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मनुष्य पितृवंश समूह

सूची मनुष्य पितृवंश समूह

मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह उस वंश समूह या हैपलोग्रुप को कहते हैं जिसका पुरुषों के वाए गुण सूत्र (Y-क्रोमोज़ोम) पर स्थित डी॰एन॰ए॰ की जांच से पता चलता है। अगर दो पुरुषों का पितृवंश समूह मिलता हो तो इसका अर्थ होता है के उनका हजारों साल पूर्व एक ही पुरुष पूर्वज रहा है, चाहे आधुनिक युग में यह दोनों पुरुष अलग-अलग जातियों से सम्बंधित ही क्यों न हों। .

30 संबंधों: डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल, पितृवंश, पितृवंश समूह टी, पितृवंश समूह ऍन, पितृवंश समूह ऍनओ, पितृवंश समूह ऍफ़, पितृवंश समूह ऍम, पितृवंश समूह ऍल, पितृवंश समूह ऍस, पितृवंश समूह ए, पितृवंश समूह एच, पितृवंश समूह डी, पितृवंश समूह पी, पितृवंश समूह बी, पितृवंश समूह सी, पितृवंश समूह जे, पितृवंश समूह जी, पितृवंश समूह ई, पितृवंश समूह ओ, पितृवंश समूह आर, पितृवंश समूह आई, पितृवंश समूह आईजे, पितृवंश समूह आईजेके, पितृवंश समूह क्यु, पितृवंश समूह के, मनुष्य मातृवंश समूह, वाई गुण सूत्र, वंश समूह, आनुवंशिकी, अंग्रेज़ी भाषा

डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल

डीएनए के घुमावदार सीढ़ीनुमा संरचना के एक भाग की त्रिविम (3-D) रूप डी एन ए जीवित कोशिकाओं के गुणसूत्रों में पाए जाने वाले तंतुनुमा अणु को डी-ऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल या डी एन ए कहते हैं। इसमें अनुवांशिक कूट निबद्ध रहता है। डी एन ए अणु की संरचना घुमावदार सीढ़ी की तरह होती है। डीएनए की एक अणु चार अलग-अलग रास वस्तुओं से बना है जिन्हें न्यूक्लियोटाइड कहते है। हर न्यूक्लियोटाइड एक नाइट्रोजन युक्त वस्तु है। इन चार न्यूक्लियोटाइडोन को एडेनिन, ग्वानिन, थाइमिन और साइटोसिन कहा जाता है। इन न्यूक्लियोटाइडोन से युक्त डिऑक्सीराइबोस नाम का एक शक्कर भी पाया जाता है। इन न्यूक्लियोटाइडोन को एक फॉस्फेट की अणु जोड़ती है। न्यूक्लियोटाइडोन के सम्बन्ध के अनुसार एक कोशिका के लिए अवश्य प्रोटीनों की निर्माण होता है। अतः डी इन ए हर एक जीवित कोशिका के लिए अनिवार्य है। डीएनए आमतौर पर क्रोमोसोम के रूप में होता है। एक कोशिका में गुणसूत्रों के सेट अपने जीनोम का निर्माण करता है; मानव जीनोम 46 गुणसूत्रों की व्यवस्था में डीएनए के लगभग 3 अरब आधार जोड़े है। जीन में आनुवंशिक जानकारी के प्रसारण की पूरक आधार बाँधना के माध्यम से हासिल की है। उदाहरण के लिए, एक कोशिका एक जीन में जानकारी का उपयोग करता है जब प्रतिलेखन में, डीएनए अनुक्रम डीएनए और सही आरएनए न्यूक्लियोटाइडों के बीच आकर्षण के माध्यम से एक पूरक शाही सेना अनुक्रम में नकल है। आमतौर पर, यह आरएनए की नकल तो शाही सेना न्यूक्लियोटाइडों के बीच एक ही बातचीत पर निर्भर करता है जो अनुवाद नामक प्रक्रिया में एक मिलान प्रोटीन अनुक्रम बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। वैकल्पिक भानुमति में एक कोशिका बस एक प्रक्रिया बुलाया डीएनए प्रतिकृति में अपने आनुवंशिक जानकारी कॉपी कर सकते हैं। डी एन ए की रूपचित्र की खोज अंग्रेजी वैज्ञानिक जेम्स वॉटसन और के द्वारा सन १९५३ में किया गया था। इस खोज के लिए उन्हें सन १९६२ में नोबेल पुरस्कार सम्मानित किया गया। .

