लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
डाउनलोड
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला

सूची अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला

अंतर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला (अ॰ध्व॰व॰, अंग्रेज़ी: International Phonetic Alphabet, इंटरनैशनल फ़ोनॅटिक ऐल्फ़ाबॅट) एक ऐसी लिपि है जिसमें विश्व की सारी भाषाओं की ध्वनियाँ लिखी जा सकती हैं। इसके हर अक्षर और उसकी ध्वनि का एक-से-एक का सम्बन्ध होता है। आरम्भ में इसके अधिकतर अक्षर रोमन लिपि से लिए गए थे, लेकिन जैसे-जैसे इसमें विश्व की बहुत सी भाषाओँ की ध्वनियाँ जोड़ी जाने लगी तो बहुत से यूनानी लिपि से प्रेरित अक्षर लिए गए और कई बिलकुल ही नए अक्षरों का इजाद किया गया। इसमें सन् २०१० तक १६० से अधिक ध्वनियों के लिए चिह्न दर्ज किए जा चुके थे, लेकिन किसी भी एक भाषा को दर्शाने के लिए इस वर्णमाला का एक भाग की ही ज़रुरत होती है। इस प्रणाली के ध्वन्यात्मक प्रतिलेखन (ट्रान्सक्रिप्शन) में सूक्ष्म प्रतिलेखन के चिन्हों के बीच में और स्थूल प्रतिलेखन / / के चिन्हों के अन्दर लिखे जाते हैं। इसकी नियामक अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक संघ है। उदाहरण के लिए.

50 संबंधों: तालव्य नासिक्य, तालव्य व्यंजन, थ़, दन्त्य व्यंजन, दन्त्य और वर्त्स्य उत्क्षिप्त, दन्त्य, वर्त्स्य और पश्वर्त्स्य नासिक्य, दन्त्यौष्ठ्य नासिक्य, दन्त्यौष्ठ्य व्यंजन, द्वयोष्ठ्य लुण्ठित, द्वयोष्ठ्य व्यंजन, नासिक्य व्यंजन, पश्वर्त्स्य व्यंजन, पश्वस्वर, प्रतिलेखन, मध्यस्वर, महाप्राण और अल्पप्राण व्यंजन, मूर्धन्य नासिक्य, मूर्धन्य व्यंजन, मूर्धन्य उत्क्षिप्त, यूनानी वर्णमाला, रोमन लिपि, लिपि, लुण्ठित व्यंजन, संघर्षी व्यंजन, स्पर्श व्यंजन, स्वर, हिन्दी, घोष (स्वनविज्ञान), घोष तालव्य स्पर्श, घोष दन्त्य संघर्षी, घोष द्वयोष्ठ्य संघर्षी, घोष द्वयोष्ठ्य स्पर्श, घोष पश्वर्त्स्य संघर्षी, वर्त्स्य व्यंजन, व्याकरण, व्यंजन, कण्ठ्य नासिक्य, कण्ठ्य व्यंजन, काकलीय व्यंजन, अनुनासिकीकरण, अलिजिह्वीय नासिक्य, अलिजिह्वीय व्यंजन, अघोष तालव्य स्पर्श, अघोष द्वयोष्ठ्य संघर्षी, अघोष द्वयोष्ठ्य स्पर्श, अघोष पश्वर्त्स्य संघर्षी, अघोष वर्त्स्य नासिक्य, अग्रस्वर, अंग्रेज़ी भाषा, उत्क्षिप्त व्यंजन

तालव्य नासिक्य

तालव्य नासिक्य (palatal nasal) एक प्रकार का व्यंजन है जो कई भाषाओं में पाया जाता है, लेकिन हिन्दी और अंग्रेज़ी में नहीं पाया जाता। इसे अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में 'ɲ' लिखा जाता है। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और तालव्य नासिक्य · और देखें »

तालव्य व्यंजन

तालव्य व्यंजन वो व्यंजन होते हैं जिनके उच्चारण में जीभ के पिछले भाग को तालू से संघर्ष करना पड़ता है। च वर्ग के समस्त अक्षर इसी निसर्ग के हैं और इन्हें स्पर्श संघर्षी का भी अभिधान देते हैं। जैसे कि: "च" "छ" "ज" "झ" "ञ"। स्मरण रहे कि बिन्दु वाले अक्षर भी इसी श्रेणी से संबंधित हैं। जैसे कि "च़" का उच्चारण "tch" के समान होगा, ठीक वैसे ही "छ़' की ध्वनि "tchh" जैसी होगी। और ये दोनों अक्षर विदेशी भाषा की ध्वनियों को दर्शाने के लिए प्रयुक्त होते हैं। साथ ही साथ ध्यान देने की आवश्यकता है कि "ज़" या "झ़" तालव्य ध्वनियाँ नहीं हैं बल्कि यह "ऊष्म ध्वनियाँ" मानी जाती हैं। * श्रेणी:उच्चारण के ढंग.

