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वुल्फ़ ३५९ तारा

सूची वुल्फ़ ३५९ तारा

इस सन् २००९ में ली गई तस्वीर में वुल्फ़ ३५९ मध्य में ऊपर की तरफ़ स्थित नारंगी तारा है वुल्फ़ ३५९ (Wolf 359) सिंह तारामंडल में क्रांतिवृत्त के पास स्थित एक लाल बौना तारा है। यह हमसे ७.८ प्रकाश वर्ष की दूरी पर है और पृथ्वी से इसका औसत सापेक्ष कांतिमान (यानि चमक का मैग्निट्यूड) १३.५ है। इसके केवल एक बड़ी दूरबीन से ही देखा जा सकता है। मित्र तारे के तीन तारों वाले मंडल और बारनर्ड के तारे के बाद यह पृथ्वी का तीसरा सबसे नज़दीकी पड़ोसी तारा है। वुल्फ़ ३५९ सभी ज्ञात तारों में सबसे कम रोशनी और सबसे कम द्रव्यमान (मास) वाले तारों में है। इसका सतही तापमान केवल २,८०० केल्विन है, जिसमें बहुत से रसायन बनकर स्थाई रह सकते हैं। जब इसके वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) का अध्ययन किया जाता है तो उससे इसके वातावरण में पानी और टाईटेनियम डायोक्साइड​ की मौजूदगी का पता चलता है। इसका चुम्बकीय क्षेत्र हमारे सूरज से अधिक शक्तिशाली है। यह एक धधकने वाला तारा है जिसमें अचानक कुछ मिनटों के लिए चमक बढ़ जाती है। इन हादसों के दौरान यह तारा तीखे ऍक्स प्रकाश और गामा प्रकाश का विकिरण (रेडियेशन) छोड़ता है जिसे अंतरिक्ष-स्थित दूरबीनों से देखा जा चुका है। यह एक कम आयु वाला तारा है और इसकी उम्र एक अरब वर्षों से कम अनुमानित की गई है। इसका कोई साथी तारा नहीं मिला है और न ही इसके इर्द-गिर्द कोई ग़ैर-सौरीय ग्रह या मलबा चक्र परिक्रमा करता हुआ मिला है। .

21 संबंधों: ऍक्स किरण, तारा, द्रव्यमान, दूरदर्शी, प्रकाश-वर्ष, बर्नार्ड-तारा, बहिर्ग्रह, भारतीय संख्या प्रणाली, मलबा चक्र, मित्र तारा, लाल बौना, सापेक्ष कांतिमान, सिंह तारामंडल, सूर्य, सूर्यपथ, जल, वर्णक्रम, विकिरण, खगोलीय मैग्निट्यूड, गामा किरण, केल्विन

ऍक्स किरण

200px ''Hand mit Ringen'': रोएन्टजन की पहली 'मेडिकल' एक्स-किरण का प्रिन्ट - उनकी पत्नी का हाथ का प्रिन्ट जो २२ दिसम्बर सन् १८९५ को लिया गया था जल से शीतलित एक्स-किरण नलिका (सरलीकृत/कालातीत हो चुकी है।) एक्स-किरण या एक्स रे (X-Ray) एक प्रकार का विद्युत चुम्बकीय विकिरण है जिसकी तरंगदैर्घ्य 10 से 0.01 नैनोमीटर होती है। यह चिकित्सा में निदान (diagnostics) के लिये सर्वाधिक प्रयोग की जाती है। यह एक प्रकार का आयनकारी विकिरण है, इसलिए खतरनाक भी है। कई भाषाओं में इसे रॉण्टजन विकिरण भी कहते हैं, जो कि इसके अन्वेषक विल्हेल्म कॉनरॅड रॉण्टजन के नाम पर आधारित है। रॉण्टजन ईक्वेलेंट मानव (Röntgen equivalent man / REM) इसकी शास्त्रीय मापक इकाई है। .

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तारा

तारे (Stars) स्वयंप्रकाशित (self-luminous) उष्ण गैस की द्रव्यमात्रा से भरपूर विशाल, खगोलीय पिंड हैं। इनका निजी गुरुत्वाकर्षण (gravitation) इनके द्रव्य को संघटित रखता है। मेघरहित आकाश में रात्रि के समय प्रकाश के बिंदुओं की तरह बिखरे हुए, टिमटिमाते प्रकाशवाले बहुत से तारे दिखलाई देते हैं। .