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पितृवंश

पापुआ न्यू गिनी के अधिकतर जनजाति समाज पितृवंशीय हैं पितृवंश पूर्वजों का ब्यौरा देने की उस प्रणाली को कहते हैं जिसमें पिता और फिर उसकी पुरुष पूर्वजों को देखते हुए वंश खींचा जाए। पितृवंशीय व्यवस्था किसी उस सामाजिक प्रणाली को कहते हैं जिसमें कोई व्यक्ति पारिवारिक रूप से अपने पिता और उसके पितृवंश का भाग माना जाता है। आम तौर से पितृवंश व्यवस्था में कुल पुत्रों के द्वारा चलता है और परिवार का नेतृत्व उस परिवार में पैदा हुआ सबसे अधिक उम्र का पुरुष करता है। ऐसे समाजों में सम्पत्ति और उपाधियाँ भी बेटों को मिला करती है। .

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पितृवंश समूह टी

दुनिया में पितृवंश समूह टी का फैलाव - आंकड़े बता रहे हैं के किस इलाक़े के कितने प्रतिशत पुरुष इसके वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह टी या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप T एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह के से उत्पन्न हुई एक शाखा है। इस पितृवंश के पुरुष भारतीय उपमहाद्वीप के कुछ समुदायों में मिलते हैं। दक्षिण भारत के येरुकाला आदिवासी, पश्चिम बंगाल के बाओड़ी जनजाति और राजस्थान के लोधा समुदाय के अधिकांश पुरुष इसके वंशज हैं। अफ़्रीका में सोमालिया और दक्षिणी मिस्र के पुरुषों में इसके वंशज भारी मात्रा में पाए जाते हैं। ईरान में केरमान शहर के पारसी समुदाय और दक्षिण-पश्चिमी ईरान के बख्तिआरी बंजारा समुदाय में भी इसके काफ़ी वंशज मिलते हैं। यूरोप में जर्मनी, इटली के सार्दिनिया द्वीप, स्पेन और पुर्तगाल में इसके सदस्य मिलते हैं। उत्तर-पूर्वी पुर्तगाल के यहूदी समुदाय में इसके वंशज भारी मात्रा में मौजूद हैं। माना जाता है के मूल पितृवंश समूह टी जिस पुरुष के साथ आरम्भ हुआ वह आज से २५,०००-३०,००० साल पहले मध्य पूर्व का रहने वाला था। .

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पितृवंश समूह ऍन

रूस के साइबेरिया क्षेत्र के नॅनॅत्स जनजाति के ७५% पुरुष पितृवंश समूह ऍन के वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह ऍन या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप N एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह ऍनओ से उत्पन्न हुई एक शाखा है। इस पितृवंश के पुरुष अधिकतर यूरेशिया के सुदूर उत्तरी इलाक़ों में पाए जाते हैं, जैसे कि साइबेरिया, उत्तरी रूस, फिनलैंड, लातविया, लिथुआनिया और एस्टोनिया। साइबेरिया की याकूत और नॅनॅत्स जनजातियों के ७५% पुरुष, फिनलैंड की सामी जनजाति के ४०% पुरुष और फिनलैंड की ही बहुसंख्यक फ़िन्न जाती के ६०% पुरुष इस पितृवंश समूह के सदस्य हैं। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग १५,०००-२०,००० वर्ष पहले सुदूर पूर्व एशिया का निवासी था। .

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पितृवंश समूह ऍनओ

मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह ऍनओ या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप NO एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह के (ऍक्सऍलटी) से उत्पन्न हुई एक शाखा है। विश्व में इसकी उपशाखाओं - पितृवंश समूह ऍन और पितृवंश समूह ओ - के तो बहुत पुरुष मिलते हैं, लेकिन सीधा पितृवंश समूह ऍनओ का सदस्य आज तक कोई नहीं मिला है। फिर भी वैज्ञानिकों का मानना है के इसे समूह के वंशज कभी ज़रूर रहे होंगे। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ३०,०००-४०,००० वर्ष पहले एशिया में अरल सागर से पूर्व की ओर कहीं रहता था।Rootsi, Siiri et al.