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और तालव्य व्यंजन · और देखें »

थ़

थ़ की ध्वनि सुनिए - यह थ से भिन्न है थ़ देवनागरी लिपि का एक वर्ण है जिसके उच्चारण को अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में θ के चिन्ह से लिखा जाता है। मानक हिंदी और मानक उर्दू में इसका प्रयोग नहीं होता है, लेकिन हिंदी की कुछ पश्चिमी उपभाषाओं में इसका 'थ' के साथ सहस्वानिकी संबंध है। मुख्य रूप से इसका प्रयोग पहाड़ी भाषों को देवनागरी में लिखने के लिए होता है। अंग्रेज़ी के कईं शब्दों में इसका प्रयोग होता है, जैसे की 'थ़िन' (thin, यानि पतला)। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और थ़ · और देखें »

दन्त्य व्यंजन

दन्त्य ध्वनियाँ वो होती हैं जिनके उच्चारण में जीभ दांतों के पिछले भाग को छूती है। जैसे कि "त","थ", "द", "ध", " न"। याद रहे कि बिन्दु वाला "ऩ" जिसका ठीक उच्चारण बहुत कम लोग जानते हैं, वो भी इसी श्रेणी से संबद्ध है। "ऩ" की ध्वनि लगभग न होने के बराबर पाई जाती है लेकिन आम तौर पर इसका उच्चारण भारत के गायक अपनी गायकी में कर जाते हैं और उन्हें पता भी नहीं चलता। जब आप कभी राहत फ़तह अली खान का कोई गीत सुनेंगे तो ध्यान दीजिए कि वो "न" को बड़ी कोमलता से उच्चारित कर जाता है और उसकी ध्वनि कुछ "र्ँ" करके आती है। वही "ऩ" ठीक उच्चारण है। और ये लगभग दंतव्य ध्वनि है। श्रेणी:व्यंजन (भाषा) * श्रेणी:उच्चारण के ढंग.

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और दन्त्य व्यंजन · और देखें »

दन्त्य और वर्त्स्य उत्क्षिप्त

दन्त्य और वर्त्स्य उत्क्षिप्त (Dental and alveolar flaps) एक प्रकार का उत्क्षिप्त व्यंजन है जो विश्व की कई भाषाओं में पाया जाता है। इसे हिन्दी में 'र' लिखा जाता है और अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में इसका चिन्ह 'ɾ' है। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और दन्त्य और वर्त्स्य उत्क्षिप्त · और देखें »

दन्त्य, वर्त्स्य और पश्वर्त्स्य नासिक्य

वर्त्स्य नासिक्य (alveolar nasal) एक प्रकार का व्यंजन है जो कई भाषाओं में पाया जाता है। हिन्दी में इसे "न" द्वारा लिखा जाता है। इसे अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में 'n' लिखा जाता है। हिन्दी में इसका उच्चारण एक वर्त्स्य व्यंजन की तरह होता है लेकिन यह ध्वनि दन्त्य व्यंजन की तरह भी बनाई जा सकती है - हिन्दी भाषी इसको अपनी जिह्वा की नोक को ऊपर के दांतों से छूकर "न" बोलकर देख सकते हैं। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और दन्त्य, वर्त्स्य और पश्वर्त्स्य नासिक्य · और देखें »

दन्त्यौष्ठ्य नासिक्य

दन्त्यौष्ठ्य नासिक्य (labiodental nasal) एक प्रकार का व्यंजन है। यह ध्वनि अक्सर 'फ़' या 'व' से पहले 'म' उच्चारित करते हुए स्वयं ही उत्पन्न हो जाती है (यानि शुद्ध 'म' के स्थान पर इसे उच्चारित कर दिया जाता है)। उदाहरण के लिए अक्सर अंग्रेज़ी के 'सिम्फ़नी' (symphony) शब्द में 'म' को और हिन्दी के 'संवाद' शब्द में अनुनासिक को इस रूप में उच्चारित कर दिया जाता है। इसे अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में 'ɱ' लिखा जाता है। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और दन्त्यौष्ठ्य नासिक्य · और देखें »

दन्त्यौष्ठ्य व्यंजन

स्वनविज्ञान में दन्त्यौष्ठ्य व्यंजन (labiodental consonant) ऐसा व्यंजन होता है जिसके उच्चारण के लिए एक होंठ को दांतों से जोड़ा या छुआ जाता है। इसमें "फ़" शामिल है। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और दन्त्यौष्ठ्य व्यंजन · और देखें »

द्वयोष्ठ्य लुण्ठित

द्वयोष्ठ्य लुण्ठित (bilabial trill) एक प्रकार का व्यंजन है। यह ध्वनि हिन्दी और अंग्रेज़ी में नहीं पाई जाती, हालांकि इसे भारत के नागालैण्ड राज्य के आओ भाषा समूह की संगताम भाषा में पाया जाता है। इसके अलावा, यह नया गिनी की केले भाषा, अफ़्रीका में कैमरून की कोम भाषा और प्रशांत महासागर में स्थित वानूआतू देश की लिंगारक भाषा में भी पाया जाता है। इसे अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में 'ʙ' लिखा जाता है। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और द्वयोष्ठ्य लुण्ठित · और देखें »

द्वयोष्ठ्य व्यंजन

स्वनविज्ञान में द्वयोष्ठ्य व्यंजन (bilabial consonant) ऐसा व्यंजन होता है जिसे उच्चारित करने के लिए दोनों होंठों को एक-दूसरे से जोड़ा या छुआ जाता है। इसमें 'ब', 'प' और 'म' शामिल हैं। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और द्वयोष्ठ्य व्यंजन · और देखें »

नासिक्य व्यंजन

स्वनविज्ञान में नासिक्य व्यंजन (nasal consonant) ऐसा व्यंजन होता है जिसे नरम तालू को नीचे लाकर उत्पन्न किया जाए और जिसमें मुँह से वायु निकलने पर अवरोध हो लेकिन नासिकाओं से निकलने की छूट हो। न, म और ण ऐसे तीन व्यंजन हैं। नासिक्य व्यंजन लगभग हर मानव भाषा में पाए जाते हैं। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और नासिक्य व्यंजन · और देखें »

पश्वर्त्स्य व्यंजन

स्वनविज्ञान में पश्वर्त्स्य व्यंजन (post-alveolar consonant) ऐसा व्यंजन होता है जिसे उच्चारित करने के लिए जिह्वा को ऊपर के वर्त्स्य कटक के पीछे छुआ जाता है या पास लाया जाता है, यानि जीह्वा को वर्त्स्य व्यंजनों की तुलना में थोड़ा सा पीछे लाया जाता है। पश्वर्त्स्य व्यंजनों में 'श', 'च' और 'ज' शामिल हैं। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और पश्वर्त्स्य व्यंजन · और देखें »

पश्वस्वर

जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का पश्च भाग मदद करता है, उन्हें पश्च स्वर कहते है।.