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द्रव्यमान

द्रव्यमान किसी पदार्थ का वह मूल गुण है, जो उस पदार्थ के त्वरण का विरोध करता है। सरल भाषा में द्रव्यमान से हमें किसी वस्तु का वज़न और गुरुत्वाकर्षण के प्रति उसके आकर्षण या शक्ति का पता चलता है। श्रेणी:भौतिकी श्रेणी:भौतिक शब्दावली *.

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दूरदर्शी

न्यूटनीय दूरदर्शी का आरेख दूरदर्शी वह प्रकाशीय उपकरण है जिसका प्रयोग दूर स्थित वस्तुओं को देख्नने के लिये किया जाता है। दूरदर्शी से सामान्यत: लोग प्रकाशीय दूरदर्शी का अर्थ ग्रहण करते हैं, परन्तु दूरदर्शी विद्युतचुंबकीय वर्णक्रम के अन्य भागों मै भी काम करता है जैसे X-रे दूरदर्शी जो कि X-रे के प्रति संवेदनशील होता है, रेडियो दूरदर्शी जो कि अधिक तरंगदैर्घ्य की विद्युत चुंबकीय तरंगे ग्रहण करता है। दूरदर्शी साधारणतया उस प्रकाशीय तंत्र (optical system) को कहते हैं जिससे देखने पर दूर की वस्तुएँ बड़े आकार की और स्पष्ट दिखाई देती हैं, अथवा जिसकी सहायता से दूरवर्ती वस्तुओं के साधारण और वर्णक्रमचित्र (spectrograms) प्राप्त किए जाते हैं। दूरवर्ती वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त करने के लिए आजकल रेडियो तरंगों का भी उपयोग किया जाने लगा है। इस प्रकार का यंत्र रेडियो दूरदर्शी (radio telescope) कहलाता है। बोलचाल की भाषा में दूरदर्शी को दूरबीन भी कहते हैं। दूरबीन के आविष्कार ने मनुष्य की सीमित दृष्टि को अत्यधिक विस्तृत बना दिया है। ज्योतिर्विद के लिए दूरदर्शी की उपलब्धि अंधे व्यक्ति को मिली आँखों के सदृश वरदान सिद्ध हुई है। इसकी सहायता से उसने विश्व के उन रहस्यमय ज्योतिष्पिंडों तक का साक्षात्कार किया है जिन्हें हम सर्पिल नीहारिकाएँ (spiral nebulae) कहते हैं। ये नीहारिकाएँ हमसे करोड़ों प्रकाशवर्ष की दूरी पर हैं। आधुनिक ज्योतिर्विज्ञान (astronomy) और ताराभौतिकी (astrophysics) के विकास में दूरदर्शी का महत्वपूर्ण योग है। दूरदर्शी ने एक ओर जहाँ मनुष्य की दृष्टि को विस्तृत बनाया है, वहाँ दूसरी ओर उसने मानव को उन भौतिक तथ्यों और नियमों को समझने में सहायता भी दी है जो भौतिक विश्व के गत्यात्मक संतुलन (dynamic equilibirium) के आधार हैं। .

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प्रकाश-वर्ष

प्रकाश वर्ष (चिन्ह:ly) लम्बाई की मापन इकाई है। यह लगभग 950 खरब (9.5 ट्रिलियन) किलोमीटर के अन्दर होती है। यहां एक ट्रिलियन 1012 (दस खरब, या अरब पैमाने) के रूप में लिया जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ के अनुसार, प्रकाश वर्ष वह दूरी है, जो प्रकाश द्वारा निर्वात में, एक वर्ष में पूरी की जाती है। यह लम्बाई मापने की एक इकाई है जिसे मुख्यत: लम्बी दूरियों यथा दो नक्षत्रों (या ता‍रों) बीच की दूरी या इसी प्रकार की अन्य खगोलीय दूरियों को मापने मैं प्रयोग किया जाता है। .

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बर्नार्ड-तारा

बारनर्ड का तारा अपना आकाश में स्थान बदलता रहता है - यह तस्वीर उसका हर पाँचवे साल का स्थान दर्शा रहा है बारनर्ड का तारा सर्पधारी तारामंडल में नज़र आने वाला एक बहुत ही कम द्रव्यमान (मास) वाला लाल बौना तारा है। यह पृथ्वी से लगभग 6 प्रकाश-वर्ष की दूरी पर स्थित है। मित्र तारे के मंडल के तीन तारों के बाद बारनर्ड का तारा ही पृथ्वी का सब से समीपी तारा है। यह एक M4 श्रेणी का तारा है और पृथ्वी से इसकी चमक (सापेक्ष कान्तिमान) को 9। 54 मैग्नीट्यूड पर मापा गया है। आकाश में यह अपना स्थान बदलता रहता है इसलिए इसे "बारनर्ड का भागता तारा" भी कहते हैं। .

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बहिर्ग्रह

धूल के बादल में फ़ुमलहौत बी ग्रह परिक्रमा करता हुआ पाया गया (हबल अंतरिक्ष दूरबीन द्वारा ली गई तस्वीर) बहिर्ग्रह (exoplanet) या ग़ैर-सौरीय ग्रह (extrasolar planet, ऍक्स्ट्रासोलर प्लैनॅट) ऐसे ग्रह को कहा जाता है जो हमारे सौर मण्डल से बाहर स्थित हो। सन् १९९२ तक खगोलशास्त्रियों को एक भी ग़ैर-सौरीय ग्रह के अस्तित्व का ज्ञान नहीं था, लेकिन उसके बाद बहुत से ऐसे ग्रह मिल चुके हैं। २४ मई २०११ तक ५५२ ग़ैर-सौरीय ग्रह ज्ञात हो चुके थे। क्योंकि इनमें से अधिकतर को सीधा देखने के लिए तकनीकें अभी विकसित नहीं हुई हैं, इसलिए सौ प्रतिशत भरोसे से नहीं कहा जा सकता के वास्तव में यह सारे ग्रह मौजूद हैं, लेकिन इनके तारों पर पड़ रहे गुरुत्वाकर्षक प्रभाव और अन्य लक्षणों से वैज्ञानिक इनके अस्तित्व के बारे में विश्वस्त हैं। अनुमान लगाया जाता है के सूरज की श्रेणी के लगभग १०% तारों के इर्द-गिर्द ग्रह परिक्रमा कर रहे हैं, हालांकि यह संख्या उस से भी अधिक हो सकती है। कॅप्लर अंतरिक्ष क्षोध यान द्वारा एकत्रित जानकारी के बूते पर कुछ वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है के आकाशगंगा (हमारी गैलेक्सी) में कम-से-कम ५० अरब ग्रहों के होने की सम्भावना है। कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने जनवरी २०१३ में अनुमान लगाया कि आकाशगंगा में इस अनुमान से भी दुगने, यानि १०० अरब, ग्रह हो सकते हैं। .

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भारतीय संख्या प्रणाली

भारतीय संख्या प्रणाली भारतीय उपमहाद्वीप की परम्परागत गिनने की प्रणाली है जो भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश और नेपाल में आम इस्तेमाल होती है। जहाँ पश्चिमी प्रणाली में दशमलव के तीन स्थानों पर समूह बनते हैं वहाँ भारतीय प्रणाली में दो स्थानों पर बनते हैं। .

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मलबा चक्र

फ़ुमलहौत तारे के इर्द-गिर्द परिक्रमा करता हुआ मलबा चक्र - (हबल अंतरिक्ष दूरबीन द्वारा ली गई तस्वीर) मलबा चक्र (Debris disk) किसी तारे के इर्द-गिर्द परिक्रमा कर रहा धूल और मलबे का परितारकीय चक्र होता है। कभी-कभी इस चक्र में सामग्री के एकीकरण से छल्ले बन जाते हैं, जैसा कि फ़ुमलहौत तारे के मलबे चक्र में देखा जाता है। मलबे चक्र नवजात और बूढ़े, दोनों प्रकार के तारों में देखे जा चुके हैं। एक न्यूट्रॉन तारे के इर्द-गिर्द भी मलबा चक्र परिक्रमा करता हुआ पाया गया है। मलबे चक्र उस समय बच जाते हैं जब आदिग्रह चक्र का काल ख़त्म होने पर ग्रह बन चुके हों और मलबा बचा हुआ हो। कभी-कभी शिशुग्रहों की टक्करों से भी मलबा चक्र बन सकते हैं। .

