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अंगयारपूज्ये

सूची अंगयारपूज्ये

अंगयारपूज्ये गढ़वाल क्षेत्र का एक त्यौहार है। यह गाँवों में एक छोटे से त्योहार के रूप में मनाया जाता है। इसमे अंगयार नाम पौधों को तोड़ने का रिवाज है (क्योंकि ये अंगयार नाम के पौधे गाय को नुकसान पहुँचाते है) फिर गांव के बड़े छोटे लोग खाद्य समाग्री गाँव से ही एकत्रित करते है और खाते है। फिर एक खेल खेला जाता जिसमे कुछ लोग अंगलियार बनते है और कुछ लोग उन्हे गाय के सूखे गोबर से भगाते हैं। श्रेणी:त्यौहार श्रेणी:उत्तराखण्ड की संस्कृति श्रेणी:चित्र जोड़ें.

3 संबंधों: गढ़वाल, गाय, गोबर

गढ़वाल

कोई विवरण नहीं।

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गाय

अभारतीय गाय जर्सीगाय गाय एक महत्त्वपूर्ण पालतू जानवर है जो संसार में प्राय: सर्वत्र पाई जाती है। इससे उत्तम किस्म का दूध प्राप्त होता है। हिन्दू, गाय को 'माता' (गौमाता) कहते हैं। इसके बछड़े बड़े होकर गाड़ी खींचते हैं एवं खेतों की जुताई करते हैं। भारत में वैदिक काल से ही गाय का विशेष महत्त्व रहा है। आरंभ में आदान प्रदान एवं विनिमय आदि के माध्यम के रूप में गाय उपयोग होता था और मनुष्य की समृद्धि की गणना उसकी गोसंख्या से की जाती थी। हिन्दू धार्मिक दृष्टि से भी गाय पवित्र मानी जाती रही है तथा उसकी हत्या महापातक पापों में की जाती है।; गाय व भैंस में गर्भ से संबन्धित जानकारी.

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गोबर

गोबर गोबर शब्द का प्रयोग गाय, बैल, भैंस या भैंसा के मल के लिये प्राय: होता है। घास, भूसा, खली आदि जो कुछ चौपायों द्वारा खाया जाता है उसके पाचन में कितने ही रासायनिक परिवर्तन होते हैं तथा जो पदार्थ अपचित रह जाते हैं वे शरीर के अन्य अपद्रव्यों के साथ गोबर के रूप में बाहर निकल जाते हैं। यह साधारणत: नम, अर्द्ध ठोस होता है, पर पशु के भोजन के अनुसार इसमें परिवर्तन भी होते रहते हैं। केवल हरी घास या अधिक खली पर निर्भर रहनेवाले पशुओं का गोबर पतला होता है। इसका रंग कुछ पीला एवं गाढ़ा भूरा होता है। इसमें घास, भूसे, अन्न के दानों के टुकड़े आदि विद्यमान रहते हैं और सरलता से पहचाने जा सकते हैं। सूखने पर यह कड़े पिंड में बदल जाता है। .

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