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और पश्वस्वर · और देखें »

प्रतिलेखन

प्रतिलेखन का अर्थ "प्रतिलिपि या नकल " होता है और इसे अंग्रेज़ी में ट्रांस्क्रिप्शन (transcription) कॅहते हैं।.

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और प्रतिलेखन · और देखें »

मध्यस्वर

जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का मध्य भाग मदद करता है, उन्हें मध्य स्वर कहते है।.

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और मध्यस्वर · और देखें »

महाप्राण और अल्पप्राण व्यंजन

भाषाविज्ञान में महाप्राण व्यंजन वह व्यंजन होतें हैं जिन्हें मुख से वायु-प्रवाह के साथ बोला जाता है, जैसे की 'ख', 'घ', 'झ' और 'फ'। अल्पप्राण व्यंजन वह व्यंजन होतें हैं जिन्हें बहुत कम वायु-प्रवाह से बोला जाता है जैसे की 'क', 'ग', 'ज' और 'प'। देवनागरी लिपि में बहुत से वर्णों में महाप्राण और अल्पप्राण के जोड़े होते हैं जैसे 'क' और 'ख', 'च' और 'छ' और 'ब' और 'भ'। कुछ भाषाएँ हैं, जैसे के तमिल, जिनमें महाप्राण व्यंजन होते ही नहीं और कुछ भाषाएँ ऐसी भी हैं जिनमें महाप्राण और अल्पप्राण व्यंजन दोनों प्रयोग तो होतें हैं लेकिन बोलने वालों को दोनों एक से प्रतीत होतें हैं, जैसे अंग्रेज़ी।, Thomas Egenes, pp.

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और महाप्राण और अल्पप्राण व्यंजन · और देखें »

मूर्धन्य नासिक्य

मूर्धन्य नासिक्य (retroflex nasal) एक प्रकार का व्यंजन है जो कई भाषाओं में पाया जाता है, और हिन्दी में इसके लिए 'ण' प्रयोग होता है। इसे अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में 'ɳ' लिखा जाता है। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और मूर्धन्य नासिक्य · और देखें »

मूर्धन्य व्यंजन

मूर्धन्य व्यंजन (retroflex consonant) ऐसे किरीट व्यंजन (यानि जिह्वा के लचीले के सामने के हिस्से से उच्चारित) होते हैं जो जिह्वा द्वारा वर्त्स्य कटक और कठोर तालू के बीच उच्चारित होते हैं। इनमें "ट", "ठ", "ड", "ढ", "ड़" और "ण" शामिल हैं। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और मूर्धन्य व्यंजन · और देखें »

मूर्धन्य उत्क्षिप्त

मूर्धन्य उत्क्षिप्त (retroflex flap) एक प्रकार का व्यंजन है। यह हिन्दी में 'ड़' द्वारा लिखा जाता है। इसे अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में 'ɽ' लिखा जाता है। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और मूर्धन्य उत्क्षिप्त · और देखें »

यूनानी वर्णमाला

यूनानी वर्णमाला (Greek alphabet) चौबीस अक्षरों की वर्ण व्यवस्था है जिनके प्रयोग से यूनानी भाषा को आठवीं सदी ईसा-पूर्व से लिखा जा रहा है। प्रत्येक स्वर एवं व्यंजन लिए पृथक चिन्ह वाली यह पहली एवं प्राचीनतम वर्णमाला है। यह वर्णमाला फ़ोनीशियाई वर्णमाला से उत्पन्न हुई थी और यूरोप की कई वर्ण-व्यवस्थाएँ इसी से जन्मी हैं। अंग्रेज़ी लिखने के लिये प्रयुक्त रोमन लिपि तथा रूसी भाषा लिखने के लिए प्रयोग की जाने वाली सीरिलिक वर्णमाला दोनों यूनानी लिपि से जन्मी हैं। दूसरी शताब्दी ईसापूर्व के बाद गणितज्ञों ने यूनानी अक्षरों को अंक दर्शाने के लिए भी प्रयोग करना शुरू कर दिया। यूनानी वर्णों का प्रयोग विज्ञान के कई क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे भौतिकी में तत्वों के नाम, सितारों के नाम, बिरादरी एवं साथी सम्प्रदाय के नाम, ऊष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के नाम के लिए। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और यूनानी वर्णमाला · और देखें »

रोमन लिपि

रोमन लिपि लिखावट का वो तरीका है जिसमें अंग्रेज़ी सहित पश्चिमी और मध्य यूरोप की सारी भाषाएँ लिखी जाती हैं, जैसे जर्मन, फ़्रांसिसी, स्पैनिश, पुर्तगाली, इतालवी, डच, नॉर्वेजियन, स्वीडिश, रोमानियाई, इत्यादि। ये बायें से दायें लिखी और पढ़ी जाती है। अंग्रेज़ी के अलावा लगभग सारी यूरोपीय भाषाएँ रोमन लिपि के कुछ अक्षरों पर अतिरिक्त चिन्ह भी प्रयुक्त करते हैं। रोमन लिपि के कुछ अक्शर। रोमन लिपि के कुछ अक्शर .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और रोमन लिपि · और देखें »