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मित्र तारा

मित्र मंडल के तीन तारों और हमारे सूरज के आकारों और रंगों की आपस में तुलना शक्तिशाली दूरबीन के ज़रिये मित्र तारे का एक दृश्य (बीच का सब से रोशन तारा) मित्र "बी" की परिक्रमा करते ग़ैर-सौरीय ग्रह का काल्पनिक चित्रण मित्र या अल्फ़ा सॅन्टौरी, जिसका बायर नाम α Centauri या α Cen है, नरतुरंग तारामंडल का सब से रोशन तारा है। यह पृथ्वी से दिखने वाले तारों में से चौथा सब से रोशन तारा भी है। पृथ्वी से एक दिखने वाला मित्र तारा वास्तव में तीन तारों का बहु तारा मंडल है। इनमें से दो तो एक द्वितारा मंडल में हैं और इन्हें मित्र "ए" और मित्र "बी" कहा जाता है। तीसरा तारा इनसे कुछ दूरी पर है और उसे मित्र "सी" या "प्रॉक्सिमा सॅन्टौरी" का नाम मिला है। सूरज को छोड़कर, प्रॉक्सिमा सॅन्टौरी हमारी पृथ्वी का सब से नज़दीकी तारा है और हमसे 4.24 प्रकाश-वर्ष की दूरी पर है। फिर भी प्रॉक्सिमा सॅन्टौरी इतना छोटा है के बिना दूरबीन के देखा नहीं जा सकता। अक्टूबर २०१२ में वैज्ञनिकों ने घोषणा करी कि मित्र तारा मंडल के एक तारे (मित्र "बी") के इर्द-गिर्द एक ग़ैर-सौरीय ग्रह परिक्रमा करता हुआ पाया गया है। इस ग्रह का नाम 'मित्र बी-बी' (Alpha Centauri Bb) रखा गया और यह पृथ्वी से सब से नज़दीकी ज्ञात ग़ैर-सौरीय ग्रह है लेकिन यह अपने तारे के बहुत पास है और वासयोग्य क्षेत्र में नहीं पड़ता।, Mike Wall, 16 अक्टूबर 2012, NBC News, Accessed: 19 अक्टूबर 2012,...

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लाल बौना

ब्रह्माण्ड में अधिकतर तारे लाल बौने ही हैं - यह लाल बौने का चित्र एक चित्रकार ने अपनी कल्पना से बनाया है खगोलशास्त्र में लाल बौना या रॅड ड्वार्फ़ मुख्य अनुक्रम के एक छोटे और सूर्य की तुलना में ठन्डे, तारे को बोला जाता है जो "K" या "M" की श्रेणी का तारा होता है। इन तारों का रंग हमारे सूरज की तुलना में अधिक लाल होता है जिसकी वजह से इन्हें लाल बौना कहा जाता है। ब्रह्माण्ड में अधिकतर तारे इसी श्रेणी के हैं। इनका सतही तापमान ४,०००° कैल्विन के आसपास होता है। अकार में यह सूर्य के ५०% से लेकर ७.५% तक के होते हैं। इस से भी अगर छोटे हो तो सही अर्थ में तारा बन नहीं पाते और उसके बजाए भूरा बौना बन जाते हैं।, 6 February 2013, Jason Palmer, BBC, retrieved at 11 April 2013 .

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सापेक्ष कांतिमान

क्षुद्रग्रह ६५ सिबअली और २ तारे जिनकें सापेक्ष कान्तिमान (apmag) लिखे गए हैं सापेक्ष कांतिमान किसी खगोलीय वस्तु के पृथ्वी पर बैठे दर्शक द्वारा प्रतीत होने वाले चमकीलेपन को कहते हैं। सापेक्ष कान्तिमान को मापने के लिए यह शर्त होती है कि आकाश में कोई बादल, धूल, वगैरा न हो और वह वस्तु साफ़ देखी जा सके। निरपेक्ष कांतिमान और सापेक्ष कांतिमान दोनों को मापने की इकाई "मैग्निट्यूड" (magnitude) कहलाती है। .

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सिंह तारामंडल

सिंह तारामंडल सन् १८२५ में इंग्लॅण्ड में छपी सिंह तारामंडल के तारों के ऊपर बनी एक तस्वीर सिंह या लिओ (अंग्रेज़ी: Leo) तारामंडल राशिचक्र का एक तारामंडल है। पुरानी खगोलशास्त्रिय पुस्तकों में इसे अक्सर एक बब्बर शेर के रूप में दर्शाया जाता था। आकाश में इसके पश्चिम में धुंधला-सा कर्क तारामंडल होता है और इसके पूर्व में कन्या तारामंडल। .

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सूर्य

सूर्य अथवा सूरज सौरमंडल के केन्द्र में स्थित एक तारा जिसके चारों तरफ पृथ्वी और सौरमंडल के अन्य अवयव घूमते हैं। सूर्य हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा पिंड है और उसका व्यास लगभग १३ लाख ९० हज़ार किलोमीटर है जो पृथ्वी से लगभग १०९ गुना अधिक है। ऊर्जा का यह शक्तिशाली भंडार मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैसों का एक विशाल गोला है। परमाणु विलय की प्रक्रिया द्वारा सूर्य अपने केंद्र में ऊर्जा पैदा करता है। सूर्य से निकली ऊर्जा का छोटा सा भाग ही पृथ्वी पर पहुँचता है जिसमें से १५ प्रतिशत अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है, ३० प्रतिशत पानी को भाप बनाने में काम आता है और बहुत सी ऊर्जा पेड़-पौधे समुद्र सोख लेते हैं। इसकी मजबूत गुरुत्वाकर्षण शक्ति विभिन्न कक्षाओं में घूमते हुए पृथ्वी और अन्य ग्रहों को इसकी तरफ खींच कर रखती है। सूर्य से पृथ्वी की औसत दूरी लगभग १४,९६,००,००० किलोमीटर या ९,२९,६०,००० मील है तथा सूर्य से पृथ्वी पर प्रकाश को आने में ८.३ मिनट का समय लगता है। इसी प्रकाशीय ऊर्जा से प्रकाश-संश्लेषण नामक एक महत्वपूर्ण जैव-रासायनिक अभिक्रिया होती है जो पृथ्वी पर जीवन का आधार है। यह पृथ्वी के जलवायु और मौसम को प्रभावित करता है। सूर्य की सतह का निर्माण हाइड्रोजन, हिलियम, लोहा, निकेल, ऑक्सीजन, सिलिकन, सल्फर, मैग्निसियम, कार्बन, नियोन, कैल्सियम, क्रोमियम तत्वों से हुआ है। इनमें से हाइड्रोजन सूर्य के सतह की मात्रा का ७४ % तथा हिलियम २४ % है। इस जलते हुए गैसीय पिंड को दूरदर्शी यंत्र से देखने पर इसकी सतह पर छोटे-बड़े धब्बे दिखलाई पड़ते हैं। इन्हें सौर कलंक कहा जाता है। ये कलंक अपने स्थान से सरकते हुए दिखाई पड़ते हैं। इससे वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि सूर्य पूरब से पश्चिम की ओर २७ दिनों में अपने अक्ष पर एक परिक्रमा करता है। जिस प्रकार पृथ्वी और अन्य ग्रह सूरज की परिक्रमा करते हैं उसी प्रकार सूरज भी आकाश गंगा के केन्द्र की परिक्रमा करता है। इसको परिक्रमा करनें में २२ से २५ करोड़ वर्ष लगते हैं, इसे एक निहारिका वर्ष भी कहते हैं। इसके परिक्रमा करने की गति २५१ किलोमीटर प्रति सेकेंड है। Barnhart, Robert K. (1995) The Barnhart Concise Dictionary of Etymology, page 776.