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पितृवंश समूह ऍफ़

पितृवंश समूह ऍफ़ की शुरुआत भारतीय उपमहाद्वीप या मध्य पूर्व में हुई और इस पितृवंश की शाखाओं आगे चलकर हर दिशा में फैल गयी - विश्व के ९०% पुरुष इसकी उपशाखाओं के ही वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह ऍफ़ या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप F एक पितृवंश समूह है। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ५०,००० वर्ष पहले भारतीय उपमहाद्वीप या मध्य पूर्व में रहता था। इस पितृवंश से आगे चलकर बहुत सी पितृवंश उपशाखाएँ बनी और विश्व के ९०% पुरुष इन्ही उपशाखाओं के वंशज हैं। क्योंकि यह पितृवंश मनुष्यों के अफ़्रीका से निकलने के बाद ही उत्पन्न हुआ इसलिए इस पितृवंश के पुरुष उप-सहारा अफ़्रीका के क्षेत्रों में बहुत कम ही मिलते हैं। बाक़ी विश्व में ऐसे पुरुष जो सीधा इस पितृवंश के सदस्य हैं (यानि की इसकी उपशाखाओं के नहीं बल्कि केवल पितृवंश समूह ऍफ़ के वंशज हैं) भारत, उत्तरी पुर्तगाल, चीन के यून्नान राज्य के पहाड़ी इलाकों और कोरिया में पाए जाते हैं। भारतीय पुरुषों में से १२.५% इसके सीधे सदस्य हैं, लेकिन भारतीय जनजातियों के पुरुषों में यह मात्र बढ़ कर १८.१% पर देखी गयी है। कोरियाई पुरुषों में से ८% इस पितृवंश समूह की संतति हैं। पुर्तगाल में इसकी ०.५% तक की हलकी मौजूदगी का कारण भारतीय पुरुषों के साथ संबंधों को माना जाता है, क्योंकि पुर्तगाल और भारत का ५०० वर्ष तक संपर्क रहा है। चीन में इसे ज़्यादातर युन्नान क्षेत्र की लाहू जनजाति में देखा गया है। .

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पितृवंश समूह ऍम

पितृवंश समूह ऍम का ओशिआनिया में फैलाव - आंकड़े बता रहें हैं के इन इलाकों के कितने प्रतिशत पुरुष इस पितृवंश के वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह ऍम या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप M एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह ऍमऍनओपीऍस से उत्पन्न हुई एक शाखा है। इस पितृवंश के पुरुष अधिकतर ओशिआनिया के द्वीप राष्ट्रों में मिलते हैं, जैसे की नया गिनी, फ़िजी, टोंगा, सोलोमन द्वीपसमूह, वग़ैराह। पश्चिमी नया गिनी में (जो इण्डोनेशिया का एक राज्य है) अधिकाँश पुरुष इसी पितृवंश समूह के वंशज हैं। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ३२,०००-४७,००० वर्ष पहले दक्षिण पूर्व एशिया या ओशिआनिया के मॅलानिशिया क्षेत्र में रहता था।Laura Scheinfeldt, Françoise Friedlaender, Jonathan Friedlaender, Krista Latham, George Koki, Tatyana Karafet, Michael Hammer and Joseph Lorenz, "," Molecular Biology and Evolution 2006 23(8):1628-1641 .

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पितृवंश समूह ऍल

दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व में पितृवंश समूह ऍल का फैलाव - आंकड़े बताते हैं के उस इलाक़े के कितने प्रतिशत पुरुष इसके वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह ऍल या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप L एक पितृवंश समूह है। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से २५,००० वर्ष पहले भारतीय उपमहाद्वीप का निवासी था। इस पितृवंश समूह के सदस्य पुरुष ज़्यादातर भारत और पाकिस्तान में पाए जाते हैं। मध्य एशिया, मध्य पूर्व और दक्षिण यूरोप के भी कुछ पुरुष इस पितृवंश के वंशज हैं। सारे भारतीय पुरुषों में से ७%-२०% इसके वंशज हैं। लगभग ७% पठान इसके वंशज हैं। सीरिया के एक अल राक्क़ाह नाम के शहर के तो ५१% पुरुष इसके वंशज पाए गएँ हैं।Mirvat El-Sibai et al."Geographical Structure of the Y-chromosomal Genetic Landscape of the Levant: A coastal-inland contrast"," 'Annals of Human Genetics (2009) .

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पितृवंश समूह ऍस

ओशिआनिया में पितृवंश समूह ऍस का फैलाव - आंकड़े बता रहे हैं के किसी भी इलाक़े के कितने प्रतिशत पुरुष इसके वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह ऍस या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप S एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह ऍमऍनओपीऍस से उत्पन्न हुई एक शाखा है। इस पितृवंश के पुरुष ज़्यादातर ओशिआनिया के मेलानेशिया क्षेत्र में बसते हैं, लेकिन कुछ-कुछ इण्डोनेशिया के नज़दीकी हिस्सों में भी पाए जाते हैं। माना जाता है के मूल पितृवंश समूह ऍस जिस पुरुष के साथ आरम्भ हुआ वह आज से २८,०००-४१,००० साल पहले नया गिनी या उसके इर्द-गिर्द के किसी इलाक़े का रहने वाला था।Laura Scheinfeldt, Françoise Friedlaender, Jonathan Friedlaender, Krista Latham, George Koki, Tatyana Karafet, Michael Hammer and Joseph Lorenz, "," Molecular Biology and Evolution 2006 23(8):1628-1641 .