लिपि

लिपि या लेखन प्रणाली का अर्थ होता है किसी भी भाषा की लिखावट या लिखने का ढंग। ध्वनियों को लिखने के लिए जिन चिह्नों का प्रयोग किया जाता है, वही लिपि कहलाती है। लिपि और भाषा दो अलग अलग चीज़ें होती हैं। भाषा वो चीज़ होती है जो बोली जाती है, लिखने को तो उसे किसी भी लिपि में लिख सकते हैं। किसी एक भाषा को उसकी सामान्य लिपि से दूसरी लिपि में लिखना, इस तरह कि वास्तविक अनुवाद न हुआ हो, इसे लिप्यन्तरण कहते हैं। चीनी लिपि (चित्रलिपि) यद्यपि संसार भर में प्रयोग हो रही भाषाओं की संख्या अब भी हजारों में है, तथापि इस समय इन भाषाओं को लिखने के लिये केवल लगभग दो दर्जन लिपियों का ही प्रयोग हो रहा है। और भी गहराई में जाने पर पता चलता है कि संसार में केवल तीन प्रकार की ही मूल लिपियाँ (या लिपि परिवार) है-.

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और लिपि · और देखें »

लुण्ठित व्यंजन

लुण्ठित व्यंजन (trill consonant) ऐसा व्यंजन वर्ण होता है जिसमें मुँह के एक सक्रीय उच्चारण स्थान और किसी अन्य स्थिर उच्चारण स्थान के बीच कंपकंपी या थरथराहट कर के व्यंजन की ध्वनि पैदा की जाती है। हिन्दी में इसका सबसे बड़ा उदाहरण "र" की ध्वनि है जिसमें जिह्वा का सबसे आगे का भाग कंपकंपाया या थरथराया जाता है। इसके अलावा कई अन्य लुण्ठित व्यंजन सम्भव हैं जो अन्य भाषाओं में तो पाए जाते हैं लेकिन हिन्दी में नहीं। दोनों होंठो को जोड़कर भी फड़फड़ाने से एक लुण्ठित व्यंजन की ध्वनि बनती है जिसका अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में चिन्ह /ʙ/ है। नया गिनी की केले भाषा में "म्बुलिम" (जिसमें 'ब' के स्थान पर होंठो को फड़फड़ाकर लुण्ठित ध्वनि बनाएँ, उच्चारण) का अर्थ "मुख" होता है। ऐसी भी लुण्ठित ध्वनियाँ हैं जिनका प्रयोग किसी मानव भाषा में न होने के बावजूद लगभग सभी मानव उनसे अवगत हैं, मसलन खर्राटों की आवाज़ भी एक लुण्ठित व्यंजन है। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और लुण्ठित व्यंजन · और देखें »

संघर्षी व्यंजन

संघर्षी व्यंजन (fricative consonant) ऐसा व्यंजन वर्ण होता है जिसमें मुँह के दो उच्चारण स्थानों को पास लाकर एक बहुत ही तंग खोल से हवा को बाहर धलेका जाए। मसलन निचले होंठ को ऊपर के दाँत से जोड़ने से "फ़" की ध्वनि या जिह्वा के पिछ्ले हिस्से को मुँह की छत के पिछले हिस्से से जोड़ने से "ख़" की ध्वनि (ध्यान दें कि बिना बिन्दु वाला ख एक संघर्षी व्यंजन नहीं है)। इसी तरह श, ष, थ़ (बिन्दु वाला), झ़ (बिन्दु वाला) और ज़ भी संघर्षी व्यंजन हैं। संघर्षी व्यंजनों कि विशेषता है कि उनकी ध्वनि को वायु-प्रवाह जारी रखकर लम्बे समय तक बिना रुके शुद्ध रूप से जारी रखा जा सकता है। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और संघर्षी व्यंजन · और देखें »

स्पर्श व्यंजन

स्वनविज्ञान में स्पर्श व्यंजन (plosive consonant या stop consonant) ऐसा व्यंजन होता है जिसमें व्यंजन उच्चारित करते हुए मुख के किन्हीं दो भागों का स्पर्श कराने से वायु-प्रवाह पूरी तरह से रोक दिया जाए। उदाहरण के लिए 'ब' और 'प' में होंठ जोड़कर, 'क' और 'ग' में गले में वायु-बहाव रोककर, 'त' और 'द' में जिह्वा को दांतों से छुआ कर, तथा 'ट' और 'ड' में जिह्वा को तालू से छू कर यह व्यंजन उच्चारित करे जाते हैं। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और स्पर्श व्यंजन · और देखें »

