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सांस की दुर्गंध

सूची सांस की दुर्गंध

साँस की दुर्गंध या मुह की दुर्गन्ध या दुर्गंधी प्रश्वसन (Halitosis / हैलिटोसिस) के रोगी के मुख से एक विशेष दुर्गन्ध (बदबू) आती है जो, सांस के साथ मिली होती है। सांसों की दुर्गन्ध ग्रसित व्यक्ति में चिन्ता का कारण बन सकती है। यह एक गंभीर समस्या बन सकती है किंतु कुछ साधारण उपायों से साँस की दुर्गंध को रोका जा सकता है। साँस की दुर्गंध उन बैक्टीरिया से पैदा होती है, जो मुँह में पैदा होते हैं और दुर्गंध पैदा करते हैं। नियमित रूप से ब्रश नहीं करने से मुँह और दांतों के बीच फंसा भोजन बैक्टीरिया पैदा करता है। इन बैक्टीरिया द्वारा उत्सर्जित सल्फर, यौगिक के कारण आपकी साँसों में दुर्गंध पैदा करता है। लहसुन और प्याज जैसे कुछ खाद्य पदार्थां में तीखे तेल होते हैं। इनसे साँसों की दुर्गंध पैदा होती है, क्योंकि ये तेल आपके फेफड़ों में जाते हैं और मुँह से बाहर आते हैं। साँस की दुर्गंध का एक अन्य प्रमुख कारण धूम्रपान है। साँस की दुर्गंध पर काबू पाने के बारे में अनेक धारणाएं प्रचलित हैं। .

14 संबंधों: ऊर्ध्वहनु वायुविवर, चिंता, तुलसी (पौधा), धूम्रपान, नीबू, मुख, यष्टिमधु, लार, लौंग, शुष्क मुख, सौंफ, जामुन, इलायची, कॉफ़ी

ऊर्ध्वहनु वायुविवर

मैक्सिलरी साइनस या ऊर्ध्वहनु वायुविवर मानव शरीर की खोपड़ी में हवा भरी हुई गुहा(कैविटी) होती हैं जो हमारे सिर को हल्कापन व सांस वाली हवा का नमी युक्त करते हैं। जब कभी साइनस का संक्रमण हो जाता है तो ये सिरदर्द का भी कारण बनते हैं। परंतु सारे सिरदर्द का कारण साइनस ही नहीं होते, कई बार रोगी को साइनस के दर्द की बजाय अधकपारी या तनाव वाला सिरदर्द हो सकता है। अधकपारी सिरदर्द से चेहरे की नसें प्रभावित हो जाती हैं। जो कि माथे, गालों और जबड़े को जाती हैं। इसकी वजह से साइनस के पास दर्द होता है। जब नाक व साइनस का संक्रमण होता है तो लक्षण आंखों पर, माथे पर व गालों पर भारीपन महसूस होता है। कई बार तो नाक बंद, थकान, सर्दी के साथ बुखार, चेहरे पर सूजन व नाक से पीला या हरे रंग का रेशा भी गिरता है। इसे साइनोसाइटिस कहते हैं। यद्यपि कई बार यह महत्वपूर्ण बात होती है कि कई सिरदर्द तो लंबे समय से चले आ रहे हैं, नजले के कारण होते हैं। इसलिए जब कभी माइग्रेन का ईलाज करे तो साइनस सिरदर्द को जरूर ध्यान रखें। .

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चिंता

चिंता संज्ञानात्मक, शारीरिक, भावनात्मक और व्यवहारिक विशेषतावाले घटकों की मनोवैज्ञानिक और शारीरिक दशा है।सेलिगमैन, एम्.इ.पी., वॉकर, इ.ऍफ़.

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तुलसी (पौधा)

तुलसी का पौधा तुलसी - (ऑसीमम सैक्टम) एक द्विबीजपत्री तथा शाकीय, औषधीय पौधा है। यह झाड़ी के रूप में उगता है और १ से ३ फुट ऊँचा होता है। इसकी पत्तियाँ बैंगनी आभा वाली हल्के रोएँ से ढकी होती हैं। पत्तियाँ १ से २ इंच लम्बी सुगंधित और अंडाकार या आयताकार होती हैं। पुष्प मंजरी अति कोमल एवं ८ इंच लम्बी और बहुरंगी छटाओं वाली होती है, जिस पर बैंगनी और गुलाबी आभा वाले बहुत छोटे हृदयाकार पुष्प चक्रों में लगते हैं। बीज चपटे पीतवर्ण के छोटे काले चिह्नों से युक्त अंडाकार होते हैं। नए पौधे मुख्य रूप से वर्षा ऋतु में उगते है और शीतकाल में फूलते हैं। पौधा सामान्य रूप से दो-तीन वर्षों तक हरा बना रहता है। इसके बाद इसकी वृद्धावस्था आ जाती है। पत्ते कम और छोटे हो जाते हैं और शाखाएँ सूखी दिखाई देती हैं। इस समय उसे हटाकर नया पौधा लगाने की आवश्यकता प्रतीत होती है। .

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धूम्रपान

. इसे एक रिवाज के एक भाग के रूप में, समाधि में जाने के लिए प्रेरित करने और आध्यात्मिक ज्ञान को उत्पन्न करने में भी किया जा सकता है। वर्तमान में धूम्रपान की सबसे प्रचलित विधि सिगरेट है, जो मुख्य रूप से उद्योगों द्वारा निर्मित होती है किन्तु खुले तम्बाकू तथा कागज़ को हाथ से गोल करके भी बनाई जाती है। धूम्रपान के अन्य साधनों में पाइप, सिगार, हुक्का एवं बॉन्ग शामिल हैं। ऐसा बताया जाता है कि धूम्रपान से संबंधित बीमारियां सभी दीर्घकालिक धूम्रपान करने वालों में से आधों की जान ले लेती हैं किन्तु ये बीमारियां धूम्रपान न करने वालों को भी लग सकती हैं। 2007 की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक वर्ष दुनिया भर में 4.9 मिलियन लोग धूम्रपान की वजह से मरते हैं। धूम्रपान मनोरंजक दवा का एक सबसे सामान्य रूप है। तंबाकू धूम्रपान वर्तमान धूम्रपान का सबसे लोकप्रिय प्रकार है और अधिकतर सभी मानव समाजों में एक बिलियन लोगों द्वारा किया जाता है। धूम्रपान के लिए कम प्रचलित नशीली दवाओं में भांग तथा अफीम शामिल है। कुछ पदार्थों को हानिकारक मादक पदार्थों के रूप में वर्गीकृत किया गया है जैसे कि हेरोइन, किन्तु इनका प्रयोग अत्यंत सीमित है क्योंकि अक्सर ये व्यवसायिक रूप से उपलब्ध नहीं होते.

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नीबू

नीबू का वृक्ष नीबू (Citrus limon, Linn.) छोटा पेड़ अथवा सघन झाड़ीदार पौधा है। इसकी शाखाएँ काँटेदार, पत्तियाँ छोटी, डंठल पतला तथा पत्तीदार होता है। फूल की कली छोटी और मामूली रंगीन या बिल्कुल सफेद होती है। प्रारूपिक (टिपिकल) नीबू गोल या अंडाकार होता है। छिलका पतला होता है, जो गूदे से भली भाँति चिपका रहता है। पकने पर यह पीले रंग का या हरापन लिए हुए होता है। गूदा पांडुर हरा, अम्लीय तथा सुगंधित होता है। कोष रसयुक्त, सुंदर एवं चमकदार होते हैं। नीबू अधिकांशत: उष्णदेशीय भागों में पाया जाता है। इसका आदिस्थान संभवत: भारत ही है। यह हिमालय की उष्ण घाटियों में जंगली रूप में उगता हुआ पाया जाता है तथा मैदानों में समुद्रतट से 4,000 फुट की ऊँचाई तक पैदा होता है। इसकी कई किस्में होती हैं, जो प्राय: प्रकंद के काम में आती हैं, उदाहरणार्थ फ्लोरिडा रफ़, करना या खट्टा नीबू, जंबीरी आदि। कागजी नीबू, कागजी कलाँ, गलगल तथा लाइम सिलहट ही अधिकतर घरेलू उपयोग में आते हैं। इनमें कागजी नीबू सबसे अधिक लोकप्रिय है। इसके उत्पादन के स्थान मद्रास, बंबई, बंगाल, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र हैदराबाद, दिल्ली, पटियाला, उत्तर प्रदेश, मैसूर तथा बड़ौदा हैं। नीबू की उपयोगिता जीवन में बहुत अधिक है। इसका प्रयोग अधिकतर भोज्य पदार्थों में किया जाता है। इससे विभिन्न प्रकार के पदार्थ, जैसे तेल, पेक्टिन, सिट्रिक अम्ल, रस, स्क्वाश तथा सार (essence) आदि तैयार किए जाते हैं। .

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मुख

मुख (face) कई प्राणियों के सिर के सामने वाली ओर पाया जाने वाला भाग है जिसमें कई ज्ञानेन्द्रिय उपस्थित होती हैं, हालांकि हर प्राणी का मुख नहीं होता। स्तनधारियों में आमतौर पर मुख पर नाक, कान, मुँह (जिसमें स्वाद-बोध रखने वाली जिह्वा होती है) और आँखें होती हैं। मानव व अन्य स्तनधारी इनसे अपनी भावनाएँ भी प्रकट करते हैं, तथा इसे एक-दूसरे को पहचानने व मौखिक संचार के लिए भी प्रयोग करते हैं। .

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यष्टिमधु

यष्टिमधु या मुलहठी या मुलेठी एक झाड़ीनुमा पौधा होता है। इसका वैज्ञानिक नाम ग्‍लीसीर्रहीजा ग्लाब्र (Glycyrrhiza glabra) कहते है। इसे संस्कृत में मधुयष्‍टी, बंगला में जष्टिमधु, मलयालम में इरत्तिमधुरम, तथा तमिल में अतिमधुरम कहते है। इसमें गुलाबी और जामुनी रंग के फूल होते है। इसके फल लम्‍बे चपटे तथा कांटे होते है। इसकी पत्तियाँ सयुक्‍त होती है। मूल जड़ों से छोटी-छोटी जडे निकलती है। इसकी खेती पूरे भारतवर्ष में होती है। मुलहठी एक प्रसिद्ध और सर्वसुलभ जड़ी है। काण्ड और मूल मधुर होने से मुलहठी को यष्टिमधु कहा जाता है। मधुक क्लीतक, जेठीमध तथा लिकोरिस इसके अन्य नाम हैं। इसका बहुवर्षायु क्षुप लगभग डेढ़ मीटर से दो मीटर ऊँचा होता है। जड़ें गोल-लंबी झुर्रीदार तथा फैली हुई होती हैं। जड़ व काण्ड से कई शाखाएँ निकलती हैं। पत्तियाँ संयुक्त व अण्डाकार होती हैं, जिनके अग्रभाग नुकीले होते हैं। फली बारीक छोटी ढाई सेण्टीमीटर लंबी चपटी होती है जिसमें दो से लेकर पाँच तक वृक्काकार बीज होते हैं। इस वृक्ष का भूमिगत तना (काण्ड) तथा जड़ सुखाकर छिलका हटाकर या छिलके सहित अंग प्रयुक्त होता है। सामान्यतः मुलहठी ऊँचाई वाले स्थानों पर ही होती है। भारत में जम्मू-कश्मीर, देहरादून, सहारनपुर तक इसे लगाने में सफलता मिली है। वैसे बाजार में अरब, तुर्किस्तान, अफगानिस्तान से आयी मुलहठी ही सामान्यतः पायी जाती है। पर ऊँचे स्थानों पर इसकी सफलता ने वनस्पति विज्ञानियों का ध्यान इसे हिमालय की तराई वाले खुश्क स्थानों पर पैदा करने की ओर आकर्षित किया है। बोटैनिकल सर्वे ऑफ इण्डिया इस दिशा में मसूरी, देहरादून फ्लोरा में इसे खोजने व उत्पन्न करने की ओर गतिशील है। इसी कारण अब यह विदेशी औषधि नहीं रही। .

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लार

लार (राल, थूक, ड्रूल अथवा स्लौबर नाम से भी निर्दिष्ट) मानव तथा अधिकांश जानवरों के मुंह में उत्पादित पानी-जैसा और आमतौर पर एक झागदार पदार्थ है। लार मौखिक द्रव का एक घटक है। लार उत्पादन और स्त्राव तीन में से एक लार ग्रंथियों से होता है। मानव लार 98% पानी से बना है, जबकि इसका शेष 2% अन्य यौगिक जैसे इलेक्ट्रोलाईट, बलगम, जीवाणुरोधी यौगिकों तथा एंजाइम होता है। भोजन पाचन की प्रक्रिया के प्रारंभिक भाग के रूप में, लार के एंजाइम भोजन के कुछ स्टार्च और वसा को आणविक स्तर पर तोड़ते हैं। लार दांतों के बीच फंसे खाने को भी तोड़ती है और उन्हें उस बैक्टीरिया से बचाती है जो क्षय का कारण होते हैं। इसके अलावा, लार दांतों, जीभ और मुंह के अंदर कोमल ऊतकों को चिकनाई देती है और उनकी रक्षा करती है। लार मुंह में रहने वाले वात निरपेक्ष बैक्टीरिया के द्वारा गंध-मुक्त भोजन यौगिकों से उत्पादित थायोल्स (thiols) को फंसा कर भोजन का स्वाद चखने की महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। विभिन्न प्रजातियों ने लार के विशेष उपयोग विकसित किये हैं, जो पूर्वपाचन से परे हैं। कुछ अबाबील अपने चिपचिपे लार का उपयोग घोंसले का निर्माण करने के लिए करती हैं। चिड़िया के घोंसले के सूप के लिए छोटी हिमालयन अबाबील का घोंसला बेशकीमती है।मार्कोन, एम्.

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लौंग

लौंग लौंग लौंग (वानस्पतिक नाम: Syzygium aromaticum; मलयालम: കരയാമ്പൂ; अंग्रेजी:Cloves) मटेंसी कुल (Myrtaceae) के 'यूजीनिया कैरियोफ़ाइलेटा' (Eugenia caryophyllata) नामक मध्यम कद वाले सदाबहार वृक्ष की सूखी हुई पुष्प कलिका है। लौंग का अंग्रेजी पर्यायवाची क्लोव (clove) है, जो लैटिन शब्द क्लैवस (clavus) से निकला है। इस शब्द से कील या काँटे का बोध होता है, जिससे लौंग की आकृति का सादृश्य है। दूसरी तरफ लौंग का लैटिन नाम 'पिपर' (Piper) संस्कृत/मलयालम/तमिल के 'पिप्पलि' आया हुआ लगता है। लौंग एक प्रकार का मसाला है। इस मसाले का उपयोग भारतीय पकवानो मे बहुतायत मे किया जाता है। इसे औषधि के रूप मे भी उपयोग मे लिया जाता है। .

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शुष्क मुख

शुष्क मुख (Xerostomia) एक विकार है जिसमें मुख में नमी की कमी या सूखापन होने लगता है। यह लार की संरचना बदलने के कारण हो सकता है या लार के कम बनने के कारण। यह अधिक उम्र के लोगों में अधिक देखने को मिलता है। .

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सौंफ

सौंफ सौंफ सौंफ एक मसाला है। श्रेणी:मसाले.

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जामुन

जामुन का पेड़ जामुन (वैज्ञानिक नाम: Syzygium cumini) एक सदाबहार वृक्ष है जिसके फल बैंगनी रंग के होते हैं (लगभग एक से दो सेमी. व्यास के) | यह वृक्ष भारत एवं दक्षिण एशिया के अन्य देशों एवं इण्डोनेशिया आदि में पाया जाता है। इसे विभिन्न घरेलू नामों जैसे जामुन, राजमन, काला जामुन, जमाली, ब्लैकबेरी आदि के नाम से जाना जाता है। प्रकृति में यह अम्लीय और कसैला होता है और स्वाद में मीठा होता है। अम्लीय प्रकृति के कारण सामान्यत: इसे नमक के साथ खाया जता है। जामुन का फल 70 प्रतिशत खाने योग्य होता है। इसमें ग्लूकोज और फ्रक्टोज दो मुख्य स्रोत होते हैं। फल में खनिजों की संख्या अधिक होती है। अन्य फलों की तुलना में यह कम कैलोरी प्रदान करता है। एक मध्यम आकार का जामुन 3-4 कैलोरी देता है। इस फल के बीज में काबोहाइट्ररेट, प्रोटीन और कैल्शियम की अधिकता होती है। यह लोहा का बड़ा स्रोत है। प्रति 100 ग्राम में एक से दो मिग्रा आयरन होता है। इसमें विटामिन बी, कैरोटिन, मैग्नीशियम और फाइबर होते हैं। .

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इलायची

इलायची का सेवन आमतौर पर मुखशुद्धि के लिए अथवा मसाले के रूप में किया जाता है। यह दो प्रकार की आती है- हरी या छोटी इलायची तथा बड़ी इलायची। जहाँ बड़ी इलायची व्यंजनों को लजीज बनाने के लिए एक मसाले के रूप में प्रयुक्त होती है, वहीं हरी इलायची मिठाइयों की खुशबू बढ़ाती है। मेहमानों की आवभगत में भी इलायची का इस्तेमाल होता है। लेकिन इसकी महत्ता केवल यहीं तक सीमित नहीं है। यह औषधीय गुणों की खान है। संस्कृत में इसे एला कहा जाता है। छोटी इलायची को संस्कृत में 'एला', 'तीक्ष्णगंधा' इत्यादि और लैटिन में एलेटेरिआ कार्डामोमम कहते हैं। भारत में इसके बीजों का उपयोग अतिथिसत्कार, मुखशुद्धि तथा पकवानों को सुगंधित करने के लिए होता है। ये पाचनवर्धक तथा रुचिवर्धक होते हैं। आयुर्वेदिक मतानुसार इलाचयी शीतल, तीक्ष्ण, मुख को शुद्ध करनेवाली, पित्तजनक तथा वात, श्वास, खाँसी, बवासीर, क्षय, वस्तिरोग, सुजाक, पथरी, खुजली, मूत्रकृच्छ तथा हृदयरोग में लाभदायक है। इलायची के बीजों में एक प्रकार का उड़नशील तैल (एसेंशियल ऑएल) होता है। .

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कॉफ़ी

कॉफ़ी का प्यालाकॉफ़ी (अरब. قهوة क़हवा उत्तेजक पेय पदार्थ) — एक लोकप्रिय पेय पदार्थ (साधारणतया गर्म) है, जो कॉफ़ी के पेड़ के भुने हुए बीजों से बनाया जाता है। कॉफ़ी में कैफ़ीन होने के कारण वह हल्के उद्दीपक सा प्रभाव डालती है। इसके विषय में वैज्ञानिकों का कोई निश्चित मत नहीं हैं। जहाँ एक ओर कहा जाता है कि कॉफ़ी से शुक्राणुओं की सक्रियता बढ़ती है वहीं दूसरी ओर कुछ अध्ययनों में यह भी पता चला है कि अधिक कॉफ़ी पीने से मतिभ्रम भी हो सकता है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

दुर्गंधी प्रश्वशन, मुह से दुर्गन्ध

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