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पितृवंश समूह ए

दक्षिण अफ्रीका की बुशमैन जनजातियों के पुरुष अक्सर पितृवंश समूह ए के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह ए या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप A एक अत्यंत प्राचीनतम पितृवंश समूह है। पितृवंश समूह बी (B) और यह विश्व के दो सब से प्राचीन पितृवंश माने जाते हैं। इस पितृवंश समूह के सदस्य पुरुष ज़्यादातर अफ़्रीका के सुदूर दक्षिणी क्षेत्रों में और नील नदी के दक्षिण वाले क्षेत्र में पाए जाते हैं। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से ७५,००० वर्ष पूर्व इसी इलाक़े में रहता था। .

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पितृवंश समूह एच

रोमा समुदाय के भी कुछ पुरुष पितृवंश समूह एच के वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह एच या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप H एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह ऍफ़ से उत्पन्न हुई एक शाखा है। इस पितृवंश के पुरुष अधिकतर भारतीय उपमहाद्वीप में ही मिलते हैं, हालाँकि यूरोप में रोमा समुदाय के भी कुछ पुरुष इसके वंशज हैं, क्योंकि उनमें से बहुत भारतीय मूल के हैं। भारत में यह आदिवासियों में २५-३५% पुरुषों में पाया जाता है और सुवर्ण समुदायों के लगभग १०% पुरुषों में। मध्य पूर्व और मध्य एशिया के कुर्द, ईरानी, ताजिक, उइग़ुर और अन्य समुदायों में भी यह १% से १२% पुरुषों में पाया गया है। माना जाता है के पितृवंश समूह एच जिस पुरुष के साथ आरम्भ हुआ वह आज से २०,०००-३०,००० साल पहले दक्षिण एशिया का रहने वाला था। .

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पितृवंश समूह डी

बहुत से भारतीय अंडमानी आदिवासी पुरुष पितृवंश समूह डी के वंशज हैं, जो जापानी और तिब्बती पुरुषों में भी आम है मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह डी या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप D पितृवंश समूह है। इस पितृवंश समूह के सदस्य पुरुष ज़्यादातर तिब्बत, जापान और अंडमान द्वीपों में पाए जाते हैं। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से ५०,००० या ६०,००० वर्ष पहले एशिया के महाद्वीप में कहीं रहता था, लेकिन इस से आगे उसके निवास स्थान का ठीक से अनुमान नहीं लग पाया है। यह पितृवंश समूह बहुत प्राचीन माना जाता है और अंदाज़ा है इसकी उत्पत्ति मनुष्यों के अफ़्रीका छोड़ने के जल्द बाद ही हो गयी थी। एशिया के बाहर यह पितृवंश समूह किसी पुरुष में कहीं नहीं पाया गया है। यह पुरुष स्वयं पितृवंश समूह डीई (DE) का वंशज था और पितृवंश समूह डी को पितृवंश समूह डीई की एक शाखा माना जाता है। .

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पितृवंश समूह पी

भारत के माडिया गोंड समुदाय के २५% पुरुष पितृवंश समूह पी के वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह पी या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप P एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह ऍमऍनओपीऍस से उत्पन्न हुई एक शाखा है। इस पितृवंश के पुरुष भारत में कुछ समुदायों में ही मिलते हैं - मणिपुर के ३०% मुस्लिम पुरुष और गोंड जनजाति की माडिया शाखा के २५% पुरुष इसके सदस्य हैं। यूरोप में क्रोएशिया के ह्वार द्वीप पर भी कुछ पुरुष इसके वंशज हैं। चाहे पितृवंश समूह पी के सीधे वंशज कम हों, लेकिन इस से उत्पन्न क्यु और आर उपशाखाओं के वंशज यूरोप, मध्य एशिया, दक्षिण एशिया, उत्तर अमेरिका और दक्षिण अमेरिका पर करोड़ों की संख्या में दूर-दूर तक फैले हुए हैं। अनुमान है के जिस पुरुष से पितृवंश समूह पी शुरू हुआ वह आज से लगभग २७,०००-४१,००० वर्ष पहले जीवित था और मध्य एशिया या साइबेरिया में रहता था। .