स्वर

यह लेख संगीत से सम्बन्धित 'स्वर' के बारे में है। मानव एवं अन्य स्तनपोषी प्राणियों के आवाज के बारे में जानकारी के लिए देखें - स्वर (मानव का) ---- संगीत में वह शब्द जिसका कोई निश्चित रूप हो और जिसकी कोमलता या तीव्रता अथवा उतार-चढ़ाव आदि का, सुनते ही, सहज में अनुमान हो सके, स्वर कहलाता है। भारतीय संगीत में सात स्वर (notes of the scale) हैं, जिनके नाम हैं - षड्ज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत व निषाद। यों तो स्वरों की कोई संख्या बतलाई ही नहीं जा सकती, परंतु फिर भी सुविधा के लिये सभी देशों और सभी कालों में सात स्वर नियत किए गए हैं। भारत में इन सातों स्वरों के नाम क्रम से षड्ज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद रखे गए हैं जिनके संक्षिप्त रूप सा, रे ग, म, प, ध और नि हैं। वैज्ञानिकों ने परीक्षा करके सिद्ध किया है कि किसी पदार्थ में २५६ बार कंप होने पर षड्ज, २९८ २/३ बार कंप होने पर ऋषभ, ३२० बार कंप होने पर गांधार स्वर उत्पन्न होता है; और इसी प्रकार बढ़ते बढ़ते ४८० बार कंप होने पर निषाद स्वर निकलता है। तात्पर्य यह कि कंपन जितना ही अधिक और जल्दी जल्दी होता है, स्वर भी उतना ही ऊँचा चढ़ता जाता है। इस क्रम के अनुसार षड्ज से निषाद तक सातों स्वरों के समूह को सप्तक कहते हैं। एक सप्तक के उपरांत दूसरा सप्तक चलता है, जिसके स्वरों की कंपनसंख्या इस संख्या से दूनी होती है। इसी प्रकार तीसरा और चौथा सप्तक भी होता है। यदि प्रत्येक स्वर की कपनसंख्या नियत से आधी हो, तो स्वर बराबर नीचे होते जायँगे और उन स्वरों का समूह नीचे का सप्तक कहलाएगा। भारत में यह भी माना गया है कि ये सातों स्वर क्रमशः मोर, गौ, बकरी, क्रौंच, कोयल, घोड़े और हाथी के स्वर से लिए गए हैं, अर्थात् ये सब प्राणी क्रमशः इन्हीं स्वरों में बोलते हैं; और इन्हीं के अनुकरण पर स्वरों की यह संख्या नियत की गई है। भिन्न भिन्न स्वरों के उच्चारण स्थान भी भिन्न भिन्न कहे गए हैं। जैसे,—नासा, कंठ, उर, तालु, जीभ और दाँत इन छह स्थानों में उत्पन्न होने के कारण पहला स्वर षड्ज कहलाता है। जिस स्वर की गति नाभि से सिर तक पहुँचे, वह ऋषभ कहलाता है, आदि। ये सब स्वर गले से तो निकलते ही हैं, पर बाजों से भी उसी प्रकार निकलते है। इन सातों में से सा और प तो शुद्ध स्वर कहलते हैं, क्योंकि इनका कोई भेद नहीं होता; पर शेष पाचों स्वर दो प्रकार के होते हैं - कोमल और तीव्र। प्रत्येक स्वर दो दो, तीन तीन भागों में बंटा रहता हैं, जिनमें से प्रत्येक भाग 'श्रुति' कहलाता है। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और स्वर · और देखें »

हिन्दी

हिन्दी या भारतीय विश्व की एक प्रमुख भाषा है एवं भारत की राजभाषा है। केंद्रीय स्तर पर दूसरी आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। यह हिन्दुस्तानी भाषा की एक मानकीकृत रूप है जिसमें संस्कृत के तत्सम तथा तद्भव शब्द का प्रयोग अधिक हैं और अरबी-फ़ारसी शब्द कम हैं। हिन्दी संवैधानिक रूप से भारत की प्रथम राजभाषा और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। हालांकि, हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है क्योंकि भारत का संविधान में कोई भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया था। चीनी के बाद यह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा भी है। विश्व आर्थिक मंच की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है। हिन्दी और इसकी बोलियाँ सम्पूर्ण भारत के विविध राज्यों में बोली जाती हैं। भारत और अन्य देशों में भी लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं। फ़िजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम की और नेपाल की जनता भी हिन्दी बोलती है।http://www.ethnologue.com/language/hin 2001 की भारतीय जनगणना में भारत में ४२ करोड़ २० लाख लोगों ने हिन्दी को अपनी मूल भाषा बताया। भारत के बाहर, हिन्दी बोलने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका में 648,983; मॉरीशस में ६,८५,१७०; दक्षिण अफ्रीका में ८,९०,२९२; यमन में २,३२,७६०; युगांडा में १,४७,०००; सिंगापुर में ५,०००; नेपाल में ८ लाख; जर्मनी में ३०,००० हैं। न्यूजीलैंड में हिन्दी चौथी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसके अलावा भारत, पाकिस्तान और अन्य देशों में १४ करोड़ १० लाख लोगों द्वारा बोली जाने वाली उर्दू, मौखिक रूप से हिन्दी के काफी सामान है। लोगों का एक विशाल बहुमत हिन्दी और उर्दू दोनों को ही समझता है। भारत में हिन्दी, विभिन्न भारतीय राज्यों की १४ आधिकारिक भाषाओं और क्षेत्र की बोलियों का उपयोग करने वाले लगभग १ अरब लोगों में से अधिकांश की दूसरी भाषा है। हिंदी हिंदी बेल्ट का लिंगुआ फ़्रैंका है, और कुछ हद तक पूरे भारत (आमतौर पर एक सरल या पिज्जाइज्ड किस्म जैसे बाजार हिंदुस्तान या हाफ्लोंग हिंदी में)। भाषा विकास क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी हिन्दी प्रेमियों के लिए बड़ी सन्तोषजनक है कि आने वाले समय में विश्वस्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की जो चन्द भाषाएँ होंगी उनमें हिन्दी भी प्रमुख होगी। 'देशी', 'भाखा' (भाषा), 'देशना वचन' (विद्यापति), 'हिन्दवी', 'दक्खिनी', 'रेखता', 'आर्यभाषा' (स्वामी दयानन्द सरस्वती), 'हिन्दुस्तानी', 'खड़ी बोली', 'भारती' आदि हिन्दी के अन्य नाम हैं जो विभिन्न ऐतिहासिक कालखण्डों में एवं विभिन्न सन्दर्भों में प्रयुक्त हुए हैं। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और हिन्दी · और देखें »

घोष (स्वनविज्ञान)

स्वनविज्ञान और स्वनिमविज्ञान में घोष (voiced) वह ध्वनियाँ (विशेषकर व्यंजन) होती हैं जिनमें स्वर-रज्जु में कम्पन होता है, जबकि अघोष वह ध्वनियाँ होती हैं जिनमें यह कम्पन नहीं होता। उदाहरण के लिए "प" एक अघोष ध्वनि है जबकि "ब" एक घोष ध्वनि है। इसी तरह "स" और "श" दोनों अघोष है, जबकि "ज़" घोष है। देवनागरी के हर नियमित वर्ग में पहले दो वर्ण अघोष और उन के बाद के दो घोष होते हैं। क/ख, च/छ, त/थ, ट/ठ, प/फ घोष हैं, जबकि ग/घ, ज/झ, द/ध, ड/ढ, ब/भ घोष हैं। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और घोष (स्वनविज्ञान) · और देखें »

घोष तालव्य स्पर्श

घोष तालव्य स्पर्श (voiced palatal stop या voiced palatal plosive) एक प्रकार का व्यंजन है जो कई भाषाओं में पाया जाता है। इसे हिन्दी और अंग्रेज़ी में नहीं पाया जाता। अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में इसे 'c' लिखा जाता है। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और घोष तालव्य स्पर्श · और देखें »

घोष दन्त्य संघर्षी

घोष दन्त्य संघर्षी (voiced dental fricative) एक प्रकार का व्यंजन है। यह हिन्दी, जर्मन, फ़ारसी, चीनी और जापानी में नहीं पाया जाता, और इन भाषाओं के बोलने वाले इसे बोलने में आमतौर पर अक्षम होते हैं। इसे सुनने पर अक्सर उन्हें यह 'ज़' (z, यानि घोष वर्त्स्य संघर्षी) प्रतीत होता है और उनके लिए घोष द्वयोष्ठ्य संघर्षी और घोष वर्त्स्य संघर्षी एक जैसी ध्वनियाँ हैं। ब्रिटेन और अमेरिका के अंग्रेज़ी-मातृभाषी इसे उच्चारित करते हैं, मसलन इसे "फ़ादर" (father) शब्द में "द" के स्थान पर बोला जाता है। इसे अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में 'ð' लिखा जाता है। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और घोष दन्त्य संघर्षी · और देखें »

घोष द्वयोष्ठ्य संघर्षी

घोष द्वयोष्ठ्य संघर्षी (voiced bilabial fricative) एक प्रकार का व्यंजन है। यह हिन्दी व अंग्रेज़ी में नहीं पाया जाता। इसके उच्चारण के बारे में कहा जाता है कि यह 'व' और 'ब' के बीच की ध्वनि है। इसे अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में 'β' लिखा जाता है। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और घोष द्वयोष्ठ्य संघर्षी · और देखें »

घोष द्वयोष्ठ्य स्पर्श

घोष द्वयोष्ठ्य स्पर्श (voiced bilabial stop) एक प्रकार का व्यंजन है जो कई भाषाओं में पाया जाता है। इसे हिन्दी में 'ब' और अंग्रेज़ी तथा अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में 'b' लिखा जाता है। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और घोष द्वयोष्ठ्य स्पर्श · और देखें »

घोष पश्वर्त्स्य संघर्षी

घोष पश्वर्त्स्य संघर्षी (voiced postalveolar fricative) एक प्रकार का व्यंजन है। यह हिन्दी में 'झ़' और अंग्रेज़ी में 'zh' लिखा जाता है। इसे अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में 'ʒ' लिखा जाता है। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और घोष पश्वर्त्स्य संघर्षी · और देखें »

वर्त्स्य व्यंजन

स्वनविज्ञान में वर्त्स्य व्यंजन (alveolar consonant) ऐसा व्यंजन होता है जिसे उच्चारित करने के लिए जिह्वा को ऊपर के वर्त्स्य कटक से छुआ जाता है या पास लाया जाता है। इनमें 'ट', 'ल', 'ड' और 'स' शामिल हैं। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और वर्त्स्य व्यंजन · और देखें »

व्याकरण

किसी भी भाषा के अंग प्रत्यंग का विश्लेषण तथा विवेचन व्याकरण (ग्रामर) कहलाता है। व्याकरण वह विद्या है जिसके द्वारा किसी भाषा का शुद्ध बोलना, शुद्ध पढ़ना और शुद्ध लिखना आता है। किसी भी भाषा के लिखने, पढ़ने और बोलने के निश्चित नियम होते हैं। भाषा की शुद्धता व सुंदरता को बनाए रखने के लिए इन नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। ये नियम भी व्याकरण के अंतर्गत आते हैं। व्याकरण भाषा के अध्ययन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। किसी भी "भाषा" के अंग प्रत्यंग का विश्लेषण तथा विवेचन "व्याकरण" कहलाता है, जैसे कि शरीर के अंग प्रत्यंग का विश्लेषण तथा विवेचन "शरीरशास्त्र" और किसी देश प्रदेश आदि का वर्णन "भूगोल"। यानी व्याकरण किसी भाषा को अपने आदेश से नहीं चलाता घुमाता, प्रत्युत भाषा की स्थिति प्रवृत्ति प्रकट करता है। "चलता है" एक क्रियापद है और व्याकरण पढ़े बिना भी सब लोग इसे इसी तरह बोलते हैं; इसका सही अर्थ समझ लेते हैं। व्याकरण इस पद का विश्लेषण करके बताएगा कि इसमें दो अवयव हैं - "चलता" और "है"। फिर वह इन दो अवयवों का भी विश्लेषण करके बताएगा कि (च् अ ल् अ त् आ) "चलता" और (ह अ इ उ) "है" के भी अपने अवयव हैं। "चल" में दो वर्ण स्पष्ट हैं; परंतु व्याकरण स्पष्ट करेगा कि "च" में दो अक्षर है "च्" और "अ"। इसी तरह "ल" में भी "ल्" और "अ"। अब इन अक्षरों के टुकड़े नहीं हो सकते; "अक्षर" हैं ये। व्याकरण इन अक्षरों की भी श्रेणी बनाएगा, "व्यंजन" और "स्वर"। "च्" और "ल्" व्यंजन हैं और "अ" स्वर। चि, ची और लि, ली में स्वर हैं "इ" और "ई", व्यंजन "च्" और "ल्"। इस प्रकार का विश्लेषण बड़े काम की चीज है; व्यर्थ का गोरखधंधा नहीं है। यह विश्लेषण ही "व्याकरण" है। व्याकरण का दूसरा नाम "शब्दानुशासन" भी है। वह शब्दसंबंधी अनुशासन करता है - बतलाता है कि किसी शब्द का किस तरह प्रयोग करना चाहिए। भाषा में शब्दों की प्रवृत्ति अपनी ही रहती है; व्याकरण के कहने से भाषा में शब्द नहीं चलते। परंतु भाषा की प्रवृत्ति के अनुसार व्याकरण शब्दप्रयोग का निर्देश करता है। यह भाषा पर शासन नहीं करता, उसकी स्थितिप्रवृत्ति के अनुसार लोकशिक्षण करता है। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और व्याकरण · और देखें »

