनाये। अकबर के दरबार में अनेक हिन्दू दरबारी, सैन्य अधिकारी व सामंत थे। उसने धार्मिक चर्चाओं व वाद-विवाद कार्यक्रमों की अनोखी शृंखला आरंभ की थी, जिसमें मुस्लिम आलिम लोगों की जैन, सिख, हिन्दु, चार्वाक, नास्तिक, यहूदी, पुर्तगाली एवं कैथोलिक ईसाई धर्मशस्त्रियों से चर्चाएं हुआ करती थीं। उसके मन में इन धार्मिक नेताओं के प्रति आदर भाव था, जिसपर उसकी निजि धार्मिक भावनाओं का किंचित भी प्रभाव नहीं पड़ता था। उसने आगे चलकर एक नये धर्म दीन-ए-इलाही की भी स्थापना की, जिसमें विश्व के सभी प्रधान धर्मों की नीतियों व शिक्षाओं का समावेश था। दुर्भाग्यवश ये धर्म अकबर की मृत्यु के साथ ही समाप्त होता चला गया। इतने बड़े सम्राट की मृत्यु होने पर उसकी अंत्येष्टि बिना किसी संस्कार के जल्दी ही कर दी गयी। परम्परानुसार दुर्ग में दीवार तोड़कर एक मार्ग बनवाया गया तथा उसका शव चुपचाप सिकंदरा के मकबरे में दफना दिया गया। . ये लेख कश्मीर की वादी के बारे में है। इस राज्य का लेख देखने के लिये यहाँ जायें: जम्मू और कश्मीर। एडवर्ड मॉलीनक्स द्वारा बनाया श्रीनगर का दृश्य कश्मीर (कश्मीरी: (नस्तालीक़), कॅशीर) भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे उत्तरी भौगोलिक क्षेत्र है। कश्मीर एक मुस्लिमबहुल प्रदेश है। आज ये आतंकवाद से जूझ रहा है। इसकी मुख्य भाषा कश्मीरी है। जम्मू और कश्मीर के बाक़ी दो खण्ड हैं जम्मू और लद्दाख़। .

अकबर और कश्मीर के बीच समानता

अकबर और कश्मीर आम में 7 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): भारतीय उपमहाद्वीप, मुसलमान, मुग़ल साम्राज्य, सती, सिख, कश्मीर, अफ़ग़ानिस्तान

भारतीय उपमहाद्वीप

भारतीय उपमहाद्वीप का भौगोलिक मानचित्र भारतीय उपमहाद्वीप, एशिया के दक्षिणी भाग में स्थित एक उपमहाद्वीप है। इस उपमहाद्वीप को दक्षिण एशिया भी कहा जाता है भूवैज्ञानिक दृष्टि से भारतीय उपमहाद्वीप का अधिकांश भाग भारतीय प्रस्तर (या भारतीय प्लेट) पर स्थित है, हालाँकि इस के कुछ भाग इस प्रस्तर से हटकर यूरेशियाई प्रस्तर पर भी स्थित हैं। .

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मुसलमान

मिसरी (ईजिप्ट) मुस्लिमान नमाज़ पढ रहे हैं, एक तस्वीर। मुसलमान (अरबी: مسلم، مسلمة फ़ारसी: مسلمان،, अंग्रेजी: Muslim) का मतलब वह व्यक्ति है जो इस्लाम में विश्वास रखता हो। हालाँकि मुसलमानों के आस्था के अनुसार इस्लाम ईश्वर का धर्म है और धर्म हज़रत मुहम्मद से पहले मौजूद था और जो लोग अल्लाह के धर्म का पालन करते रहे वह मुसलमान हैं। जैसे कुरान के अनुसार हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम भी मुसलमान थे। मगर आजकल मुसलमान का मतलब उसे लिया जाता है जो हज़रत मुहम्मद लाए हुए दीन का पालन करता हो और विश्वास रखता हो। मध्यकालीन मुस्लिम इतिहासकारों ने भारत को हिन्द अथवा हिन्दुस्तान कहा है । .

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मुग़ल साम्राज्य

मुग़ल साम्राज्य (फ़ारसी:, मुग़ल सलतनत-ए-हिंद; तुर्की: बाबर इम्परातोरलुग़ु), एक इस्लामी तुर्की-मंगोल साम्राज्य था जो 1526 में शुरू हुआ, जिसने 17 वीं शताब्दी के आखिर में और 18 वीं शताब्दी की शुरुआत तक भारतीय उपमहाद्वीप में शासन किया और 19 वीं शताब्दी के मध्य में समाप्त हुआ। मुग़ल सम्राट तुर्क-मंगोल पीढ़ी के तैमूरवंशी थे और इन्होंने अति परिष्कृत मिश्रित हिन्द-फारसी संस्कृति को विकसित किया। 1700 के आसपास, अपनी शक्ति की ऊँचाई पर, इसने भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश भाग को नियंत्रित किया - इसका विस्तार पूर्व में वर्तमान बंगलादेश से पश्चिम में बलूचिस्तान तक और उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में कावेरी घाटी तक था। उस समय 40 लाख किमी² (15 लाख मील²) के क्षेत्र पर फैले इस साम्राज्य की जनसंख्या का अनुमान 11 और 13 करोड़ के बीच लगाया गया था। 1725 के बाद इसकी शक्ति में तेज़ी से गिरावट आई। उत्तराधिकार के कलह, कृषि संकट की वजह से स्थानीय विद्रोह, धार्मिक असहिष्णुता का उत्कर्ष और ब्रिटिश उपनिवेशवाद से कमजोर हुए साम्राज्य का अंतिम सम्राट बहादुर ज़फ़र शाह था, जिसका शासन दिल्ली शहर तक सीमित रह गया था। अंग्रेजों ने उसे कैद में रखा और 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद ब्रिटिश द्वारा म्यानमार निर्वासित कर दिया। 1556 में, जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर, जो महान अकबर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, के पदग्रहण के साथ इस साम्राज्य का उत्कृष्ट काल शुरू हुआ और सम्राट औरंगज़ेब के निधन के साथ समाप्त हुआ, हालाँकि यह साम्राज्य और 150 साल तक चला। इस समय के दौरान, विभिन्न क्षेत्रों को जोड़ने में एक उच्च केंद्रीकृत प्रशासन निर्मित किया गया था। मुग़लों के सभी महत्वपूर्ण स्मारक, उनके ज्यादातर दृश्य विरासत, इस अवधि के हैं। .

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सती

शिव अपने त्रिशूल पर सती के शव को लेकर जाते हुए सती दक्ष प्रजापति की पुत्री और भगवान शिव की पत्नी थी। इनकी उत्पत्ति तथा अंत की कथा विभिन्न पुराणों में विभिन्न रूपों में उपलब्ध होती है। शैव पुराणों में भगवान शिव की प्रधानता के कारण शिव को परम तत्त्व तथा शक्ति (शिवा) को उनकी अनुगामिनी बताया गया है। इसी के समानांतर शाक्त पुराणों में शक्ति की प्रधानता होने के कारण शक्ति (शिवा) को परमशक्ति (परम तत्त्व) तथा भगवान शिव को उनका अनुगामी बताया गया है। श्रीमद्भागवतमहापुराण में अपेक्षाकृत तटस्थ वर्णन है। इसमें दक्ष की स्वायम्भुव मनु की पुत्री प्रसूति के गर्भ से 16 कन्याओं के जन्म की बात कही गयी है। देवीपुराण (महाभागवत) में 14 कन्याओं का उल्लेख हुआ है तथा शिवपुराण में दक्ष की साठ कन्याओं का उल्लेख हुआ है जिनमें से 27 का विवाह चंद्रमा से हुआ था। इन कन्याओं में एक सती भी थी। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्मा जी को भगवान शिव के विवाह की चिंता हुई तो उन्होंने भगवान विष्णु की स्तुति की और विष्णु जी ने प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी को बताया कि यदि भगवान शिव का विवाह करवाना है तो देवी शिवा की आराधना कीजिए। उन्होंने बताया कि दक्ष से कहिए कि वह भगवती शिवा की तपस्या करें और उन्हें प्रसन्न करके अपनी पुत्री होने का वरदान मांगे। यदि देवी शिवा प्रसन्न हो जाएगी तो सारे काम सफल हो जाएंगे। उनके कथनानुसार ब्रह्मा जी ने दक्ष से भगवती शिवा की तपस्या करने को कहा और प्रजापति दक्ष ने देवी शिवा की घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवा ने उन्हें वरदान दिया कि मैं आप की पुत्री के रूप में जन्म लूंगी। मैं तो सभी जन्मों में भगवान शिव की दासी हूँ; अतः मैं स्वयं भगवान शिव की तपस्या करके उन्हें प्रसन्न करूँगी और उनकी पत्नी बनूँगी। साथ ही उन्होंने दक्ष से यह भी कहा कि जब आपका आदर मेरे प्रति कम हो जाएगा तब उसी समय मैं अपने शरीर को त्याग दूंगी, अपने स्वरूप में लीन हो जाऊँगी अथवा दूसरा शरीर धारण कर लूँगी। प्रत्येक सर्ग या कल्प के लिए दक्ष को उन्होंने यह वरदान दे दिया। तदनुसार भगवती शिवा सती के नाम से दक्ष की पुत्री के रूप में जन्म लेती है और घोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न करती है तथा भगवान शिव से उनका विवाह होता है। इसके बाद की कथा श्रीमद्भागवतमहापुराण में वर्णित कथा के काफी हद तक अनुरूप ही है। प्रयाग में प्रजापतियों के एक यज्ञ में दक्ष के पधारने पर सभी देवतागण खड़े होकर उन्हें आदर देते हैं परंतु ब्रह्मा जी के साथ शिवजी भी बैठे ही रह जाते हैं। लौकिक बुद्धि से भगवान शिव को अपना जामाता अर्थात पुत्र समान मानने के कारण दक्ष उनके खड़े न होकर अपने प्रति आदर प्रकट न करने के कारण अपना अपमान महसूस करता है और इसी कारण उन्होंने भगवान शिव के प्रति अनेक कटूक्तियों का प्रयोग करते हुए उन्हें यज्ञ भाग से वंचित होने का शाप दे दिया। इसी के बाद दक्ष और भगवान शिव में मनोमालिन्य उत्पन्न हो गया। तत्पश्चात अपनी राजधानी कनखल में दक्ष के द्वारा एक विराट यज्ञ का आयोजन किया गया जिसमें उन्होंने न तो भगवान शिव को आमंत्रित किया और न ही अपनी पुत्री सती को। सती ने रोहिणी को चंद्रमा के साथ विमान से जाते देखा और सखी के द्वारा यह पता चलने पर कि वे लोग उन्हीं के पिता दक्ष के विराट यज्ञ में भाग लेने जा रहे हैं, सती का मन भी वहाँ जाने को व्याकुल हो गया। भगवान शिव के समझाने के बावजूद सती की व्याकुलता बनी रही और भगवान शिव ने अपने गणों के साथ उन्हें वहाँ जाने की आज्ञा दे दी। परंतु वहाँ जाकर भगवान शिव का यज्ञ-भाग न देखकर सती ने घोर आपत्ति जतायी और दक्ष के द्वारा अपने (सती के) तथा उनके पति भगवान शिव के प्रति भी घोर अपमानजनक बातें कहने के कारण सती ने योगाग्नि से अपने शरीर को भस्म कर डाला। शिवगणों के द्वारा उत्पात मचाये जाने पर भृगु ऋषि ने दक्षिणाग्नि में आहुति दी और उससे उत्पन्न ऋभु नामक देवताओं ने शिवगणों को भगा दिया। इस समाचार से अत्यंत कुपित भगवान शिव ने अपनी जटा से वीरभद्र को उत्पन्न किया और वीरभद्र ने गण सहित जाकर दक्ष यज्ञ का विध्वंस कर डाला; शिव के विरोधी देवताओं तथा ऋषियों को यथायोग्य दंड दिया तथा दक्ष के सिर को काट कर हवन कुंड में जला डाला। तत्पश्चात देवताओं सहित ब्रह्मा जी के द्वारा स्तुति किए जाने से प्रसन्न भगवान शिव ने पुनः यज्ञ में हुई क्षतियों की पूर्ति की तथा दक्ष का सिर जल जाने के कारण बकरे का सिर जुड़वा कर उन्हें भी जीवित कर दिया। फिर उनके अनुग्रह से यज्ञ पूर्ण हुआ। शाक्त मत में शक्ति की सर्वप्रधानता होने के कारण ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव तीनों को शक्ति की कृपा से ही उत्पन्न माना गया है। देवीपुराण (महाभागवत) में वर्णन हुआ है कि पूर्णा प्रकृति जगदंबिका ने ही ब्रहमा, विष्णु और महेश तीनों को उत्पन्न कर उन्हें सृष्टि कार्यों में नियुक्त किया। उन्होंने ही ब्रहमा को सृजनकर्ता, विष्णु को पालनकर्ता तथा अपनी इच्छानुसार शिव को संहारकर्ता होने का आदेश दिया। आदेश-पालन के पूर्व इन तीनों ने उन परमा शक्ति पूर्णा प्रकृति को ही अपनी पत्नी के रूप में पाने के लिए तप आरंभ कर दिया। जगदंबिका द्वारा परीक्षण में असफल होने के कारण ब्रह्मा एवं विष्णु को पूर्णा प्रकृति अंश रूप में पत्नी बनकर प्राप्त हुई तथा भगवान शिव की तपस्या से परम प्रसन्न होकर जगदंबिका ने स्वयं जन्म लेकर उनकी पत्नी बनने का आश्वासन दिया। तदनुसार ब्रह्मा जी के द्वारा प्रेरित किए जाने पर दक्ष ने उसी पूर्णा प्रकृति जगदंबिका की तपस्या की और उनके तप से प्रसन्न होकर जगदंबिका ने उनकी पुत्री होकर जन्म लेने का वरदान दिया तथा यह भी बता दिया कि जब दक्ष का पुण्य क्षीण हो जाएगा तब वह शक्ति जगत को विमोहित करके अपने धाम को लौट जाएगी। उक्त वरदान के अनुरूप पूर्णा प्रकृति ने सती के नाम से दक्ष की पुत्री रूप में जन्म ग्रहण किया और उसके विवाह योग्य होने पर दक्ष ने उसके विवाह का विचार किया। दक्ष अपनी लौकिक बुद्धि से भगवान शिव के प्रभाव को न समझने के कारण उनके वेश को अमर्यादित मानते थे और उन्हें किसी प्रकार सती के योग्य वर नहीं मानते थे। अतः उन्होंने विचार कर भगवान शिव से शून्य स्वयंवर सभा का आयोजन किया और सती से आग्रह किया कि वे अपनी पसंद के अनुसार वर चुन ले। भगवान शिव को उपस्थित न देख कर सती ने 'शिवाय नमः' कह कर वरमाला पृथ्वी पर डाल दी तथा महेश्वर शिव स्वयं उपस्थित होकर उस वरमाला को ग्रहण कर सती को अपनी पत्नी बनाकर कैलाश लौट गये। दक्ष बहुत दुखी हुए। अपनी इच्छा के विरुद्ध सती के द्वारा शिव को पति चुन लिए जाने से दक्ष का मन उन दोनों के प्रति क्षोभ से भर गया। इसीलिए बाद में अपनी राजधानी में आयोजित विराट यज्ञ में दक्ष ने शिव एवं सती को आमंत्रित नहीं किया। फिर भी सती ने अपने पिता के यज्ञ में जाने का हठ किया और शिव जी के द्वारा बार-बार रोकने पर अत्यंत कुपित होकर उन्हें अपना भयानक रूप दिखाया। इससे भयाक्रांत होकर शिवजी के भागने का वर्णन हुआ है और उन्हें रोकने के लिए जगदंबिका ने 10 रूप (दश महाविद्या का रूप) धारण किया। फिर शिवजी के पूछने पर उन्होंने अपने दशों रूपों का परिचय दिया। फिर शिव जी द्वारा क्षमा याचना करने के पश्चात पूर्णा प्रकृति मुस्कुरा कर अपने पिता दक्ष के यज्ञ में जाने को उत्सुक हुई तब शिव जी ने अपने गमों को कह कर बहुसंख्यक सिंहों से जुते रथ मँगवाकर उस पर आसीन करवाकर भगवती को ससम्मान दक्ष के घर भेजा। शेष कथा कतिपय अंतरों के साथ पूर्ववर्णित कथा के प्रायः अनुरूप ही है, परंतु इस कथा में कुपित सती छायासती को लीला का आदेश देकर अंतर्धान हो जाती है और उस छायासती के भस्म हो जाने पर बात खत्म नहीं होती बल्कि शिव के प्रसन्न होकर यज्ञ पूर्णता का संकेत दे देने के बाद छायासती की लाश सुरक्षित तथा देदीप्यमान रूप में दक्ष की यज्ञशाला में ही पुनः मिल जाती है और फिर देवी शक्ति द्वारा पूर्व में ही भविष्यवाणी रूप में बता दिए जाने के बावजूद लौकिक पुरुष की तरह शिवजी विलाप करते हैं तथा सती की लाश सिर पर धारण कर विक्षिप्त की तरह भटकते हैं। इससे त्रस्त देवताओं को त्राण दिलाने तथा परिस्थिति को सँभालने हेतु भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र से सती की लाश को क्रमशः खंड-खंड कर काटते जाते हैं। इस प्रकार सती के विभिन्न अंग तथा आभूषणों के विभिन्न स्थानों पर गिरने से वे स्थान शक्तिपीठ की महिमा से युक्त हो गये। इस प्रकार 51 शक्तिपीठों का निर्माण हो गया। फिर सती की लाश न रह जाने पर भगवान् शिव ने जब व्याकुलतापूर्वक देवताओं से प्रश्न किया तो देवताओं ने उन्हें सारी बात बतायी। इस पर निःश्वास छोड़ते हुए भगवान् शिव ने भगवान विष्णु को त्रेता युग में सूर्यवंश में अवतार लेकर इसी प्रकार पत्नी से वियुक्त होने का शाप दे दिया और फिर स्वयं 51 शक्तिपीठों में सर्वप्रधान 'कामरूप' में जाकर भगवती की आराधना की और उस पूर्णा प्रकृति के द्वारा अगली बार हिमालय के घर में पार्वती के रूप में पूर्णावतार लेकर पुनः उनकी पत्नी बनने का वर प्राप्त हुआ। इस प्रकार यही सती अगले जन्म में पार्वती के रूप में हिमालय की पुत्री बनकर पुनः भगवान शिव को पत्नी रूप में प्राप्त हो गयी। .

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सिख

भारतीय सेना के सिख रेजिमेन्ट के सैनिक सिख धर्म के अनुयायियों को सिख कहते हैं। इसे कभी-कभी सिक्ख भी लिखा जाता है। इनके पहले गुरू गुरु नानक जी हैं। गुरु ग्रंथ साहिब सिखों का पवित्र ग्रन्थ है। इनके प्रार्थना स्थल को गुरुद्वारा कहते हैं। हिन्दू धर्म की रक्षा में तथा भारत की आजादी की लड़ाई में और भारत की आर्थिक प्रगति में सिखों का बहुत बड़ा योगदान है। .

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कश्मीर

ये लेख कश्मीर की वादी के बारे में है। इस राज्य का लेख देखने के लिये यहाँ जायें: जम्मू और कश्मीर। एडवर्ड मॉलीनक्स द्वारा बनाया श्रीनगर का दृश्य कश्मीर (कश्मीरी: (नस्तालीक़), कॅशीर) भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे उत्तरी भौगोलिक क्षेत्र है। कश्मीर एक मुस्लिमबहुल प्रदेश है। आज ये आतंकवाद से जूझ रहा है। इसकी मुख्य भाषा कश्मीरी है। जम्मू और कश्मीर के बाक़ी दो खण्ड हैं जम्मू और लद्दाख़। .

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अफ़ग़ानिस्तान

अफ़ग़ानिस्तान इस्लामी गणराज्य दक्षिणी मध्य एशिया में अवस्थित देश है, जो चारो ओर से जमीन से घिरा हुआ है। प्रायः इसकी गिनती मध्य एशिया के देशों में होती है पर देश में लगातार चल रहे संघर्षों ने इसे कभी मध्य पूर्व तो कभी दक्षिण एशिया से जोड़ दिया है। इसके पूर्व में पाकिस्तान, उत्तर पूर्व में भारत तथा चीन, उत्तर में ताजिकिस्तान, कज़ाकस्तान तथा तुर्कमेनिस्तान तथा पश्चिम में ईरान है। अफ़ग़ानिस्तान रेशम मार्ग और मानव प्रवास का8 एक प्राचीन केन्द्र बिन्दु रहा है। पुरातत्वविदों को मध्य पाषाण काल ​​के मानव बस्ती के साक्ष्य मिले हैं। इस क्षेत्र में नगरीय सभ्यता की शुरुआत 3000 से 2,000 ई.पू.

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अकबर और कश्मीर के बीच तुलना

अकबर 180 संबंध है और कश्मीर 59 है। वे आम 7 में है, समानता सूचकांक 2.93% है = 7 / (180 + 59)।

संदर्भ

यह लेख अकबर और कश्मीर के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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