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पितृवंश समूह बी

अफ्रीका की पिग्मी जनजाति के पुरुष अक्सर पितृवंश समूह बी के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह बी या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप B एक अत्यंत प्राचीनतम पितृवंश समूह है। पितृवंश समूह ए (A) और यह विश्व के दो सब से प्राचीन पितृवंश माने जाते हैं। इस पितृवंश समूह के सदस्य पुरुष ज़्यादातर उप-सहारा अफ़्रीका के क्षेत्रों में और पश्चिम-मध्य अफ़्रीका के घने जंगलों में पाए जाते हैं। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से ६०,००० वर्ष पहले पूर्वी अफ़्रीका के इलाक़े में रहता था। .

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पितृवंश समूह सी

पितृवंश समूह सी की शुरुआत भारतीय उपमहाद्वीप या मध्य पूर्व में हुई जब मनुष्य अफ्रीका से नए-नए पूर्व की और निकले थे - इस पितृवंश की शाखाओं के वंशजों ने आगे चलकर पूर्वी एशिया और उत्तरी अमरीका को मनुष्यों से सर्वप्रथम आबाद किया मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह सी या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप C एक पितृवंश समूह है। इस पितृवंश समूह के सदस्य पुरुष भारत और मंगोलिया, रूस के सुदूर पूर्व, ऑस्ट्रेलिया के आदिवासियों और कोरिया में पाए जाते हैं। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ६०,००० वर्ष पहले भारतीय उपमहाद्वीप या मध्य पूर्व में रहता था। मानना है के जब इस पितृवंश की शुरुआत हुई तो मनाव अफ्रीका के अपने जन्मस्थल से नए-नए पूर्व की ओर निकले थे। इस पितृवंश समूह की शाखाओं के वंशजों ने आगे चलकर पूर्वी एशिया और उत्तरी अमरीका में मनुष्यों की जाती को सर्वप्रथम स्थापित किया। .

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पितृवंश समूह जे

पितृवंश समूह जे का मध्य पूर्व और अरबी प्रायद्वीप में फैलाव। आंकड़े बता रहें हैं के इन इलाकों के कितने प्रतिशत पुरुष इस पितृवंश के वंशज हैं। भारत तक इसका हल्का फैलाव देखा जा सकता है। मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह जे या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप J एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह आईजे से उत्पन्न हुई एक शाखा है। इस पितृवंश के पुरुष अधिकतर मध्य पूर्व और अरबी प्रायद्वीप में मिलते हैं, हालांकि भारतीय उपमहाद्वीप, मध्य एशिया और दक्षिण यूरोप के कुछ पुरुष भी इसके सदस्य हैं। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ३०,०००-५०,००० वर्ष पहले अरबी प्रायद्वीप में या उसके आस-पास रहता था। भारत में इसकी उपशाखा पितृवंश समूह जे२ के वंशज पुरुष अधिक मिलते हैं। ठीक यही उपशाखा भूमध्य सागर के इर्द-गिर्द के इलाक़ों में भी मिलती है। .

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पितृवंश समूह जी

मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह जी या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप G एक पितृवंश समूह है। जिस पुरुष से इस पितृवंश समूह की शुरुआत हुई उसके जीवनकाल का ठीक से अंदाज़ा नहीं लग पाया है, लेकिन अनुमान किया जाता है के वह आज से ९,५०० से लेकर २०,००० साल के अंतराल में कभी या तो मध्य पूर्व में या एशिया में कहीं बसता था। यह पुरुष स्वयं पितृवंश समूह ऍफ़ का वंशज था और इसलिए पितृवंश समूह जी को पितृवंश समूह ऍफ़ की उपशाखा माना जाता है। पितृवंश समूह जी के वंशज पुरुष हलकी मात्रा में पूरे यूरोप, उत्तर एशिया, मध्य पूर्व, उत्तर अफ़्रीका, भारत, श्रीलंका और मलेशिया में पाए जाते हैं। .

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पितृवंश समूह ई

अफ्रीका, यूरोप और मध्य पूर्व में पितृवंश समूह ई का फैलाव - आंकड़े बताते हैं के किस इलाक़े के कितने प्रतिशत पुरुष इसके वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह ई या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप E पितृवंश समूह है। इस पितृवंश समूह के सदस्य पुरुष ज़्यादातर अफ्रीका में पाए जाते हैं, हालाँकि इस पितृवंश समूह की एक उपशाखा है, जिसका नाम ई१बी१बी है, जो उत्तर और पूर्वी अफ्रीका के साथ-साथ एशिया और यूरोप के कुछ पुरुषों में भी पाई जाती है। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से ५०,००० या ५५,००० वर्ष पहले पूर्वी अफ्रीका में कहीं रहता था।Karafet et al.