व्यंजन

कोई विवरण नहीं।

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और व्यंजन · और देखें »

कण्ठ्य नासिक्य

कण्ठ्य नासिक्य (velar nasal) एक प्रकार का व्यंजन है जो कई भाषाओं में पाया जाता है, और हिन्दी में इसके लिए 'अं' प्रयोग होता है। इसे अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में 'ŋ' लिखा जाता है। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और कण्ठ्य नासिक्य · और देखें »

कण्ठ्य व्यंजन

कंठ्य अक्षर वो अक्षर हैं जो सीधे ही कंठ से निकलते हैं। यानि कि उनके उच्चारण में जीभ को मुख के किसी भी भाग को छूना नहीं पड़ता। जैसे कि:" क" "ख" "ग" "घ" "ड•" वैसे तो इस श्रेणी के बिन्दु वाले अक्षर भी कंठ्य अक्षर होते हैं पर वो "अलिजिह्वीय श्रेणी" में शामिल हैं। उनका उच्चारण थोड़ा भिन्न होता है जो साधारण सुनने में आया है। * श्रेणी:उच्चारण के ढंग.

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और कण्ठ्य व्यंजन · और देखें »

काकलीय व्यंजन

स्वनविज्ञान में काकलीय व्यंजन (Glottal consonant) ऐसा व्यंजन होता है जिनका उच्चारण प्रमुख रूप से कण्ठद्वार के प्रयोग द्वारा किया जाता है। इनमें 'ह' शामिल है। कुछ भाषावैज्ञानिक काकलीय व्यंजनों को असली व्यंजन मानते ही नहीं क्योंकि उन्हें केवल कण्ठद्वार का खोल बदलकर बिना किसी उच्चारण अंग का प्रयोग करे उत्पन्न करा जाता है, लेकिन हिन्दी समेत विश्व की कई भाषाओं यह व्यंजनों की ही भांति प्रयोग होते हैं। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और काकलीय व्यंजन · और देखें »

अनुनासिकीकरण

अनुनासिकीकरण या अनुनासिकता (nasalization) का अर्थ है किसी भी व्यंजन की ध्वनि मुख से निकालने की बजाय नाक से निकालना। जैसे कि "क" वर्ण को नाक के माध्यम से उच्चारित किया जाए तो ये "कं" की ध्वनि अपने आप ही देने लगेगा। * श्रेणी:स्वानिकी श्रेणी:स्वनिमविज्ञान श्रेणी:ऐतिहासिक भाषाविज्ञान श्रेणी:सम्मिलन (भाषाविज्ञान).

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और अनुनासिकीकरण · और देखें »

अलिजिह्वीय नासिक्य

अलिजिह्वीय नासिक्य (uvular nasal) एक प्रकार का व्यंजन है जो विश्व की कुछ भाषाओं में पाया जाता है, हालांकि यह हिन्दी और अंग्रेज़ी में प्रयोग नहीं होता। इसे अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में 'ɴ' लिखा जाता है। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और अलिजिह्वीय नासिक्य · और देखें »

अलिजिह्वीय व्यंजन

स्वनविज्ञान में अलिजिह्वीय व्यंजन (Uvular consonant) ऐसा व्यंजन होता है जिनका उच्चारण जिह्वा के पिछले भाग को गले के ऊपरी भाग से स्पर्श करा के किया जाता है। इनमें 'ग़' और 'क़' शामिल हैं। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और अलिजिह्वीय व्यंजन · और देखें »

अघोष तालव्य स्पर्श

अघोष तालव्य स्पर्श (voiceless palatal stop या voiceless palatal plosive) एक प्रकार का व्यंजन है जो कई भाषाओं में पाया जाता है। इसे हिन्दी और अंग्रेज़ी में नहीं पाया जाता। अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में इसे 'c' लिखा जाता है। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और अघोष तालव्य स्पर्श · और देखें »

अघोष द्वयोष्ठ्य संघर्षी

अघोष द्वयोष्ठ्य संघर्षी (voiceless bilabial fricative) एक प्रकार का व्यंजन है। यह हिन्दी व अंग्रेज़ी में नहीं पाया जाता, लेकिन वैदिक संस्कृत में उपस्थित था।, Page 7, Sir Monier Monier-Williams, Clarendon Press, 1864,...