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सूर्यपथ

खगोलीय मध्य रेखा पृथ्वी की भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर है और क्रांतिवृत्त से २३.४ डिग्री के कोण पर है। २१ मार्च और २३ सितम्बर (विषुव/इक्विनोक्स के दिन) को क्रांतिवृत्त और खगोलीय मध्य रेखा एक दुसरे को काटती हैं। २१ जून और २१ दिसम्बर (संक्रांति/सॉल्सटिस के दिन) को क्रांतिवृत्त और खगोलीय मध्य रेखा एक दुसरे से चरम दूरी पर होते हैं। खगोलशास्त्र में क्रांतिवृत्त या सूर्यपथ या ऍक्लिप्टिक आकाश के खगोलीय गोले पर वह मार्ग है जिसे ज़मीन पर बैठे किसी दर्शक के दृष्टिकोण से सूरज वर्ष भर में लेता है। आम भाषा में अगर यह कल्पना की जाए के पृथ्वी एक काल्पनिक गोले से घिरी हुई है (जिसे खगोलीय गोला कहा जाता है) और सूरज उसपर स्थित एक रोशनी है, तो अगर सालभर के लिए कोई हर रोज़ दोपहर के बराह बजे सूरज खगोलीय गोले पर जहाँ स्थित है वहाँ एक काल्पनिक बिंदु बना दे और फिर इन ३६५ बिन्दुओं (वर्ष के हर दिन का एक बिंदु) को जोड़ दे और उस रेखा को दोनों तरफ़ बढ़ाकर क्षितिज की ओर ले जाए तो उसे क्रांतिवृत्त मिल जाएगा.

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जल

जल या पानी एक आम रासायनिक पदार्थ है जिसका अणु दो हाइड्रोजन परमाणु और एक ऑक्सीजन परमाणु से बना है - H2O। यह सारे प्राणियों के जीवन का आधार है। आमतौर पर जल शब्द का प्प्रयोग द्रव अवस्था के लिए उपयोग में लाया जाता है पर यह ठोस अवस्था (बर्फ) और गैसीय अवस्था (भाप या जल वाष्प) में भी पाया जाता है। पानी जल-आत्मीय सतहों पर तरल-क्रिस्टल के रूप में भी पाया जाता है। पृथ्वी का लगभग 71% सतह को 1.460 पीटा टन (पीटी) (1021 किलोग्राम) जल से आच्छदित है जो अधिकतर महासागरों और अन्य बड़े जल निकायों का हिस्सा होता है इसके अतिरिक्त, 1.6% भूमिगत जल एक्वीफर और 0.001% जल वाष्प और बादल (इनका गठन हवा में जल के निलंबित ठोस और द्रव कणों से होता है) के रूप में पाया जाता है। खारे जल के महासागरों में पृथ्वी का कुल 97%, हिमनदों और ध्रुवीय बर्फ चोटिओं में 2.4% और अन्य स्रोतों जैसे नदियों, झीलों और तालाबों में 0.6% जल पाया जाता है। पृथ्वी पर जल की एक बहुत छोटी मात्रा, पानी की टंकिओं, जैविक निकायों, विनिर्मित उत्पादों के भीतर और खाद्य भंडार में निहित है। बर्फीली चोटिओं, हिमनद, एक्वीफर या झीलों का जल कई बार धरती पर जीवन के लिए साफ जल उपलब्ध कराता है। जल लगातार एक चक्र में घूमता रहता है जिसे जलचक्र कहते है, इसमे वाष्पीकरण या ट्रांस्पिरेशन, वर्षा और बह कर सागर में पहुॅचना शामिल है। हवा जल वाष्प को स्थल के ऊपर उसी दर से उड़ा ले जाती है जिस गति से यह बहकर सागर में पहँचता है लगभग 36 Tt (1012किलोग्राम) प्रति वर्ष। भूमि पर 107 Tt वर्षा के अलावा, वाष्पीकरण 71 Tt प्रति वर्ष का अतिरिक्त योगदान देता है। साफ और ताजा पेयजल मानवीय और अन्य जीवन के लिए आवश्यक है, लेकिन दुनिया के कई भागों में खासकर विकासशील देशों में भयंकर जलसंकट है और अनुमान है कि 2025 तक विश्व की आधी जनसंख्या इस जलसंकट से दो-चार होगी।.

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वर्णक्रम

एक इन्द्रधनुष के अनगिनत रंग एक वर्णक्रम में व्यवस्थित होते हैं एक तारे के प्रकाश के वर्णक्रम से उस तारे का तापमान और बनावट अनुमानित किया जा सकता है वर्णक्रम या स्पॅकट्रम (spectrum) किसी चीज़ की एक ऐसी व्यवस्था होती है जिसमें उस चीज़ की विविधताएँ किसी गिनती की श्रेणियों में सीमित न हों बल्कि किसी संतात्यक (कन्टिन्यम) में अनगिनत तरह से विविध हो सके। "स्पॅकट्रम" शब्द का इस्तेमाल सब से पहले दृग्विद्या (ऑप्टिक्स) में किया गया था जहाँ इन्द्रधनुष के रंगों में अनगिनत विविधताएँ देखी गयीं। .

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विकिरण

भौतिकी में प्रयुक्त विकिरण ऊर्जा का एक रूप है जो तरंगों या किसी परमाणु या अन्य निकाय द्वारा उत्सर्जित गतिशील उपपरमाणुविक कणों के रूप में उच्च से निम्न ऊर्जा अवस्था की ओर चलती है। विकिरण को परमाणु पदार्थ पर उसके प्रभाव के आधार पर या विआयनीकारक के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। विकिरण जो अणु या परमाणु का आयनीकरण करने मे सक्षम होता है उसमे उर्जा का स्तर विआयनीकारक विकिरण से अधिक होता है। रेडियोधर्मी पदार्थ वो भौतिक पदार्थ है जो कि आयनीकारक विकिरण उत्सर्जित करती है। तीन भिन्न प्रकार के विकिरण और उनका भेदन .

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खगोलीय मैग्निट्यूड

खगोलशास्त्र में खगोलीय मैग्निट्यूड या खगोलीय कान्तिमान किसी खगोलीय वस्तु की चमक का माप है। इसका अनुमान लगाने के लिए लघुगणक (लॉगरिदम) का इस्तेमाल किया जाता है। मैग्निट्यूड के आंकडे परखते हुए एक ध्यान-योग्य चीज़ यह है के किसी वस्तु का मैग्निट्यूड जितना कम हो वह वस्तु उतनी ही अधिक रोशन होती है। पृथ्वी पर बैठे हुए दर्शक के लिए -.

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गामा किरण

गामा किरण (γ-किरण) एक प्रकार का विद्युत चुम्बकीय विकिरण या फोटॉन हैं, जो परमाणु-नाभिक के रेडियोसक्रिय क्षय से उत्पन्न होता है। गामा किरणों के फोटॉनों की ऊर्जा अब तक प्रेक्षित अन्य सभी फोटॉनों की ऊर्जा से अधिक होती है। सन १९०० में फ्रांस के भौतिकशास्त्री पॉल विलार्ड ने इसकी खोज की थी जब वे रेडियम से निकलने वाले विकिरण का अध्ययन कर रहे थे। जब परमाणु का नाभिक एक उच्च ऊर्जा स्तर से निम्न ऊर्जा स्तर पर क्ष्यित होता है तो इस प्रक्रिया में गामा किरणें निकली हैं। इस प्रक्रिया को गामा-क्षय (gamma decay) कहा जाता है। अपने ऊँचे ऊर्जा स्तर के कारण, जैविक कोशिका द्वारा सोख लिए जाने पर अत्यंत नुकसान पहुँचा सकती हैं। .

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केल्विन

कैल्विन (चिन्ह: K) तापमान की मापन इकाई है। यह सात मूल इकाईयों में से एक है। कैल्विन पैमाना ऊष्मगतिकीय तापमान पैमाना है, जहाँ, परिशुद्ध शून्य, पूर्ण ऊर्जा की सैद्धांतिक अनुपस्थिति है, जिसे शून्य कैल्विन भी कहते हैं। (0 K) कैल्विन पैमाना और कैल्विन के नाम ब्रिटिश भौतिक शास्त्री और अभियाँत्रिक विलियम थामसन, प्रथम बैरन कैल्विन (1824–1907) के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने विशुद्ध तापमानमापक पैमाने की आअवश्यकत जतायी थी। .

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