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पितृवंश समूह ओ

पितृवंश समूह ओ का फैलाव। आंकड़े बता रहें हैं के इन इलाकों के कितने प्रतिशत पुरुष इस पितृवंश के वंशज हैं। ध्यान दीजिये के इसके वंशज पुरुष केवल पूर्वी एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और अफ़्रीका के नज़दीक वाले मेडागास्कर द्वीप पर ही मौजूद हैं। मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह ओ या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप O एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह ऍनओ से उत्पन्न हुई एक शाखा है। इस पितृवंश के पुरुष पूर्वी एशिया या दक्षिण पूर्व एशिया के इलाक़ों में पाए जाते हैं और उस से बाहर बहुत कम मिलते हैं। इस इलाक़े के अतिरिक्त इसके वंशज केवल अफ़्रीका के नज़दीक स्थित मेडागास्कर द्वीप पर मिलते हैं, क्योंकि इस द्वीप को सैंकड़ों वर्ष पहले समुद्री रास्ते से आये इण्डोनेशिया के लोगों ने ही आबाद किया था। पूर्वी भारत और बंगलादेश में भी इसके वंशज पुरुष मिलतें हैं क्योंकि यह क्षेत्र पूर्वी एशिया के पड़ौसी हैं। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग २८,०००-४१,००० वर्ष पहले पूर्वी एशिया या दक्षिण पूर्व एशिया का निवासी था।Laura Scheinfeldt, Françoise Friedlaender, Jonathan Friedlaender, Krista Latham, George Koki, Tatyana Karafet, Michael Hammer and Joseph Lorenz, "," Molecular Biology and Evolution 2006 23(8):1628-1641 .

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पितृवंश समूह आर

दुनिया में पितृवंश समूह आर की उपशाखाओं का फैलाव - आंकड़े बता रहे हैं के किसी भी इलाक़े के कितने प्रतिशत पुरुष इसके वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह आर या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप R एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह पी से उत्पन्न हुई एक शाखा है। इस पितृवंश की आर१ए, आर१बी और आर२ उपशाखाओं के पुरुष ज़्यादातर यूरोप, मध्य एशिया, पूर्वी एशिया, पश्चिमी एशिया, उत्तर अमेरिका और दक्षिण एशिया में पाए जाते हैं। इसकी आर१ शाखा के पुरुष उत्तर अमेरिका के कुछ आदिवासी समुदायों में भी पाए जाते हैं और विचार है के इनके पूर्वज शायद चंद हज़ार साल पहले ही साइबेरिया से उत्तर अमेरिकी उपमहाद्वीप पहुंचे थे। माना जाता है के मूल पितृवंश समूह आर जिस पुरुष के साथ आरम्भ हुआ वह आज से ३५,०००-४०,००० साल पहले मध्य एशिया या मध्य पूर्व का रहने वाला था। .

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पितृवंश समूह आई

पितृवंश समूह आई का यूरोप और तुर्की में फैलाव - आंकड़े बता रहें हैं के इन इलाकों के कितने प्रतिशत पुरुष इस पितृवंश के वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह आई या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप I एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह आईजे से उत्पन्न हुई एक शाखा है। इस पितृवंश के पुरुष अधिकतर यूरोप और तुर्की में ही मिलते हैं, हालांकि मध्य पूर्व और मध्य एशिया के कुछ पुरुष भी इसके सदस्य हैं। सारे यूरोपीय पुरुषों में से लगभग २०% पुरुष इसके वंशज हैं, लेकिन कुछ स्थानों पर यह तादाद ज़्यादा है, जैसे की बॉस्निया और हर्ज़ेगोविना के लगभग ६५% पुरुष इसके सदस्य हैं। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग २५,०००-३०,००० वर्ष पहले यूरोप या तुर्की के अनातोलिया क्षेत्र में रहता था। .

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पितृवंश समूह आईजे

मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह आईजे या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप IJ एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह आईजेके से उत्पन्न हुई एक शाखा है। विश्व में इसकी दो उपशाखाओं - पितृवंश समूह आई और पितृवंश समूह जे - के तो बहुत पुरुष मिलते हैं, लेकिन सीधा पितृवंश समूह आईजे का सदस्य आज तक कोई नहीं मिला है। फिर भी पितृवंश समूह आई और पितृवंश समूह जे का अध्ययन करने के बाद वैज्ञानिकों का मानना है के इसे समूह के वंशज कभी ज़रूर रहे होंगे। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ३५,०००-४०,००० वर्ष पहले मध्य पूर्व या दक्षिण-पश्चिमी एशिया में रहता था। .

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पितृवंश समूह आईजेके

मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह आईजेके या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप IJK एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह ऍफ़ से उत्पन्न हुई एक शाखा है और आगे चलकर इसकी स्वयं दो शाखाएँ हैं - पितृवंश समूह आईजे और पितृवंश समूह के। सीधा पितृवंश समूह आईजेके का सदस्य आज तक कोई नहीं मिला है और न ही कोई सीधा पितृवंश समूह आईजे का सदस्य मिला है। फिर भी पितृवंश समूह आई, पितृवंश समूह जे और पितृवंश समूह के का अध्ययन करने के बाद वैज्ञानिकों का मानना है के आईजेके और आईजे दोनों समूह कभी अस्तित्व में ज़रूर थे चाहे उनके सदस्य बहुत ही कम संख्या में ही क्यों न रहे हों। अनुमान है के जिस पुरुष से यह आईजेके पितृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ४०,०००-४५,००० वर्ष पहले पश्चिम एशिया में रहता था। .

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पितृवंश समूह क्यु

पितृवंश समूह क्यु का फैलाव। आंकड़े बता रहें हैं के इन इलाकों के कितने प्रतिशत पुरुष इस पितृवंश के वंशज हैं। मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह क्यु या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप Q एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह पी से उत्पन्न हुई एक शाखा है। इस पितृवंश के पुरुष मध्य एशिया के सभी समुदायों में और उत्तरी एशिया, उत्तर अमेरिका और दक्षिण अमेरिका के आदिवासी समुदायों में पाए जाते हैं। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग १७,०००-२२,००० वर्ष पहले जीवित था, लेकिन इस बात पर विवाद है के वह किस क्षेत्र का निवासी था। कुछ विशेषज्ञों का कहना है की वह मध्य एशिया में रहता था, लेकिन अन्य वैज्ञानिक भारतीय उपमहाद्वीप या साइबेरिया को उसका घर बताते हैं। भारत में इसकी एक अनूठी उपशाखा मिली है, लेकिन यह बहुत ही कम संख्या के भारतीय पुरुषों में पायी गयी है। .

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पितृवंश समूह के

ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी समुदायों के कई पुरुष पितृवंश समूह 'के' (K) के वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह के या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप K एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह आईजेके से उत्पन्न हुई एक शाखा है। अंदाज़ा लगाया जाता है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ४७,००० वर्ष पहले दक्षिण एशिया या पश्चिम एशिया में रहता था। इस पितृवंश समूह के सदस्य ओशिआनिया के द्वीपों पर और ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी समुदायों में मिलते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप, इण्डोनेशिया और फ़िलीपीन्स के भी आदिवासी समुदायों में भी बहुत कम संख्या में भी इसके वंशज पुरुष मिलते हैं। .

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मनुष्य मातृवंश समूह

मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह उस वंश समूह या हैपलोग्रुप को कहते हैं जिसका किसी भी व्यक्ति (स्त्री या महिला) के माइटोकांड्रिया के गुण सूत्र पर स्थित डी॰एन॰ए॰ की जांच से पता चलता है। अगर दो व्यक्तियों का मातृवंश समूह मिलता हो तो इसका अर्थ होता है के उनकी हजारों साल पूर्व एक ही महिला पूर्वज रही है, चाहे आधुनिक युग में यह दोनों व्यक्ति अलग-अलग जातियों से सम्बंधित ही क्यों न हों। .

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वाई गुण सूत्र

वाई गुण सूत्र के विभिन्न हिस्सों का चित्रण वाई गुण सूत्र किसी भी स्तनधारी श्रेणी के जानवर (जिसमें मनुष्य भी शामिल हैं) में लिंग की पहचान देने वाला एक गुण सूत्र है। इन जीवों में केवल ऐसे दो लिंग-भेद करने वाले गुण सूत्र होते हैं - एक्स गुण सूत्र और वाई गुण सूत्र। इनका नाम अंग्रेज़ी के "X" और "Y" अक्षरों पर पड़ा है क्योंकि इनके आकार उनसे मिलते-जुलते हैं। नरों में एक वाई और एक एक्स गुण सूत्र होता है, जबकि मादाओं में दो एक्स गुण सूत्र होते हैं। साधारण तौर पर किसी भी पिता का यह इकलौता वाई गुण सूत्र बिना किसी बदलाव के उसके पुत्रों में जाता है। इसलिए वाई गुण सूत्र के अध्ययन से किसी भी पुरुष के पितृवंश समूह का पता लगाया जा सकता है। वाई गुण सूत्र पर एक एस॰आर॰वाई॰ (SRY) नाम की जीन मौजूद होती है जो नर की विकास-आयु में शरीर को अंडकोषों को विकसित करने का आदेश देती है।, Institute of Medicine (U.S.). Committee on Understanding the Biology of Sex and Gender Differences, Theresa M. Wizemann, Mary Lou Pardue, National Academies Press, 2001, ISBN 978-0-309-07281-6,...

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वंश समूह

आण्विक क्रम-विकास के अध्ययन में वंश समूह या हैपलोग्रुप ऐसे जीन के समूह को कहतें हैं जिनसे यह ज्ञात होता है के उस समूह को धारण करने वाले सभी प्राणियों का एक ही पूर्वज था। .

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आनुवंशिकी

पैतृक गुणसूत्रों के पुनर्संयोजन के फलस्वरूप एक ही पीढी की संतानें भी भिन्न हो सकती हैं। आनुवंशिकी (जेनेटिक्स) जीव विज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत आनुवंशिकता (हेरेडिटी) तथा जीवों की विभिन्नताओं (वैरिएशन) का अध्ययन किया जाता है। आनुवंशिकता के अध्ययन में ग्रेगर जॉन मेंडेल की मूलभूत उपलब्धियों को आजकल आनुवंशिकी के अंतर्गत समाहित कर लिया गया है। प्रत्येक सजीव प्राणी का निर्माण मूल रूप से कोशिकाओं द्वारा ही हुआ होता है। इन कोशिकाओं में कुछ गुणसूत्र (क्रोमोसोम) पाए जाते हैं। इनकी संख्या प्रत्येक जाति (स्पीशीज) में निश्चित होती है। इन गुणसूत्रों के अंदर माला की मोतियों की भाँति कुछ डी एन ए की रासायनिक इकाइयाँ पाई जाती हैं जिन्हें जीन कहते हैं। ये जीन गुणसूत्र के लक्षणों अथवा गुणों के प्रकट होने, कार्य करने और अर्जित करने के लिए जिम्मेवार होते हैं। इस विज्ञान का मूल उद्देश्य आनुवंशिकता के ढंगों (पैटर्न) का अध्ययन करना है अर्थात्‌ संतति अपने जनकों से किस प्रकार मिलती जुलती अथवा भिन्न होती है। .

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अंग्रेज़ी भाषा

अंग्रेज़ी भाषा (अंग्रेज़ी: English हिन्दी उच्चारण: इंग्लिश) हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार में आती है और इस दृष्टि से हिंदी, उर्दू, फ़ारसी आदि के साथ इसका दूर का संबंध बनता है। ये इस परिवार की जर्मनिक शाखा में रखी जाती है। इसे दुनिया की सर्वप्रथम अन्तरराष्ट्रीय भाषा माना जाता है। ये दुनिया के कई देशों की मुख्य राजभाषा है और आज के दौर में कई देशों में (मुख्यतः भूतपूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों में) विज्ञान, कम्प्यूटर, साहित्य, राजनीति और उच्च शिक्षा की भी मुख्य भाषा है। अंग्रेज़ी भाषा रोमन लिपि में लिखी जाती है। यह एक पश्चिम जर्मेनिक भाषा है जिसकी उत्पत्ति एंग्लो-सेक्सन इंग्लैंड में हुई थी। संयुक्त राज्य अमेरिका के 19 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध और ब्रिटिश साम्राज्य के 18 वीं, 19 वीं और 20 वीं शताब्दी के सैन्य, वैज्ञानिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव के परिणाम स्वरूप यह दुनिया के कई भागों में सामान्य (बोलचाल की) भाषा बन गई है। कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों और राष्ट्रमंडल देशों में बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल एक द्वितीय भाषा और अधिकारिक भाषा के रूप में होता है। ऐतिहासिक दृष्टि से, अंग्रेजी भाषा की उत्पत्ति ५वीं शताब्दी की शुरुआत से इंग्लैंड में बसने वाले एंग्लो-सेक्सन लोगों द्वारा लायी गयी अनेक बोलियों, जिन्हें अब पुरानी अंग्रेजी कहा जाता है, से हुई है। वाइकिंग हमलावरों की प्राचीन नोर्स भाषा का अंग्रेजी भाषा पर गहरा प्रभाव पड़ा है। नॉर्मन विजय के बाद पुरानी अंग्रेजी का विकास मध्य अंग्रेजी के रूप में हुआ, इसके लिए नॉर्मन शब्दावली और वर्तनी के नियमों का भारी मात्र में उपयोग हुआ। वहां से आधुनिक अंग्रेजी का विकास हुआ और अभी भी इसमें अनेक भाषाओँ से विदेशी शब्दों को अपनाने और साथ ही साथ नए शब्दों को गढ़ने की प्रक्रिया निरंतर जारी है। एक बड़ी मात्र में अंग्रेजी के शब्दों, खासकर तकनीकी शब्दों, का गठन प्राचीन ग्रीक और लैटिन की जड़ों पर आधारित है। .

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