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और अघोष द्वयोष्ठ्य संघर्षी · और देखें »

अघोष द्वयोष्ठ्य स्पर्श

अघोष द्वयोष्ठ्य स्पर्श (voiceless bilabial stop) एक प्रकार का व्यंजन है जो कई भाषाओं में पाया जाता है। इसे हिन्दी में 'प' और अंग्रेज़ी तथा अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में 'p' लिखा जाता है। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और अघोष द्वयोष्ठ्य स्पर्श · और देखें »

अघोष पश्वर्त्स्य संघर्षी

अघोष पश्वर्त्स्य संघर्षी (voiceless postalveolar fricative) एक प्रकार का व्यंजन है। यह हिन्दी में 'श' और अंग्रेज़ी में 'sh' लिखा जाता है। इसे अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में 'ʃ' लिखा जाता है। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और अघोष पश्वर्त्स्य संघर्षी · और देखें »

अघोष वर्त्स्य नासिक्य

अघोष वर्त्स्य नासिक्य (voiceless alveolar nasal) एक प्रकार का व्यंजन है जो विश्व की बहुत कम भाषाओं में मिलता है, जैसे कि बर्मी भाषा और एस्टोनियाई भाषा। हिन्दी व अंग्रेज़ी बोलने वालों को यह 'न' से मिलता-जुलता प्रतीत होता है। इसे अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में n̥ और n̊ के चिन्हों द्वारा लिखा जाता है। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और अघोष वर्त्स्य नासिक्य · और देखें »

अग्रस्वर

जिन स्वरो के उच्चारण में जीभ का अग्र भाग मदद करता है,उन्हें अग्र स्वर कहते है। जैसे - श्रेणी:स्वर.

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और अग्रस्वर · और देखें »

अंग्रेज़ी भाषा

अंग्रेज़ी भाषा (अंग्रेज़ी: English हिन्दी उच्चारण: इंग्लिश) हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार में आती है और इस दृष्टि से हिंदी, उर्दू, फ़ारसी आदि के साथ इसका दूर का संबंध बनता है। ये इस परिवार की जर्मनिक शाखा में रखी जाती है। इसे दुनिया की सर्वप्रथम अन्तरराष्ट्रीय भाषा माना जाता है। ये दुनिया के कई देशों की मुख्य राजभाषा है और आज के दौर में कई देशों में (मुख्यतः भूतपूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों में) विज्ञान, कम्प्यूटर, साहित्य, राजनीति और उच्च शिक्षा की भी मुख्य भाषा है। अंग्रेज़ी भाषा रोमन लिपि में लिखी जाती है। यह एक पश्चिम जर्मेनिक भाषा है जिसकी उत्पत्ति एंग्लो-सेक्सन इंग्लैंड में हुई थी। संयुक्त राज्य अमेरिका के 19 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध और ब्रिटिश साम्राज्य के 18 वीं, 19 वीं और 20 वीं शताब्दी के सैन्य, वैज्ञानिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव के परिणाम स्वरूप यह दुनिया के कई भागों में सामान्य (बोलचाल की) भाषा बन गई है। कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों और राष्ट्रमंडल देशों में बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल एक द्वितीय भाषा और अधिकारिक भाषा के रूप में होता है। ऐतिहासिक दृष्टि से, अंग्रेजी भाषा की उत्पत्ति ५वीं शताब्दी की शुरुआत से इंग्लैंड में बसने वाले एंग्लो-सेक्सन लोगों द्वारा लायी गयी अनेक बोलियों, जिन्हें अब पुरानी अंग्रेजी कहा जाता है, से हुई है। वाइकिंग हमलावरों की प्राचीन नोर्स भाषा का अंग्रेजी भाषा पर गहरा प्रभाव पड़ा है। नॉर्मन विजय के बाद पुरानी अंग्रेजी का विकास मध्य अंग्रेजी के रूप में हुआ, इसके लिए नॉर्मन शब्दावली और वर्तनी के नियमों का भारी मात्र में उपयोग हुआ। वहां से आधुनिक अंग्रेजी का विकास हुआ और अभी भी इसमें अनेक भाषाओँ से विदेशी शब्दों को अपनाने और साथ ही साथ नए शब्दों को गढ़ने की प्रक्रिया निरंतर जारी है। एक बड़ी मात्र में अंग्रेजी के शब्दों, खासकर तकनीकी शब्दों, का गठन प्राचीन ग्रीक और लैटिन की जड़ों पर आधारित है। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और अंग्रेज़ी भाषा · और देखें »

उत्क्षिप्त व्यंजन

स्वनविज्ञान में उत्क्षिप्त व्यंजन (flap या tap) ऐसा व्यंजन होता है जिसे अचानक मुँह में जिह्वा या अन्य किसी भाग को सिकोड़कर किसी अन्य भाग की ओर ज़ोर से फेंका जाए। उदाहरण के लिए 'ड़' और 'ण' के उच्चारण में ऐसा होता है। .

नई!!: अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला और उत्क्षिप्त व्यंजन · और देखें »

यहां पुनर्निर्देश करता है:

IPA, International Phonetic Alphabet, आई पी ए, आईपीए, आइपीए, इंटरनैशनल फोनेटिक ऐल्फबेट, इंटरनैशल फ़ोनेटिक ऐल्फ़बेट, अधव, अन्तरराष्ट्रीय ध्वनिलिपि, अन्तरराष्ट्रीय ध्वन्यात्मक लिपि, अन्तरराष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला, अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक लिपि, अंतरराष्ट्रीय ध्वन्यात्मक लिपि, अंतर्राष्ट्रीय ध्वनि वर्णाक्षर, अंतर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक लिपि, अ०ध०व०, अ॰ध॰व॰

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »